जिन्दगी की खुशियां – माता प्रसाद दुबे

शाम के 7,बज रहे थे। रामप्रसाद अपनी ड्यूटी पूरी करके अपने घर पहुंच चुका था। वह राज्य सरकार  में सरकारी ड्राइवर के पद पर कार्यरत था। दिन भर गाड़ी चलाने के उपरांत वह थक कर चूर हो चुका था। मगर यह तो उसकी रोज की दिनचर्या थी।आज वह मानसिक तौर पर परेशान नजर आ रहा था।”छोटू और गुड़िया!कहा है?”घर के अंदर पहुंचते ही वह अपने छोटे बच्चों को ना देखकर अपनी पत्नी मालती से बोला।”बच्चे पड़ोस में दीदी के यहां गए हैं,आपको सुबह बताया तो था,आज उनके बेटे का जन्मदिन है,आप भूल गए क्या?”मालती हैरान होते हुए बोली।”अरे हां मैं भूल गया?

“कहकर रामप्रसाद खामोश हो गया। “क्या हुआ काहे उदास बैठें हो?”मालती अपने पति रामप्रसाद को चुपचाप बैठा हुआ देखकर बोली।”क्या कहूं मालती!हम गरीब लोगों की जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है..दिनभर साहब मेमसाब की चाकरी करते रहो..बदले में हमें क्या मिलता है..उनका वही अक्खड़ व्यहवार जैसे कि हम इंसान न होकर उनके लिए सिर्फ एक जानवर है?”रामप्रसाद चिंतित होते हुए बोला।”ऐसा क्या हो गया कि आज आप इतने परेशान है?”मालती सवाल उठाते हुए बोली।”हुआ कुछ नहीं है मालती!बस एक ही बात दिल में खटकती है..कि पैसे वाले लोग अपने कर्मचारियों से सही से बोलते तक नहीं..उन्हें छोटी-छोटी बातों पर बेइज्जत करते है..बस यही बात मन को झकझोर देती है?”

रामप्रसाद शांत होते हुए बोला।”क्या आज साहब ने कुछ कहा है आपको?”मालती रामप्रसाद को देखते हुए बोली।”नहीं साहब तो कुछ नहीं कहते..मगर मेमसाब का नजरिया बिल्कुल अलग है..हमसे ज्यादा तो वह अपने पालतू कुत्ते को इज्जत देती है?” रामप्रसाद गहरी सांस लेते हुए बोला।”ऐसा क्या कह दिया मेमसाब ने?”मालती गंभीर होते हुए बोली।”वह बात-बात में मुझे इडियट.. नानसेंस बोलती है..हमेशा दूसरी दुनिया में खोई रहती है..आज मैं केवल दस मिनट देरी से पहुंचा और गैरेज से गाड़ी निकालकर सफाई कर रहा था..बस मेमसाब भड़क गई मेरे ऊपर,साहब ने बस जल्दी आने को कहा?”रामप्रसाद झुंझलाते हुए बोला।”छोड़िए आप इसे दिल से मत लगाइए..आखिर वह बड़े लोग है..उन्हें हम जैसे लोगों की जिन्दगी की परेशानियों से क्या लेना-देना है..आप हाथ धो लीजिए मैं आपके लिए खाना निकालती हूं?”कहते हुए मालती अपने छोटे से घर के किचन के अंदर चली गई।




