मेरा भी टाइम –  संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : ” पापा इन छुट्टियों मे मैं अपने दोस्तों के साथ गोवा जा रहा हूँ मुझे पैसे दे देना ” उनीस साल के आरव ने अपने पापा रजत से कहा।

“ठीक है बेटा मैं कल दे दूँगा , श्रीति बेटा तुम्हारा क्या प्लान है ” रजत ने अपनी इक्कीस साल की बेटी से पूछा।

” पापा मेरा कॉलेज तो एडवेंचर कैंप पर जा रहा है दस दिन के लिए मैं वहीं जाऊँगी ” श्रीति ने जवाब दिया।

” ठीक है बेटा मज़े करना तुम दोनों मैं भी अपने दोस्तों के साथ ऊंटी घूमने जा रहा हूँ इतने साल से कोरोना की वजह से कहीं नही जा पाये हम दोस्त ! ” रजत ने कहा।

” और मम्मा आपका क्या प्लान है ” आरव ने अचानक तनु से पूछा जो चुपचाप खाना खा रही थी और सबकी बात सुन रही थी।

” म… मेरा ” तनु हड़बड़ा कर बोली।

” हाँ मम्मा जैसे हम सब अपनी पसंद की जगह जा रहे वैसे आपका कोई प्लान नहीं है, आपका भी तो कोई प्लान होगा होगा आखिर आपका भी तो मी टाइम होगा ना ” श्रीति ने बोला।

” अरे तुम भी क्या बात लेकर बैठ गए, ये कहा जायेगी , यहीं रहेगी ये इसका मी टाइम इस घर की चार दिवारी मे है, वैसे भी दादा – दादी की देखभाल कौन करेगा ? ” रजत ने कहा और सभी खाना खा अपने अपने कमरों मे चले गए।

तनु प्लेट्स उठाती सोचने लगी रजत के लिए मैं हमेशा से उसके घर को सम्भलने वाली एक आया ही रही, अपने समय मे कितना शौक था मुझे घूमने फिरने का पर रजत कभी साथ लेकर ही नही गए हनीमून के बाद उनको हमेशा यही लगता था कि मैं उनके स्टेटस को मैच नही करती । वैसे भी उन्होंने शुरु मे ही बता दिया था कि मैं उनकी नही माँ की पसंद हूँ । कभी बच्चे तो कभी रजत के माँ बाप उन्हें ही संभालने मे लगी रही और अब बच्चे बड़े हो खुद जाने लगे पर वो अभी भी कही नही जा पाती है। पति और बच्चो के आगे वो खुद को मानो भूल गई है।

” नहीं अब बहुत हुआ……अब अगर मैने खुद के लिए आवाज़ नही उठाई तो बच्चो की नज़र मे भी मेरी एहमियत कम हो जाएगी । ” उसने मन ही मन सोचा। 

” अगले दिन नाश्ते करते हुए रजत मुझे कुछ पैसे चाहिए । ” तनु ने कहा।

” क्यो तुम्हें पैसे क्यों क्या चाहिए ?” रजत ने भोहें सिकोड़ कर पूछा ।

” मुझे भी मेरा मी टाइम चाहिए । ” तनु ने कहा।

” मतलब? “

” आप सब लोग अपना मी टाइम का मजा लेने अपनी अपनी पसंद की जगह जा रहे हो, मेरी सहेलियाँ भी हर साल जाती है बस मैं ही नही जा पाती तो इस बार उनके साथ मैं भी राजस्थान जा रही हूँ आप लोगों के आने से पहले आ जाऊँगी। ” तनु ने इस बार सिर झुका कर नही रजत की आँखों मे आँखे डाल कर बोला।

” तुम्हारा दिमाग खराब है खुद से प्रोग्राम बना लिया यहाँ मम्मी पापा की देखभाल कौन करेगा? ” रजत गुस्से मे बोला।

” मैने शीला ( काम वाली) से बात कर ली है वो सभी काम कर जाया करेगी, बाकी कोई जरूरत हुई तो स्नेहा दीदी ( रजत की बहन) कौन सा दूर रहती उन्हे बुला लेंगी माँ जी ” तनु ने शांति से जवाब दिया।

” माँ पापा नौकरानी के भरोसे रहेंगे….. ” रजत चिल्लाया।

” शांत पापा क्या हुआ 5-6 दिन की तो बात है वैसे भी मम्मा को भी तो हक है अपनी मर्जी से जीने का ” श्रीति और आरव एक साथ बोले।

रजत बच्चों को समझाता रहा काफी देर बहस हुई पर उनके आगे रजत की एक ना चली और उसे तनु को पैसे देने ही पड़े।

” चलो मम्मा मैं आपका बैग लगवाती हूँ और आज बाजार भी चलेंगे कुछ कपड़े लेकर आयेंगे आपके लिए वहाँ साड़ी थोड़ी पहनोगी आखिर पहली बार अपना मी टाइम जीने जा रही हो ” श्रीति ने कहा।

” हाँ मम्मा आप जीन्स लाना बहुत अच्छी लगोगी आप आखिर आरव द रॉक स्टार की मम्मा हो ”  आरव बोला।

” चल पगले ” श्रीति, आरव और तनु हँस दिये ।

आज तनु के चेहरे पर अलग खुशी थी… अपने मी टाइम के मिलने की । आज पहली बार तनु खुद के लिए खड़ी हुई थी और उसके बच्चो ने बाखूबी उसका साथ दिया था। 

हममे से कितनी औरतें तनु की तरह होंगी जो अपने परिवार की जिम्मेदारी मे ख़ुद अपने लिए जीना भूल चुकी है… चलिए अपने व्यस्त समय से थोड़ा सा मी टाइम चुराया जाए वो भले कुछ मिनटों का हो घंटो का हो या दिनों का क्या फर्क पड़ता मतलब तो अपनी खुशी से है

धन्यवाद

आपकी सखी

संगीता अग्रवाल

 

 

2 thoughts on “मेरा भी टाइम –  संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!