प्रेम फिर जीत गया-विजया डालमिया

जिंदगी बहुत खूबसूरत होती है। हर पल आप जो सोचते हो, जो करते हो और जो भावना रखते हो वह निश्चित ही पूरी होती है, बस हमें  धैर्य, ईमानदारी और निष्ठा कभी नहीं छोड़नी चाहिए।यह बात आज राज समझ गया था अचानक जब उसने रागिनी को एक घर के बाहर देखा। पहले तो वह सकपकाया। फिर खुशी से उसके मुंह से एक ही शब्द निकला… रागिनी तुम यहाँ? रागिनी ने कहा…” हाँ, यह मेरा ही घर है। पर तुम यहाँ कैसे”?…” बस मैंने भी पड़ोस में एक मकान किराए पर लिया है।अभी 2 दिन पहले ही शिफ्ट हुआ हूँ “।रागिनी ने पूछा…” किस का मकान है”? राज ने कहा… “मोहित शुक्ला का। बीएसएनएल में बड़े अधिकारी है। मैं ट्रांसफर होकर यहाँ आया तो उन्होंने अपना मकान मुझे रहने को दिया है”।…”अरे वह तो मेरे पति है। कल रात कह तो रहे थे कि अपना दूसरा मकान मैंने अपने सहयोगी को किराए पर दे दिया है। लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह तुम…..।

राज और रागिनी  बहुत  पहले से एक दूसरे को चाहते थे। रागिनी और राज ने ग्रेजुएशन भी साथ-साथ ही किया। बचपन से ही रागिनी राज का बेहद ख्याल रखती

घर से जो भी टिफिन लाती वह राज को अपने हाथों से खिलाए बगैर खुद एक टुकड़ा भी नहीं खाती। राज उसके जीवन में सब कुछ था। वह इन्हीं ख्यालों में गुम थी तभी राज ने उससे कहा…. “क्या सोचने लगी पगली”? उठो। हम तुम एक ना होकर भी एक हैं। यह हम दोनों के सच्चे प्रेम का ही तो परिणाम है कि  मैं तुम्हारे शहर में आया  और तुम्हारे ही घर में मुझे जगह मिली”… इतना कह राज मुस्कुराया और गुनगुनाने लगा ….हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह… इतना सुनते ही रागिनी ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और कहा… हम कभी मुसाफिर ना थे ।ना है। ना ही होंगे। हम तो राधा-कृष्ण हैं और हमेशा रहेंगे”। दोनों में बातचीत चल ही रही थी कि इसी बीच रागिनी के पति की कार घर के बाहर रुकी। दोनों को साथ देख कर रागिनी के पति ने कहा… “अरे सुनो,यही तो वह है जो हमारे नए किराएदार हैं, और तुम्हें पता है यह तुम्हारे मायके वाले हैं”। …”जी हाँ जानती हूँ”।…” मतलब”… “हम दोनों ने एक ही कॉलेज से ग्रेजुएशन किया “…ओ….हो… क्या बात है? भाई राज.. अब तो खाना -पीना साथ -साथ बनता है।

चलो राज अंदर बैठकर बातें करते हैं, और रागिनी तुम फटाफट कुछ अच्छा बना कर ले आओ”। थोड़ी ही देर में रागिनी चाय और नाश्ता लेकर आई और बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ जो थमा ही नहीं। पता ही नहीं चला कि कब रात हो गई ।राज ने कहा…” सर अब मैं चलता हूँ “….”अरे नहीं यार। अब खाने का टाइम हो चुका है। खाना यहीं खा लो “…कहकर रागिनी को देखा तो राज ने कहा…” रहने दीजिए सर। मैं फिर कभी…. तभी रागिनी ने कहा ….”मैं जल्दी से कढ़ी -चाँवल बना लेती हूँ “।इतना सुनते ही मोहित ने कहा ….”वाह। तुमने तो मेरे मुँह की बात छीन ली”। रागिनी ने उड़ती सी नजर राज पर डाली तो राज  ख्यालों में गुम धीरे से मुस्कुरा रहा था ।रागिनी जानती थी कि राज को कढी -चाँवल बेहद पसंद है ।



इसीलिए होठों पर मुस्कुराहट लिए वह किचन में गई और थोड़ी ही देर में आवाज लगाई …”कढी चाँवल रेडी है”। डाइनिंग टेबल से उठने के बाद राज ने कहा….” बहुत दिनों बाद इतने स्वादिष्ट कढ़ी चाँवल खाने मिले हैं, जिसने मुझे बीते दिनों की याद दिला दी”। मोहित ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, किंतु रागिनी की आँखें भीग गई। आज का दिन दोनों के लिए बहुत ही खास था। एक लंबे अरसे के बाद दोनों मिले तो फिर पुरानी यादें मचलने लगी। दोनों की ही आँखों में नींद नहीं थी। बचपन से लेकर कॉलेज तक की यादें जिन्हें उन्होंने शिद्दत से जिया था,वही लम्हे फिर से आँखों में तैरने लगे। जिन्हें हम भूल नहीं पाते उन्हें याद रखना ही पड़ता है। यही हाल दोनों का था। इसे एक इत्तेफाक कहें या तकदीर कि  दोनों ने अपने-अपने प्रेम को दोस्ती का रूप देकर समझौता कर लिया था। दूसरी सुबह रागिनी के लिए फिर से गुनगुनाती, चहकती, सुनहरी किरणों के साथ नई उमंगे ले आई।

