लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी

राधिका शुरू से ही पढ़ाई में बहुत ही इंटेलिजेंट थी उसका  सपना था एक आईएएस अफसर बनना। ग्रेजुएशन करने के बाद वह इसकी तैयारी के लिए दिल्ली आ गई थी और उसने दिल्ली के एक कोचिंग संस्थान में आईएएस की तैयारी के लिए एडमिशन करा लिया था।  

एक दिन जब कोचिंग से आने के बाद रोजाना की तरह कुर्सी पर बैठकर आराम कर रही थी तभी उसके फोन का रिंग बजा फोन  उठाया तो देखा कि व्हाट्सएप पर एक मैसेज आया था। उसने व्हाट्सएप खोला तो एक अंजान नंबर से मैसेज आया था। ” मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूं आप मुझे बहुत अच्छी लगती है.” 

 थोड़ी देर के बाद उसकी रूम पाटनर भी आ गई जिसका नाम  महिमा था. राधिका ने महिमा से उस मैसेज के बारे में बात की।   महिमा, राधिका से दो-तीन साल सीनियर थी। महिमा इस साल यूपीएससी का मेंस परीक्षा  भी क्वालीफाई कर लिया था और इंटरव्यू की तैयारी कर रही थी. उसने राधिका को डांटा और बोला देखो राधिका तुम यहां आईएएस की तैयारी कर रही हो अगर इस तरह की फिजूल बातों में लगी रहोगी तो तुम कभी भी आईएएस क्या आईएएस का प्री एक्जाम  भी नहीं निकाल पाओगी। 

उसी वक्त राधिका ने उस नंबर को ब्लॉक किया और उसने ठान लिया कि वह यहां सिर्फ तैयारी करने आई है वह इन फालतू के प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ने  वाली। उसे तो पढ़ाई कर आईपीएस बनना है. 

राधिका के फ्लैट के बगल में ही महिमा का ममेरा भाई  विजय भी रहकर यूपीएससी की तैयारी करता था और वह कभी कभी पढ़ाई करने महिमा के पास चला आता था।  विजय और राधिका अगले साल यूपीएससी का एग्जाम देने वाले थे तो महिमा दोनों को साथ ही पढ़ा देती थी।    धीरे धीरे राधिका ना चाहते हुए भी विजय की तरफ खींचती चली गई उसने तो सोच रखा था कि अब कभी वह प्यार के चक्कर में पड़ेगी ही नहीं।  लेकिन कह गया है प्यार सोच समझ के थोड़ी किया जाता है प्यार तो हो जाता है और यही हुआ राधिका के साथ। विजय और राधिका में इतनी गहरी दोस्ती हुई और वह एक दूसरे से कब प्यार करने लगे उनको खुद भी पता नहीं चला. 

राधिका को तैयारी करते हुए 3 साल से भी ज्यादा हो गए लेकिन कहीं कोई रिजल्ट नहीं निकला।  घर वाले भी अब राधिका पर शादी का दबाव देने लगे। राधिका के घरवालो ने अल्टीमेटम दे दिया था कि वह सिर्फ एक साल इंतजार करेंगे अगर उसने एक्जाम क्वालीफाई किया तो ठीक वरना उसकी शादी कर देंगे शादी के बाद अपनी तैयारी करती रहेगी।  



राधिका ने विजय से अपनी शादी के बारे मे बताया।  विजय हमारे पास सिर्फ 1 साल है, 1 साल में हम दोनों को शादी करनी पड़ेगी।  तुम कुछ करो वरना तुमसे मेरे घर वाले कभी नहीं शादी करेंगे। एक बेरोजगार लड़के से तो कतई तैयार नहीं होंगे शादी करने के लिए और तुम्हें पता है कि मैं अपने घर वालों के खिलाफ जाकर शादी नहीं कर सकती हूं. 

 विजय ने राधिका से कहा, “राधिका मेरे बस की होती तो कब का मैं यूपीएससी क्वालीफाई कर जाता जितना हो सकता है मैं पढ़ाई करता हूं और तैयारी करता हूं रिजल्ट आना मेरे बस की बात नहीं है और मैं अचानक से 1 सालों में कौन सा ऐसा जॉब  करने लग जाऊं। अगर मैं प्राइवेट जॉब भी कर लूं, 10 हजार की तो क्या ? उससे हमारा गुजारा हो जाएगा। तुम्हारे घर वाले कभी मुझे स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि तुम्हारे परिवार जितना मैं अमीर नहीं हूं. मेरे घरवाले तो मेरे पढ़ाई का खर्चा भी नहीं निकाल  सकते हैं। तुम्हें पता है ट्यूशन पढ़ा कर अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालता हूँ. 

