ईमानदारी पर दाग – पुष्पा जोशी : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : सज्जनसिंह के घर का दरवाजा दो दिनों से बंद था ।न घर से कोई रोशनी आ रही थी। शालिनी जी भी घर से बाहर नहीं निकली थी।पूरे मुहल्ले में कानाफूसी हो रही थी, अब घर में मुंह छिपाकर बैठे हैं, शर्म नहीं आई बेटे के साथ काला धन्दा करने में।

तो कुछ लोग कह रहै थे सज्जनसिंह ऐसा कर ही नहीं सकते,उन्हें अपने बेटे की करतूत का पता ही नहीं चला होगा, वरना वे स्वयं उसे पुलिस के हवाले कर देते। कोई कह रहा था, आती लक्ष्मी किसे बुरी लगती है भाई, देखकर अनदेखा कर रहै  होंगे।

सत्रह मुंह और सत्रह तरह की बातें। घर के अन्दर सज्जनसिंह जी अचेत पड़े थे, शालिनी जी समझा- समझा कर थक गई थी। बार-बार कह रही थी, इस तरह घर के अन्दर चुपचाप बैठने से क्या होगा, लोग और ज्यादा शंका करेंगे, जब आपका कोई दोष नहीं है तो बाहर जाकर सबको बताते क्यों नहीं, न मुझे बाहर जाने दे रहै हो।

सज्जनसिंह ने दो दिनों से कुछ नहीं खाया था, बस एक ही रट लगाए थे, राजेश ने उनकी इतने वर्षों की ईमानदारी पर दाग लगा दिया। कितनी मुश्किल से इतनी इज्जत कमाई थी, सब धूल में मिल गई।

भूखा रहा प्यासा रहा, तुमने भी मेरे साथ इतने दु:ख देखे। मगर मैं अपनी ईमानदारी से नहीं डिगा, मैंने हर संभव कोशिश की, कि अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाऊँ, मगर उसकी तो पढ़ाई में रूचि ही नहीं थी।

मुश्किल से १२ वीं पास की कमाने के रास्ते पर तो लगाना ही था, मुझे क्या पता था कि उसे अपने साथ काम पर रखने का यह नतीजा निकलेगा, मुझे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। बोलते-बोलते सज्जनसिंह‌ हॉफने लगते। शालिनी कभी पानी पिलाती है कभी पंखा झलती है उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या करे?
सज्जनसिंह के पिता बहुत गरीब थे, फुटपाथ पर कपड़े बेचते थे और किसी तरह गुजर बसर कर रहै थे। सज्जनसिंह की दो बहिने थी दोनों बहुत गुणी थी, उनके गुणों‌ के कारण उनकी अच्छे घरों में शादी हो गई थी।

सज्जनसिंह  की शादी के एक वर्ष बाद उसके पिताजी का देहांत हो गया। उसने भी फुटपाथ पर कपड़े बेचे। घर-घर जाकर भी कपड़े बेचे।

शालिनी भी सिलाई का कार्य करती थी। कठिन परीश्रम का ही परिणाम था कि अब उसकी अपनी दुकान हो गई थी, व्यापार ईमानदारी से करता था, मृदु भाषी था। अत: अच्छी कमाई होने लगी, बेटे की पढाई में रूचि नहीं थी इस कारण से उसे अपने साथ धन्दे में लगाया।

सज्जनसिंह की दुकान के सामने लाला रामस्वरूप की भी कपड़ो की दुकान थी, सज्जनसिंह के व्यवहार और ईमानदारी के कारण उनका धन्दा बहुत अच्छा चल रहा था और लाला रामस्वरूप की दुकान ठीक से नहीं चल रही थी, इसलिए वे सज्जनसिंह से जलते थे।

उनका एक बेटा जेकी राजेश की कक्षा में पढ़ता था। जेकी  ने  सज्जनसिंह से बदला लेने के लिए उसके बेटे राजेश को मुहरा बनाया।

