• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

“सिया” – रीता खरे

रामश्री काकी की नजरें रोज घूंघट डाले बंशी की दुल्हनरामश्री काकी की नजरें रोज घूंघट डाले बंशी की दुल्हन

का पीछा करतीं, पर सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाने के कारण उनके मन में उधेड़ बुन चलती ही रहती थी ।

  बंशी शहर की एक गैरेज में काम करता था, वहां से देर रात नशे में ही धुत्त लौटता था घर की माली हालत अच्छी नहीं थी,कच्चे घर को पक्का बंनवाने में जो दीवान जी से कर्जा लिया था, उसका ब्याज दिनों दिन बढ़ने के कारण तंगी अपने पैर पसारने लगी थी ।

बंशी की पत्नि सिया कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद भी समझदार और हर काम में निपुण थी, वह रात दिन ,घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये बंशी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती थी, एक दिन वह दीवान साहब के घर ब्याज की राशि माफ करवाने के लिये पहुंचती है, फिर तो वह बंशी के जाने के बाद रोज ही वहां जाने लगी, और उसके आने के पहले लौट आती ।

   रामश्री काकी को यह बात हजम नहीं हो रही थी, उन्होंने उसे कुलटा, चरित्रहीन, आदि शब्दों से शुसोभित कर बदनाम करना शुरु कर दिया, जब बंशी को यह बात पता चली तो वह शराब के नशे में दिन में ही घर लौट आया, पर उस दिन   सिया घर पर ही थी, आते ही ” आज क्यों नहीं गई,? अपने यार से मिलने, पता चल गया था कि मैं आज दिन में ही आ धमकूंगा, बहुत ही चरित्रवान पत्नि मिली मुझे, वाह बिल्कुल नाम के अनुकूल सती सावित्री । जानता हूं कि मेरी कमाई ज्यादा नही है, जिससे तुम अपने शौक पूरे कर पाओ , तभी यहां वहां मुंह डालती फिरती हो, पर मै प्यार में कोई कमी रखता हूं क्या ? कहते हुये उसने बेरहमी से बाल पकड़ कर सिया को पलंग पर पटक दिया और नशे में धुत्त टूट पड़ा उस पर वहशी भेड़िया की भांति ।

    सिया एक पति व्रत नारी की भांति उसके अत्याचार को झेलती हुई स्वंय की उपेक्षा को ही अपना नसीब मान बैठी थी , पर वह उपेक्षित होने के बावजूद भी अपने चरित्र पर लगे कलंक को सहन नहीं कर पा रही थी, वह दूसरे दिन फिर दीवान साहब के घर बंशी के जाने के बाद पहुंच जाती है ।




       तभी पीछे से बंशी नशे की हालत में चिल्लाते हुये,   

” अरे, हमने कर्जा लिया, कोई पाप नहीं किया, दीवान तुम तो खुले आम –“

पर उसके शब्द दीवान साहब के बाहर के कमरे में अपनी पत्नि को गांव की औरतों को कसीदाकारी चित्रकला  और सिलाई सिखाते देख मुंह में ही रह गये , और नशा रफूचक्कर हो गया ।

     यह देख एक औरत चिल्लाकर बोली ” बंशी भैया, सिया भाभी पर लांक्षन मत लगाओ, फिर सब एक साथ बोल पड़ीं वह तो वास्तव में सीता है , ऐसी देवी के तो चरण धोकर माथे से लगाना चाहिये ।

    तभी दीवान साहब बाहर आकर,

” बंशी तुम्हारी पत्नि तो गुणों की खान है, वह तो साक्षात सिया है. नारायणी का रुप, उसकी कला, योग्यता तो तुम्हारे घर में दब कर रह गयी थी, जब उसने मुझे बताया तो मैंने ही यह व्यवस्था की है, दस दिन बाद शहर में हस्त निर्मित चीजों का विश्वमेला लगने वाला है, सभी वहीं की तैय्यारी में लगीं है, इसने तो इतने दिनों में आसपड़ोस के गांव की औरतों को प्रशिक्षण देकर तुम्हारे कर्जे की अधिकांश राशि भी चुका दी है।”

        यह सुन बंशी की नजरें दीवान साहब के सम्मान में  झुक गयीं , और आत्म ग्लानि से उसका पाषाण हृदय फटने लगा, जिसमें न जाने कब उपेक्षित सिया  साक्षात नारायणी के रुप में समा गई

रीता खरे , छतरपुर मध्यप्रदेश

मौलिक रचना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!