मोहिनी – गीता वाधवानी

मोहिनी नाम था उसका। बचपन से ही बेहद सुंदर, गोरा रंग, तीखे नैन नक्श, काले घुंघराले बाल, बड़ी बड़ी सुंदर बोलती आंखें और कमसिन काया। जो देखता मोहित हो जाता इसीलिए माता पिता ने नाम रखा मोहिनी। धीरे-धीरे मोहिनी बड़ी होती गई और हमेशा अपनी सुंदरता की प्रशंसा पाकर उसमें अभिमान आ गया। पढ़ने लिखने में ठीक-ठाक थी इसीलिए कॉलेज तक आ गई। कॉलेज में भी सभी उसकी सुंदरता की तारीफ करते और हर लड़का उसे अपना दोस्त बनाना चाहता। सब उसे एक बार देखने के बाद भी मुड़ मुड़कर देखते थे। मोहिनी इतनी अभिमानी हो चुकी थी कि दोस्ती करना तो दूर, किसी से सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी। घमंड सिर पर चढ़ा रहता था और नाक पर गुस्सा। अपने पीछे पीछे आने वाले मतवाले लड़कों को देखकर मन ही मन बहुत खुश होती थी और उसका मन घमंड से भर उठता था। वह वैसे तो किसी को भी घास नहीं डालती थी लेकिन फिर भी उसकी एक पक्की सहेली थी निशा। वह साधारण परिवार की साधारण रंग रूप की लड़की थी। लेकिन उसका स्वभाव बहुत अच्छा था। वह सब से बहुत प्यार से और सम्मान से बात करती थी। उसकी वाणी में शहद टपकता था। 

इस वर्ष उनके कॉलेज में कोई नया लड़का आया था, वैसे तो बहुत से विद्यार्थी आते थे लेकिन उसमें कुछ अलग बात थी। आकर्षित करने वाला चेहरा, कुर्ता पजामा और साथ में जैकेट। 

कक्षा में पहुंचते ही निशा और मोहिनी ये देखकर हैरान रह गई कि यह लड़का विद्यार्थी नहीं बल्कि शिक्षक था। अरे! यह तो उम्र में बहुत बड़ा नहीं लग रहा है। दोनों सोच रही थी। 




उसने कक्षा में अपना परिचय दिया-“मैं हूं आपका शिक्षक आभास, मैं आज से आपको मनोविज्ञान पढ़ाऊंगा। आप सब भी अपने नाम बताइए।” 

सब ने बारी-बारी अपना परिचय दिया। जब मोहिनी की बारी आई, तब आभास उसे कुछ सेकंड्स के लिए अपलक देखता ही रह गया। कितनी सुंदर है, बिल्कुल एक परी की तरह। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उधर मोहिनी भी उसकी तरफ आकर्षित हो रही थी। तभी कक्षा में शोर के कारण आभास का ध्यान मोहिनी से हटा और उसने पढ़ाना शुरू किया। उसके बाद उसने एक बार भी मोहिनी की तरफ नहीं देखा। मोहिनी चाह रही थी कि आभास उसे बार-बार देखें और उसके द्वारा इग्नोर किए जाने पर खीझ रही थी। 

समय अपनी गति से चलता रहा। आभास को मोहिनी के अक्खड़ स्वभाव के बारे में पता चला। आभास की ओर से बेरुखी कभी-कभी मोहिनी को गुस्से में पागल कर देती थी और वह अपना गुस्सा दूसरों पर निकालने लगती थी। 

निशा ने उसे कई बार समझाया पर वह नहीं सुधरी। निशा ने कहा-“मोहिनी, मुझे तो लग रहा है कि तुझे आभास सर से प्यार हो गया है तभी तो तू उनकी बेरुखी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है।” 

मोहिनी-“निशा यह क्या कह रही है तू, मैं और उस साधारण से दिखने वाले इंसान से प्यार, कहां मैं लड़कों के सपनों की अप्सरा और कहां वो, अच्छा निशा मेरा एक काम कर दे।” 

निशा-“क्या करना है बोल?” 




