परिवर्तन चक्र

 राधिका जी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थी. उनके पति महेश जी भी सरकारी स्कूल में अध्यापक थे.  राधिका जी आधुनिक विचारों की थी लेकिन वहीं महेश जी अभी भी पुरातन पंथी विचारधारा को समर्थन करते थे. 

राधिका जी की एक ही  बेटी थी जो एक एमएनसी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी.  राधिका जी का मानना था कि बेटी जहां कहेगी मैं वही शादी कर दूंगी.  लेकिन महेश जी कहते थे लव मैरिज शादी सबसे बेकार होता है शादी तो घर वालों की मर्जी से मां बाप के देखरेख में किया जाना चाहिए. 

 कुछ दिनों बाद महेश जी के दोस्त रोहित  ने उनकी लड़की के लिए रिश्ता बताया. महेश जी ने अपनी पत्नी राधिका से बताया कि मेरे दोस्त ने बहुत अच्छा लड़का बताया है और राधिका के लिए अच्छा रहेगा पूरा परिवार दिल्ली में ही रहता है, उनका अपना खुद का कपड़े का व्यापार है,  हमारी बेटी इतना बड़े घर में ब्याहि जाएगी इससे बड़ी बात क्या है. 

राधिका जी ने कहा ठीक है लेकिन एक बार अपनी बेटी की सीमा  से इस बारे में बात हमें जरूर करना चाहिए, क्या पता वह किसी लड़के को पसंद करती हो.  राधिका जी ने जब अपनी बेटी सीमा से इस बारे में बात किया, सीमा ने बताया कि वह अपने कंपनी में ही एक रितेश नाम के लड़का से प्यार करती है.   

वह इस बारे में अपनी मम्मी से बात करने ही वाली थी.  रितेश के घर वाले तैयार है, रितेश ने अपने घरवालों से बात कर लिया है. 



लेकिन राधिका के पापा इस शादी को लेकर रजामंद नहीं थे उनका मानना था कि लड़का-लड़की की शादी मां-बाप के मर्जी से ही होना चाहिए, यह क्या मतलब है लड़की अपने आप ही शादी कर ले. 

  समाज में हमारा अपना रुतबा है लोग क्या कहेंगे इनकी लड़की तो अब उनके काबू में ही नहीं है.  राधिका जी ने अपने पति को बहुत समझाया आप जैसा सोचते हैं वैसा कुछ नहीं है अब दुनिया बदल रही है परिवर्तन संसार का नियम है और फिर लड़का लड़की अगर एक दूसरे को पसंद करते हैं तो उन्हें शादी करने में उनके घरवाले को  रोड़ा नहीं अट्काना चाहिए. 

राधिका जी ने अपने सास-ससुर  को अपने पति को समझाने के लिए एक दिन अपने घर पर बुलाया. सब लोग ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे तभी राधिका की की सास अपने बेटे  से कहा. महेश सीमा ने जो लड़का पसंद किया है क्या वह तुमको पसंद नहीं है. 

 महेश जी ने अपनी माँ  से कहा, “माँ मुझे लड़का पसंद  है, लड़का भी अच्छा है और उसका परिवार भी और नौकरी भी अच्छा करता है अगर मैं अपनी बेटी की शादी करने के लिए लड़का ढूंढने जाता तो भी इतना अच्छा लड़का शायद नहीं ढूंढ पाता.  

महेश के माँ  ने कहा, “फिर तुम्हे  किस बात के लिए ऐतराज है.” 

 महेश ने कहा, “एक ही बात से मुझे ऐतराज है और वह है कि वह हमारे जाति बिरादरी का नहीं है अगर हम अपने बिरादरी से बाहर होकर बेटी की शादी करेंगे तो बिरादरी वाले हमें अपने समाज से निकाल कर बाहर कर देंगे और मैं एक सामाजिक आदमी हूं मैं नहीं चाहता हूं कि बेटी की गलतियों की वजह से हमारा पूरा परिवार समाज से निकाल दिया जाए.” 



