इतना आसान नहीं लाड़ली बहू होना

जब बच्चों की गर्मी की छुट्टियां हो जाती हैं तो मैं कहीं जाऊं या ना जाऊं लेकिन हर साल अपने मायके जाना नहीं भूलती।  ससुराल में भी मुझे किसी भी बात की तकलीफ नहीं है वहां भी सब मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी अपने ससुराल को कभी ससुराल नहीं मानती हूं।  मैं अपने जेठ जी को हमेशा अपना बड़ा भैया ही मानती हूं और उनकी पत्नी को मैं अपनी बड़ी बहन से कम नहीं मानती हूं और मेरी छोटी देवरानी तो मेरी छोटी बहन जैसी है और क्यों की मेरी कोई छोटी बहन नहीं है इसलिए मैं उसे बहुत ज्यादा ही प्यार करती हूं और वह भी मुझे अपने बड़ी बहन की तरह प्यार करती है।  हा मेरी सास थोड़े पुराने ख्यालात की जरूर हैं लेकिन पुरातन पंथी नहीं है उन्हें चीजों की समझ है अगर आप उन्हें कोई चीज सही ढंग से समझाएंगे तो फिर वह बहुत जल्दी समझ जाती हैं अब नए घर में एडजस्ट करने में कुछ टाइम तो लगता ही है थोड़ा बहुत अपने आप को भी बदलना पड़ता है।

लेकिन जब बात आती है मायके की तो फिर मायका जैसा कुछ नहीं होता यहां पर आपको जो आजादी मिलती है वह आजादी आपको ससुराल में कभी नहीं मिल सकती। मायके आकर ऐसा लगता है कि बुलबुल कैद से आजाद हो गई है यह मेरा अपना खुद का पर्सनल मानना है और मुझे लगता है जो लोग भी इस कहानी को पढ़ रहे होंगे उनका भी अनुभव कुछ ऐसा ही होगा कि मायके जैसा कुछ नहीं होता।  फिर मेरा मायका तो सुपर मायका से कम नहीं था क्योंकि जो मेरी बड़ी भाभी थी वह हमेशा मुझे अपनी बेटी जैसी मानती थी उनके लिए कभी लगा ही नहीं कि मैं उनकी ननद हूं और मेरे भैया के दोनों बच्चे कहने को तो मेरे भतीजे हैं लेकिन मैं उन्हें अपने छोटे भाई बहनों जैसा ही मानती हूं और मायके जाकर खूब धूम धड़ाका शुरू हो जाता है।



मेरी उम्र वैसे तो 35 की है लेकिन मायके जाकर में 15 की हो जाती हूं और मैं भूल जाती हूं कि मेरे दो छोटे छोटे बच्चे भी हैं मैं भी बच्चा हो जाती हूं ऐसा सब का मानना है।  क्योंकि जीवन अगर आपको सही तरीके से जीना है तो बच्चा बन कर जिये। कौन क्या कहता है उसकी फिक्र छोड़ दीजिए क्योंकि बच्चे को आप कुछ भी कह लीजिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

 मेरा मायका वैसे तो मेरे ससुराल से कोई ज्यादा दूर नहीं था मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर ही था लेकिन बाकी साल हम अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त होते हैं कि जाना नहीं हो पाता है कभी कभार तो मम्मी कहती है कि संडे को क्यों नहीं आ जाती हो मैं मम्मी से कहती हूं मम्मी मैं आऊंगी तो पूरे एक महीना रहूंगी मुझे एक दिन में मन नहीं भरता है ऐसा लगता है आने-जाने में ही पूरा दिन निकल गया।

इस साल लेकिन मेरे पति को अपने कंपनी के काम से गर्मी की छुट्टियों के समय ही ट्रेनिंग में जाना था तो मैंने अपने बड़े भैया को फोन करके बोल दिया था भैया आप आ जाओ हमें लेने भैया अपनी कार लेकर हमें लेने सुबह सुबह ही पहुंच चुके थे मैं और मेरे दोनों बच्चे भैया के आते ही कार में बैठे और अपने घर पहुंच गई।  मायका पहुंचते ही मेरा स्वागत ऐसे होता था जैसे कोई सेलिब्रिटी आ गई हो क्योंकि मैं पूरी गर्मी की छुट्टी में अपने मां के घर को एक क्लब बना देती थी रोज पार्टी करना नए नए पकवान बनाना। शाम को पार्क में जाना, घूमना फिरना, मूवी देखना मतलब पूरा एक महीना एंजॉय करना। इसलिए मेरे आने का मेरे भतीजे भी इंतजार करते थे।  मेरी मां तो कहती थी पता नहीं यह कब बड़ी होगी और सच कहो दोस्तों तो मैं बड़ा होना भी नहीं चाहती थी जो मजा बच्चे बनकर जीने में है ना वह बड़े बनकर जीने में नहीं है।