देखो राधिका मैं जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहता और जिसके लिए मैं दिल्ली आया हूं और इतने सालों से तैयारी कर रहा हूं मैं उसे ऐसे नहीं छोड़ सकता हूं।  जब तक सांस तब तक आस मैं अपनी आखिरी अटेम्प्ट तक प्रयास करता रहूंगा। 

राधिका ने कहा इसका मतलब तुम यह कह रहे हो कि तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहते हो।  विजय ने कहा, “राधिका तुम इसका मतलब जो भी निकाल लो लेकिन मैं अपनी तैयारी नहीं छोड़ सकता और ना ही जल्दबाजी में कोई ऐसी वैसी जॉब कर लूंगा।” 

1 साल कब बीत गया पता ही नहीं चला राधिका  के घरवालों ने राधिका का रिश्ता कानपुर मे  एक सरकारी बैंक के कलर्क से ठीक कर दिया। राधिका को भी अब मना करने की कोई वजह नहीं बचा था उसने चुपचाप अपने घरवालों की मर्जी से शादी कर ली. 

 राधिका की शादी तो हो रही थी, बारात भी आ गई थी, लेकिन राधिका को इन सब चीजों से खुश नहीं थी वह तो विजय से प्यार करती थी और उसी के संग फेरे लेना चाहती थी. 



 अगले दिन सुहागरात था राधिका अपने कमरे में बैठी हुई थी, थोड़ी देर बाद उसका पति महेश कमरे के अंदर प्रवेश किया। महेश्  और राधिका काफी देर तक बेड पर बैठे रहे। दोनों ने एक दूसरे से कुछ बात नहीं किया आधा घंटा से भी ज्यादा हो गया कमरे में बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था।  कुछ देर के बाद महेश, राधिका का घुंघट उठाना चाहा, लेकिन राधिका ने महेश का हाथ पकड़ कर अलग कर दिया। उसके बाद महेश ने दोबारा प्रयास किया इस बार भी राधिका ने महेश के हाथ को अलग कर दिया और गुस्से में कहा आप मुझे मत छुओ. 

 महेश ने राधिका से कहा।  क्या हो गया राधिका तुम ऐसे क्यों कह रही हो? मैं तुम्हारा पति हूँ और यह मेरा अधिकार है कि मैं तुम्हें छू सकूं तुम्हें देख सकूँ। 

 राधिका इस शादी को मानने के लिए तैयार नहीं  थी वह विजय को अभी भी बहुत प्यार करती थी। वह झूठ  के दम पर कोई भी रिश्ता कायम नहीं करना चाहती थी उसने महेश से साफ-साफ बता दिया।  देखो मैं किसी और लड़के से प्यार करती हूं, लेकिन घरवालों के दबाव की वजह से मैंने तुमसे शादी करली।  आप चाहे तो हमारे इस शादी को तोड़ सकते हो। अगर आप ऐसा करोगे तो मुझे खुशी होगी। महेश ने कहा राधिका शादी कोई मजाक नहीं है यह तो एक बंधन है जो 7  जन्मो तक स्त्री-पुरुष को बांधे रहता है. तुम भले ही मुझे स्वीकार ना करो लेकिन तुम मुझे स्वीकार हो और मैं भी तुम्हें वादा देता हूं जब तक तुम इजाजत नहीं दोगी या मुझे खुद अपना नहीं मानने लगोगी तब तक मैं  तुम्हे टच तक नहीं करूंगा। 

राधिका और महेश दोनों साथ तो चल रहे थे लेकिन नदी के दो किनारों की तरह जिस का आपस में कोई मेल नहीं था। लेकिन साथ साथ चलते जाते हैं.  कई बार राधिका महेश के बारे में सोचती थी तो उसकी आंखें भर आती थी आखिर महेश का क्या दोष, महेश की क्या गलती उसने जबरदस्ती तो मुझसे शादी नहीं की फिर मैं उसको अपने प्यार की सजा क्यों दे रही हूं.  

राधिका को कभी तो मन करता था महेश के गले लिपट जाए और उस से माफी मांग ले और जो हो गया उसको भुला दें और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करें।  लेकिन यह सब करना इतना आसान नहीं था वह जब भी विजय के बारे में सोचती उसके कदम पीछे चले जाते थे और विजय के सपने देखना शुरू कर देती थी. 



