बदनुमा दाग – माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : रामप्रसाद कस्बे के ईमानदार पढ़ें लिखे शरीफ आदमी थे,खेती उनका मुख्य पेशा था, कस्बे में उन्होंने एक दुकान भी खोल रखी थी,वे हमेशा दूसरों की मदद किया करते थे,पत्नी शांति देवी बड़ा बेटा प्रभात बेटी मालती बहू गीता नन्हा पोता अरूण उनके हंसते खेलते परिवार के सदस्य थे,सभी एक दूसरे का ख्याल रखते थे,पूरा परिवार खुशियों से परिपूर्ण था।
प्रभात दिन भर दुकान का काम देखता था,वह शाम को घर आता था,मालती कस्बे से बीस किलोमीटर दूर कालेज में पढ़ने जाती थी,कभी-कभी उसे प्रभात कालेज छोड़ने और लेने जाता था,जिस दिन काम ज्यादा होता था,उस दिन मालती कस्बे की अन्य लड़कियों के साथ कालेज आती जाती थी।

गीता घर के काम सास ससुर की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी खुद निभाती थी,मालती की पढ़ाई में कोई बाधा न उत्पन्न हो इसलिए गीता और उसकी सास शांति मालती को घर के कार्यों में नहीं उलझाती थी।

कुछ दिन से मालती कुछ खोयी-खोयी सी रहने लगी थी,उसका पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा था,वह घर वालों से छुपकर फोन पर किसी से कयी घंटों तक बात किया करती थीं।
रात के दस बज रहे थे,मालती घर के बाहर निकलकर फोन पर बात कर रही थी।

“किससे बात कर रही हों बेटी! रामप्रसाद जी बाहर से घर के अंदर आते हुए मालती से बोले। “किसी से नहीं पिताजी!राधा से बात कर रही हूं,कल मैं कालेज नहीं गई थी” मालती फोन काटते हुए सकपकाते हुए बोली।

“इतना परेशान क्यूं हो रही हो बेटी,अंदर बैठकर आराम से बात करो”। कहते हुए रामप्रसाद जी घर के अंदर चले गए।मालती भी फोन बंद करके अपने कमरे के अंदर चली गई।
रात के दस बज रहे थे,गीता के मन में उथल-पुथल हो रही थी,वह परेशान थी।

“गीता! क्या बात है, कुछ परेशान लग रही हो तुम?” प्रभात गीता के चेहरे पर छाई उदासी देखते हुए बोला।”कोई बात तो है?” प्रभात गीता के करीब आकर सहानभूति प्रकट करते हुए बोला। गीता कुछ देर तक शांत बैठी रही “आप किसी बात पर जल्दबाजी न करके उसे गंभीरता से समझने का मुझसे वादा करिए?”

गीता प्रभात का हाथ पकड़ते हुए बोली। “ठीक है गीता मैं वादा करता हूं ” प्रभात गीता को यकीन दिलाते हुए बोला। “मैं बिटिया (मालती) के लिए परेशान हूं, मैं कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह परेशान रहती है,हम सभी लोगों से छुपाकर रात के दो तीन बजे तक किसी से चुपचाप बात करती है?” कहते हुए गीता खामोश हो गई।

“गीता तुमने पूछा नहीं?” प्रभात गीता को हैरानी से देखते हुए बोला। “यही सोचकर तो मैं परेशान हूं, मैंने पूछा था,लेकिन मालती ने मुझसे झूठ बोला, उसने कहा कि वह राधा से बात कर रही है, लेकिन मैंने दो तीन बार हल्की हल्की आवाज सुनी थी,लेकिन वह राधा नही किसी लड़के की आवाज थी?

