वो सच में एक भाई का फर्ज़ निभा गया था – गीतू महाजन

भरी दोपहर में दरवाज़े की घंटी बजी तो नीता जी 

बड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठी,”यह कोरियर वाले भी इतनी दोपहर को ही आते हैं या कोई सेल्स गर्ल होगी।इन सब को यही समय मिलता है आने का।अभी-अभी तो फुर्सत से लेटी थी मैं”।

दरवाज़ा खोला तो सामने एक तेईस चौबीस वर्ष का लड़का था। मुस्कुराते हुए उस लड़के ने बोला,” नमस्ते आंटी जी,मैं सामने वाले फ्लैट में आया हूं..पीने के लिए पानी मिलेगा क्या?अभी कुछ देर पहले ही अपना सामान लेकर आया हूं और आते-आते रास्ते में ही पीने का पानी खत्म हो गया।शाम तक नीचे के बाज़ार से कुछ बंदोबस्त कर लूंगा..अगर आपको परेशानी ना हो तो पानी की एक बोतल मिल जाती”।

“हां हां..क्यों नहीं बेटा,अभी देती हूं” और नीता जी अंदर से पानी की बोतल ले आई और उसे थमाते हुए बोली,”और भी कुछ चाहिए हो तो बता देना”।

“नहीं आंटी जी, अभी तो सिर्फ पानी ही चाहिए” और लड़का मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर नमस्ते कर सामने वाले फ्लैट में चला गया।

शाम को नीता जी के पति दिवाकर जी आए तो नीता जी ने उन्हें उस लड़के के बारे में बताया तो दिवाकर जी गुस्सा होकर बोले,” कितनी बार तुम्हें कहा है ऐसे अनजान लोगों के लिए दरवाज़ा मत खोला करो और कभी भी खोलने से पहले चेन लगा लिया करो और तुम्हें क्या ज़रूरत थी ऐसे किसी अजनबी को पानी लाकर देने की।अगर पीछे से आकर वो तुम्हें कुछ कर जाता तो।कितनी खबरें आजकल ऐसे ही सुनाई पड़ती हैं”।

“अरे, ऐसा भी क्या कर दिया मैंने जो आप इतना आगबबूला हुए जा रहे हैं।मुझे तो उस लड़के में अपना अखिलेश नज़र आया।वह भी तो बेंगलुरु में ऐसे ही रहता है..ना जाने कब किसी चीज़ की आवश्यकता पड़ती हो और अगर कोई पड़ोसी मदद ना करे तो कितना बुरा लगता होगा उसे भी”,नीता जी बोली।

 दरअसल नीता जी और दिवाकर जी का बेटा अखिलेश अभी कुछ महीने पहले ही बेंगलुरु नौकरी करने के लिए गया था।नीताजी अक्सर उसको याद करती और दुखी हो जाती क्योंकि उसके जाने से वह अकेली पड़ गई थी। उनकी एक बड़ी बेटी भी थी गायत्री..जो कि उसी शहर में थी ब्याही हुई थी।बेटे के जाने से नीताजी को लगता कि वह तो बिल्कुल अकेली पड़ गई है दिवाकर जी एक बड़ी कंपनी में बड़े ओहदे पर थे और सुबह के निकले शाम तक आते थे।नीताजी घर में बहुत अकेलापन महसूस करती।

अगले दिन जब नीता जी और दिवाकर जी दोनों सुबह सैर कर पार्क से वापस आ रहे थे तो घर में जाने से पहले वही लड़का उन्हें नज़र आया और उन्हें नमस्ते कर उसने बोला,” आंटी जी, क्या आप मुझे यहां कोई खाना बनाने वाली कुक ढूंढ कर दे सकती हैं क्योंकि बाहर का खाना मुझे पचता नहीं और साथ ही साथ घर में बर्तन और सफाई करने वाली भी।मैं सुबह 9:00 बजे दफ्तर के लिए निकल जाता हूं और शाम 6:00 बजे तक आता हूं”।




नीताजी के बोलने से पहले ही दिवाकर जी ने उसे पूछा,” तुम्हारा नाम क्या है…किस कंपनी में काम करते हो और क्या पढ़ाई की है तुमने और तुम्हारे माता-पिता कहां रहते हैं”।