इधर राधिका के शादी हुए 4 साल से भी ज्यादा हो गए थे अब तो राधिका को यह भी नहीं पता था कि विजय कहां है और कैसे हैं.  राधिका को तो यह भी नहीं पता था जिस विजय के इंतजार में वह अपनी बसी बसाई जिंदगी उजाड़ रही है उसने क्या कभी राधिका की सुध लेने की सोची। 

1 दिन राधिका किचन में खाना बना रही थी तभी उसका फोन बजा राधिका के छोटी ननद ने फोन लाकर राधिका को दिया राधिका ने जैसे ही फोन उठाया।  फोन पर एक पुरुष की आवाज में आवाज आई, क्या आप राधिका बात कर रही हैं? राधिका ने जबाब दिया, “मैं राधिका बोल रही हूं आप कौन?” विजय ने कहा राधिका मुझे उम्मीद नहीं था तुम मुझे भूल जाओगे तुमने मेरी आवाज को नहीं पहचाना।  इतना कहते हुए हुई हुआ कि राधिका ने कहा अरे विजय तुम! आज अचानक से मेरी याद कैसे आ गई,कैसे हो तुम और तुम्हारी नौकरी लगी कि नहीं, तुम्हारी शादी हुई कि नहीं, एक साथ कितने सारे सवाल राधिका ने विजय से पूछ डालें। 

 विजय ने कहा तुम्हारे सवाल खत्म हो जाएंगे तभी तो जवाब दूंगा।  एक-एक करके सवाल पूछो, सारे सवालों का जवाब दे दूंगा। विजय ने कहा सबसे पहले  तो तुम्हें यह बतादूँ यदि मैं तुम्हें भुला होता तो मैं आज तुम्हें फोन नहीं करता।  मुझे पता था कि तुम्हारी शादी कानपुर में में ही हुई है और जब मेरा ट्रांसफर भी कानपुर में हुआ तो मुझे याद आया कि तुम भी तो कानपुर में ही रहती हो फिर तुम्हारा नंबर मैंने महिमा दीदी से मांगा।  मैं कानपुर में पंजाब नेशनल बैंक में मैनेजर हूं. सोचा कि कानपुर आ गया हूं तो तुमसे एक बार जरूर मिलुंगा। अच्छा छोड़ो तुम यह बताओ तुम कैसी हो? तुम्हारा पति महेश कैसे हैं और कितने बच्चे हैं तुम्हारे। 

 राधिका ने विजय से अगला सवाल किया तुम्हारी शादी हो गई? विजय ने कहा हा राधिका मेरी शादी 3 साल पहले ही हो गई मेरे तो एक प्यारी सी बेटी भी है. 

 राधिका को ऐसा लग रहा था उसका पूरा शरीर गल  जाएगा जिस विजय के लिए उसने अपने बसी बसाई जिंदगी में आग लगाई हुई थी.  विजय के दिल में तो इसके लिए याद तक नहीं था उसने तो कब का शादी करके अपनी दुनिया बसा ली थी और राधिका शादी के 5 साल होने वाले थे लेकिन शादी होते हुए भी महेश के साथ  राधिका अविवाहित का जीवन जी रही थी। 



विजय ने राधिका  से कह रहा था। मैं तो बहुत शुक्रगुजार हूं तुम्हारे पति महेश का जिसने  तुम्हें इतना प्यार दिया और तुम्हारी देखभाल की जब तुम्हें मेरी जरूरत थी।  माना कि हम दोनों बहुत प्यार करते थे और एक दूसरे से अलग होना आसान नहीं था।  लेकिन इन सब में महेश की क्या गलती है या मेरे होने वाली पत्नी की क्या गलती है इसलिए मैंने सब किस्मत की मंजूरी  समझकर एक्सेप्ट कर लिया।   

राधिका सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुमने भी जानबूझकर मुझे धोखा नहीं दिया और तुम्हें तो पता है कि मैंने भी तुम्हें जानबूझकर धोखा नहीं दिया मैं क्या कर सकता था।  अगर मैं तुमसे तुम्हारे घर वाले के खिलाफ शादी कर भी लेता तो हम दोनों की लाइफ बर्बाद हो जाती अच्छा तो यही था कि हम दोनों ने अपने घरवालों की मर्जी से शादी कर लिया।  राधिका जरूरी नहीं है हर प्यार अपने अंजाम तक पहुंचे ही. 

