प्यार की खुशबू – संगीता श्रीवास्तव

शीतल नाम था उसका जो अब शीतली के नाम से जानी जाती है। बहुत प्यारी, गोरी चिट्टी, अच्छी कद -काठी की।

मुझे बीते दिन याद आने लगे जब वह मुझे पहली बार मिली थी ।क्या सलीका था- उठने बैठने ,बोलने चालने और पोषाक! पोषाक के तो क्या कहने, जिसे देख कर ही‌ ऐसा लग रहा था कि अच्छे घर से है।

छोटू काका उसे मेरे यहां ले आए थे। छोटू काका छोटे -बड़े सभी काम करते थे  मेरे यहां। छोटू काका ने शीतली के बारे में सारी बातें बताई। बातचीत के क्रम में पता चला कि वह हाई स्कूल पास है । छोटू काका चाहते थे कि इसे कोई काम मिल जाए।

शीतली ने कहा,”मुझे किसी स्कूल में रखवा दो दीदी, मैं स्कूल में पढ़ाना चाहती हूं। ऐसे बैठकर क्या करूंगी। जब -तक छोटू मामा के पास हम रहेंगे,तब तक मैं पढ़ाऊंगी। सनी भी कुछ काम करेगा। जब सब कुछ सही हो जाएगा तब मैं अपने यहां पंजाब चली जाऊंगी या सनी के गांव चली  जाऊंगी। ”  बहुत सोच विचार करने के बाद मैंने उसे एक बच्चों की स्कूल में रखवा दिया ।सनी सब्जियां बेचने लगा और वह  स्कूल जाने लगी ।कुछ महीने सब कुछ ऐसे ही चलता रहा।

मैंने उससे पूछा -“तुमने ऐसा क्यों किया शीतल? तुम पढ़ी लिखी, हो सुंदर हो और सनी? देखने में बदसूरत,अनपढ़, जाहिल और लेबर। फिर भी तुमने??”

“आपकी हर बात सही है दीदी पर मैं उससे प्यार करने लगी थी। सनी का शर्माना, उसके बोलने के तरीके ,किसी भी काम के लिए तत्पर रहना, ईमानदारी , इज्जत करना मुझे आकर्षित कर गया।”

उसने बताया ,”मेरे पापा के कपड़े के बिजनेस है। सनी वही काम करता था। इसका स्वभाव इतना नम्र है कि पापा भी उसे बहुत मानते थे ।वह ज्यादातर पापा के साथ ही रहता था। गाड़ियों से  समान उतरवाना, उसे गोदाम तक पहुंचवाना आदि  बहुत सारे काम करता था। अक्सर काम के सिलसिले में घर पर भी आता जाता था।

मेरी आंखें उसे देखती और एकटक  निहारा करती थी । वह मुझे अच्छा लगने लगा था । कभी-कभी उसे  बैठा कर बातें भी किया करती थी। बातें बहुत अच्छा करता था वह ।देखते-देखते मैं कब उसकी गिरफ्त में आ गई, पता ही नहीं चला । जब मैंने उससे अपने प्यार का इजहार किया तो वह घबरा गया।

उसने मुझे ऊंच-नीच ,अमीरी -गरीबी ,पढ़ाई- लिखाई, रहन सहन आदि का हवाला देकर मुझे बहुत समझाया और मैंने उसकी हर एक बात को अपने तर्कों से काट दिया। धीरे-धीरे वह भी मुझे चाहने लगा था। धीरे-धीरे हमारे प्यार का बीज कब अंकुरित हो पनप गया ,पता ही नहीं चला ।

हमने एक -दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें  खाने लगे ।सब कुछ ऐसे ही चलता रहा  और एक दिन अचानक हम दोनों कुछ रुपए ,कपड़े और जरूरी सामानों के साथ भाग खड़े हुए। हम दोनों इतनी सावधानी से मिलते थे, कि  घरवालों को शक की सुई हमारी तरफ घूमती ही नहीं थी। हमारे जाने के बाद घर वालों ने खोजबीन की ही होगी लेकिन हम उन्हें नहीं मिल पाए। हम घर से भाग तो गए लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि जाए तो कहां जाए…. ।




दो-चार दिन इधर -उधर छुपते -छिपाते रहे हम दोनों। अंततः हम इस निर्णय पर पहुंचे कि क्यों न हम छोटू मामा के पास चले जाए।

छोटू मामा, सनी के मामा थे और उसे बहुत लाड प्यार करते थे। इसलिए वहां जाना हम अपने आपको सुरक्षित समझे।