अपने कुछ टपोरी दोस्तों के साथ मिलकर उसे ड्रग्स के धन्दे  में फंसा लिया, अच्छी कमाई होने का झांसा दिया, राजेश को उनकी चाल समझ में नहीं आई, उसे तो बस बहुत सारा पैसा दिख रहा था। 

उसे बहुत अच्छा पैसा मिल रहा था , वह पूरी तरह जेकी के चुंगल में फंस गया था। एक दिन जेकी ने कहा दोस्त आज मेरी दुकान की चाबी पापा ले गए हैं, आज की रात ये सामान तुम्हारी दुकान में रख देते हैं, सुबह मैं ले लूंगा।

राजेश इसके लिए तैयार हो गया। जेकी ने एक अन्जान नंबर से पुलिसथाने में खबर कर दी कि सज्जनसिंह  की दुकान में रात में ड्रग्स का धन्दा चलता है। रात को दुकान पर छापा मारने पर ड्रग्स बरामद हुई।

सज्जनसिंह और उसके बेटे को गिरफ्तार करके ले गए। सज्जनसिंह के कई अच्छे दोस्त थे, उन्होंने उनकी जमानत करवा दी वे घर आ गए थे। मगर राजेश की जमानत नहीं हुई थी।सज्जनसिंह जी जब से घर आए थे उन्होंने अपने आपको घर में कैद कर लिया था।

उन्हें यही सदमा खाए जा रहा था कि उनकी ईमानदारी जो उनकी सबसे बड़ी दौलत थी, उस पर दाग  लग गया।
सज्जनसिंह की हालत बहुत बिगड़ गई थी, वे बड़बड़ा रहै थे, ‘शालू मेरा चेहरा दिखाने लायक नहीं रहा, ध्यान रखना इसे कोई देख न पाए।

मैंने ईमानदारी से इतना पैसा कमाया है कि तुम्हारा गुजर बसर आराम से हो जाएगा, तुम वादा करो उस बेइमान की कमाई का एक पैसा भी नहीं लोगी, न उससे कोई सम्बन्ध रखोगी।’
शालिनी के ऑंसू थम नहीं रहै थे,वह बोली ‘ आप ऐसा क्यों कह रहै हो सब ठीक हो जाएगा।

अभी हमारा समय खराब है,अच्छा समय आएगा सब ठीक हो जाएगा,आपको बुखार है इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। मैं डॉक्टर को बुलाकर लाती हूँ। ‘
सज्जनसिंह ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और कहा- ‘कहीं नहीं जाओगी तुम, तुम्हें मेरी कसम है,

मुझे किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना, मेरे पास समय बहुत कम है,तुमसे आखरी विनती है, मैं मर जाऊँ तो मेरा चेहरा किसी को मत बताना। इस पर दाग लग गया है। ‘
शालू जोर से चिल्ला पड़ी -‘कौन कहता है आपके चेहरे पर दाग है, उजली छवि है आपकी, मैं साबित करके रहूँगी।’
‘शालू उस उजली छवि को कोई नहीं देखेगा, सब मेरे चेहरे पर उस दाग को ढूंढेंगे। और जो दाग मेरे बेटे ने मेरे दिल पर दिया है, उसे क्या मैं भूल पाऊँगा। उस दाग को लिए मैं जा रहा हूँ, अपना ध्यान रखना। ‘
सज्जनसिंह जी ने हमेशा के लिए ऑंखें बंद कर ली। उनकी मृत्यु के बाद पुलिस की कार्यवाही हुई, कोर्ट की कार्यवाही हुई सभी में वे बेदाग पाए गए। बेटे ने भी यही कहा कि मेरे पापा को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था। बहुत रोया पछताया मगर एक ईमानदार व्यक्ति इस दाग को सहन नहीं कर सका और दुनियाँ से कूच कर गया।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#दाग 

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