सुबह के नौ बज चुके थे। रामप्रसाद अपनी ड्यूटी पर जाने के लिए एक मिनट भी देर नहीं करना चाहता था।”मालती!आज से छोटू और गुड़िया को तुम स्कूल छोड़ने जाना..क्योंकि मैं थोड़ा भी लेट होकर मेमसाब की बातें नहीं सुनना चाहता?”कहते हुए रामप्रसाद तैयार होने लगा।”ठीक है आप परेशान ना हो मैं बच्चों को स्कूल छोड़ने व लाने का समय निकाल लूंगी?”मालती विन्रम होते हुए बोली। अपने बच्चों को दुलारकर रामप्रसाद घर से बाहर निकल गया। साहब की कोठी में पहुंचकर रामप्रसाद गाड़ी गैराज से बाहर निकालकर उसकी सफाई करके साहब का बंगले से बाहर निकलने का इंतजार कर रहा था। तभी वह चौक गया बंगले के अंदर से साहब और मेमसाब की जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। बीच-बीच में उनके बेटे व बेटी की भी चीखने की आवाजें आ रही थी। रामप्रसाद ध्यान लगाकर सुनने लगा। मेमसाब साहब को काफी अनाप-शनाप बोल रही थी। वह गलत लफ्जों का भी इस्तेमाल कर रही थी। मेमसाब के समर्थन में उनके बेटे बेटी भी साहब से किसी बात पर बहस कर रहे थे।

लगभग एक घंटे तक इंतजार करने के बाद साहब बंगले से बाहर निकले वह रामप्रसाद से बिना कुछ बोले चुपचाप गाड़ी का दरवाजा खोलकर चुपचाप उसमें बैठ गये। रामप्रसाद बिना देर किए साहब को लेकर गाड़ी स्टार्ट करके वहां से बाहर निकल गया।

शाम के पांच बज रहे थे। रामप्रसाद साहब को घर छोड़ने के लिए उनके आने का इंतजार कर रहा था।”आज साहब को आने में देर क्यूं लग रही है?”वह खुद से ही बात कर रहा था। सुबह का वह लड़ाई झगडे का मंजर वह चाह कर भी भूल नहीं पा रहा था। उसके मन में अनगिनत सवाल उठ रहे थे।”क्या कमी है..धन दौलत नौकर चाकर..सारे भौतिक सुख तो मौजूद है..साहब के पास फिर भी जिन्दगी में इतना क्लेश आखिर क्यों..रामप्रसाद सोचने पर मजबूर हो गया था।

 तभी साहब गुमसुम उदास गाड़ी की तरफ आते हुए दिखाई दिए। रामप्रसाद बिना कुछ बोले चुपचाप गाड़ी का दरवाजा खोलकर खड़ा हो गया।साहब के गाड़ी में बैठते ही वह गाड़ी स्टार्ट करके चलने लगा। कुछ दूर तक चलने के बाद साहब रामप्रसाद से बोले”रामप्रसाद गाड़ी मोड़ लो?”रामप्रसाद समझ नहीं पा रहा था कि साहब गाड़ी मोड़ने के लिए क्यूं कह रहे हैं।”साहब! कहां चलना है गाड़ी मोड़कर?”रामप्रसाद घबराते हुए बोला।”तुम चलों मैं तुम्हें बता दूंगा कहा चलना है?”साहब रामप्रसाद से बोले।




“ठीक है साहब?”कहकर रामप्रसाद गाड़ी मोड़कर दूसरी ओर तेज रफ्तार में गाड़ी चलाने लगा।”बस यही गाड़ी पार्क कर दो?”बार के सामने पहुंचकर साहब बोले।”ठीक है साहब! कहकर रामप्रसाद ने गाड़ी बार की पार्किंग में खड़ी कर दी।”आओ रामप्रसाद तुम भी अंदर चलों मेरे साथ?”साहब रामप्रसाद से बोले।”ठीक है साहब?”कहकर रामप्रसाद उनके साथ बार में दाखिल हो गया। रामप्रसाद का दिल जोरों से धड़क रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था..कि वह क्या करे साहब को मना भी नहीं कर सकता था..वह ना चाहते हुए भी साहब के साथ बार के अंदर जाने के लिए मजबूर था।

रामप्रसाद साहब के साथ बार की चेयर पर बैठा हुआ था। वेटर आर्डर लेकर कुछ ही देर में खाने के सामान के साथ एक शराब की बोतल ग्लास पानी रखकर वहां से चला गया। रामप्रसाद चुपचाप बैठा साहब की ओर देख रहा था।”रामप्रसाद देख क्या रहे हो, ग्लास उठाओ?”वह पैग बनाते हुए रामप्रसाद से बोले।”नहीं साहब मैं शराब नहीं पीता?”रामप्रसाद घबराते हुए बोला।”नहीं पीते..बहुत कम ड्राईवर होंगे जो यह कहेंगे कि वह नहीं पीते?”साहब रामप्रसाद की ओर हैरानी से देखते हुए बोले।

