लोकेश एक बहुत बड़े वकील थे । उन्होंने गाँव की एक सीधी सादी जानकी से विवाह किया था । उनका एक ही भाई था । उसकी शादी हो गई थी परंतु उनके बच्चे नहीं हुए थे । माता-पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाई मिल-जुलकर एक ही घर में रहते थे ।
लोकेश क्रिमिनल लॉयर थे। उन्होंने बहुत सारे पैसे कमाए थे । जिस गाँव में रहते थे उसी गाँव के मुखिया भी थे। क्रिमिनल्स के साथ रहते हुए वे भी बहुत कठोर स्वभाव के हो गए थे । उनसे घर का कोई भी सदस्य उनसे बातें नहीं कर सकते थे।
पत्नी भी बहुत कम बात करती थी । उनको भी साल में एक बार मायके भेजते थे । वह भी सिर्फ़ दो दिन के लिए । जब वह मायके जाती थी उनके सारे गहने मंगलसूत्र सहित उतरवाकर एक पीला तागा गले में डालकर भेजते थे ।
लोगों की एक सोच यह भी थी कि जब वे तालाब में नहाने जाते थे कोई भी महिला वहाँ नहीं रहती थी क्योंकि उन्होंने अगर किसी को पसंद कर लिया तो उसे उनके बिस्तर पर सोना पड़ता था । इसलिए उन्हें दूर से देख कर सब भाग जाती थी ।
इसी बीच अचानक एक्सिडेंट से उनके भाई की मौत हो गई थी कहते हैं कि इन्होंने ही जायदाद के लिए उनका कत्ल करवा दिया था । भाभी को घर में ही रखा लेकिन उनकी पूरी जायदाद अपने नाम करा ली थी । भाभी ने अपनी पूरी ज़िंदगी रसोई में ही बिताया था । वहीं ज़मीन पर रातों को सो जाती थी ।
गाँव में लोग उनसे डरते थे । अपने चार बेटों को उन्होंने लॉ का कोर्स करवाया था पर किसी को भी प्रॉकटिस करने नहीं दिया था । पाँचवें बेटे ने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव का कोर्स करके एक मेडिकल स्टोर खोल लिया था ।
बड़ी बहू कलकत्ता से आई थी स्विमिंग चैंपियन थी । दूसरी बहू पूना से थी । तीसरी कटक से थी जिसके पिता वहाँ कलेक्टर थे। ,चौथी कर्नाटक से और पाँचवीं तमिलनाडु से । सब कहते थे कि आसपास के लोग जो उन्हें जानते हैं अपनी बेटियों को नहीं दिए होंगे इसलिए सारी बहुएँ अलग अलग जगहों से लाए हैं ।
सभी बहुओं को घर में बंदी बनाकर रखा गया था ।उन्हें बाहर जाने का अधिकार नहीं था कभी सिनेमा देखने जाना भी है तो टप्पर गाड़ी में पर्दे लगाकर भेजते थे । कहते हैं कि एक बार बड़ी बहू को कलकत्ता से रिज़र्वेशन नहीं मिला तो मायके से एक दिन देर से आई थी तो उसके भाई के सामने ही उससे उठक बैठक कराया था ताकि फिर कभी देर से ना आ सके ।
उन्होंने अपने पाँच बेटों के लिए एक एक घर बनवाया था । खूबसारे खेत खलिहान कमाया। उनके बच्चों का परिवार भी बिना काम किए बैठकर आराम खा सकता है याने तीन चार पीढ़ियों को नौकरी करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ।
कहते हैं कि हमारे कर्म जो हमने किए हैं वह यहीं भुगतकर जाते हैं ।
बड़े बेटे को दवाई का रियाक्शन होकर अपने पीछे पूरे परिवार को छोड़कर छोटी उम्र में चल बसा। कहते हैं कि उसकी ही याद में लोकेश को लकवा मार गया और पलंग पर पड़ गए थे ।
अब लोगों ने उनसे बदला लेना शुरू कर किया था । अपने खेतों को उन्होंने गाँव के ही कुछ लोगों को किराए पर दिया था उन्होंने खेतों को हड़पना शुरू किया था । किसी तरह से अपनी बेटियों की शादी जब वे अच्छे से थे तभी धूमधाम से करा दी थी ।
पत्नी ही बहुओं की मदद से उनकी देखभाल करती थी। लेकिन सबके दिलों में उनके लिए मलाल ज़रूर था । एक दिन रात को सोए तो फिर उठ नहीं पाए थे । वकील थे तो अपने जीते जी ही उन्होंने अपनी जायदाद बेटों के नाम कर दी थी । पत्नी और बेटियों को कुछ नहीं दिया था। पत्नी अपने बेटों के पास रहती थी । वे भी अपने पिता के समान ग़ुस्सैल स्वभाव के थे परंतु बहुओं ने उनकी अच्छी देखभाल की थी ।
सारी ज़िंदगी रौब से जीने वाले व्यक्ति की मौत अंत में दयनीय स्थिति में हो गई थी । पूरे गाँव ने चैन की साँस ली थी ।
ऐसे भी पुरूष होते हैं जो अपने पैसे और शक्ति के बल पर लोगों का जीना हराम कर देते हैं यही राक्षस प्रवृत्ति है ऐसे लोगों की गिनती ही राक्षसों में आती है ।
स्वरचित
के कामेश्वरी
हैदराबाद
साप्ताहिक विषय- #पुरुष