 महेश की माँ अपने बेटे  को डांटते हुए कहा महेश तुम  इतने पढ़े लिखे हो स्वयं एक अध्यापक हो. फिर भी तुम  इस तरह क्यों सोचते हो. दुनिया कहां से कहां तक पहुंच गई है अभी कुछ दिन पहले ही भारत ने चाँद  पर अपना सेटलाइट भेजा है और तुम अभी भी ईसा पूर्व सदी की बात कर रहे हो. 

माँ  इज्जत कमाने में वर्षों लग जाते हैं उसे गंवाने  में 1 मिनट भी नहीं लगता है. 

महेश की मां ने कहा बेटा लगता है तू वह दिन भूल गया है जब बचपन में तुम्हारे पिताजी गुजर गए तब हमें कितनी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी।  कोई भी हमें जाति बिरादरी वाले, ना ही हमारे रिश्तेदार, किसी ने हमारा साथ नहीं दिया. तेरे पिताजी के दोस्त सलीम भाई जोकि हमारे बिरादरी और धर्म के भी नहीं थे उन्होंने हमें आसरा दिया और एक एनजीओ से हमें जुड़वा दिया इससे थोड़े पैसे कमाने लगी. 

हमें तब  समाज से बहिष्कृत कर दिए थे क्योंकि हम एक मुसलमान के घर में रहते थे कोई हमें अपने बच्चों की शादियों में भी नहीं बुलाता था यहां तक कि त्योहारों में भी हम किसी से मिलने नहीं जाते थे. 

 और जैसे ही तुम लोग बड़े हो गए और तुम अच्छे पोस्ट पर नौकरी करने लगे जाति बिरादरी सब हमारे साथ खाना भी खाने लगे और प्यार से बात भी करने लगे.



 इसीलिए बेटा कह रही हूं इस समाज की बात सुनेगा तो तू अपनी बेटी की खुशियों का गला घोट देगा, यह समाज को सिर्फ 4 दिन सियार की तरह हुंआ-हुंआ करता है फिर सब शांत हो जाते हैं.  याद रख यह हमारे सुख-दुख में हमारे अपने बच्चे ही काम आते हैं दूसरा नहीं .

महेश की मां ने कहा बेटा महेश मेरी बात समझ में आई.  बेटा सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी पोती सीमा को लड़का पसंद है और दोनों के विचार भी एक दूसरे से मिलते हैं, दोनों एक ही कंपनी में जॉब करते हैं, लड़के वाले के  को भी पसंद है हमारी बच्ची वहां पर खुश रहेगी और क्या चाहिए हमें. 

तभी महेश की पत्नी चाय लेकर आई और  और अपने पति और सासु मां को चाय का कप  पकड़ाते हुए बोली यह लीजिए चाय पीजिए. 

महेश तुम अपने बड़े भाई को ही देख लो, अपनी बड़ी बेटी को दहेज देने के लिए उसने अपने पीएम तक निकाल लिया फिर भी उसकी बेटी के ससुराल वालों का पेट नहीं भरा, आए दिन कुछ न  कुछ दहेज के रूप में मांगते ही रहते हैं. 

 और यहां एक रुपए भी हमें खर्च करने की जरूरत नहीं है . महेश की मां ने अपने बेटे से कहा अरे बोलता क्यों नहीं चुपचाप क्यों है.  महेश बस इतना ही बोला कि अगर तुम लोगों को वह लड़का पसंद है तो फिर हमें भी पसंद है 

कुछ दिनों के बाद सीमा की शादी के उसी के  पसंद के लड़के से हो गई.

 दोस्तों अब जमाना बदल रहा है एक परिवर्तन चक्र चल रहा है अब हमें बिरादरी और जाति के बंधनों से ऊपर उठकर सोचना पड़ेगा शादी तो इंसानों के बीच होती है.  इसलिए अगर आप के घर में भी ऐसा कुछ होता है आपके बच्चे बच्चियां किसी और से प्यार करती हैं और अगर आपकी बेटी के लिए वह लड़का योग्य है तो उससे शादी करने में कोई बुराई नहीं है. 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!