न जाने मैं कैसे भूल गई कि मैं भी एक औरत हूं।

सलोनी अपनी शादी की पहले साल में ही गर्भवती हो गई थी।  उसके ससुराल में सब खुश थे लेकिन उसकी सास ने सलोनी को कह दिया था कि देखो बहू कुछ भी हो तुम्हें बेटा ही पैदा करना है क्योंकि मेरी बड़ी बहू को तो तुम्हें पता ही है कि 4 लड़कियां हैं अब नहीं चाहिए मुझे इस घर में लड़कियां।  बड़ी बहू तो पोते का सुख मुझे देने से रही। अब तुम भी निराश मत करना।

सलोनी सोचती थी इस सासु माँ क्या समझ रखा है मैं कोई बच्चे पैदा करने वाली मशीन हूं कि जो मर्जी पैदा कर दूं यह तो सब ईश्वर की मर्जी से होता है लेकिन सासू मां को भी कौन समझाए।  जितने तंत्र विद्या और टोटके हो सकते थे सलोनी पर सब कुछ किया जा रहा था कि इस बार घर में बेटा ही पैदा हो।

वो दिन आखिर आ गया और सलोनी हॉस्पिटल में पहुंच गई सलोनी ने एक सुंदर सी प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया।  जब सलोनी के सास को पता चला कि सलोनी को लड़का नहीं लड़की पैदा हुई है। तो अपना सर पकड़ कर बैठ गई और कहने लगी हाय राम फिर से बेटी हो गई कितना कुछ नहीं कराया था  सब फेल हो गया। सलोनी के सास इस तरह रोने लगी जैसे लगता था कि पता नहीं कितना दुखों का पहाड़ उस पर टूट पड़ा हो।



तभी सलोनी के ससुर जी ने सलोनी के सास से कहा तुम इतना शोक क्यों मना रही हो आजकल लड़कियां भी कोई लड़कों से कम है क्या बेटे के लिए  तुम अंधे हुए जा रही हो। इसमें बहू का क्या दोष यह सब तो भगवान की लीला है वह जो चाहे वही होता है।

सलोनी के सास ने अपने पति से कहा तुम तो चुप ही रहो जी।  कोई तो होना चाहिए हमारे वंश को आगे बढ़ाने के लिए। सलोनी के ससुर समझ गए थे कि इसको समझाने का कोई फायदा नहीं वह उसे अकेला छोड़कर अपने बहू के पास आ गए और सलोनी से कहा बहु तुम अपनी सास को बातों को बुरा मत मानना वह तो ऐसी है ही।  बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं तुम अपनी बेटी को खूब पढ़ाना और जो इसकी इच्छा करें वह सब कुछ करना ईश्वर ने चाहा तो अगली बार शायद बेटा भी हो जाए।

सलोनी ने बोला पापा जी मुझे इस बात का बिल्कुल ही गम नहीं है कि मुझे बेटा पैदा हुआ है या बेटी मेरे लिए तो दोनों समान है मेरे शरीर के अंश हैं और मैं अपने अंश से नाराज कैसे हो सकती हूं।

होटल के रूम के बाहर सलोनी के जेठानी कि लड़की ने अपनी मां से पूछा।  मां दादी लड़की पैदा होने पर इतना गुस्सा क्यों हो जाती हैं। हम लड़की है तो इसमें हमारी क्या गलती है।  दादी चाची को कितना सुना रही थी। आखिर दादी भी तो कभी ना कभी लड़की होगी।

थोड़ी देर बाद डॉक्टर साहिबा आई और उन्होंने सलोनी का निरीक्षण किया और उसके बाद सलोनी के सास से कहा कि आप आप इसे घर ले जा सकती हैं।  डॉक्टर साहिबा के जाते ही सलोनी के सास ने मन ही मन कहा मेरा बस चले तो मैं इसे रास्ते में पड़ने वाले नदी में ही फेंक दूं।



थोड़ी देर बाद सलोनी के जेठ भी हॉस्पिटल में आ गए थे अब सलोनी की जेठ की लड़की ममता ने अपने पापा के  आते ही गोद में बैठ गई और अपने पापा से पूछने लगी पापा चाची को कितनी प्यारी सी बेबी हुई है फिर भी दादी रो रही है और चाची को बहुत डांट रही थी। दादी तो दादु से कह रही थी कि बेटियां पराया धन होती है वंश चलाने के लिए एक बेटा तो होना ही चाहिए।  पापा यह पराया धन क्या होता है। ममता के पापा अपनी मासूम सी बच्ची को कैसे समझाते कि पराया धन क्या होता है।

ममता के पापा ने बड़े प्यार से अपनी बेटी को समझाया कि बेटी पराया था वह होता है जो हम किसी से उधार लेते हैं और कुछ दिनों के बाद हम उसे वापस कर देते हैं।  उस पर हमारा हक बहुत दिनों तक नहीं रहता है कभी न कभी हमें वापस करना ही होता है। उस धन से हमें ज्यादा मोह माया नहीं रखनी चाहिए। ममता के पापा समझाते समझाते रोने लगे।  और अपनी बेटी से कहने लगे लेकिन तुम मेरी पराया धन नहीं हो तुम तो मेरी जान हो तुम से दुनिया है मेरी।

ममता ने भी अपने पापा के गले लग कर कहा पापा मैं भी आपसे दूर कभी नहीं जाऊंगी।  ममता को कौन समझाता लड़कियों को एक ना एक दिन शादी करके घर छोड़ना ही होता है।