हां विजय तुम सही कह रहे हो मैं तो तुम्हारी पत्नी को भी शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जिसने तुम्हें इतना प्यार दिया कि तुम मुझे भी भूल गए।  मैं तो ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं, तुम सदा खुश रहो. लेकिन एक शिकायत है तुमसे, तुमने मुझसे हमेशा कहा था कि तुम मुझे कभी नहीं भूल सकते हो और तुम्हारी जगह कोई नहीं लेगा। 

 देखो राधिका इस दुनिया में कोई किसी की जगह नहीं लेता  है सब अपनी जगह बनाते हैं अपने प्यार से और अपने विश्वास से।  जिसका जो जगह होता है वह सुरक्षित होता है। मेरे मन और दिल में तुम वैसे ही हो जैसे पहले थी. 

राधिका सोच रही थी सच में कितनी भाग्यशाली है।  विजय ने नाराजगी जाहिर की और ना ही कोई रुडस तरीके से मुझसे बात की बल्कि उसने तो मुझे दोषमुक्त कर दिया।

 विजय ने राधिका  को महेश के साथ जीवन में आगे बढ़ने के लिए कहा और राधिका ने विजय का कहना मान भी लिया उसने सोचा आज जब महेश शाम को आएंगे आज से अपने जीवन की नई शुरुआत करेगी जो भी एक दूसरे मैं अनबन थी आज सबकुछ खत्म करने की. 

शाम को जब महेश घर आया राधिका  बिल्कुल साज सँवरकर नई दुल्हन की तरह आज महेश का इंतजार कर रही थी। महेश जब घर में प्रवेश किया तो आज घर बिल्कुल सजासंवरा लग रहा था जैसे शादी के पहले दिन।    महेश जब अपने कमरे में गया तो देखा राधिका पूरी दुल्हन की तरह सजी संवरी है वही शादी वाले जोड़े में जो शादी के अगले दिन पहनी हुई थी.  



 महेश के मन में कई सारे सवाल थे  आज क्या बात है. महेश ने राधिका से पूछा, “राधिका नहीं महेश से सब कुछ साफ-साफ बता दिया।  आज विजय का फोन आया था उसने भी शादी कर ली है और वह अपने जीवन में काफी आगे बढ़ गया है और उसका ट्रांसफर यही कानपुर में ही हो गया है.  मिलने भी आने के लिए बोल रहा था. फिर मैंने सोचा मैं भी अपने जीवन में आगे बढ़े। हम अपनी जिंदगी क्यों खराब करें।

 महेश ने कहा चलो अच्छा हुआ देर आए दुरुस्त आए कम से कम तुमने मुझे अपना पति तो माना और यह अच्छा भी हुआ। इंसान कभी किसी के लिए नहीं रूकता  वक्त के साथ बदलता जाता है और बदलना भी चाहिए यही तो जीवन है. 

 महेश ने राधिका से  कहा कल शाम को मैंने अपने नए मैनेजर साहब और उनके परिवार को खाने  पर निमंत्रित किया है तो कल शाम को अच्छा खाना बनाना। 

 महेश जिस बैंक में कलर्क था उसी बैंक में विजय  मैनेजर बन कर आया था. लेकिन महेश को यह बात पता नहीं था यही विजय उसकी पत्नी के प्रेमी है. 

 अगले दिन शाम को महेश के साथ विजय और उनकी पत्नी और बच्चे घर में प्रवेश किए।    जब राधिका ने विजय को देखा तो अवाक ही रह गई. लेकिन राधिका ने कुछ नहीं बोला। लेकिन विजय ने राधिका को देखते ही बोला अरे राधिका तुम ! यह तुम्हारा ही घर है क्या? और महेश जी तुम्हारे पतिदेव हैं.  

विजय ने अपनी पत्नी सेबोला देखो यही राधिका  है जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया करता था।  हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे लेकिन किस्मत  को यह मंजूर नहीं था. 

उस दिन के बाद से राधिका और विजय के परिवार मे दोस्ती हो गई। 

दोस्तों जरूरी नहीं है कि हम जिसे प्यार करते हैं उसी से  हमारी शादी भी हो जाए। लेकिन उसके गम में हम अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दे यह कहां का न्याय है।  आखिर उस इंसान कि क्या गलती जिससे आपकी शादी हुई है आप उसे वही प्यार दे। आपने जिससे प्यार किया था जितना प्यार उसे दिया है आप देखिएगा  आपका जीवन सौभाग्य से भर उठेगा। 

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