हैसियत – सविता गोयल

 ” हूंह… एक भी सामान ढंग का नहीं दे रखा जो हमारे घर में रखा जा सके।  कपड़े लत्ते भी ऐसे दिये हैं कि सारे रिश्तेदारों के सामने हमारी नाक कट गई।  हमने तो सोचा था सरकारी मास्टर की इकलौती बेटी है तो कम से कम ब्याह तो ठीक से करेंगे …

लेकिन यहां तो रूखी सूखी बेटी विदा करके भेज दी… जब हैसियत नहीं थी हमारे जैसे बड़े घर में बेटी ब्याहने की तो पता नहीं ये लोग बड़े घर में बेटी ब्याहने के सपने क्यों देखते हैं। ,,  ममता देवी का पारा बहू का सामान देखकर सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था।

  जब से पलक ने बहू के रूप में ममता निवास में कदम रखा था तबसे हर पल उसे कोई ना कोई ताना सुनाया जा रहा था।   सास का सुनाना तब और ज्यादा अखर रहा था जब पलक का पति समर भी चुप था। अपनी पत्नी के पक्ष में एक बार भी उसने अपनी जुबान नहीं खोली। 

जब कभी पलक उससे कुछ कहती तो बदले में यही जवाब मिलता ” मैं अपनी मां की बहुत इज्जत करता हूं।  थोड़ा बहुत सुनने से तुम छोटी तो नहीं हो जाओगी। वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। ,,   ममता जी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही थीं क्योंकि जिस उम्मीद से उन्होंने अपने बेटे की शादी की थी उनकी वो दहेज़ मिलने की उम्मीद पूरी नहीं हो पाई। 

जब ऐन फेरों के वक्त पर ममता जी ने चार लाख रूपए की डिमांड पलक के पिता विशंभर नाथ के सामने रख दी तो पलक के पिता ने साफ कह दिया ,” समधन जी, मैं एक शिक्षक हूं और दहेज़ प्रथा के विरुद्ध रहा हूं। माफ कीजिए मैं अपने उसूलों से नहीं हट सकता। ,,

  अब इस ज़माने में यदि बारात वापस ले कर जाएं तो समाज में लड़की वालों से ज्यादा लड़के वालों की बदनामी होती है । दहेज लोभी कहलाना भी उन्हें पसंद नहीं था इसलिए मजबूरी में बिना दहेज वाली बहू विदा कराकर लानी पड़ी।

लेकिन इस सबका खामियाजा अब हर पल पलक और उसके माता पिता का अपमान करके लिया जा रहा था। हर रोज शादी में हुआ एक एक खर्चा पलक के सामने गिनाया जाता था। बहू के कपड़ो पर इतना खर्च हुआ….., हमने बेकार में इतने गहने बनवाए …. वगैरह वगैरह।
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एक दिन बेटी को देखने की इच्छा से विशंभर नाथ ने   पांच डब्बे मिठाई और फलों की टोकरी लेकर बेटी के ससुराल में कदम रखा। सबको पता था कि समधी आने वाले हैं लेकिन किसी ने बढ़कर उनका स्वागत नहीं किया।  पलक ने जब अपने पिता को देखा तो भागते हुए उनके पास आने लगी।

  ममता जी  ऊंचे स्वर बोलीं ,” ऐसा कौन सा खजाना लेकर आए हैं तेरे पिताजी जो भागी जा रही है!!  खाली हाथ बेटी को भेज दिया और खुद भी हाथ लटकाए आ गया। अपनी नहीं तो हमारी हैसियत का तो ध्यान रखा होता। ,,  

पलक से ये सब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। हारकर उसने अपना मुंह खोल दिया, ” मां जी , मेरे पिता की हैसियत की बात है तो सुनिए , मेरे पिताजी ने अपनी हैसियत से बढ़कर मुझे पढ़ाया लिखाया है। इस काबिल बनाया है कि भविष्य में जरूरत पड़ने पर मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुझे तो लगता है हैसियत तो आपकी नहीं थी बहू लाने की….  जब बहू के खाने पहनने का खर्चा उठाने की आपलोगों की हैसियत नहीं थी तो क्या जरूरत थी बेटा ब्याहने की?? क्या मेरा पति इतना भी नहीं कमाता की अपनी पत्नी की जरूरतें पूरी कर सके?? बोलिए मां जी…..  ,,

  पलक की बात सुनकर ममता जी की बोलती बंद हो गई थी। विशंभर जी ने पलक को चुप कराते हुए कहा,
” बिटिया , हमने तुम्हें संस्कार दिए हैं कि बड़ों का हमेशा मान रखना। लेकिन हक की बात जरूर बोलना। अब ये तुम्हारा परिवार है इसलिए पूरे मन से अपना कर्तव्य निभाना। ,,

” और हां समधन जी, मैंने अपनी सबसे बड़ी पूंजी पलक के रूप में आपको सौंपी है।  हाथ जोड़कर आपसे विनती है कि इसे दिल से स्वीकार करें। रही बात दहेज की तो वो तो मैं ना कभी दूंगा और ना हीं लूंगा । अब पलक आपके घर की इज्जत है इसलिए इसकी इज्जत रखना भी आपकी जिम्मेदारी है । ,,

हाथ जोड़कर विशंभर नाथ जी विदा ली। उन्हें तसल्ली थी कि उनकी बेटी अपने हक के लिए आवाज उठाने में सक्षम है।  

  ममता जी को भी समझ आ गया था कि अब उनका पाला किसी गाय से नहीं शेरनी से पड़ा है इसलिए अब जो है उसे स्वीकारने में हीं भलाई है।

 लेखिका : सविता गोयल 

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