1 दिन पार्क में मैं बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी तभी मेरा बॉल,   बगल मे एक लेडीज बैठी हुई थी उनको जाकर लग गई और जब मेरे भतीजे उनसे बॉल को लेने गए तो वह मेरे भतीजे पर चिल्लाने लगी और उन्होंने बॉल देने से मना कर दिया।  मेरे भतीजे ने आकर बोला वह जो आंटी बैठी हुई है वह हमारा बॉल नहीं दे रही है। मैंने बोला चलो तो देखती हूं कौन है जो हमारा बॉल नहीं दे रही है उसकी इतनी हिम्मत।

 मैं वहां गई तो देखी यह तो मेरी बचपन की सहेली आरती है।  मैंने बोला आरती तुम यह क्या हालत बना रखी हो बिल्कुल बूढ़ी अम्मा लग रही हो।  मैंने बोला सबसे पहले तो तुम बच्चों के बॉल दो । आरती ने बोला अच्छा तो तुमने यह बॉल  मारा था तो मैंने बोला हां। आरती ने बोला “इतनी बड़ी हो गई लेकिन अभी भी तुम वैसे की वैसे ही हो।”   मैंने अपने बच्चों को बोला तुम लोग तब तक क्रिकेट खेलो मैं जब तक आती हूं और मैं और आरती दोनों पार्क के एक बेंच पर बैठ गए और मैंने बोला और आरती बता कैसी हो यह क्या हालत बना रखी है।  आरती ने बोला सब ठीक तो है हां थोड़े बाल पक गए हैं अभी कलर करने को सोच ही रही थी लेकिन टाइम नहीं मिला। मैंने बोला यह बता तू मायके कब आई। आरती ने बोला एक सप्ताह तो हो ही गया आए हुए।  मैंने बोला यार तुम कितना बदल गई हो याद है तुम्हें जब हम कॉलेज में पढ़ा करते थे तो तुम कॉलेज की शान हुआ करती थी सारे लड़के तुम पर मरा करते थे और मैं सोचती थी काश कोई लड़का हम पर भी मरे।  तभी आरती ने बोला कोई लड़का तुम पर कैसे मरे किस में इतनी हिम्मत थी जो तुम पर आंख उठाकर भी देख ले तुम क्या लड़कों से कम थी तुम्हारी डर के कारण कोई लड़का हमें भी नहीं छेड़ते थे कि अगर शालिनी को इस बात का पता चल गया तो वह छोड़ेगी  नहीं। मैंने बोला यह तो तुम सही कह रही हो। लेकिन अपने आप को थोड़ा ठीक रखा करो यह क्या हालत बना रखी हो 35 में 45 की लग रही हो।



आरती बोली  मायके में तो थोड़ा पार्क में आकर टहलने का टाइम भी मिल जाता है थोड़ी देर सुकून से बैठ जाती हूं ससुराल में जो सुबह सो कर उठती हूं रात के कब 11:00 बज जाते हैं मुझे खुद ही पता नहीं चलता है और अपने परिवार में सबसे छोटी हूं काम निपटाते निपटाते  अपने आप पर भी ध्यान देने का समय नहीं मिल पाता है।

मैंने बोला कि इससे क्या हो गया मैं भी एक संयुक्त परिवार में रहती हूं और मैं भी अपने घर के सारे काम करती हूं लेकिन एक प्लानिंग के साथ करती हूं घर के सारे सदस्य को हमारी सासू मां ने काम बांट रखा है सब मिलजुल के करते हैं तो पता नहीं चलता है।  हम भी कोई इंसान हैं कोई जानवर थोड़ी है जो दिन भर लगे रहेंगे।

ससुराल में बहू बनकर जाते हैं कोई नौकरानी बन कर थोड़े ही।  आरती बोली तुम्हारी बात सही है लेकिन मेरे ससुराल की बात कुछ अलग है अगर मैं ना करूं तो सब कुछ वैसे ही पड़ा रहेगा सब एक दूसरे को देखते रहेंगे कि सबसे पहले किचन में कौन जाए और मेरी जेठानी हो या देवरानी बस थोड़ी देर के लिए किचन में जाएंगे कोई ना कोई बहाना कर के फिर बाहर निकल जाएंगे और मेरे से यह सब चीज हो नहीं पाता और मैं फिर  सारा खाना बना कर ही किचन से बाहर निकलती हूँ।