मोहिनी-“एक बार उसे मिलने के लिए मेरा नाम लेकर अकेले में बुला और जब मैं मिलने जाऊंगी तो तू भी साथ रहना।” 

निशा-“जब अकेले में मिलना है तो मैं क्यों साथ चलूं?” 

मोहिनी-“प्लीज चल ना।” 

निशा डरते डरते आभास सर के पास जाकर कहती है”सर, मोहिनी आपसे कॉलेज की छुट्टी के बाद सामने वाले पार्क में मिलना चाहती है।” 

आभास-“क्यों?” 

निशा-“पता नहीं” 

आभास-“ठीक है” 

आभास और मोहिनी आमने सामने हैं और निशा एक पेड़ के पीछे खड़ी है। 

आभास-“क्यों मिलना चाहती थी?” 

मोहिनी-“कुछ पूछना चाहती हूं, पूछूं?” 

आभास-“पूछो?” 

मोहिनी-“क्या मैं सुंदर हूं?” 

आभास-“यही पूछने के लिए बुलाया है, हां तुम सुंदर हो।” 

मोहिनी-“अगर मैं सुंदर हूं तो आप मेरी तरफ देखते क्यों नहीं, क्या मैं आपको अच्छी नहीं लगती?” 

आभास-“हां, तुम अच्छी लगती हो और मैं कॉलेज में पढ़ाने के लिए आता हूं, लड़कियों को देखने नहीं।” 

मोहिनी-“(तल्खी से) मैं सिर्फ अपनी बात कर रही हूं सारी लड़कियों की नहीं।” 

आभास-“इसका मतलब जो मैंने सुना था वह सही है।” 

मोहिनी-“क्या सुना था आपने?” 

आभास-” सच यह है कि तुम्हें अपनी सुंदरता पर बहुत अभिमान है। तुम किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती हो।” 

मोहिनी-“सुंदर हूं तो अभिमान तो होगा ही, हर कोई मेरी तरह सुंदर नहीं है।” 

आभास-“सच सुनना चाहती हो तो सुनो, यह जो निशा है ना ,जो पेड़ के पीछे छिपी है तुम्हारी सहेली। यह तुमसे ज्यादा सुंदर है क्योंकि यह सबसे सम्मान और प्यार से बोलती है। पढ़ाई में सबसे आगे रहती है। इसका व्यवहार और इसकी मेहनत इसका अपने लिए योगदान है। अच्छा एक बात बताओ, तुम्हारे सुंदर होने में तुम्हारा क्या योगदान है। तुम्हें सुंदरता ईश्वर ने दी है और मां-बाप सुंदर तो बच्चे उन्हीं की कॉपी होते हैं, जबकि अपना व्यवहार हम खुद बनाते हैं। अपनी सुंदरता के अभिमान में जीने से अच्छा  तुम पढ़ाई पर ध्यान देती और अपने व्यवहार को सुंदर बनातीं। सुंदरता पाकर घमंड करना, यह सब क्या है?” 

मोहिनी के पास आभास की बातों का कोई जवाब नहीं था। मैं सोच रही थी कि सचमुच मेरे सुंदर होने में मेरा क्या योगदान है? वह और निशा चुपचाप वहां से चली गई। 

अगले दो-तीन दिन तक मोहिनी कॉलेज नहीं आई। आभास को भी चिंता सताने लगी थी। उसे लग रहा था कि मैंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया। 

फिर सोमवार को एक नई मोहिनी कॉलेज आई। एकदम साधारण कपड़े, ना कोई मेकअप ना दिखावा। एक सुंदर और शालीन मुस्कान सजाए मोहिनी। 

आज वह सचमुच मोहिनी बन गई थी। 

#अभिमान 

स्वरचित अप्रकाशित 

गीता वाधवानी दिल्ली

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