बेशर्मी नहीं शालीनता कहिए  – सोनिया कुशवाहा 

सर पर पल्लू जमाए भारी भरकम साड़ी में पंडाल के एक कोने में बैठ मैं मलाई कोफ्ते से नान का लुत्फ उठा रही थी कि तभी सामने से देवरानी आती दिखाई दी, अरे भाभी यहाँ अकेले में क्यूँ बैठी हो चलो थोड़ा चाट खाकर आते हैं! मैंने सिर उठाकर वीना को देख कर कहा ना बाबा उधर ससुर जी और जेठजी भी तो होंगे, फिर सासू माँ की नाराजगी झेलो कि “बड़े छोटे का लिहाज नहीं सबके सामने खड़ी होकर चाट खा रही थी”। मैंने अपना खाना खत्म कर ही लिया था और पतिदेव का इंतजार कर रही थी कि आयें और एक कप कॉफी और पिला दें बस।

शादी के बाद के इन 12 सालों में हर पार्टी, उत्सव का यही हाल होता है कि मैं सिर पर पल्लू जमाए कोना पकड़ लेती हूँ और वहीं से पार्टी शुरु और वहीं खत्म। सासू माँ के कड़े अनुशासन का पालन जो करना होता है, या यूँ कहिए कि कभी हिम्मत ही नहीं हुई कोई बगावती कदम उठाने की। तभी सामने से एक लड़की खुले बाल और आजकल के लटेस्ट फ़ैशन वाले पलाज़ो सूट पहने दिखी, थोड़ा और नज़दीक आई तो मैं उसे देखकर सन्न रह गई वो तो चाची जी की नयी बहू कीर्ति थी। अरे चाची जी तो बड़ी बातें बनाती थी हम लोगों को इनकी खुदकी बहू ऐसे घूम रही है और किसी को नहीं दिख रही यहां तक की मम्मी जी ने भी कुछ नहीं बोला।

 

सिर पर पल्लू भी नहीं और हम 12 साल से पागल बने हुए हैं। मन में कड़वाहट भर गई थी अब तो चाय कॉफी सबका स्वाद मुह से उतर गया। मन में गुस्सा भरा था या साफ बताऊँ तो जलन हो रही थी कि जो काम मैं 12 सालो में ना कर सकी उसने कुछ महीनों में कर दिखाया।




लेकिन मुझे तो अब टक्कर लेनी थी लडाई करनी थी, अपना गुस्सा निकालने के लिए मैंने इनको ढूंढकर सुनाना शुरू किया, “देखो कल की आई लड़की कैसे घूम रही है , यही संस्कार हैं इसके? ना जेठ की शरम ना ससुर की, घूम घूम कर पूरे पंडाल में चाट खा रही है अब मम्मी को नहीं दिखा होगा ना! हम भी पढ़े-लिखे मॉडर्न थे लेकिन क्या हम नहीं ढले यहां के रीति रिवाज मे। इन्होने मेरी राम कहानी सुनने के बाद ना हाँ कहा ना ही, ना।

थोड़ी देर बाद किर्ति मेरे पास आकर बैठ गई। भाभी भाभी करके बड़े अच्छे तरीके से बात कर रही थी। बड़ी मिलनसार और हँसमुख व्यक्तित्व की कीर्ति जितनी देर मेरे पास रही बहुत अच्छे से व्यवहार किया लेकिन मेरे मन में तो वो तेज़ तर्रार, असंस्कारी और बाद तमीज है यह बैठ चुका था इसलिए उसकी कोई अच्छाई मुझे नज़र नहीं आयी, पूरी पार्टी का मजा खराब हो गया था.

एक दो दिन बीते तो कीर्ति का मेरे पास फोन आ गया, भाभी आप बहुत सुन्दर लगती हो साड़ी में मुझे भी अपनी तरह बढ़िया साड़ी पहनना सीखा दो ना प्लीज। क्या सुंदर, बेवकूफ़ लगती हूँ मैं, स्मार्ट तो तुम हो जो आते ही चाची जी को अपने अनुरूप ढाल लिया। वो मॉडर्न कपड़े तुम पहनती हो शरम नहीं आती ससुराल में ऐसे, सारी कड़वाहट मैंने झट से उड़ेल दी, “भाभी लेकिन मैंने कोई असभ्य कपड़े तो नहीं पहने, सूट तो कितना शालीन माना जाता है और इज्जत तो मन से होती है सर ढकने से नहीं, मैंने मांजी को भी यही कहा। और हाँ मै गलती ना हो तो किसी की नाजायज बात को बर्दाश्त नहीं करती। अपनी तरफ से कभी कोई गलत काम नहीं किया मैंने। लेकिन ये रूढ़ी वादी रीति रिवाज ढोने की आवश्यकता क्या है? क्या मैं उन कपड़ों में असभ्य लग रही थी, आप ही बताइये भाभी! मैंने ज्यादा कुछ नहीं कहा लेकिन मेरी देवरानी ने बड़ी सीख दे दी थी मुझे। सच ही तो है क्यूँ ये रूढ़ी वादी विचार ढो रहे हैं हम लोग।

 

आखिर सिर में ऐसा क्या है जिसे हम छुपाते फिरते हैं। क्यूँ नहीं अपनी मर्जी से पहन औढ़ सकते। शालीनता के दायरे में रहकर किया गया कोई भी काम गलत नहीं होता ये बात मैंने किर्ति से सीखी थी। और जबतक आप गलत नहीं किसी से क्यूँ दबना क्यूँ डरना। मन से बोझ सा उतर गया था। जैसे इतने सालों की घुटन कम हुई हो। मैंने भी अपने कुछ सूट निकाले जो यदा कदा मायके में काम आते थे और बन गई किर्ति की तरह मिलनसार, खुशमिजाज लेकिन खुद को दबा कर नहीं खुले दिल से। उतार दिया पल्लू जो घुटन पैदा कर रहा था। सासू माँ को भी किर्ति के बताए तर्क देकर मैं अपने काम में व्यस्त हो गई। सासू माँ  दो चार दिन में मुझे ऐसे ही देखने की अभ्यस्त हो गई। सच ही है कि कभी तो पहल करनी ही पड़ेगी।वैसे भी ये तो आपने सुना ही होगा ना कि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना।

सोनिया कुशवाहा 

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