जज्बातों के रंग – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सर्दियों की शुरूआत थी,गुलाबी ठण्ड पड़ने लगी थी।स्वेटर की जरूरत जल्दी ही पड़ेगी ये सोच मैंने बॉक्स खोला, सबके स्वेटर को निकाल ही रही थी कि नजर पीले रंग से बुने उस स्वेटर पर पड़ी जो सबसे नीचे दबी हुई थी।

उसे देख मेरी यादों की पोटली भी खुल गई। स्वेटर बनाने वाली तो नहीं रही पर उनका रेशमी स्पर्श अभी भी है तभी तो स्वेटर पर हाथ फेरते ही आँखों से आँसू अनवरत बहने लगे। स्वेटर से जुड़ी नोंक -झोंक बरबस याद आ गई समय बीत जाता है यादें रह जाती है..”।

     माँ को स्वेटर बुनते देख मै भी मचल गई मै भी बुनूंगी स्वेटर…। मेरी चंचल प्रवित्त देख माँ ने कहा -तुम नहीं बुन पाओगी, फालतू में ऊन, पैसा और समय की बर्बादी जरूर हो जायेगी।बस फिर क्या था मुझे जिद्द चढ़ गई कुछ भी हो स्वेटर तो जरूर बनाउंगी और माँ को दिखा दूंगी कि उनकी ये मस्तमौला बेटी भी कुछ कर सकती है।

        पापा ने मेरा पक्ष लिया जब वो कुछ सीखना चाह रही तो क्यों मना कर रही हो, कह माँ को समझाया।माँ ने कहा अपने लिये बना लो स्वेटर…।फिर क्या था लाल इमली का पीले रंग का ऊन आया उस पर डिज़ाइन के लिये मैरुन, काला और सफेद ऊन भी आया।

बड़े उत्साह से मैंने सलाई में फंदे डालना सीखा साथ ही माँ की सीख भी, जो भी करो सफाई से करना अभ्यास तब तक करना जब तक तुम्हारे हाथों में सफाई ना आ जाये। खैर फंदे डालने के बाद सीधा -उल्टा बुनने का अभ्यास चालू हुआ, पर मेरा चंचल मन अधीर होने लगा कब तक अभ्यास करुँगी… हो गया अब, सीधे मुझे पीले ऊन पर ही शुरु करना है।

हार कर माँ ने मुझे बॉर्डर बनाने के लिये दे दिया, चार सलाई बना कर बॉर्डर पर डिज़ाइन डालनी थी पर ये क्या मैरुन, काले और सफेद ऊन सब आपस में उलझ गये। थोड़ी देर सुलझाने की कोशिश की पर कोई सिरा समझ में ही ना आया। हार कर माँ को ऊन और सलाई वापस दे आई।




“मुझसे नहीं होगा “कह मैंने हाथ झाड़ लिया।

    पर माँ को गुस्सा आ गया -जब मै मना कर रही थी तब तो तुम्हे जिद चढ़ गई थी फिर अब क्या हुआ।

     “इसमें इतने ऊन आपस में उलझ गये फिर कैसे बुनु “मैंने सफाई दी।

       “ऊन सुलझा लो “माँ ने कहा

        “इतनी कोशिश कर ली नहीं सुलझ रहे “लापरवाही से मैंने कहा।

       “अब तो तुम्हे ही बुनना भी पड़ेगा और ऊन भी सुलझाना पड़ेगा माँ ने चिल्ला कर कहा।

        माँ का ये रौद्र रूप अब तक मैंने नहीं देखा था, मै सहम गई तभी माँ ने मृद स्वर में कहा -“लाड़ो कोई भी काम आसान तब होता है जब दिल से किया जाता है। अभी तो जीवन शुरु हुआ, कल को और समस्याएं आयेगी तो तुम सुलझाने की बजाय भाग खड़ी होगी।

कल को शादी होगी तो रिश्तों की बुनाई धैर्य और प्रेम से करनी पड़ेगी तभी जा कर रिश्ते रूपी स्वेटर बन पायेंगे जो तुम्हे,हर आपदा से बचाएंगे।

” माँ ने स्वेटर और रिश्ते को जोड़ कर मुझे समझाया। कुछ उनकी बातों का मर्म समझ में उस समय कम आया पर मैंने फिर भी दुबारा ऊन सुलझाने का प्रयास किया, इस बार मै सफल हो गई, फिर माँ की मदद से मैंने अपने लिये पीला स्वेटर तैयार कर लिया।

कुछ समय बाद शादी हो गई, विदा के समय भी माँ बोली -रिश्तों की सिलाई मजबूती से करना, तभी रिश्ते भी ताउम्र चलेंगे।याद रखना जैसे तुमने स्वेटर के ऊन सुलझाये थे, वैसे ही विपरीत परिस्थितियों की समस्याओं को भी धैर्य रख कर सुलझा लेना, भागना नहीं।

       पीला स्वेटर लिये मै ससुराल आ गई, तब मैंने माँ की बातों का मर्म समझा।जब कभी परेशान होती, पीला स्वेटर मुझे ढेरों धैर्य दे जाता और मै फिर से जीने के लिये एक नया सिरा पकड़ लेती। समय के साथ, हमेशा ऊपर रहने वाला पीला स्वेटर ढेरों जिम्मेदारी तले सबसे नीचे पहुँच गया। कुछ साल हो गये माँ भी नहीं रही। आज अचानक स्वेटर देख मुझे बीती बातें याद आ गई।

         माँ ने मुझे कितनी अच्छी तरह से जीवन की सच्चाईयों से अवगत कराया था तभी तो मै नादान से समझदार हो गई। आँसूओ को पोंछ मै, पीला स्वेटर धूप में डालने जा रही थी बेटी ने देखा तो कहा -माँ कितना सुन्दर स्वेटर है,”।

“हाँ बेटे, क्योंकि ये एक स्वेटर नहीं मन की बुनाई है, जिसे मेरी माँ ने मुझे सिखाया और अब मेरी बारी है तुम्हे सिखाने की “कह मै मुस्कुरा दी। माँ कहीं नहीं गई मेरी यादो में, मेरे हर अंदाज में मेरे साथ है। हवा का तेज झोंका आया और खुशी का पैगाम दे गया “मै तुम्हारे पास ही हूँ “…।

#कभी_खुशी_कभी_गम        

                                —संगीता त्रिपाठी

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