छोटू काका ने पहले तो बहुत फटकार लगाई लेकिन वस्तुस्थिति समझने के बाद उन्हें अपने यहां आश्रय दिया ।कोर्ट मैरिज करवा दी ।अब वे निश्चिंत हो, छोटू काका के यहां रहने लगे।

कभी-कभी मैं शीतल से मिलने छोटू काका के यहां चली जाती थी और उससे गपशप किया करती थी। एक बार जब मैं उससे  मिलने गई तो अचानक से मेरी नजर उसके चारपाई पर पड़ी, एक हिन्दी वर्णमाला किताब पर गई। मैं उसे हाथ में उठाती हुई उसकी ओर देखी।

वह लजाई सी ,सकुचाई सी मेरी ओर देखती हुई बोली -” दीदी मैं इससे सनी को पढ़ाती हूं और फिर उसने बड़े जोश से कहा -“जानती हो दीदी, बहुत कुछ लिखना – पढ़ना सीख गया है सनी। अपना नाम तो बहुत सुंदर अक्षरों में लिखता है।” चहकते हुए उसने कहा।

“वह पढ़ना चाहता है दीदी। मैं उसे रोज ही पढ़ाती हूं और बहुत मन से पढ़ाई करता है।

टटोल कर अब किताब और अखबार भी पढ़ लेता है।”मैं भौंचक्का हो उसकी बातों को सुन रही थी। उसकी बातों को सुनते -सुनते कब स्वयं गुम हो गई पता ही नही चला।

कहां आलीशान घर में रहने वाली लड़की इस मड़़इये‌ में कितनी खुश है। मेरी नजर मड़इये के चारों ओर दौड़ने लगी,जो गरीबी को ताना दे रहे थे लेकिन हां,जो भी था बड़े सलीके से और साफ-सुथरा था।

मेरी तंद्रा तब टूटी जब उसने कहा,”दीदी पानी पियोगी।” झट उसने गुड़ और एक गिलास पानी दिया। मैंने गुड़ खाई और पानी पिया। मैंने तिरछी नजरों से देखा,उसको अपने इस जीवन से लेश मात्र भी अफसोस की झलक नहीं दिख रही थी।कितनी खुश है यह! ऊंच-नीच, अमीरी -गरीबी से परे प्रगाढ़ अटूट प्रेम!,

दोनों खुश थे। कुछ महीनों बाद अचानक से सनी की तबीयत खराब रहने लगी। हालांकि सनी के मां -बाप को इनके शादी संबंध को लेकर नाराजगी बरकरार थी लेकिन जब बेटे के बीमार होने की खबर मिली तो बेटे का मोह उन्हें खींच लाया।वे आए और अपने साथ सनी और शीतल को ले गांव चले गए।




एक बार छोटू काका के यहां पूजा थी जिसमें हमें भी बुलाया गया था। जब मुझे पता चला कि शीतल भी छोटू काका के यहां पूजा में आई है तो मेरा मन उससे मिलने के लिए बेचैन हो गया और मैं भी पूजा में घर वालों के साथ छोटू काका के यहां गई। जैसे हम पहुंचे-

काका ने आवाज दी,”शीतली….,ओ शीतली, देख त के आईल बा।”

आवत बानी, लइका सुतावत बानी….।”कहती हुई शीतल , मैले-कुचैले साड़ी में लिपटी हुई आ पहुंची। उसके सूखे होठ,बिखरे बालों के बीच पीला सिंदूर दूर से ही दमक रहा था। बिना चप्पल के फटी एड़ियां ,उसको इस हाल में पहूंचने के लिए जैसे उलाहना दे रहे हों ! शीतल के पीछे -पीछे सनी भी उसके बगल में आ खड़ा हुआ।वह भी बदला -बदला था।  

पिछले चार सालों में इतनी बदल गई थी जिसे पहचानने में मुझे अपने ‌दिमाग पर जोर देना पड़ा। खैर, समय और परिस्थितियों के आगे किसी का नहीं चलता। मैंने बहुत सारी बातें उससे की। पूजा समाप्त होने के बाद हम अपने घर आ गए। घर आ उसके बारे में ही सोचती रही।समय और परिस्थितियों का ऐसा खेल कि

शीतल अब खांटी गंवई  ‘शीतली देवी ‘ हो गई।

रंग -रूप , रहन-सहन, बोल-चाल सब कुछ बदल गया। नहीं बदला, तो दोनों का अटूट , पवित्र, बेपनाह प्यार!! जिससे सच्चे प्यार की खुशबू आ रही थी……।

#मासिक_अप्रैल 

स्वरचित

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ। 

1 thought on “ प्यार की खुशबू – संगीता श्रीवास्तव”

  1. प्यार दिल से होता है और एक दिल में दुसरे दिल का स्थान नहीं है

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!