जीवन संगिनी का साथ – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

रवि थका हुआ ऑफिस से आया..सोफे पर बैठ गया ….ज्यादातर दरवाजा खुला ही रहता हैं घर का..रात में ही ताला लगता हैं…पत्नी रीमा से पानी मांगा ही था तो देखा दो तीन आवाज के बाद भी रीमा आयी नहीं…

फिर अन्दर कमरे में गया तो देखा पत्नी 3 साल के बेटे विशु के ठंडे पानी की पट्टी रख रही थी और रोती जा रही थी … रवि घबरा गया .. जल्दी से बेड पर बैठ बेटे का हाथ और माथा देखा… बुखार से तप रहा था …

तुमने फ़ोन पर बताया क्यूँ नहीं कि विशु की तबियत खराब हैं.. कितनी तेज बुखार हैं इसे तो… बता देती तो जल्दी आ जाता…

तब ज्यादा तेज नहीं था बुखार… मुझे लगा दवाई दे दूँगी , ठीक हो जायेगा… पर इतनी देर हो गयी कम ही नहीं हो रहा … तुम्हे पिछली बार बता दिया था तो कैसे घबराते हुए आये थे … रास्ते में बारिश में बाइक फिसल गयी थी .. तुम्हे कितनी चोट आयी थी .. बस इसलिये परेशान नहीं करना चाहती थी … इतना बोलते हुए रीमा रोने लगी…

अरे यार तुम भी सच में पागल हो.. चलो जल्दी.. नहीं तो डॉक्टर नहीं मिलेगा.. बाहर बारिश बहुत हैं… मेरा रेन कोट विशु को उड़ा दो… बिना पानी पिये जल्दी से रवि ने बाइक बढ़ाई … डॉक्टर के यहां आयें…

नंबर लगवाया… वायरल फीवर बताया डॉक्टर ने.. और दवाई लिख दी… घर आयें बेटे को दवाई दी.. थोड़ा खाना खिलाने की कोशिश की.. विशु ने उल्टी कर दी… रवि घबरा गया… तुरंत बेटे को साफ किया… उसे उल्टी की दवाई दे गोदी लेकर घुमाता रहा …

रीमा ने खाना लगाया…. हाथ के इशारे से रवि ने खाना खाने से मना कर दिया… जब रवि नहीं खायेगा तो रीमा ही कौन सा खा पायेगी खाना… उसने सारा खाना उठाकर फ्रीज़ में रख दिया.. पूरी रात रवि जागता रहा .. विशु का बुखार चेक करता रहा ….

सुबह उठकर चाय पीकर ऑफिस जाने लगा तो रीमा ने कहा – कुछ खा तो लो… रात में भी नहीं खाया ..

मन नहीं हो रहा खाने का .. तुम्हे तो पता है विशु बिमार हो जाता हैं तो मेरी आधी जान निकल जाती हैं… जब ये ठीक हो जायें .. थोड़ा खेलने लगे .. कुछ खा ले तो फ़ोन कर देना… मैं ऑफिस में कुछ खा लूँगा फिर… इतना कहकर अपनी कर्मभूमि की ओर रवाना हो गया रवि …

ऐसे ही कई किस्से हुए….रीमा कहती…. अपने लिए अबकी बार कपड़े ले लो… हमें तो दिला देते हो… पर खुद नहीं लेते… वहीं दो शर्ट में पूरा साल गुजार दिया ऑफिस का …

तुम्हे और बच्चों को कपड़े दिलाता हूँ तो तुम लोगों के चेहरे की ख़ुशी देखकर ही मन खुश हो जाता हैं… तुम लोग सुन्दर लगोगे तो तुम्हारे साथ चलता हुआ मैं भी अच्छा ही लगूँगा .. रवि मजाकिया अन्दाज में हर बार य़हीं कहता …

जानती हूँ मैं… पापाजी , मम्मी जी को पैसे भेजने होंगे गांव में… ऊपर से विशु की इतनी महंगी फीस… घर का खर्चा .. इसलिये नहीं लेते तुम अपने लिए कुछ….और ये मुंह में चौबीस घंटे तंबाकू दबाये रहते हो उसका क्या ….

