दाग – संगीता श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : ” अरे , सुयश की अम्मा! पूरे मोहल्ले में आपके बेटे की चर्चा हो रही है, क्या आपको नहीं पता?”

मिश्राइन की यह बातें सुन सुयश की मां ने कहा,”क्या कह रही हैं आप? मैं कुछ समझी नहीं!”

” अरे बहन जी, बेटा सुयश और बैंक में उसके साथ काम करने वाली सरिता, जो कि विधवा है , के प्रेम -लीला की महक चारों ओर फैल रही है और इसकी गंध आपके घर तक नहीं आए ,हो नहीं सकता!”

” क्या?? मेरा सुयश?”

हां, हां मैं आपके सुयश की ही बातें कर रही हूं।”मिश्राइन ने कहा।

सुनकर सुयश की मां का मुंह खुला का खुला रह गया और वह पसीने – पसीने हो गई। “नहीं, नहीं …. मेरा सुयश ऐसा नहीं कर सकता। आपको गलतफहमी हो गई होगी।”

” ठीक है, मैं गलत हूं तो अपने बेटे से ही खुद पूछ लेना। और हां ,यह भी बता दूं कि उसे 4 साल का बेटा भी है।”

“हुंह, बड़ी आई मुझे गलत ठहराने।”मुंह  बिचकाते हुए मिश्राइन चली गई।

उनके जाने के बाद सुयश की मां  अपने पति के पास गई जो कमरे में बैठ मैगजीन पढ़ रहे थे। नौकरी से रिटायर्ड थे।

पत्नी को हांफते हुए देख उन्होंने पूछा,”क्या हुआ? तबीयत ठीक तो है?”  “अभी तक तो ठीक थी पर अब खराब हो जायेगी।”

“हुआ क्या ,बताओ तो सही!”दो पल की खामोशी के बाद, मिश्राइन की बातें बताईं।

  “अब क्या करें? नाक कटा दिया इसने मेरी बिरादरी में। चारों तरफ लोग हमारी ही चर्चा कर रहे हैं। मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा। यह सब सुनने के पहले मर क्यों नहीं गई! क्या कमी की थी हमने इसकी परवरिश में। अच्छा संस्कार ही तो दिया था।

और….. और वह विधवा मेरे घर की बहू बनेगी! नहीं, नहीं। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने दूंगी। मैं अपनी बेटे पर इसका दाग नहीं लगने दूंगी।

आप ही बताइए सुयश के पापा, हम कभी सपने में भी सोचे थे कि हमारा बेटा ऐसा कदम उठाएगा और हमारे खानदान पर ऐसा दाग लगाएगा जो अमिट है।” सुयश के पापा पत्नी को समझाते हुए बोले,”घबराओ नहीं, हम सुयश से बात करेंगे।”

   सरिता के पति की एक गंभीर बीमारी के कारण मौत हो गई थी। पति के मरने के बाद उसकी नौकरी अनुकंपा पर हो गई थी। सरिता के सास- ससुर भी बेटे की मौत की सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और वे भी इस दुनिया से चले गए।

अपने नन्हे से बच्चे के साथ अपना जीवन बसर कर रही थी। वह इतनी सुंदर थी कि मनचले उसे फब्तियां कसते बाज नहीं आते थे। सुयश उसके लिए सुरक्षा कवच था। सुयश को उससे बहुत सहानुभूति थी।

धीरे-धीरे वह सहानुभूति कब प्रेम का रूप ले लिया सुयश को भी पता नहीं चल पाया। वह मन ही मन सरिता को चाहने लगा था। सरिता को कभी इसका भान नहीं हुआ कि सुयश उसे प्यार करने लगा है। वह उससे मित्रवत व्यवहार करती थी।

कभी-कभी दोनों साथ साथ लंच करने बाहर चले जाते थे। वैसे सरिता को भी सुयश का साथ अच्छा लगता था। एक दिन सुयश ने अपने प्यार का इजहार कर ही दिया ।

शादी के प्रस्ताव भी रखा। वह घबरा गई थी।

                “नहीं ….. ऐसा नहीं हो सकता। मैं विधवा …. नहीं-नहीं मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती। आप एक विधवा के साथ शादी……. नहीं, नहीं ….. मैं आप पर दाग नहीं लगने दूंगी। एक तो मैं विधवा, उस पर से मेरा बच्चा।

नहीं सुयश जी, हम मित्र ही रहेंगे।” सुयश ने उसे झकझोरा।”दाग? कैसा दाग? क्या विधवा होना दाग है? विधवा होने पर क्या जीवन जीना छोड़ देना चाहिए? बोलो सरिता, बोलो। मर्द तो ऐसा नहीं सोचता। जीवन को विराम नहीं देता।

तो फिर औरत ही क्यों? तुम्हें जीवन जीना है सरिता। विधवा बनकर नहीं मेरी जीवनसंगिनी बनकर!”  ‌ “आप समझते नहीं सुयश। लोग क्या कहेंगे?”  “लोग, कौन से लोग? क्या किसी ने आकर पूछा कि तुम कैसे जी रही हो।? नहीं न? तो फिर क्यों? क्यों सरिता क्यों?”

खूब रोई थी उस दिन सरिता। फिर अपने को संभाला। हिम्मत करके सुयश के बातों में हामी भरी। धीरे-धीरे बहुत लोग उनके प्यार के संबंध को जान गए।

1 दिन सुयश से उसके मां- पापा ने सरिता से प्रेम की बात छेड़ी। धीरे-धीरे उसने अपने मन की सारी बातें बता दी। “प्लीज पापा, सरिता को अपनी बहू बना लीजिए। आपको गर्व होना चाहिए आपका बेटा एक विधवा का उद्धार कर उसे जीवन जीने का अधिकार दे रहा है।”

“यदि शादी के बाद मेरी पत्नी मर जाती तो क्या आप मुझे यूंही छोड़ देते जीने के लिए? नहीं न? आप यही कहते शादी कर ले बेटा पूरी जिंदगी कैसे कटेगी। मैंने सही कहा ना पापा? तो फिर यह सोच सरिता के लिए क्यों नहीं ?”

सुयश के पापा के मन की आंखें खुल गईं और बेटे को थपथपाते हुए कहा,”मुझे तुम पर नाज है बेटा। तुमने मेरी आंखें खोल दी। सरिता बनेगी मेरी बहू! समाज द्वारा बनाए

गए दाग को तुम शादी करके उसे बेदाग कर दो बेटा। पापा की रजामंदी पाकर सुयश खुशी से पापा से लिपट गया।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित, अप्रकाशित।

#दाग

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