“साहब मैं सही कह रहा हूं, मैंने कभी शराब नहीं पी..ना पीना चाहता हूं?”रामप्रसाद साहब से हाथ जोड़ते हुए बोला।”ठीक है रामप्रसाद बहुत अच्छा लगा मुझे तुम्हारी बात सुनकर..अच्छा कुछ खा लो?”साहब रामप्रसाद की ओर प्लेट बढ़ाते हुए बोलें। रामप्रसाद सकुचाते हुए प्लेट से नमकीन लेकर खाने लगा।वह मन ही मन सोच रहा था..कि न जाने आज क्या होने वाला है..साहब धीरे-धीरे बोतल खाली कर रहें थे।

वह चुपचाप बैठा उनकी ओर देख रहा था।

शाम के सात बज रहे थे।साहब पूरी तरह नशे में चूर हो चुके थे। सिगरेट की फूंक मारते हुए वह रामप्रसाद से खुलकर बात कर रहे थे। जैसे कि वह साहब नहीं रामप्रसाद के मित्र हैं। साहब को गाड़ी में बैठाकर रामप्रसाद गाड़ी तेज गति से चलाने लगा।”रामप्रसाद गाड़ी धीरे चलाओ?”साहब लड़खड़ाती आवाज में रामप्रसाद से बोले।”जी साहब! कहकर रामप्रसाद ने गाड़ी की स्पीड कम कर दिया।

“रामप्रसाद कितने बच्चे हैं तुम्हारे?”साहब ने रामप्रसाद से पूछा।”दो है साहब..दस वर्ष की बड़ी बिटिया शुभि,(गुड़िया) और पांच साल का बेटा आयुश,(छोटू) दोनों अभी मेरे घर आने का रास्ता देख रहे होंगे?”रामप्रसाद चिंतित होते हुए बोला।”तुम्हारे बच्चे तुम्हें बहुत प्यार करते है रामप्रसाद?”साहब ने रामप्रसाद से पूछा।”जी साहब!जब तक मैं घर नहीं पहुंच जाता तब तक वह खाना नहीं खाते?”रामप्रसाद खुश होते हुए बोला।”तुम बड़े किस्मत वाले हो रामप्रसाद जो तुम्हारे बच्चे तुमसे इतना प्रेम करतें है?”कहकर साहब कुछ सोचते हुए खामोश हो गये।”क्या हुआ साहब! रामप्रसाद साहब से बोला।”कुछ नहीं रामप्रसाद..और तुम्हारी पत्नी?”साहब ने रामप्रसाद से पूछा।”अरे साहब मेरी पत्नी मालती नाम है उसका.. उसके सहारे के बिना तो मैं चल ही नहीं सकता साहब..बस यूं कहिए कि वह मेरी जिन्दगी की बाती है..और मैं दीया..हम दोनों एक दूसरे के बिना रह ही नहीं सकते?”कहते हुए रामप्रसाद के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी।”रामप्रसाद तुम्हारे पास तो जिन्दगी की सभी खुशियां मौजूद है..तुम बहुत भाग्यशाली हो आज के समय में..जो तुम्हें ऐसी पत्नी और बच्चों का साथ मिला है. 

