दिखावा –  शिव कुमारी शुक्ला

 एक गांव मै एक मध्यमवर्गीय परिवार रहता धा। तीन भाइयो का सयुंक्त परिवार था।यूं तो आय इतनी थी कि परिवार का गुजारा आरम से चल जाता था।दो भाई नौकरी करते साथ मे तीसरे भाई की खेती के कार्यो मै भी मदद करते।

 इस परिवार की एक बुरी आदत थी कि वह दिखावा करने मे विश्वास करते थे।गांव मे और आसपास के एरिया मे उनकी धाक थी कि वह बहुत सम्पन्न परिवार  है,जबकी वास्तव मै ऐसा कुछ नही था।

 बेटो की शादी मे अपनी सम्पन्नता का रोब दिखाकर तगडा दहेज लेते,बेटीवालो से मनमाफिक खातिरदारी कराते।

 इस बार सबसे छोटे भाई के बेटे की शादी थी ।लडका पढालिखा सरकारी नौकरी मै  इन्जीनियर था ,सो मांग  भी कुछ ज्यादा थी।

 यहाँ आपको बता दूँ ,कि इस परिवार  मै एक अजीबोगरीब रिवाज भी था कि भारीभरकम गहने किराए पर लेकर बहू को चढ़ाए जाते ,फिर सुरक्षा के नाम पर वापस ले लिए  जाते,जो वपस दुकान पर दे दिए जाते।दिखावा पूरा हो जाता,बेटीवाले समझते कि कितना सोना बेटी को मिला,और इस तरह उनकी धाक गांव और आसपास के इलाके मै और बढ जाती कि ,कितना सम्पन्न परिवार है।

 हाँ सो मै कह रही थी ,कि इन्जीनियर बेटे की शादी थी,लिहाजा लडकी भी पढीलिखी,समझदार थी,वह भी नौकरी पाने के लिए संघर्षरत थी।तो गहनो का किस्सा इस बार भी दोहराया गया,शादी मै खूब दिखावा किया गया।

 शादी के तीसरे दिन बहू से जेवरो की मांग की गई वो भारी वाले गहने दे दो ,सुरक्षा के लिहाज से उन्हे शहर मे जो लाकर है उसमे रख दे।बहू ने गहने देने से स्पष्ट मना कर दिया।उसने अपनी सासूमा से विनम्र शब्दो मै कहा कि अभी मै पगफेरे के लिए पीहर जाऊँगी, तब मुझे गहने ले जाने होगे वहाँ सब देखेंगे  गहने नही होगे तो मेरे माता-पिता की क्या इज्जत रह जायगी।




 पगफेरे के लिए जाने मै अभी पन्द्रह दिन का समय था, फिर आठ दिन वह रूकना भी चाहती थी।

 अब इन लोगो के होश गुम हो गए। दुकानदार से तीन दिनो की बात  हुई थी,वह दबाव बना रहा था वापस करने के लिए, बहू थी किसी भी शर्त पर गहने देने को तैयार नहो थी।उसके पति ने भी समझाया हल्के-फुल्के गहने रख लो,इतने भारी गहनो का क्या करोगी,मम्मी  को दे दो वे सम्हाल कर रख लेगी।

 वह बोली, सम्हालना मुझे भी आता है मेरे नाम  का लाकर है उसमे रखूंगी ।

 दिखावे के चक्कर मे बुरे फंसे, हार कर बहू को सच्चाई बतानी पडी,तब समस्या का समाधान हुआ,किंतु तब तक सच्चाई सबके सामने आ गई औरदबे स्वर मे लोगो मे फुसफुसाहट जारी धी।

 शिव कुमारी शुक्ला

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