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दिनचर्या  – त्रिलोचना कौर

भारती दोपहर खाने के बाद आराम करने जा ही रही थी कि बेटे अभिराज का फोन आ गया” माँ,एक वर्ष के लिए मेरी पोस्टिंग ऐसी स्थान पर हो गई है। मै वहाँ सौम्या और बच्चों को लेकर नही जा सकता अत: इसी हफ्ते मै इन लोगों को छोड़ने घर आऊंगा”

                         भारती खुशी से फूली नही समाई कि अब उन्हें अपने एक वर्षीय जुड़वा पोतो के साथ रहने का अवसर मिलेगा।साथ मे चिन्ता की रेखाएं भी माथे पर पड़ गई कि कही आदतन उनकी प्यारी सी दिनचर्या पर खलल न पड़े लेकिन उन्हें बहू सौम्या के सौम्य व्यवहार को ध्यान में रखते हुए इस चिन्ता को झटक दिया।

       चार दिन मे ही बेटा अभिराज अपने परिवार को छोड़कर लद्दाख रवाना हो गया।

सौम्या और दोनों बच्चों के साथ चुटकियों मे दिन कब बीत जाता पता ही नही चलता। भारती का बाहर पार्क जाना और सहेलियों के संग गपशप छूट चुका था लेकिन पारिवारिक खुशी के आगे इस बात को वह बिल्कुल अहमियत नही देती थी,हाँ जब वह ध्यान योग करने बैठती तो सौम्या कभी-कभार बच्चों को पकड़ा कर कोई न कोई काम करने चली जाती।

                     भारती जी को यह बात अखर कर रह जाती कहना चाह कर भी कुछ न कह पाती। भारती घरेलू कामों को सबसे बेस्ट एक्सरसाइज मानती थी लेकिन स्नेह वश बहू सौम्या की पूरी कोशिश यही करती कि सासू माँ को कोई काम न करना पड़े ।सौम्या अभी भी असमंजस मे थी कि कही जाने अनजाने मेरी उपस्थिति से माँ को कोई परेशानी तो नही हो रही है।

एक दिन भारती शाम को चाय बनाने के लिए गई बहू सौम्या हल्की हल्की नीद में थी रसोई से बर्तनों की आवाज सुन आकर बोली ” माँ आप मुझे चाय बनाने को कह देती”

भारती ने बहुत प्यार से सौम्या के दोंनो हाथ पकड़कर कहा”मै तुम्हारे सेवा भाव को जानती हूँ तुम हर प्रकार से मुझे सुख देना चाहती हो लेकिन मै शरीर स्वास्थ्य के लिए घर के काम को करना बेहद जरुरी समझती हूँ…हाँ,बस तुम एक काम कर दिया करो तुम अपने काम के लिए मुझे बुलाया न करो और जब मै काम कर रही हूँ तो मना मत किया करो” कहते-कहते अपनी हिचक को मिटाने के लिए भारती खिलखिलाकर हँसने लगी।

                                 सौम्या ने राहत की सांस ली उसे लगा हरे-भरे खेतों मे उसे अपना सफर मुकम्मल करने लिए पगडंडी दिख गई हो। भारती अपनी बात रख कर खुश थी। अब दोनों के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी।

                    त्रिलोचना कौर

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