” गीता चिन्तित होते हुए बोली। “तुमने अम्मा!को बताया था?” प्रभात कुछ सोचते हुए बोला। “अम्मा को सब पता है, उनसे भी मालती ने झूठ बोला है,उन्होंने ही मुझे आपसे और आपकों बाबूजी से बात करने के लिए कहा है ” गीता प्रभात को समझाते हुए बोली।

“ठीक है,मैं पहले खुद पता करूंगा उसके बाद ही बाबूजी से बात करूंगा” प्रभात गीता को दिलासा देते हुए बोला।

गीता की बातें सुनकर प्रभात परेशान था, उसे रात भर नींद नहीं आई वह बिस्तर पर लेटा सिर्फ अपनी बहन मालती के बारे में ही सोच रहा था।
एक हफ्ते का समय बीत चुका था, प्रभात दुकान बंद करके दो तीन बार मालती को बिना कुछ बताए उसके कालेज गया,सुबह से शाम तक वह अपनी बहन की परेशानी के बारे में जानने के लिए प्रयास कर रहा था।

सच्चाई का सामना होते ही प्रभात गहरी चिंता में डूबा हुआ रात में अपने घर आया उसके चेहरे पर उदासी शाफ छलक रही थी। “क्या हुआ बेटा! तबियत ठीक है” प्रभात को उदास देखकर शांति देवी बोली। “कुछ नहीं अम्मा!बाद में बात करूंगा, मालती कहा है?” प्रभात अपनी मां शांति देवी सवाल करते हुए बोला।

“वह अपने कमरे में है बेटा! शांति देवी प्रभात को कमरे की ओर दिखाते हुए बोली। “ठीक है अम्मा!अभी मैं आपके और बाबूजी के पास आता हूं ” कहकर प्रभात अपने कमरे में चला गया गीता चुपचाप खड़ी प्रभात की ओर देख रही थी।

रात के ग्यारह बज रहे थे, रामप्रसाद जी के कमरे में प्रभात गीता मौजूद थे, शांति देवी ने सारी बातें रामप्रसाद जी को बताई जिसे सुनकर रामप्रसाद जी के माथे पर से पसीने की बूंदें टपकने लगी। “यह सब तुम्हें किसने बताया?” रामप्रसाद जी शांति देवी से सवाल करते हुए बोले।

” मैंने बताया है बाबूजी” प्रभात ने सारी बातें रामप्रसाद जी को बताई जिसे सुनकर वह सिर पकड़कर चुपचाप बैठ गए। मालती राकेश नाम के एक लड़के जो उसी के कालेज में पढ़ता था, उससे प्रेम करती थी,वह काफी पैसे वालें परिवार का लड़का था,दो साल पहले उस पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था,मगर पैसे के दम पर सबूतों से छेड़छाड़ बयान बदलवाकर वह अदालत से बरी हो गया था,

पीड़ित परिवार ने उसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी। यह सारी जानकारी प्रभात को राकेश के बारे में छानबीन करने पर पता चली थी जिसे उसने अपने पिता रामप्रसाद जी मां शांति देवी को विस्तार पूर्वक बताईं।

“क्या हमारी बेटी मालती! मेरे सम्मान को मटियामेट करके उस पर दाग लगाना चाती है?” रामप्रसाद जी गंभीर होते हुए बोले। “हमारी परवरिश और संस्कारों में तो कोई कमी नहीं है,फिर मेरी बेटी ऐसा कैसे कर सकती है,उसने इतना बड़ा कदम उठाने से पहले हमें एक बार भी नहीं बताया?” कहते हुए शांति देवी की आंखों से आंसू टपकने लगें।

“इतना ही नहीं है अम्मा! मालती कयी दिन कालेज भी नहीं गई,वह राकेश के साथ चली जाती थी,और कालेज की छुट्टी के समय के बाद घर आती थी ” कहकर प्रभात गहरी चिंता में डूब गया।
दूसरा प्रहर शुरू हो गया था,दो बज रहे थे, मालती अपने कमरे में चुपचाप फोन पर राकेश से बात करते हुए धीरे-धीरे हंस रही थी।

“मालती! दरवाजा खोलो” रामप्रसाद जी मालती के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोले। मालती रामप्रसाद जी की आवाज सुनकर सकपका गई उसने तुरंत फोन बंद कर दिया और दरवाजा खोलते हुए बोली। “क्या हुआ पापा! दरवाजा खोलते ही मालती चौक गयी उसके सामने पूरा परिवार खड़ा हुआ था।

“राकेश!से बात कर रही थी इतनी रात में” रामप्रसाद जी गुस्साते हुए बोलें। ” नहीं पापा! मैं तो सो रही थी ” मालती अंजान बनते हुए बोली। “झूठ मत बोलो,हमें तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी,क्या कमी रह गई है हमारी परवरिश में,जो तूं हम सब के मुंह में कालिख पोतना चाहती है?” शांति देवी गुस्से से चीखती हुई बोली।

