जीवनसाथी – निभा राजीव

निशा जी के पति रजत जी को रिटायर हुए 5 वर्ष हो चुके थे। उनका इकलौता बेटा अमेरिका में कार्यरत था और परिवार के साथ वही बस चुका था। शुरु शुरु में वो हर दिन कॉल करता था, पर अब कभी कभार भूले भटके ही उनकी खबर ले लिया करता है। मन पर पत्थर रख कर निशा जी और रजत जी ने इसी में सन्तोष कर लिया।  यहाँ उनका पुश्तैनी मकान था, जहाँ बस निशा जी और उसके पति रजत जी रह गये थे।  रजत जी खाली समय में अगल-बगल के बच्चों को पढ़ा कर अपना समय बिताया करते थे और निशा जी घर की देखभाल बड़े प्यार से किया करती थी। और रजतजी की पेंशन से घर का खर्च चलता था। रजतजी रोज सुबह मॉर्निंग वॉक पर जाया करते थे, और तब तक निशाजी नहा धोकर चाय और नाश्ता बना कर रखती थीँ। रजत जी के आने के बाद दोनो साथ में नाश्ता करते थे। और फिर नित्य की दिनचर्या शुरू हो जाती थी।

   उस दिन सुबह से ही निशा जी का सिर कुछ भारी सा लग रहा था। रात होते-होते उन्हें बुखार आ गया। वह किसी प्रकार सारे काम निपटा कर दवाई लेकर वह सो गईं। सुबह उठीं तो सर दर्द से फटा जा रहा था।उन्होंने आंख मूँदे मूँदे ही अपने पति को आवाज दी। पर कोई प्रत्युत्तर ना पाकर उन्होंने आंखें खोली तो बगल में पति को नहीं पाया। वह समझ गईं कि पति मॉर्निंग वॉक पर जा चुके हैं। एक कप चाय पीने की तीव्र इच्छा हो रही थी, पर शरीर में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह उठकर चाय बना पाती। रजत जी  को मालूम था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, फिर भी सुबह उठकर भी एक बार भी उनका हाल-चाल नहीं पूछा और आराम से मॉर्निंग वॉक पर चले गए।… यह सोचकर उनकी आंखें भर आई कि इस घर को संभालने के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया। अपने सारे सुखों और स्वप्नों की तिलांजलि दे दी, पर आज किसी को उनकी कोई चिंता नहीं है। वह आँखें बंद किए लेटी रहीं। उपेक्षा की इस पीड़ा से उनकी दोनों आँखों से आँसू बहते जा रहे थे और मन में अनवरत झंझावात चल रहा था।


     अचानक सिर पर किसी का स्पर्श पाकर उन्होंने आंखें खोलीं तो देखा कि पति हाथ में ट्रे लेकर खड़े थे और उसमें गरमा गरम पोहे और चाय का कप था। वह सुखद आश्चर्य और अपनी सोच पर आत्मग्लानि से भर गईं-

“यह आपने बनाया मेरे लिए?? आपने क्यों बनाया, मुझे आवाज दे दी होती!”

पति मुस्कुरा कर बोले-” निशा, अब हम दोनों ही तो हैं एक दूसरे के लिए। तुम भी तो मेरा खुद से बढ़कर ख्याल रखती हो। आज तुम अस्वस्थ थीं तो मैने कर दिया, तो क्या हुआ। और मुझे तो तुम्हारा ख्याल रखना ही है, जीवन भर साथ निभाने का वचन जो दिया है पगली”… और मुस्कुराकर निशा जी की भीगी पलकें चूम लीं, और फिर शरारत से उनकी नाक खींचते हुए हँसकर बोले- ” और अब तो जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ने वाला हूँ तुम्हारा, चाहे जितनी कोशिश कर लो…”

     “चलो चलो अब जल्दी करो नाश्ता करो। नाश्ता ठंडा हो रहा है।” रजत जी ने प्यार से कहा।

     निशा जी ने प्यार से रजत जी को देखा और पलकें बंद कर इस अनुभूति को हृदय में सहेजन लगीं।उन्हे ऐसा  लग रहा था मानो आज सारा आसमान सिमटकर उनके आँचल में आ गिरा हो।

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