उन्हें हमेशा खुश रखना रामप्रसाद..जीवन का आनंद तो तुम्हें ईश्वर ने प्रदान किया है.. उसका हमेशा धन्यवाद देना?”कहते हुए साहब भावुक हो गए उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे।”अरे साहब क्या हुआ मैंने कुछ गलत कहा तो क्षमा चाहता हूं?”रामप्रसाद अपने साहब को आंसू बहाते हुए देखकर परेशान होने लगा। थोड़ी देर शांत रहने के बाद साहब बोले।”रामप्रसाद मेरे पास धन दौलत एश्वर्य की कमी नहीं है..फिर भी मेरी जिन्दगी नर्क से भी बदतर है..मेरी पत्नी जिसे मुझसे ज्यादा अपने दोस्तों से प्रेम रहता है..नशा पार्टियां यह सब उसकी दिनचर्या है..कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा मगर धीरे-धीरे हमारा प्यार बट गया उसे मुझसे कोई दिलचस्पी ही नहीं है..मैं सिर्फ नाम का ही अफसर हूं..मगर अपने घर में मेरी कोई औकात नहीं है..मेरे बच्चे भी अपनी मां की राह पर चलते हैं.. उन्हें अपने पिता से कोई लगाव नहीं है..

न वह मेरा सम्मान करते है..पूरी तरह से पाश्चात्य संस्कृति सभ्यता में डूबे हुए हैं..मैंने विरोध किया नतीजा और भी भयानक रूप लेकर मेरे सामने आया..जिसे मैं किसी से बता भी नहीं सकता?”कहते हुए साहब भावुक हो गए।”साहब आपको पहले से ही स्थिति पर नियंत्रण करना चाहिए?”रामप्रसाद संकुचित होते हुए बोला।”हा तुमने सही कहा मगर मैं करता भी तो क्या कुछ सालों तक मैं तुम्हारी मेमसाब को समझ नहीं पाया..इधर-उधर ट्रांसफर होता रहा..पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी मेमसाब पर ही थी..




जिसका उसने मेरी सोच के विपरीत इस्तेमाल किया..आज मैं उच्च पद पर बैठ कर अपने परिवार बच्चों को सही रास्ता नहीं दिखा पाया क्यूं..क्योंकि परिवार की गाड़ी चलाने के लिए पिता ड्राईवर बनता है,तो मां को गार्ड की भूमिका अदा करनी पड़ती है..तभी जिन्दगी की गाड़ी अपनी मंजिल पर पहुंचती है..मैंने तो ड्राइवर की भूमिका अदा की मगर तुम्हारी मेमसाब कभी भी गार्ड की भूमिका सही से नहीं निभा पाई,?”कहकर साहब खामोश हो गये। रामप्रसाद ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी और कुछ ही देर में साहब के बंगले पर पहुंच गया।

रात के नौ बज चुके थे। मालती छोटू गुड़िया सभी रामप्रसाद का इंतजार कर रहे थे।”पापा!आ गए?”रामप्रसाद को देखते ही छोटू और गुड़िया एक साथ बोले।”आओ मेरे बच्चों?”कहते हुए रामप्रसाद ने छोटू और गुड़िया को गले से लगा लिया।”आज आपको आने में बहुत देर हो गई?”मालती सवाल उठाते हुए बोली।”हा मालती!अभी कुछ मत पूछो..चलो पहले खाना निकालो मुझे बहुत भूख लगी है?”रामप्रसाद अपने चेहरे के भाव छुपाते हुए मालती से बोला।”ठीक है आप बैठ जाइए बच्चों के साथ?”और मालती किचन के अंदर चली गई।

रात के बारह बज रहे थे। छोटू और गुड़िया सो चुके थे। रामप्रसाद ने साहब और उनकी खोखली हो चुकी गुमनाम जिंदगी के दर्द को और घटित घटना के बारे में मालती को बताया। “मालती! मैंने तुमसे कहा था की..हम गरीब लोगों की जिंदगी कष्टों से भरी हुई है..मगर आज मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जिंदगी की खुशियां धन दौलत से नहीं बल्कि अपनों का साथ और प्रेम से ही नसीब होती हैं..जो हमारे पास मौजूद है?” रामप्रसाद चैन की सांस लेते हुए बोला।”आप ऐसा क्यों कह रहे हैं..हमारे पास एक दूसरे के प्रति प्रेम और लगाव समर्पण की कमी नहीं है..यही तो है असली जिंदगी का सुख जो शायद दौलत का भंडार रखने वालों को भी नसीब नहीं होता?’कहते हुए मालती रामप्रसाद की बाहों में समा गई।

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी, लखनऊ,

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