मैंने आरती से बोला वह सब तो ठीक है भाई लेकिन कुछ ध्यान अपने शरीर पर भी दिया करो।  क्रीम लगाया करो और वीक में कभी-कभार ब्यूटी पार्लर चल जाया करो अपने शरीर का ख्याल हम नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा।  आरती ने कहा यार तुम तो मेरी बेस्ट फ्रेंड हो तुमसे क्या छुपाना दरअसल बात यह है कि तुम्हारे जीजा जी यानी मेरे हस्बैंड इतने दानी बाबा है कि जो भी कमाते हैं पूरा तनख्वाहअपनी मन को दे देते हैं।  यह नहीं है कि कुछ पैसे उसमें से बचाकर अपने पर्सनल खर्चे के लिए भी रख ले अब उसमें से उनकी मां उनको पैसे देती है घर चलाने के लिए और उनको खुद के कंपनी आने जाने की जेब खर्च भी बताओ ऐसे भी कहीं होता है क्या।  अब जब भी पति से कुछ भी मांगो तो वह बोलते हैं मेरे पास अब पैसे कहां बचे हैं मैंने तो सब मां को दे दिया अब तुम ही बताओ अब मैं ससुराल में पैसे कहां से लाऊं अब मैं अपने मायके से तो पैसे मांगूँगी नहीं एक-एक रुपए के लिए तरसना पड़ता है यार।



मैंने कहा देखो आरती यह समस्या तो है  सबके साथ ऐसा ही है कोई भी पति अपनी पत्नी को पैसा नहीं देना चाहता है  अगर देंगे भी तो उसका एक-एक रुपए का हिसाब हम से मांगेंगे अपने चाहे वह हजारों रुपए दोस्तों के साथ उड़ा देंगे।

शादी के 2 साल बाद ही मैंने तो सोच लिया था कि भाई मुझे कुछ ऐसा करना है जिसे कम से कम इतना तो कमा ही लूं कि मुझे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े फिर मैंने सोचा कि मैं  बचपन से डांस तो अच्छा करती हूं क्यों ना डांस क्लास शुरु कर देती हूं। अपने घर पर ही शुरू में तो जब यह मैंने बात कही मेरी सासू मां को पसंद नहीं आया उन्होंने बोला कि मोहल्ले वाले क्या कहेंगे कि गुप्ता जी की बहू डांस सिखाती है।  मैंने अपने सासू मां को प्यार से समझाया मां आज दुनिया बहुत आगे जा चुकी है किसी के पास इतना टाइम नहीं है आपके बारे में सोचने के लिए और हम कोई गलत काम तो नहीं कर रहे हैं। मेरे पति मेरे किसी भी फैसले का विरोध नहीं करते हैं हां अगर मैं कोई गलत काम करती हूं तो एक बार जरूर बोलते हैं कि दोबारा इस पर  सोचो और जब मुझे लगता है कि हां यह सच में गलत है तो फिर मैं उसे नहीं करती हूं मेरी डांस एकेडमी शुरू हो चुकी थी और धीरे-धीरे बच्चे भी आने शुरू हो गए।

तुम्हें पता है मेरा सिखाया हुआ एक बच्चा तो टीवी के रियलिटी शो तक पहुंच चुका है लेकिन वह फाइनल तक नहीं जा पाया लेकिन मैं उसको तैयारी करवा रही हूं मेरा भी टारगेट है कि अगले साल उसे किसी न किसी रियलिटी शो फाइनल तक ले जाऊं क्योंकि उस बच्चे में मुझे पोटेंशियल दिखता है।

मैंने आरती से बोला देख भाई ससुराल में बहू को लाड़ली बहू बनना आसान नहीं होता है। लेकिन अगर हम चाहें तो मुश्किल भी नहीं होता है।  तुम तो पड़ने मे आगे थी हर क्लास में प्रथम आती थी तुम क्यों नहीं अपने घर पर ट्यूशन क्लास शुरु कर देती हो तुम्हारा मन भी लग जाएगा और कुछ एक्स्ट्रा अर्निंग भी हो जायेगा  जिसके तुम अपने शौक तो कम से कम पूरा करी सकती हो।



आरती ने बोला हां यार यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं।  अब मैं जब इस गर्मी की छुट्टियों से वापस जाऊंगी तो जाते ही मैं ट्यूशन क्लासेस शुरू करूंगी।  हम दोनों ने लगभग एक घंटा से ज्यादा बात की और उसके बाद अब शाम हो चुका था मैंने आरती से बोला ठीक है आरती तुम अपना नंबर दे दे और तुम क्या फेसबुक नहीं चलाती हो उसने बोला कहां यार फेसबुक चलाने का टाइम है मुझे तो फेसबुक का एफ  भी नहीं पता है। मैंने आरती से उसका फोन लिया और फेसबुक पर उसका एक फेसबुक प्रोफाइल बना दिया और कई सारे फ्रेंड रिक्वेस्ट अपने बचपन के सारे सहेलियों को भेज दिया। और उसका नंबर लेकर बोला चलो अब घर चलते हैं अब तो हमारी बातें होती रहेंगी और फेसबुक चलाया करो उस पर मन लगा रहता है नई नई चीजें पढ़ने और देखने को मिलता है और चाहो तो तुम भी अपनी  मन की बातें शेयर कर सकती हो जो बातें तुम किसी से नहीं कह सकती हो फेसबुक के अपने वॉल पर लिख दो मन बहुत हल्का हो जाता है।

