यादों के झरोखे से

सविता जी एक एनजीओ चलाती थीं. इनका एनजीओ समाज में उपेक्षित महिलाएं, जिनके घर वाले किसी कारण से उन्हें अपने से अलग कर दिया हो ऐसी महिलाओं को सहारा देती हैं और उन्हें प्रशिक्षण देकर रोजगार लायक बनती थीं.  आज उनका 60 वां जन्मदिन था। एनजीओ की सारी महिलाओं ने इस जन्मदिन को उनके जीवन का सबसे यादगार जन्मदिन बना देना चाहती थी। महिलाओं ने खुद अपने हाथों से केक बनाया था. 

 इस जन्मदिन को सेलिब्रेट करने के लिए सविता जी के बेटे-बहू और बेटी-दामाद नाती-पोते सब शामिल होने आए थे.

रात के 9:00 बजते ही सविता जी ने केक काटा और अपने हाथों से सबको केक खिलाया। 

पार्टी खत्म होते हीसविता  जी अपने कमरे में सोने के लिए चली गई।  लेकिन उस रात सविता जी को नींद नहीं आ रही थी. आज अगर उन्होंने इतना बड़ा मुकाम हासिल किया है इसके पीछे कितना बड़ा संघर्ष है यह कोई नहीं जानता। 

सविता जी की शादी बहुत कम उम्र में ही हो गई थी लेकिन वह अपने ससुराल में सबसे बड़ी थी क्योंकि उनके पति के दो छोटे भाई और दो छोटे बहन थी।  सास-ससुर बहुत पहले ही गुजर चुके थे तो उन सब की जिम्मेवारी भी सविता जी पर ही आ गई थी। 20 साल में ही सविता जी भाभी और अपने देवर ननद की मां  भी बन गई थी. घर में कमाने वाले सिर्फ सविता जी के पति मनोहर ही थे. 

 वो जितना भी कमाते थे सब अपने भाइयों और बहनों पर खर्च कर देते थे सविता जी कई बार अपने पति मनोहर को कहती थी।  यह आदत आपकी सही नहीं है भविष्य के लिए भी कुछ बचा कर रखना चाहिए रखना चाहिए। अभी तो आपकी बहन छोटी-छोटी हैं कल इनकी शादी भी करनी होगी और फिर कल हमारे भी बच्चे होंगे अगर हम भविष्य के लिए सेविंग नहीं करेंगे तो कैसे काम चलेगा। 



लेकिन मनोहर के कान पर सविता के बातों का जू तक नहीं रेंगता था. 

समय के साथ जैसे तैसे करके मनोहर की दोनों बहनों और भाइयों की भी शादी हो गई अब मनोहर के भी एक 10 साल का बेटा और एक 12 साल की बेटी थी. मनोहर के दोनों भाई भी नौकरी करते थे लेकिन घर के  खर्चे के लिए एक रुपए भी नहीं देते थे. अभी भी घर के खर्चे के सारा जिम्मेवारी मनोहर के जिम्मे ही था। सविता कई बार मनोहर को यह कहती थी कि पहले तो आपके भाई बच्चे थे तो मैं कुछ नहीं कहती थी अब तो वह भी कमाते हैं आखिर घर के खर्चे में उनको भी तो हाथ बटाना चाहिए।  क्या पूरी जिंदगी आपने ही उनका ठेका ले रखा है पालने का आखिर हमारी भी अपनी जिंदगी है कल को बच्चे बड़े होंगे उनके पढ़ाई में खर्चे होंगे। सविता कितना भी कुछ कर लेती थी लेकिन मनोहर पर इसका कुछ नहीं प्रभाव पड़ता था. 

 हालत यह था कि महीने के आखिर आते आते मनोहर को सविता के पास जो भी कुछ बचा रहता था वह भी लेकर खत्म कर देता था. 