ममता की बातें ममता की दादी सुन रही थी और ममता को उसके पापा से अलग करके बोली।  इतनी छोटी सी हो और बातें कितनी बड़ी-बड़ी करती हो और अपने बेटे को भी समझाया देखो नरेश तुम भी ना लड़कियों के ज्यादा  मत चढ़ाया करो ज्यादा आधुनिक मत बनो इतने सालों से जो रीति रिवाज चला आ रहा है क्या तुम उसे बदल सकते हो तुम भगवान नहीं हो जो सब कुछ अपने आप से बदल सकते हो।  एक बेटी का बाप तो बन नहीं सके। बात ऐसी करते हो जैसे किसी नगर की राजा हो। गुस्से में सलोनी के सास वहां से चली गई।

सलोनी के जेठ जी को अपने आप से ही नफरत होने लगी थी कि वह कैसी मां का बेटा है।  जो खुद औरत है लेकिन औरत को भी कितना गलत समझती हैं।



सलोनी के जेठ नरेश ने  अपनी बेटी को समझाया बहुत सारे रीति रिवाज इंसान अपने मतलब के लिए बनाया है लेकिन मैं अपनी बेटी को इन रीति-रिवाजों के कब्जे में नहीं आने दूंगा मेरी चारो बिटिया बेटों से बढ़कर है मैं इनको ऐसा बना दूंगा कि लोग यह सोचेंगे कि काश हमारे पास भी एक बेटी होती।

धीरे-धीरे जिंदगी चलती रही और सलोनी की बेटी अब  18 साल की हो गई थी सलोनी का एक भाई भी 15 साल का हो गया था।  सलोनी की दादी सबसे ज्यादा प्यार अपने पोते सोनू पर लौटती थीं क्योंकि घर में इकलौता लड़का था क्योंकि बड़ी बहू के भी 4 बेटियां थी और सलोनी की भी एक बेटी।  इस लाड प्यार ने सोनू को बिल्कुल ही बिगाड़ दिया था वह ना पढ़ाई सही से करता और ना ही घर का कोई काम करता बिलकुल आवारा किस्म का लड़का हो गया था।

सोनू बिल्कुल ही अपनी मम्मी और पापा की बात मानता ही नहीं था क्योंकि जब भी उसके पापा डांटते उसकी दादी उसकी साइड ले लेती थी और उसी के फायदा उठाता।

एक दिन सलोनी के सास सीढ़ियो  से उतर रही थी तभी उनका पैर फिसल गया और कमर में चोट आ गई।  डॉक्टर बोला इन की रीड की हड्डी टूट गई है और अब यह पूरी जिंदगी बैठ नहीं सकती है।  अब क्या था अब तो बेड पर ही लेटे लेटे सारा काम करना था। कुछ भी जरूरत होता था किसी और से ही मांगना पड़ता था क्योंकि अब उनको चला तो जाता नहीं था।

ऐसे में सलोनी की पांचो पोतिया अपनी दादी की खूब सेवा करती थी।  सलोनी के सास कर भी क्या कर सकती थी अपने बस का तो कुछ था नहीं।  एक दिन घर में कोई नहीं था। सिर्फ सोनू ही घर में था और उसकी दादी को टॉयलेट करना था उसने सोनू से कहा सोनू बेटा मुझे टॉयलेट करना है वह टॉयलेट वाला चेयर लेकर आओ।

सोनू ने अपनी दादी को  गुस्से में डांट दिया मेरे बस की नहीं है तुम्हारा टॉयलेट धोना थोड़ी देर इंतजार कर लो सब आ जाएंगे फिर कर लेना।  सोनू की दादी बोली ठीक है बेटा फिर एक गिलास पानी ही पिला दो प्यास लगी है।

सोनू बोला ना तुम 1 मिनट चुप चुप बैठ नहीं सकती क्या तुम देख रही हो मैं कितना इंपॉर्टेंट काम कर रहा हूं थोड़ी देर बैठो चुपचाप पानी बिना मर नहीं जाओगी 5 मिनट में अभी सब आते हैं तो दे देंगे।

आज सोनू की दादी को एहसास हो गया था कि लड़कियां सच में हीरा होती है पांचों लड़कियां इतने दिनों से उसकी सेवा करती है लेकिन कभी भी अपने दादी को ऊंची आवाज में नहीं बोला है और आज सोनू को सिर्फ पानी मांगा तो पानी भी नहीं ला पाया।  ऐसा पोता होने से क्या फायदा इससे तो अच्छा है कि घर में पोतिया ही हों।

मैं भी कैसे अंधी हो गई थी।  न जाने में कैसे भूल गई थी कि मैं भी एक औरत हूं।  औरत का दर्द एक औरत ही समझ सकती है।

थोड़ी देर बाद सारे लोग घर के बाहर आए तो देखा कि उसकी दादी बिस्तर पर ही पूरी तरह से टॉयलेट कर दिया है।  सलोनी ने अपनी सास से कहा सोनू को क्यों नहीं बोला आपको टॉयलेट करना था तो। सलोनी की सास ने कहा मैंने सोनू से कहा था लेकिन वह मुझे डांट दिया।

सलोनी ने अपने बेटे को डांटा लेकिन वह बोला मम्मी मेरे बस की बात नहीं है यह सब करना। सलोनी ने अपने सास के टॉयलेट साफ किया और आंखों ही आंखों में सलोनी या महसूस कर रही थी कि उसके सास जो अपने अंदर एक बेटा होने का घमंड पाले हुई थी कि बेटा ही सब कुछ होता है वह कहीं ना कहीं उनके अंदर से गायब हो चुका था।

उस दिन के बाद से सलोनी के सास के अंदर अपने पोतियों के प्रति इतना प्यार और सम्मान जाग गया था कहा नहीं जा सकता है।

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