कसूरवार कौन – मंगला श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सुरभि और सहज दोनों ही बड़ी कम्पनी में ऊँचे पद पर कार्यरत थे l

सहज को तो कई कई दिनों तक कम्पनी के काम से बाहर ही रहना पड़ता था l

कभी कभी विदेश में भी जाना पड़ता था, इस कारण वह घर पर पूर्ण रूप से ध्यान भी नहीं दे पाता था l

उन दोनों ने शादी के बाद इसी वज़ह से कई सालो तक बच्चें

की कोई प्लानिंग नहीं की क्यों कि दोनों की सोच ही यही थी कि पहले बहुत कमा ले फिर वह बच्चे का सोचेंगे ताकि वह दोनों उस पर पूरा ध्यान दे सके और अपने जीवन की हर ख्वाहिश को सपनों को जो उन्होंने देखे हैं पूरी तरह से जी सके l

इस कारण उन्होंने शादी के पांच साल बाद परिवार वालों के दबाव में आकार बच्चों की प्लानिंग की थी आज उनका एक प्यारा बेटा सूरज था और बेटी पूजा थी l

उन दोनों को ही वह दुनिया की हर खुशी देना चहाते थे l

आज उनका एक खुशहाल पूर्ण परिवार, आलिशान घर के अलावा सभी सुविधा जो उन्होंने सोची थी वह थी l

सुरभि और सहज अपने अपने ऑफिस में उस मुकाम पर पहुँच गये थे कि उनके लिए इतनी बड़ी पोस्ट पर पहुंच कर जॉब छोड़ना बहुत मुश्किल था l

और मुंबई जैसे महानगर में एक स्टेंडर्ड जिंदगी जीने के लिए अपने और अपने बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए यह जरूरी भी तो था l

दो बच्चों को पालना आज के समय में आसान भी नहीं है य़ह बात वह दोनों अच्छी तरह से जानते थे l

इसी कारण वह दोनों ही सूरज के होने के बाद जब सुरभि जॉब

छोड़ने का सोचने लगी तो भविष्य का सोच कर दोनों ही एक मत हो गए कि दोनों मिलकर सब सम्भाल लेगे थोड़े दिनों दादा दादी थोड़े दिनों नाना नानी देखभाल कर लेगे और सुरभि ने जॉब नहीं छोड़ा था l

और पूजा के होने के बाद बहुत काम बढ़ गया तो पूजा को उन्होंने यह सोचकर कि किसी के भरोसे लड़की को नहीं छोड़ सकते दादा दादी के पास आगरा भेज दिया सूरज को पास रख लिया था l

सुरभि आज सर दुखने की वज़ह से बहुत जल्दी ही ऑफ़िस से निकल गई थी l

वैसे वह अक्सर रात को देर से ही घर पहुँचती थी l

पति सहज कम्पनी के काम से बाहर गए थे l

मुंबई जैसी बड़ी जगह में घर पहुंचने में भी बहुत देर लगती थी l

पर ड्राईवर होने के कारण वह बहुत रिलेक्स रहती थी l

घर को सम्भालने के लिए एक मेड थी जो घर के भी सारे काम को संभालती थी, वह घर के पास ही रहती थी इस कारण जब भी काम हो जाता वह घर चली जाती थी होता वह घर से आ जाती थी l

बहुत पुरानी और भरोसेमंद होने के कारण वह उस पर आँखे मूँद कर विश्वास भी करती थी l

घर पहुंचे कर उसने अपनी चाबी से दरवाजा खोला और अंदर आ गई l

शाम के चार बजे थे, उसने सोचा कि वह नहा कर अच्छी सी चाय पीकर दवा लेकर सो जायेगी l

उसको लगा बेटा सूरज भी अभी सो रहा होगा स्कूल से आकर l वह उसको डिस्टर्ब नहीं करना चहाती थी l

पर जैसे ही वह उसके कमरे के पास से निकली उसको उसके कमरे में से कई लोगों के हंसने की अलग तरह की आवाज सुनाई देती है वह सोच में पड़ जाती है कि इस वक़्त कौन हो सकता है सूरज के साथ और बिना आहट किए दरवाज़ा खोलकर अंदर देखती है दरवाजे के सामने ही टी वी लगा था और दरवाजे से थोड़ा हटकर बेड था इस कारण किसी को उसका आना पता नहीं चला था l