 सविता इस बात को लेकर बहुत चिंतित कैसे उसका जीवन चलेगा अचानक पैसे की जरूरत पड़ गई या कुछ बीमारी हो गया तो कहां से हम पैसे लाएंगे। 

और 1 दिन यही हुआ भी मनोहर कई  दिनों से बीमार चल रहा था लेकिन पैसे की तंगी की वजह से अच्छे डॉक्टर से इलाज नहीं करा रहा था।  सविता ने कई बार सरकारी हॉस्पिटल में भी जाने को कहा। लेकिन मनोहर टाइम का हवाला देकर, ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रहा है इस वजह से वह दिखाने नहीं जाता था और एक दिन हालत यह हुआ कि बुखार बहुत ज्यादा ही बढ़ गया। हॉस्पिटल में गए तो डॉक्टर ने कहा इनको कई दिनों से डेंगू हुआ है.  इन्हें घर ले जाइए इन्हें आराम की जरूरत है. आखिर वही हुआ मनोहर भगवान को प्यारा हो गया. 



 जब सविता को पता चला कि मनोहर अब नहीं रहे।  ऐसा लगा उसकी दुनिया ही लूट गई क्योंकि अब घर में एक ही तो कमाने  वाले थे वह भी चल बसे। सविता बहुत रो रही थी, सविता के देवरानी ने सविता को शांत कराया, भाभी चुप हो जाओ आप क्यों चिंता करती हो हम हैं ना भैया जी ने कितने दिनों तक हम सब को पाला है तो क्या हम भैया के बच्चों को नहीं पाल सकते।  सविता के देवरानियों ने जब इस तरह से सहानुभूति जताई तो सविता को भी लगा उसके देवर कम से कम से कम इस दुख की घड़ी मे साथ तो हैं. 

अभी तो मनोहर का 13 वीं भी नहीं हुआ था कि  मनोहर के दोनों भाइयों मे आपस में लड़ाई होना शुरू हो गया की भाभी को कौन रखेगा और भाभी को खर्चा कौन चलाएगा।  इस बात को लेकर दोनों आपस में लड़ाई करने लगे. छोटा देवर कहने लगा देखो भैया मैं तो बस इतना ही कमाता हूं कि मैं और अपनी बीवी का खर्चा चला सकूं।  आप मेरे से ज्यादा कमाते हो आप भाभी और उनके बच्चों को अपने साथ रख लो. सविता के बड़े देवर ने अपने छोटे भाई से कहा भाई, मैं भाभी को अपने साथ कैसे रख सकता हूं मैं तो अगले महीने ही कमाने के लिए मुंबई जा रहा हूं.  हां यह कर सकता हूं कि हर महीने भाभी के लिए ₹3000 भेज सकता हूं। तुम अपने साथ रख लो। बात यह तय हो गई लेकिन 2-3 महीने बीत गए। सविता के बड़ा देवर एक रुपए भी नहीं भेजा। छोटा देवर भी दो-तीन महीने तो कैसे भी करके अपने साथ रख लिया।  चौथे महीने उसने भी हाथ खड़े कर लिए कि भाभी आप अपना देख लो मेरे पास पैसा नहीं है कि मैं आप सबकी खर्चा चला सकूं। 

1 दिन हिम्मत करके सविता अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके  चली गई। आखिर वह अपने भाइयों के यहां भी कितना दिन रह सकती थी उन  पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। क्योंकि वह अपने दोनों बच्चों को अच्छा से परवरिश करना चाहती थी लेकिन रहने का ठिकाना तो था लेकिन और बाकी खर्चे कैसे कहां से आएंगे यही सोचकर वह दिन भर टेंशन में रहती थी.  सविता ने अपने भाई से नौकरी के बारे में बात की तो सविता के भाई ने अपनी ही कंपनी में अकाउंटेंट का जॉब दिलवा दिया। क्योंकि सविता ने भी बी कॉम कर रखा था। इस वजह से 1 सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद यह जॉब करने लगी. कविता  के जीवन का सिर्फ एक ही मकसद था अपने बेटी खुशबू और बेटे संस्कार अच्छे से पढ़ा लिखा सके. दोनों बच्चे पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी में चली जाए बस उसका यही सपना था। वह बहुत मेहनत करती थी. कभी कभार सविता का भाई भी मदद कर देता था। सविता के बच्चे हमेशा अपने क्लास में फर्स्ट आते थे. 