“इसमें हमारी परवरिश का दोष नहीं है शांति,दोष जमाने का है जिसमें सम्बन्ध बनाना फैशन बन गया है, मोबाइल टीवी फिल्मों में रिश्तों की दुकान खुली है,खुलापन नशे में झूमना,जिसका प्रभाव खासकर लड़कियों को गुमराह कर रहा है ” रामप्रसाद जी शांति देवी को चुप कराते हुए बोले। मालती चुपचाप खड़ी रामप्रसाद जी की बातें सुन रही थी। “मालती! हमें सब कुछ पता हैं,झूठ बोलने से किसी चीज का हल नहीं होता”

प्रभात मालती की ओर देखते हुए बोला। मालती कुछ देर तक शांत खड़ी सबकी बातें सुनती रही। “बाबूजी! अम्मा! मैं राकेश से प्रेम करती हूं,हम लोग एक साल से एक दूसरे को जानते हैं,हम शादी करना चाहते हैं” मालती सभी लोगों की तरफ़ देखते हुए बोली। “क्या तुम ऐसे इंसान से शादी करना चाहती हों,

तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है” प्रभात गुस्से में चीखता हुआ बोला। रामप्रसाद और शांति देवी हैरत भरी नजरों से मालती की ओर देख रहें थे। दरवाजे के एक कोने पर खड़ी गीता सब कुछ देख रही थी,मगर वह एक भी लफ्ज़ नही बोली।

“भैया आपको गलतफहमी हुई है, राकेश को अदालत ने निर्दोष मानकर बरी कर दिया है” मालती राकेश का पक्ष रखते हुए बोली। “उच्च अदालत में उसके खिलाफ केस चल रहा है” प्रभात मालती को समझाते हुए बोली।

“वहा भी राकेश को कुछ नहीं होगा,वह ऐसा कर ही नहीं सकता उसे फंसाया गया है” मालती दुबारा राकेश का पक्ष लेते हुए बोली।
“लेकिन मैं सब कुछ जानकर तुम्हारी शादी राकेश से नहीं कर सकता” रामप्रसाद जी मालती को डांटते हुए बोली। “पापा !मैं राकेश से ही शादी करूंगी,नहीं तो मैं कुछ गलत कर लूंगी जिसके जिम्मेदार आप लोग होंगे” मालती धमकी देते हुए बोली।

“ऐसे बात करते हैं अपने पिताजी जी से, क्यों तूं हम सब लोगों के मुंह पर दाग लगाना चाहती है?” कहते हुए शांति देवी रोने लगी। गीता शांति देवी को पकड़कर उन्हें बच्चों की तरह चुप कराने का प्रयास कर रही थी। “ठीक है मैं तुम्हारी शादी राकेश से करवा दूंगा,मगर मेरी एक शर्त है,शादी के बाद कभी भी तुम अपने माता-पिता भाई के घर पर क़दम नहीं रखोगी,तुम्हें सुख दुख जो भी मिले,अपना जीवन व्यतीत करना, पलटकर कभी हमारे पास मत आना,हम समझेंगे कि मेरी बेटी मालती जो हमारी थी,

वह शादी के बाद हमारे लिए मर गयी उससे हमारा कोई भी संबंध नहीं रहेगा “कहते हुए रामप्रसाद जी की आंखें छलकने लगी। “ठीक है पापा!यदि आप ऐसा चाहते है तो ऐसा ही होगा मैं राकेश से शादी के बाद कभी आपके पास नहीं आऊगी

” कहकर मालती अपने बिस्तर पर लेट गई वह राकेश के इश्क में इस तरह अंधी हो चुकी थी कि उसे अपने माता-पिता भाई भाभी सब दुश्मन नजर आ रहे थे।
राकेश और मालती की शादी के तीन साल बीत चुके थे, मालती एक नन्ही बच्ची की मां बन चुकी थी।उसका जीवन खुशियों से परिपूर्ण था, गाड़ी बंगला सारे सुख साधन उसके पास मौजूद थे,इन तीन सालों में वह कभी भी अपने पिता के घर नहीं गई ना ही उससे मिलने उसके पिता भाई मां भाभी उसके पास कभी आए वह अपने घर को लगभग भूल चुकी थी।