पर जैसे ही वह अंदर का दृश्य देखती है उसकी रूह अंदर तक काँप जाती है वह मानो निष्प्राण सी हो जाती है टी वी पर कोई ब्लू फिल्म चल रही थी जिसमें लड़के लड़कियां तरह तरह से सेक्स कर रहे थे, उसका बेटा जो कि पंद्रह साल का था वह और उसके तीन चार दोस्त जिसमें लड़कियां भी शामिल थी सभी एक ही बेड पर बेतरतीब ढंग से लेते हुए फिल्म देख रहे थे ll उसमे कुछ खुद भी वहीं हरकत दोहरा रहे थे l

वह एक दम से जाकर टीवी का स्विच बंद कर देती है l

उसके बच्चें हड़बड़ा कर उठ जाते हैं और फटी फटी आँखों से अचानक से आई सुरभि को देख कपड़े ठीक करने लगते हैं l लड़कियां शर्म से सर झुका कर खड़ी हो जाती है l

सुरभि ने सूरज जो कि अचानक से आई अपनी मम्मी को देख घबरा जाता है के पास जाकर जोर से एक चांटा उसको मारती है l

यह देख उसके सारे दोस्त तुरत फुरत वहां से भाग निकलते हैं l

सूरज को मारने के बाद

सुरभि खुद सर पकड़ कर जोर जोर से रोने लगती है l

आज उसको लगता है कि धन कमाने की चाह में अपने उसने अपने बेटे को एक अंधे कुएं में धकेल दिया है ।

वह और सहज जॉब में व्यस्त रहे,

वह और सहज दोनों ही अपने फर्ज को भूलकर बस बाहर की दुनिया में गुम होकर,यह भूल गए कि उनके बच्चों को उम्र के इस पड़ाव पर उनकी उनके सहारे और सही शिक्षा की जरूरत थी सही गलत कामों की शिक्षा स्कूल में नही घर में उनके द्वारा दिए जाने की जरूरत थी ।

सब कुछ बाते सोच सोचकर उसका सर जो दुख रहा था अब घूमने लगा था ।

तभी उनकी मेड आई अम्मा भी आ जाती है वह उनसे पूछती है तुम कहां गई थी आईअम्मा सूरज बाबा को छोडकर l

वह बोलती है मैं घर गई थी दीदी सूरज बाबा रोज घर भेज देते थे यह कहकर की शाम को आ जाना मुझको पढ़ाई करनी है l

आपकी उठापटक में पढ़ाई नहीं हो पाती है मेरी इस कारण l

लेकिन तुमने यह बात मुझको क्यों नहीं बताई आई

सूरज बाबा ने मुझको कहा था कि मम्मी को नहीं बताऊँ नहीं तो मम्मी परेशान हो जाएगी और फिर आपको मना कर देगी इसी कारण य़ह बात आपको नहीं बताई मैंने

आज सुरभि समझ गई थी कि एक बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए माँ को त्याग करना पड़ता है जो वह नहीं कर पाई अपनी जॉब मे व्यस्त रही उससे बड़ा कसूरवार आज कोई नहीं l

सूरज तो बच्चा था पर वह तो समझदार थी, उसको अपने दोनों बच्चों की परवरिश खुद करनी चाहिए थी किसी और के भरोसे नहीं रखना चाहिए था l

आज उसको समझ आया कि क्यों सूरज जो पढ़ाई में इतना अच्छा था वह अब इतना कमजोर हो गया है।

गलत संगत और उच्च वर्गीय रईस बिगड़े बच्चो की संगत में वह भी भटक चुका था। अपनी पढ़ाई पर इतना ध्यान नहीं दे पाता था l

उन लोगों की लापरवाही और अनुपस्थिति का उसके दोस्तो और उसने फायदा उठाया , आज सूरज समय के पहले ही बड़ा हो गया था।

सुरभि ने तुरंत ही एक निर्णय लिया

और एक मेल बनाकर अपने ऑफिस में खुद का रिजाइन लेटर भेज दिया।

अब वह सिर्फ एक अच्छी मां बनकर अपने बच्चों के साथ रहकर उनकी परवरिश करना चहाती थी।

उसने फोन लगा कर सहज को

सारी बात बताई और अपना निर्णय

उसको बता दिया , साथ में ही उसको कहा की इस साल वह पूजा का एडमिशन भी यही करा कर अपने साथ ही रखेंगी।

सहज बोला तुम सही कह रही हो सुरभि आज अकेली तुम ही नही

हम दोनो ही कसूरवार है । अभी भी देर नहीं हुई है अब से मैं भी अपना टूर वाली पोस्ट को बदल कर बच्चों और घर पर ध्यान देगा क्यों की आज बच्चों को हम दोनों की जरूरत है।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक रचना।

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