सविता के बच्चे अपनी मां की की मेहनत देखकर वह भी छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे और साथ-साथ अपना पढ़ाई भी कर रहे थे।  धीरे-धीरे वक्त के साथ सविता के बड़े बेटे संस्कार ने आईआईटी में नामांकन ले लिया और छोटी बेटी खुशबू ने एमबीए करने का फैसला किया। कुछ दिनों के बाद सविता के दोनों बच्चे नौकरी में हो गए।  बेटा अमेरिका चला गया और बेटी दिल्ली में एक बड़ी कंपनी में मैनेजर के पद पर स्थापित हो गई

. कुछ  दिन के बाद बच्चे कहने लगे कि मां अब जॉब कर कर क्या करोगी जॉब छोड़ दो बच्चों ने अपनी मां को कितनी कठिनाइयों का सामना करते हुए देखा है वे चाहते थे कि वह अपनी मां को वो  हर खुशी दे। आपको अब काम करने की जरूरत ही क्या है लेकिन सविता जी अपने बच्चों से कहा जब तक यहां हूं मुझे काम करने दो इसी काम से तो हम लोगों को सहारा मिला है और हमें जीवन जीने लायक बनाया है।  जब थक जाऊंगी देखा जाएगा। सविता अपना जॉब नहीं छोड़ना चाहती थी लेकिन बच्चों के जिद के कारण उसे अपना जॉब छोड़ना पड़ा। बच्चों ने मां को कहा कि मां क्या पूरी जिंदगी काम ही करती रहोगी आखिर तुम हमें इतना पढ़ाया लिखाया क्यों ? इसीलिए ना कि हम बड़े होकर आपका सहारा बन सके।  अब आपको जॉब नहीं करना है. 

 उधर सविता के भाई के लड़के लड़कियां भी बाहर जॉब कर रहे थे।  अब सविता का जॉब छोड़ने के वजह से समय नहीं कट रहा था. सविता ने अपने भाई से कहा भैया अगर आप कहे तो क्यों ना हम एक एनजीओ खोल लेते हैं इसमें गरीब और बेसहारा औरतों को ट्रेनिंग देकर उनको रोजगार लायक बनाएंगे।  सविता के बड़े भाई ने कहा आइडिया अच्छा है और हमारा भी टाइम पास हो जाएगा। 



 सविता ने जब इसके बारे में अपने बच्चों से कहा तो  बच्चों ने भी इस बात के लिए सविता को सपोर्ट किया और सविता  की बेटी ने कहा ठीक है मम्मी मैं इसी सप्ताह एनजीओ रजिस्ट्रेशन कराने के लिए दे देती हूँ ।  सविता के बेटी खुशबू ने अपने पिताजी के नाम पर एनजीओ का नाम “मनोहर फाउंडेशन” रख दिया।

सविता  अपने बिस्तर पर लेटी लेटी भूतकाल के जीवन की यात्रा कर आई और टाइम देखा तो सुबह के 6:00 बज रहे थे तभी दरवाजे को  किसी ने खटखटाया। दरवाजा खोला तो दरवाजे पर सविता के नाती पोते खड़े थे. 

 सरिता जी अपने नाती पोते के साथ पार्क में चली गई और पार्क में ही बच्चों के साथ ही बच्चे बन गई.

दोस्तो यह कहानी आप को यही सिखाती है कि आप चाहे जितना भी कमाए उतने में ही सेविंग की आदत जरूर डालें क्योंकि जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं कब कैसा वक्त आ जाएं और आप को दर-दर की ठोकरें खाना पड़े।  इसीलिए अपने भविष्य के लिए जो भी हैं सेविंग जरूर करें। अगर आप अपने घर में बड़े हैं तो ठीक है आप का उत्तरदायित्व है अपने परिवार की देखभाल करना लेकिन साथ साथ जो आपका अपना परिवार है जिससे आप सात जन्म जीने मरने की कसमें खाई है । उसके बारे में सोचे। 

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