उसी समय एक खबर ने उसके घोंसले को एक पल में उजाड़ कर फेंक दिया। उच्च अदालत में राकेश दोषी साबित हुआ उसे उम्र कैद की सजा सुनाई गई वह जेल चला गया,दो तीन साल तक मालती के साथ उसके साथ सब कुछ अच्छा था,मगर धीरे-धीरे उसके ससुराल वालों का व्यवहार उसके प्रति बदलने लगा।

राकेश के जेल में जाने के कारण मालती का मददगार कोई नहीं था,कल तक जो लोग उसे सिर पर बैठाते थे,वह उसे अब अपने पैरों पर भी नहीं बैठाना चाहते थे,मालती की जिंदगी बीच भंवर में उलझ चुकी थी जिसका कोई किनारा नहीं था।

कम उम्र में ही पति का दशकों के लिए साथ छूट जाना उसकी जिंदगी का नासूर बन गया था,उसकी ओर गलत निगाहें उठने लगी थी,वह चाहकर भी आज कुछ नहीं कर सकती थी।
सात साल बीत चुके थे,मालती को अपने पिता व भाई की बातें याद आ रही थी।

जिनके स्नेह को ठुकराकर उसने राकेश को जीवन साथी बनाया था,आज उन्हीं अपनों की कही बातें उसको झकझोर रही थी।

जिन्होंने उसकी जिंदगी में आने वाले तुफान को भांपकर उसे उससे दूर रखने का भरसक प्रयास किया मगर उसने उनकी भावनाओं को कुचल दिया और चमक-दमक देखकर अपने जीवन को दल-दल में फंसा दिया जिससे निकलना उसके लिए संभव नहीं था।

उसके ससुराल वालों का जुल्म उसके प्रति बढ़ता जा रहा था। वह सोच रही थी, कि शायद उसकी समस्या को देखते हुए उसके पापा मां और भैया उसे माफ कर दें, आखिर वह उसके पिता मां भाई भाभी ही तों थे, उसने अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी थी,वह अपनी मां पापा भाई भाभी से मिलकर उनके पैरो में गिरकर माफी मांगना चाहती थी।

उसे उम्मीद थी कि वे उसे जरूर माफ कर देंगे,यही सोचकर मालती अपने ससुराल की गाड़ी न लेकर प्राइवेट टैक्सी लेकर अपनी नन्ही बच्ची के साथ अपने मायके की ओर जा रही थी।
टैक्सी उसके भाई प्रभात की दुकान के पास पहुंच चुकी थी,जो बंद थी।

मालती ने ड्राइवर को टैक्सी रोकने के लिए कहा और टैक्सी से उतर गई उसने अपनी साड़ी का पल्लू अपने मुंह के ऊपर डाल लिया था जिससे उसे कोई पहचान न सके गोद में बच्ची को लिए मालती प्रभात की दुकान के बगल की दुकान पर पहुंची वह जानती थी कि वह दुकान नयी खुली थी,वह दुकानदार उसे अच्छी तरह नहीं पहचानता है।
“भैया एक बोतल पानी दें दीजिए” मालती प्रभात के बगल वाले दुकानदार से बोली। उस दुकानदार ने मालती को पानी की बोतल दे दिया। “यह दुकान कब खुलेगी?” मालती उस दुकानदार से बोली।

“क्या बताऊं बहन जी, बहुत गलत हुआ है प्रभात भैया और उनके परिवार के साथ?” वह दुकानदार मालती की ओर देखते हुए बोला। “क्या हुआ है, क्या आप मुझे बताएंगे?” मालती उस दुकानदार से विनती करते हुए बोली।

“आपका अगर कुछ लेना-देना बाकी हो,तो मुझे बताइए प्रभात भैया को खबर कर दूंगा,या तो उनका नंबर ले लीजिए बात कर लीजिए” वह दुकानदार मालती को संबोधित करते हुए बोला। “नही भैया ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तों बस भैया के बारे में जानना चाहती थी बहुत दिनों से दुकान क्यूं बंद कर रखी है उन्होंने “मालती सहानभूति प्रकट करते हुए बोली।