गर्मी की छुट्टी समाप्त होते ही आरती अपने ससुराल में ट्यूशन पढ़ाने की बात अपने सास से बोली तो उसकी सास ने साफ मना कर दिया बोला बहू हमारे घर में इतना जगह कहां है जो ट्यूशन पढ़ाओगी हमारे घर में इतने बच्चे कम हैं जो और पूरे मुहल्ले की बच्चे इकट्ठा करोगी और फिर तुम कब पढ़ाओगी पूरा दिन घर में इतना काम रहता है।  आरती अपने सास से बोली मां जी मैं सब मैनेज कर लूंगी आप इसकी चिंता ना करें बस आप इजाजत दे दे मुझे ट्यूशन पढ़ाने का। आरती की सासू मां ने कहा ठीक है मैं अपने बेटे से बात करके तुम्हें बताती हूं । आरती की सासू मा ने शाम होते ही जब उसके पति से इस बारे में बात की तो उसके पति ने बोला भाई मुझे कोई एतराज नहीं पढ़ाना उसे है अगर वह पढ़ा पाती है तो ठीक है।  



फिर क्या था  आरती ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था और क्योंकि वह बचपन से ही पढ़ने में बहुत ही  इंटेलिजेंट थी। धीरे-धीरे उसके पास बच्चों की संख्या बढ़ती गई और अब महीने के ₹5000 से भी ज्यादा कमाई करने लगी थी।   आरती ट्यूशन से जो भी पैसे कमाती थी उसमें से आधे पैसे अपने पास रख लेती थी और आधे पैसे अपने सासू मां को दे देती थी ताकि उनको भी बुरा ना लगे कि सारे बेटे अपनी कमाई अपने मां को देते हैं और आरती नहीं देती है।

जब आरती के पास पैसे आने लगे तो उसके रहन सहन में भी बदलाव आने लगा अब जो मर्जी वह खरीद सकती थी अब कोई भी सामान खरीदने के लिए उसे किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं थी।

अगले साल फिर हम गर्मी की छुट्टियों में मिले इस बार आरती बिल्कुल ही बदल चुकी थी मैंने बोला आरती यह क्या एक साल में बिल्कुल ही इतना बदलाव ऐसा लग रही हो कि आज वही कॉलेज वाली हमारी ब्यूटीफुल दोस्त आती है।

आरती ने सबसे पहले मुझे गले लगाया और बोली मेरी बहन यह सब तेरा ही तो कमाल है अगर तुमने मुझे एक ट्यूशन वाला आईडिया नहीं दिया होता तो आज मैं पिछले साल तो आंटी थी आज इस साल शायद दादी दिखने लगती लेकिन मैंने ट्यूशन पढ़ाया और और उससे जो पैसे आते हैं  कुछ पैसे अपने सासू मां को दे देती हूं और बाकी बचे पैसे अपने पास रख लेती हूं और मुझे जो अच्छा लगता है खरीद लेती हूं अब तो मैं सप्ताह में एक बार ब्यूटी पार्लर भी चली जाती हूं क्योंकि पैसे के लिए मुझे किसी का मुंह नहीं देखना होता है।

महीने में मैं तो कभी-कभार अपने घर के सदस्यों के लिए कुछ न कुछ खरीद ही देती हूं अब मैं अपने घर की लाडली बहू बन गई हूं।  मेरी छोटी देवरानी भी कह रही थी कि भाभी इस गर्मी की छुट्टियों के बाद मैं भी आपके साथ ट्यूशन पढ़ाऊंगी और हो सकता है तो एक छोटा सा प्ले स्कूल ही खोल दिया जाए।  यह सब तुम्हारा कमाल है शालिनी।

दोस्तों इस कहानी से हम लिखने का मकसद यही है कि आप अगर अपने आप को सम्मान पाना चाहती हैं तो आप चाहे घर में कितना भी काम कर ले आप अपने आप को सुबह से लेकर शाम तक लगा दे लेकिन आपको कोई सम्मान मिलने वाला नहीं है और न ही आपको कोई भारत रत्न देने वाला है इसके लिए आपको खुद आना पड़ेगा।  हमें अपने अंदर छिपे हुए हुनर को पहचानना पड़ेगा और घर बैठे ही आप कुछ न कुछ इनकम जनरेट करें इससे क्या होता है कि आप को कम से कम अपने खर्चे के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है।

Writer:Mukesh Kumar

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