दाग का डर – मंजू तिवारी : Moral stories in hindi

    Moral stories in hindi : दाग यह शब्द शुरू से ही महिलाओं को बड़ा डराने वाला रहा है। चाहे दाग कपड़ों पर हो या फिर चरित्र पर हमेशा से ही हम महिलाओं को डराते रहे हैं। समाज का ताना-बाना ही कुछ इस प्रकार का बना है।

कपड़ों की दाग तो फिर भी डिटर्जेंट पाउडर से छूट जाते हैं लेकिन यदि किसी महिला के चरित्र पर उंगली उठा दी जाए ताउम्र वह महिला समाज में हेय दृष्टि से देखी जाती है। चरित्रहीन पुरुष को यह समाज कुछ हद तक स्वीकार भी कर लेता है लेकिन यदि एक महिला के चरित्र में यदि दाग है तो उस महिला की दुर्गति निश्चित है।

शायद इसीलिए भारतीय माताएं अपनी बेटियों को शुरू से ही उन्हें उनके चरित्र के बारे में समय-समय पर ज्ञान और मार्गदर्शन देती रहती है। जो जरूरी भी है।

ऐसी मांओं की बेटियां अपने सुंदर चरित्र के साथ आगे बढ़ जाती है। यदि कोई बेटी भटक जाती है तो उसके परिवार वालों को जैसे ही इस बात की खबर लगती है बिना कोई जोखिम लिए वह उस बेटी का आनन-फानन में रिश्ता कर देते हैं।

आप पढ़ाई लिखाई और सपने तो बहुत दूर की बात हो गई और उस बेटी का परिवार तथा समाज में भी कोई सम्माननीय स्थान नहीं रहता इनकी जगह टीका टिप्पणी  ले लेती है अगर उस महिला के ससुराल में उसके चारित्रिक दाग की बात पता चल जाती है तो स्थितियां बहुत ही विकट हो जाएंगी ना तो उसे उसके पति से सम्मान मिलेगा नाही उसे अपने ससुराल में किसी से,, हो सकता है

उस स्त्री से ससुराल वाले सारे रिश्ते खत्म कर ले या उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दें,,,,,, और उस महिला का सारा जीवन अंधकारमय हो जाता है।

जो एक गंभीर विषय है। जबकि पुरुष के चरित्रहीन होने पर उस पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ता  महिला की यह गलती उसके साथ चक्रवृद्धि ब्याज के साथ बढ़ती रहती है। इसलिए प्रत्येक भारतीय महिला को अपने चरित्र को शीशे के भांति सहज कर रखना चाहिए जिससे और भी महिलाएं आपसे प्रेरित हो सके

और हमारी भारतीय संस्कृति भी इस तरह की है जिसमें महिलाओं के चरित्र पर बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना हुई है। भारतीय नारी सदा से ही पूजनीय ही रही है।

 भारतीय नारी सिर्फ अपने जीवन में एक बार ही अपने वर का वरण करती है। उसी से अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेती है और जीवन भर उसका साथ निभाती है। अपने पति के हाथों अपने अंतिम संस्कार की इच्छा रखती है।

ता उम्र एक ही पुरुष को उसका समर्पण रहता है। यही हमारी सनातन संस्कृति है । जो वैज्ञानिक भी है। और तार्किक भी है।

समय चाहे प्राचीन हो यह आधुनिक महिलाओं के लिए चरित्र हमेशा महत्वपूर्ण रहा है और हमेशा ही महत्वपूर्ण रहेगा,,,,, जो बेटियां अपने पथ से भटकी है। उनका हमेशा फायदा उठाया गया है। उनका फायदा उठाने के बाद कोई  पुरुषो अपना जीवनसाथी नहीं बनाना चाहत,,,, यह बात प्रत्येक महिला को या बेटी को भलीभांति समझ लेना चाहिए ,,,,, 

पुरुष को आज भी विवाह के लिए सुंदर चरित्र बाली महिला ही चाहिए होती है। खुद का चरित्र चाहे कैसा भी हो,,,,, शायद इसीलिए लिव इन रिलेशन एक मुकाम तक नहीं पहुंच पाते,,,,,, और इसीलिए अप्रत्याशित भयानक घटनाएं सामने आती है। चरित्र से भटकी हुई महिलाएं अधिकतर उनका अंत दुखदाई ही होता है। 

आधुनिकता की अंधी दौड़ में जिस बेटी ने अपना चरित्र और नैतिकता छोड़ी वही बेटी अपने साथ-साथ अपने माता-पिता और कुल को लेकर डूब जाती है।

 जिस विश्वास के साथ अब बेटियों को माता-पिता एक ऊंचाई पर पहुंचाना चाहते हैं तो हम बेटियों की भी इतनी जिम्मेदारी तो बनती ही है। कि उनके विश्वास पर खरे उतरे,,, बेटियों को अपने माता-पिता को इतना विश्वास दिलाना है।

कि उन्हें आपके चरित्र पर दाग का डर ना लगा रहे,,, बेदाग सुंदर चरित्र के साथ जब बेटी आगे बढ़ेगी,,,, तो एक बेटी के माता-पिता के लिए गर्व की बात होगी,,,,, 

माता-पिता का भी चरित्र में दाग का डर खत्म हो जाएगा क्योंकि जब एक बेटी के चरित्र में दाग लगता है। तो आज तक ना कोई डिटर्जेंट पाउडर बना है और ना शायद भारतीय समाज में बन पाएगा जो एक बेटी के चरित्र के दाग को धो सकें,,,,,

इसलिए चरित्र में दाग लगने से बचे और आसमान की ऊंचाइयों को छुए भारतीय बेटियां,,,, जो सुंदर चरित्र के ही साथ ही संभव है। जिन महिलाओं का चरित्र बेदाग रहा है उन महिलाओं की जिंदगी भी खुशहाल है। अर्थात सुंदर चरित्र वाली महिलाएं जिल्लत के साथ नहीं जीती,,,,

यह मेरे व्यक्तिगत विचार है। आप अपनी भी राय जरूर रखें

मंजू तिवारी गुड़गांव

स्वरचित मौलिक रचना

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