Moral stories in hindi : रोहन की उस कस्बे में सरकारी विद्यालय में नियुक्ति हुई थी।पहली नियुक्ति होने के कारण उसका उत्साह चरम पर था,पर विद्यालय की जीर्ण अवस्था देखकर उसका मन उचटता जा रहा था।इतनी जल्दी स्थानांतरण भी संभव ना था,हो रोहन ख़ुद को समझाते हुए अपने अध्यापन में ध्यान देने लगा।मध्यम वर्गीय संयुक्त परिवार में पले बढ़े होने का लाभ उसे मिला इस ग्रामीण परिवेश में ढलने के लिए।
रोहन के व्यक्तिगत प्रयासों से ना केवल विद्यालय भवन की दशा सुधरी,बल्कि दाखिले के रजिस्टर में छात्रों की उपस्थिति भी पहले से बढ़ गई।कस्बे के सम्मानीय व्यक्ति गिरिधर बाबू ने विनती करके, रोहन को अपने बेटे को अलग से घर में पढ़ाने के लिए मना लिया।
रोहन मनोहर को पढ़ाने जाने लगा था।पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले मनोहर का यह उसकी कक्षा में दूसरा साल था।पढ़ाई के प्रति पूर्णतया लापरवाह मनोहर,रोहन के आने से पहले अपने कमरे में गंभीर होकर बैठा मिलता।करीने से सजे बाल,धुले कपड़े पहनकर मनोहर एक होशियार बच्चा दिखता था।
रोहन ने ध्यान दिया कि उसके आने से पहले उस कमरे को किसी निपुण हांथों से सजाया जाता है।मोगरे की सुगंध कमरे में भरी रहती थी।मेज पर रखें गुलदस्ते में हर दिन ताजे फूलों का गुच्छा मिलता था रोहन को।
पहले उसने सोचा किसी नौकर का काम होगा,पर जैसे-जैसे दिन बीतने लगे,उसे कमरे के आसपास किसी के होने का अहसास हुआ।हमेशा एक जोड़ी बड़ी-बड़ी काली आंखें उसका पीछा करती दिखती।
एक दिन मनोहर की कॉपी में उसका नाम खूबसूरती से लिखा देखकर पूछा ही लिया रोहन ने”अरे वाह!मनोहर इतनी अच्छी लिखावट किसकी है,तुम्हारे घर में?”मनोहर ने जवाब दिया “दीदी की।”
“ओह!किस कक्षा में पढ़ती है तुम्हारी दीदी”?रोहन ने लिखावट से प्रभावित होकर फिर पूछा।इतने में मनोहर की मां नौकर के साथ चाय और जलपान लेकर पहुंची।उन्होंने शायद रोहन की बात सुन ली थी,सो खुद ही जवाब दिया”देखिए मास्टर जी,आप रमा के बारे में ज्यादा पूछताछ मत करिएगा।
अठारह साल की होते ही ब्याह दिया था हमने।शादी के दो दिनों में ही विधवा हो गई।दामाद जी को दिल की बीमारी थी।उसके ससुराल वालों ने बहुत समझाया पर रमा के मन में जाने क्या है,रुकी ही नहीं वहां।तब से यहीं पर है,अलग कमरे में रहती है।बाहर वालों से मेलजोल नहीं करने देतें हैं हम,लड़की जात है ना।”
रोहन का अंदाजा सही निकला,कोई तो था जिसकी उपस्थिति का आभास होता था उसे।कमरे की सजावट देखकर ही सजाने वाले की खूबसूरती पता चल गई थी उसे।
मनोहर को पढ़ाते हुए साल भर हो रहा था,पर रमा का चेहरा एक बार भी नहीं देख पाया था रोहन।मनोहर से उसके बारे में काफी कुछ पूछ चुका था रोहन।उसे जानकर बहुत खुशी हुई कि रमा को लिखने -पढ़ने का शौक था।
अबसे रोहन हर दूसरे तीसरे दिन प्रेरक कहानियों की किताब मनोहर के हांथ में देने लगा रमा के लिए।बिना देखे जैसे प्रेम हो गया था उसे।रमा के पिता के सम्मान और रमा की मनोदशा को देखते हुए रोहन की कभी हिम्मत ही नहीं हुई ,रमा से मिलने की।
होली के दिन मनोहर की मां ने खाने का न्योता दिया था,जिसे रोहन ने फौरन मान लिया था।दोपहर से पहले ही हांथों में गुलाल का पैकेट लिए रोहन जैसे ही मुख्य दरवाजे से अंदर आने को हुआ,
बाहर से भागकर आती हुई रमा से टकरा गया वह।बाहर एक सांड दौड़ा रहा था रमा को,मंदिर से लौटते समय।रमा को देखकर रोहन अपलक देखता ही रह गया।एक मासूम पवित्रता थी उसके चेहरे पर।हड़बड़ी में रोहन के हांथों का पैकेट गिरा और गुलाल के कुछ छींटे रमा की साड़ी में लग गए।रमा बहुत ज्यादा भयभीत लगी।
