अहंकार – विनोद प्रसाद

कौशल कुमार जी भारतीय रेल सेवा में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। उनके हर क्रिया-कलाप में अधिकारीपन की बू आती थी। अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार रूखा रहता था। उन्हें लगता था कि रौब और भय के द्वारा ही कर्मचारियों से काम लिया जा सकता है। 

उनके इस व्यवहार से अधीनस्थ कर्मचारियों में हमेशा असंतोष की भावना बनी रहती थी। अपने रूखे आचरण के कारण वे साथी अधिकारियों में भी बहुत लोकप्रिय नहीं थे, नतीजतन वे सबसे अलग-थलग पड़ जाते थे। 

आखिर एक दिन सेवाकाल की शर्तों के अनुसार आयु पूर्ण होने के कारण उनकी सेवानिवृत्ति हो गई। कार्यालय में ही विदाई समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें सभी ने शिष्टाचारवश उनके कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें परम्परागत रूप से विदाई दी। अब वे पूर्व अधिकारी के रूप में एक सामान्य नागरिक रह गये थे। 

रिटायरमेंट के बाद कुुुमार साहब ने दिल्ली की ही एक सोसायटी में फ्लैट लिया और अपनी पत्नी के साथ कुछ दिन पहले ही वे शिफ्ट हुए थे। 

दोनों बेटे इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंची पैकेज पर काम कर रहे थे। कंपनी की ओर से दोनों को विदेश में काम करने का अवसर मिला। पैकेज में आकर्षक बढ़ोतरी का भी प्रस्ताव था, जिसे दोनों ने स्वीकार कर लिया। दोनों बच्चे विदेश में नौकरी करने गये और वहीं के होकर रह गये। साल में एकाध बार वे मिलने आ जाते थे।




चूकि सोसायटी में वे नये थे, इसलिए उनकी मित्रता अभी ज्यादा लोगों के साथ नहीं हुई थी। उच्च पदाधिकारी होने के नाते सेवाकाल में अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से हमेशा दूरी बनाए रखने के स्वभाव के कारण,क सेवानिवृत्ति के बाद भी वे आम लोगों से भी पूरी तरह जुड़ नहीं पाए। 

उस दिन सुबह-सुबह सोसायटी के सामने खूबसूरत पार्क में कुमार साहब अकेले टहल रहे थे। तभी बाजू वाले फ्लैट के भाटिया जी मिल गये, जिन्होंने इस फ्लैट को दिलवाने में उनकी मदद भी की थी। सुपर मार्केट में भाटिया जी की अच्छी-खासी दूकान थी। दुआ-सलाम के बाद भाटिया जी ने कहा- “कुमार साहब, आइए आपको अपनी सोसायटी के और लोगों से जान-पहचान करा दूँ।” 

पहले तो वे हिचकिचाए, फिर वे उनके साथ हो लिए। भाटिया जी उन्हें एक पेड़ के नीचे ले गए जहां पांच लोग पहले से एक बेंच पर बैठे गपशप कर रहे थे।

“आइए भाटिया जी, आज देर कर दी आपने” -उनमें से एक ने कहा।

भाटिया जी ने कहा- “भाइयों, पहले आपको हमारे एक नये साथी से परिचित करा दूं,” फिर उन्होंने कुमार साहब की ओर इशारा करते हुए कहा- “आप हैं हमारी सोसायटी में फ्लैट नं 405 के नये सदस्य श्री कौशल कुमार जी जो रेल विभाग में उच्चाधिकारी थे और पिछले महीने ही सेवानिवृत्त हुए हैं।” फिर उन्होंने उन लोगों का परिचय कराते हुए कहा- “आप श्री पी सुतेक जी रामनगर के डीएम हैं। कभी-कभी अपने फ्लैट नं 401 में आ जाते हैं, श्री देवी दयाल जी फ्लैट नं 201 में रहते हैं। आप शादाबाद के सांसद रह चुके हैं। आप हैं ‌‌‌‌श्री एम अय्यर, हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज फ्लैट नं 305, आप श्री महेश शर्मा जी, फ्लैट नं. 303 वित्त विभाग में बड़ा बाबू हैं, और आप फ्लैट नं. 203 के श्री श्यामल बनर्जी जो विदेश मंत्रालय में सचिव पद से रिटायर हुए हैं।” 

सभी ने गर्मजोशी से कुमार साहब का स्वागत किया। किसी के चेहरे पर पद और गरिमा का लेशमात्र भी अभिमान नहीं था। उन लोगों से मिलने के बाद अधिकारी होने के अहंकार की झूठी परत कुमार साहब के चेहरे से उतर चुकी थी।

#अहंकार

– विनोद प्रसाद, पटना

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