शादी के 5 साल बाद भी रागिनी मातृत्व सुख से वंचित थी।मोहित काम के सिलसिले में अक्सर टूर पर रहता था। ऐसे में रागिनी को अकेलापन घेर  लेता था। अब राज के आने के बाद मोहित निश्चिंत हो गया ।उसने हँस कर कहा …”राज अब मेरी गैरमौजूदगी में यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम इसे उदास ना होने दो”। जब कभी मोहित टूर पर जाता राज एक अच्छे दोस्त की भांति रागिनी का ख्याल रखता। एक दिन रागिनी ने कहा… “राज मेरा बहुत मन है कि हम पहले की तरह मोटरसाइकिल पर बैठकर लॉन्ग ड्राइव पर जाएं “।राज ने कहा…” जो आदेश” और कुछ ही देर में दोनों के बीते लम्हों की खुशबू फिर से हवा में घुल गई ।देखते-देखते मौसम बदल गया और जोरों की बारिश होने लगी। राज ने बाईक घर की तरफ घुमाई। पर दोनों बुरी तरह से भीग गए। रागिनी ने राज से कहा… भीतर आ जाओ।

ड्रेस चेंज करके गरम-गरम अदरक वाली चाय पी लो”। राज ने कहा…” इस हालत में कैसे”?… “अरे.. मोहित के कपड़े  हैं ना।..प्लीज… कहकर वह राज का हाथ पकड़कर भीतर ले गई। रागिनी आज बेहद खूबसूरत दिख रही थी। राज कपड़े चेंज कर ही रहा था कि रागिनी पीछे से आकर उससे लिपट गई यह कहते हुए कि …”राज मैं आज भी तुमसे बेहद प्यार करती हूँ “।राज ने उसे हौले  से सहलाया और कहा… “हाँ तो फिर”? उसने राज की आँखों में झांक कर कहा…. “पागल मन प्यासा रह जाता तन की प्यास बुझाने में



किसने जाना कौन छुपा है मन के मूक खजाने में।

कहकर उसने राज के होठों को चूम लिया। फिर प्यार में डूबी वह कहने लगी… तुम सिर्फ मेरे लिए आज भी अकेले हो और उस सुख से वंचित हो जिस पर तुम्हारा अधिकार होना चाहिए था। आज मैं सिर्फ एक शाम पूरी की पूरी तुम्हारी होना चाहती हूँ”… कहकर किसी बेल की भांति वह उससे लिपट गई। राज ने कुछ नहीं कहा ।वह हौले -हौले उसे सहलाता रहा। पर उसकी आँखों में रुके आँसू आज बरसात की तरह बरस गए, जिन्हें रागिनी देख नहीं पाई ।कुछ ही देर में रागिनी शांत हो गई। यह राज के आँसुओं की शीतलता थी या प्यार का चंदन जिसने उसे पवित्र प्रेम की पराकाष्ठा पर पहुँचा  दिया ,जहाँ कुछ पल के लिए नहीं जिंदगी भर के लिए उन्हें महकना था। दूसरे दिन जब वह उठी तो उसे एक खत नजर आया। उसने खोला तो शुरुआत एक कविता से थी

मौन रहकर स्व चिंतन कर ले

आत्म दृष्टि मनभावन कर ले।

पवित्र प्रेम की ज्योति जगा कर शुभ चिंतन कर ले

प्रेम के मधुर रस से तर होकर सहनशक्ति जीवन में भर ले

…रागिनी हमारा स्पर्श हमारे जिस्म की नहीं रूह की जरूरत है। एक दूजे का एहसास रूह का सुकून है। हमारी खामोशी भी सदा एक दूसरे से बात करती है और हमारा प्रेम हम दोनों की आत्मा का निवास है ।मैं इसे कभी मैला नहीं कर सकता। मैं जा रहा हूँ ,पर जहाँ भी  रहूँगा हमेशा तुम्हारा ही रहूँगा। सदा तुम्हारा… राज

पत्र पढ़ते -पढ़ते रागिनी फूट-फूट कर रोने लगी। तकदीर ने पहले बिछड़कर मिलाया और आज फिर उसी ने इतना बड़ा बिछोह दे दिया। पर आज वह समझ गई कि…. प्रेम फिर जीत गया…

विजया डालमिया संपादक मेरी निहारिका

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