“अंकल जी मेरा नाम पार्थ है और मैंने थापर यूनिवर्सिटी से बीटेक किया है और  मेरे माता-पिता अंबाला में रहते हैं..एक छोटी बहन है जो अभी 12वीं कक्षा में है।मैं यहां दिल्ली पहली बार आया हूं और यहां कोई रिश्तेदार भी नहीं है”।

“हां हां बेटा मैं सारा इंतज़ाम कर दूंगी..तुम्हें फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है”, नीताजी झट से बोल पड़ी। इस बार उन्होंने दिवाकर जी की तरफ देखना भी ज़रूरी नहीं समझा।

अंदर आकर दिवाकर जी बोले,” ज़रा संभल कर रहना”। 

“हां हां मैं सब देख लूंगी”, आप फिक्र ना करो नीता जी बोली।

अगले दिन नीता जी ने पार्थ के लिए एक कुक और कामवाली बाई का इंतज़ाम कर दिया था।पार्थ ने इस मदद के लिए उन्हें बहुत-बहुत शुक्रिया कहा था।

नीताजी लगभग हर रोज़ दिवाकर जी से पार्थ के बारे में बातें करती और अखिलेश को भी उन्होंने पार्थ के बारे में बता दिया था।गायत्री को भी उसके बारे में सब कुछ  नीताजी द्वारा पता चल चुका था और तो और पार्थ ने भी अपने माता-पिता से फोन पर नीताजी की बात करवा दी थी और उन्होंने अनजान शहर में अपने बेटे की मदद करने के लिए उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद कहा था।नीताजी कभी-कभी कुछ अच्छा बनाती तो पार्थ के लिए रख छोड़ती और जब शाम को वह वापिस आता तो उसे देने चली जाती और उसे अपनी सेहत का ध्यान रखने की भी हिदायत देती रहती।

वैसे तो सब कुछ सामान्य था पर दिवाकर जी कभी कभी बोलते,”यह ऐसे उस लड़के से नया रिश्ता बनाना मुझे कुछ ठीक नहीं लगता “।

नीता जी आगे से कहती,” और मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती..ऐसा लगता है जैसे कोई रिश्ता सा जुड़ गया हो मुझे उस लड़के से।मुझे तो उसमें अखिलेश ही नज़र आता है।आने वाले महीने में जब अखिलेश आएगा तो मैं उसे पार्थ से मिलवा दूंगी तब देखना अखिलेश भी वही कहेगा जो मैं सोचती हूं और कुछ रिश्ते खून से परे होते हैं”।

खैर, कुछ दिन ऐसे ही बीते गायत्री मां बनने वाली थी और उसके ससुराल वाले उसके जेठ के पास पानीपत में रहते थे।गायत्री के पति विकास को कंपनी की तरफ से 1 हफ्ते के लिए चेन्नई जाना पड़ा तो उसने गायत्री को नीता जी के पास छोड़ना ही मुनासिब समझा।तय यह हुआ था कि डिलीवरी के समय गायत्री के साथ ससुर उसके पास आ जाएंगे और डिलीवरी में अभी लगभग 20-22 दिन बाकी थे।

इधर दिवाकर जी को उनके दोस्त और पड़ोसी रमेश जी अपने साथ बेटी के लिए लड़का देखने के लिए शहर से बाहर ले गए थे।उन्हें 2 दिन में वापिस आना था।दिवाकर जी की चिंता खत्म हो गई थी कि नीताजी के पास अब गायत्री थी और वह अकेली नहीं थी।दिवाकर जी यह हिदायत  देकर गए थे कि किसी को पता ना चलने दें कि वह दोनों अकेले हैं खासकर सामने वाले पार्थ को।उन्हें अभी भी पार्थ पर पूरा यकीन नहीं था।




इधर नीताजी और गायत्री आराम से रह रहे थे।सारा दिन दोनों मां बेटी ने खूब बातें की लेकिन रात को अचानक से गायत्री को दर्द शुरू हो गया।नीता जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह इस वक्त क्या करें।वह घबरा गई थी पड़ोसी रमेश जी भी घर पर नहीं थे और उनके साथ वाले दूसरे फ्लैट वाले वर्मा जी अपने बेटे के पास अमेरिका गए हुए थे।