“क्या करेंगी बहन जी जानकर जब अपनी ही बेटी गलत हो तो दुनिया मजे लूटती ही है” वह दुकानदार घृणा भाव दर्शाते हुए बोला। “ऐसा क्या हुआ भैया?” मालती चिंतित होते हुए बोली। “बेचारे रामप्रसाद जी, प्रभात भैया उनकी मां सब की जिन्दगी के लिए एक बदनुमा दाग बन गई उनकी ही बेटी मालती, पैसे की चमक देखकर एक अपराधी से शादी किया, मां बाप भाई भाभी सबके मुंह में कालिख लगा गई,

उसके बाद से रामप्रसाद जी बिल्कुल टूट गये वे बीमारी से ग्रस्त हो गये, प्रभात भैया भी किसी से बात नहीं करते कि कोई उनकी बहन के बारे में न पूछ ले,जिसकी इच्छा और जिद की पूर्ति के लिए उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उसकी शादी कर दी,बस वही है इस परिवार को तबाह करने का कारण” कहकर दुकानदार शांत हो गया।

“क्या हुआ उनके पिताजी को ” मालती दुकानदार से सवाल करती हुई बोली। “बाबूजी और भैया ने बेटी की खुशी जिद पूरी करने के लिए ना चाहकर भी उसकी शादी की,मगर वह एक हत्यारा था अभी एक साल पहले उसे उम्र कैद की सजा हो गई,यह बात पूरे कस्बे में फैल गई रामप्रसाद जी शर्म से सिर झुकाकर चलते थे,लोग तरह-तरह की बातें करते थे, प्रभात भैया भी हरदम परेशान रहते थे,इसी गम में बाबूजी को लकवा मार गया,वह बिस्तर पर पड़े रहते हैं,

माताजी का भी हाल ठीक नहीं है,पूरे परिवार पर ग्रहण लग गया है, प्रभात भैया दुकान छोड़कर घर पर ही रहने लगें,बहन जी यह समझ लीजिए कि बेटी को पलकों पर बैठाकर रखने वाले पिता मां भाई भाभी उन सभी के लिए एक बदनुमा दाग बन गई वहीं बेटी, जिसे देखकर शायद अब रामप्रसाद जी के प्राण भी न बचे,

भगवान करे वह यहा कभी भी ना आए, नहीं तो और भी गलत होगा और कस्बे के लोग बातें करके इस इज्जतदार परिवार को हमेशा जलील करते रहेंगे ” कहते हुए दुकानदार के चेहरे पर उनकी बेटी के लिए घृणा के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे।
दुकानदार के मुंह से अपने हंसते खेलते परिवार की दुर्दशा की बात सुनकर मालती फूट-फूट कर रोने लगी। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी, उसके एक गलत फैसले ने उसके साथ ही उसके परिवार का जीवन बर्बाद कर दिया था,

वह अपने परिवार की सबसे बड़ी गुनहगार थी, जिसने उनका अनादर करके जिल्लत भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया था, उसे उसके कर्मों की ही सजा मिल रही थी,शायद उसने बेटी होने का फर्ज अदा नहीं किया बेटी की विदाई करके उसके मां बाप भाई उसको खुश देखना चाहते है

वह इतनी अंधी हो गई कि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दिया, उसने यदि अपने पिता भाई मां की बातों का उल्लघंन ना करके उसे समझा होता तो शायद आज उसकी जिंदगी के साथ उसके अपनों की जिंदगी भी खुशहाल होती,आज तो वह अपने पिता भाई परिवार की इज्जत को तार-तार करके उनके लिए कभी ना मिटने वाला एक बदनुमा दाग बन चुकी है,

मालती फूट-फूट कर रोते हुए टैक्सी की ओर वापस आकर उसे वापस अपनी नर्क बन चुकी ससुराल की ओर जाने के लिए निकल पड़ी उसके लिए शायद अब और कोई ठिकाना नहीं बचा था। वह दुकानदार मालती को फूट-फूट कर रोते हुए टैक्सी में वापस बैठकर जातें हुए हैरानी से देख रहा था।
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

#दाग

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