मैने कितनी बार कहा हैं मत खाया करो इस जहर को… मैं तुम्हे खोना नहीं चाहती…. सुना हैं पहले तो नहीं खाते थे …. बोलते हुए रीमा भावुक हो गयी…

अरे यार… अब अपना मूड मत खराब करो .. कुछ खा पी लो… ठीक हैं कल से नहीं खाऊंगा … देखो बच्चे कैसे उदास हो गए हैं… चलो वहां टेबल पर बैठ जाओ.. कुछ लेकर आता हूँ …

वैसे आज तक रवि का कल कभी आया नहीं…अब बेचारा रवि क्या बताये रीमा को कि ये तंबाकू ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारियों से कुछ समय के लिए राहत देती हैं.. कभी बच्चों की फीस की… ऑफिस के काम की…

गांव में अम्मा बाऊजी की याद की… पत्नी के लिए किये गए हार के वादे की जब ये सब बातें दिमाग में आती हैं तो बस ये तंबाकू याद आती हैं… ऐसा लगता हैं ये सारी समस्या हल कर देगी.. दूसरा साथी लगती हैं… पर ये तो बस दो पल का सुकून हैं… ज़िन्दगी की समस्यायें ये हल कर लेती तो दुनिया का हर आदमी, बच्चा, औरत इसी का आदी हो जाता…

सच में ये पुरूष अपने घर , परिवार को खुश करने के लिए कितनी मेहनत करता हैं… वो हम औरतों की तरह अपना मन हल्का करने के लिए रो भी नहीं सकता.. क्यूंकि मर्द आंसू बहायेगा तो ये समाज उसका मजाक बनाता हैं…

कैसे औरतों की तरह आंसू बहा रहा हैं.. यही तो कहती हैं दुनिया.. कई बार इस पुरूष की परेशानी कोई नहीं समझ पाता … यहां तक कि उसकी जीवनसंगिनी भी नहीं… जीवन से, ज़िन्दगी की परेशानियों से हार जाता हैं..

और मौत को गले लगा लेता हैं.. कितने ही केस ऐसे रोज अखबारों में पढ़ने को मिल ज़ाते हैं… मानते हैं हर आदमी रवि की तरह ज़िम्मेदारी नहीं निभाते.. पर अपवाद हर जगह है … ज्यादातर आपको रवि जैसे पुरूष ही दिखेंगे समाज में…

पुरूष भी रोता हैं.. भावुक होता हैं… वो भी हर दिन नए कपड़े पहन बुलेट पर घुमना चाहता हैं पर हर की ज़िम्मेदारियां उसे कमाने के लिए इन सब शौकों से कोसों दूर कर देती हैं… य़हीं पुरूष जब बुढ़ापे पत्नी के दबे सपने,

अधूरी ख्वाहिशें पूरी करना चाहता हैं तब तक पत्नी जीवन से हार चुकी होती हैं य़ा वो पुरूष हार जाता हैं.. बस यादों और कसक के सिवाय कुछ नहीं रह जाता…

आज रवि की बिटिया की शादी हैं… बहुत बूढ़ा हो गया हैं रवि… बेटी के सभी अरमानों को पूरा कर रहा हैं… पर रीमा अब नहीं हैं.. बस दूर से आशिर्वाद दे रही हैं… ये पुरूष अब जीवन में अकेला हैं…

लाठी ले सुबह टहल आता हैं… अपनी पुरानी कुरसी पर बैठा चाय पीता हुआ पत्नी के साथ लिए गए सात फेरें और वो समय याद करता हैं जब उसकी खूबसूरत सी पत्नी और वो जवान हुआ करते थे ..

अपनी य़ादों को ताजा करता हैं.. तभी आँखों से आंसू लुढ़क पड़ते हैं… अपना चस्मा उतार धीरे से अंगोछे के कोर से आंसू पोंछ लेता हैं… कहीं बहू बेटा न देख ले… काश इस पुरूष को जीवन संगिनी का साथ जीवन भर मिल पाता….

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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