नीताजी ने हड़बड़ी में अपने दामाद को फोन मिला दिया उधर वह भी घबरा गए पर उन्हें आश्वासित करते हुए बोले कि मम्मी आप घबराएं नहीं मैं अभी अस्पताल में फोन कर देता हूं वह अपनी एंबुलेंस भेज देंगे।तभी नीता जी की आवाज़ सुन पार्थ बाहर आ गया और सारा माजरा समझते ही उसने फटाफट नीताजी से गाड़ी की चाबी मांगी और गायत्री को सहारा देकर गाड़ी में बिठा लिया और बोला,” दीदी ,आप फिक्र मत करें मैं हूं ना..अभी हम कुछ ही देर में अस्पताल पहुंच जाएंगे”।

पार्थ ने नीता जी को विकास को फोन कर सारी बात बताने के लिए बोल दिया।अस्पताल घर से 15 मिनट की दूरी पर था।कुछ ही मिनटों में वे अस्पताल पहुंच चुके थे पार्थ ने सब कुछ संभाल लिया था।अस्पताल की रिसेप्शन पर एडमिशन कराने की  जितनी भी फॉर्मेलिटीज थी वह सारी पार्थ ने पूरी कर दी थी।गायत्री को अंदर ले जाया जा चुका था बाहर नीता जी घबराई सी इधर-उधर घूम रही थी।

पार्थ ने उन्हें आराम से बिठाया और उनके लिए चाय लेकर आ गया।थोड़ी ना नुकर के बाद नीताजी ने चाय पी ली अब वो थोड़ी सी संभली हुई नज़र आ रही थी पर चेहरे पर अभी भी बेचैनी के भाव साफ नज़र आ रहे थे।इतने वक्त में पार्थ ने दिवाकर जी और अखिलेश को भी फोन कर दिया था।विकास ने फोन कर पार्थ को बता दिया था कि वह वहां से निकल चुका है और सुबह तक पहुंच जाएगा। इधर से दिवाकर जी और अखिलेश भी निकल चुके थे।

पार्थ अस्पताल के कॉरिडोर में इधर-उधर टहलता रहा और बीच-बीच में नीताजी को भी संभालता रहा।नर्स ने बाहर आकर ने बताया कि अभी डिलीवरी में थोड़ा वक्त लग सकता है।पार्थ और नीता जी के पास अब इंतज़ार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

लगभग 2 घंटे के बाद नर्स ने बाहर आकर बताया कि गायत्री को बहुत सुंदर बेटा हुआ है और मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।नीता जी ने राहत की सांस ली और भगवान को बहुत-बहुत धन्यवाद करते हुए हाथ जोड़ दिए। डॉक्टर भी बाहर आ चुकी थे और उन्होंने नीता जी से बात करते हुए कहा कि कुछ देर बाद गायत्री को कमरे में शिफ्ट कर दिया जाएगा तब वह उससे मिल सकती है।

कुछ समय बाद नीताजी और पार्थ गायत्री को मिलने कमरे में जाने वाले थे कि तभी विकास आ गया और दिवाकर जी भी। सब गायत्री को और बच्चे को देखकर बहुत खुश हो रहे थे विकास बार-बार पार्थ का धन्यवाद कर रहा था कि उसकी वजह से सब संभव हो सका। इतनी देर में अखिलेश भी आ गया।दिवाकर जी अपने नाती से बोले जिसको उन्होंने गोद में उठाया हुआ था कि देख तेरे दोनों मामा यहीं पर है और तेरे एक मामा ने तो आज सारी स्थिति को पूरी तरह से संभाल लिया।

नीताजी ने दिवाकर जी की तरफ देखा तो उन्हें लगा जैसे दिवाकर जी कह रहे हो,” हां हां..मैं जान गया हूं कि पार्थ सच में भाई का फर्ज़ निभा गया है”।

#स्वरचित 

#अप्रकाशित 

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गीतू महाजन।

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