रोहन को भी अटपटा लग रहा था।रोहन आज गिरिधर बाबू को बताने आया था कि वह कुछ दिनों के लिए अपने घर जा रहा है।मनोहर को पढ़ाने नहीं आ पाएगा।गिरिधर बाबू ने सीधे -सीधे ही रोहन को अब घर पर आने के लिए मना कर दिया।
उनकी जवान विधवा बेटी पर समाज कीचड़ के दाग़ लगा सकता है,रोहन की वजह से।रोहन ने चुपचाप स्वीकृति दे दी और बस में बैठकर अपने घर चला आया।रमा को देखने के बाद से एक अदृश्य ताकत खींच रही थी उसे रमा की ओर।
रोहन की मां भी तो कभी नहीं मानेंगी,एक विधवा से शादी करने की बात।दस दिनों तक रोहन अपने घर में बेमन सा पड़ा रहा।मां के पूछने पर तबीयत खराब का बहाना बना देता था।आज सुबह की बस पकड़ कर लौटा था ,रोहन।
बस स्टैंड पर उतरते ही कानाफूसी उसके कानों पर पड़ी।लोग रमा के संन्यासिन हो जाने की बात कर रहे थे।रोहन को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।गिरिधर बाबू के घर जाकर पूछने की भी हिम्मत नहीं हुई।
तभी शाम को मनोहर मुरझाया चेहरा लेकर रोहन के पास आया।उसकी आंखें लाल थीं रोने की वजह से।”मास्टर जी,मेरी दीदी को बचा लीजिए।बाबूजी ने उन्हें वृंदावन के विधवा आश्रम में भेज दिया है।
यहां किसी को भी नहीं बताया।दीदी जाना नहीं चाहतीं थीं,पर बाबूजी जबरदस्ती भेज दिए उनको।कहतें हैं अब वह कभी नहीं आएगी वापस।”मनोहर रोहन से लिपटकर रोते हुए बोला।
रोहन की समझ में नहीं आया कि रमा को किस बात की सज़ा दी गई आखिर।वह तुरंत गिरिधर बाबू के घर पहुंचा,और उनसे पूछा”आपने रमा को इतनी बड़ी सजा क्यों दी?”
वे बोले”विधवा होकर जब तक संसार के मोह-माया में रहेगी,अपने मन को शुद्ध नहीं कर पाएगी।तुम्हारे आने से उसकी हिम्मत और बढ़ती जा रही थी।जब भगवान ने ही उसके माथे पर विधवा का दाग़ लगा दिया ,तो हम कैसे मिटा सकतें हैं भाग के लेख?तुम जैसे नौजवान बातें तो बड़ी-बड़ी करते हो पर क्या तुम उसके माथे पर लगे दाग को मिटा सकते हो?”
“हां!मैं मिटाऊंगा उसके माथे पर लगे उस दाग को जिसकी जिम्मेदार वह नहीं।मैं उसके माथे पर सौभाग्य का सिंदूर लगाऊंगा।”रोहन ने दृढ़ता से कहा,और अपने परिवार को लेने चला आया।बाबूजी तो मान गए थे,पर मां को मनाना इतना आसान नहीं था।रोते हुए बोलीं”क्या इसी दिन के लिए पढ़ लिख कर मास्टर बना था कि विधवा के माथे का दाग़ पोंछना पड़े”।
“हां मां,शायद शिक्षक हूं इसीलिए इस बुराई को दूर करने के बारे में सोच सकता हूं।दूसरों को तो बहुत ज्ञान देतें हैं हम,पर खुद अमल नहीं करते।मां ,दाग तो चांद पर भी होता है,पर वह तो उसकी गलती नहीं।आज हमारे परिवार में ऐसा कुछ हो जाए तो क्या उसे कलंक या दाग कह पाएंगे हम?
नहीं मां,तुम भी तो एक औरत हो,दूसरी औरत की पीड़ा तुमसे अच्छा और कौन समझेगा।मैंने गिरिधर बाबू को वचन दिया है मां।चलिए,रमा को अपनी बहू के रूप में स्वीकार करिए।यदि मैंने हमेशा आप को और बाबूजी को सम्मान और प्रेम दिया है,आपकी हर बात को सिर आंखों पर लिया है,तो आज पहली बार मैं आपसे रमा मांगता हूं,मुझे रमा दे दीजिए।”
बेटे की बात सुनकर मां को तो अपना हठ छोड़ना ही था।रोहन को गले लगाकर बोली “मुझे तुम पर गर्व है।तू मेरा सपूत है सपूत।तेरे चांद को लाने की तैयारी करते हैं, चल अब।”
रमा चांद बनकर रोहन की जिंदगी में आने वाली थी,भाग्य के दाग़ जैसे लगते हैं अचानक वैसे मिट भी जाते हैं अचानक।
#दाग
शुभ्रा बैनर्जी