नीति और निहाल पहली बार माता पिता बनने की खबर पता चलते ही बहुत ही उत्साहित थे और अपने मन में अपने अजन्मे बच्चे की तस्वीर को सजाने लगे थे ।बच्चे के जन्म के बाद वे उसका क्या नाम रखेंगे ,उसे कौन से स्कूल में पढाएंगे ,बड़ा होकर उसे क्या बनाएंगे इत्यादि इत्यादि सोच कर दोनों ही बहुत अधिक प्रसन्न हो रहे थे ।उनके साथ घर के सभी सदस्य भी आने वाले मेहमान की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे।
नीति की इंजीनियरिंग का वह अंतिम वर्ष था जिसके पश्चात उसे बीटेक की डिग्री मिलने वाली थी। घर के कामकाज के साथ-साथ नीति पढ़ाई में भी बहुत ही तेज और होशियार थी। वह जिस भी काम को करती थी बहुत ही शिद्दत के साथ करती थी ,चाहे, फिर वह घर का काम हो अथवा पढ़ाई लिखाई ।गर्भावस्था के पांचवे महीने में उसके एग्जाम की डेट शीट आई और वह जी जान से पढ़ाई में जुट गई । पढ़ाई में कभी-कभी वह इतना अधिक मशगूल हो जाती थी कि उसे अपने खाने-पीने तक का ध्यान नहीं रहता था।
पिछले महीने ही चेकअप करने के पश्चात डॉक्टर ने उसे अच्छी डाइट लेने की सलाह दी थी क्योंकि उसके शरीर में खून की कमी थी। परंतु परीक्षाओं के दबाव में नीति इन सब बातों को दरकिनार कर अपना ध्यान केवल और केवल अपने आने वाले एग्जाम पर ही केंद्रित करना चाहती थी इसलिए वह खाने-पीने में कोताही बरतने लगी। अभी उसके पेपर शुरू भी नहीं हुए थे कि उसे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। उसे बार-बार यह शंका होती थी कि उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की हलचल कुछ ज्यादा नहीं है। परंतु पढ़ाई के बोझ तले दबे होने की वजह से वह इन बातों को अपना वहम सोच कर एक तरफ करती रही।
अपनी मां से जब उसने यह बात शेयर की तो उसकी मां ने उसे समझाया कि पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए उसे अपने बच्चे पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए और यदि बच्चे की हलचल कम महसूस हो रही है तो उसे दिन में दो से तीन बार शक्कर वाला मीठा पानी पीना चाहिए क्योंकि गर्भ में कभी-कभी बच्चे सुस्त पड़ जाते हैं और मीठा पानी और तरल पदार्थ शरीर के भीतर जाने से बच्चे पुन: हिलना डुलना शुरू कर देते हैं।उनके लिए मीठा पानी एनर्जी बूस्टर का काम करता है जिससे उनकी मूवमेंट अच्छी हो जाती है। नीति की मां ने उसे यह बात अपनी सासू मां और निहाल को बताने के लिए भी कहा।
मां की बात पर भी ज्यादा ध्यान ना देते हुए नीति अपनी पढ़ाई में ही व्यस्त रही और उसने यह बात फिलहाल ससुराल में सब से छुपा कर रखी। इसके अतिरिक्त उसने मीठा पानी 2 से 3 बार तो क्या दिन में एक बार भी नहीं पिया।
3 से 4 दिन बीत जाने के पश्चात जब उसे बच्चे की हलचल बिल्कुल महसूस होनी बंद हो गई तो अंतत: उसने यह बात अपनी सासू मां को बताई। सासू मां उसकी यह बात सुनकर काफी चिंतित हुई और तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले गई ।
डॉक्टर ने उसका चेकअप किया और उसे बिना कुछ बताए केबिन के बाहर चली गई। डॉक्टर का यह व्यवहार देखकर सासू मां काफी घबरा गई। निहाल भी कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर माजरा क्या है ,क्यों डॉक्टर कुछ जवाब नहीं दे रही है ।उनके बार बार पूछने के बाद डॉक्टर ने बताया कि उन्हें बच्चे की धड़कनें कुछ समझ नहीं आ रही है इसलिए बच्चे की सही पोजीशन देखने के लिए उन्हें अब नीति का अल्ट्रासाउंड करना पड़ेगा जिसके लिए अभी उन्हें थोड़ा इंतजार करना होगा क्योंकि अल्ट्रासाउंड करने के लिए उनका रेडियोलॉजिस्ट शहर के बाहर है और उन्हें दूसरा रेडियोलॉजिस्ट पास वाले हॉस्पिटल से बुलाना होगा।
1 घंटा बीत जाने के पश्चात अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट डॉक्टर ने निहाल और उसकी मां के साथ साझा की । डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की धड़कन बंद हो चुकी है और वह भीतर ही अपना दम तोड़ चुका है।यदि जल्दी ही उसे बाहर नहीं निकाला गया तो नीति की जान को भी खतरा हो सकता है।
साथ वाले कमरे में लेटी नीति ने उनकी बातें सुन ली।सुनकर उसकी चीख निकल पड़ी वह जोर-जोर से रोने लगी और “यह सब झूठ है, ऐसा नहीं हो सकता, मेरे बच्चे को कुछ नहीं हुआ है”कहकर उठने की कोशिश करने लगी।परंतु जैसे ही उसने उठने की कोशिश की उसे चक्कर आया और वह बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी।पास खड़ी नर्स ने बामुश्किल उसे संभाला और बिस्तर पर लेटाया। नीति की प्रीमेच्योर डिलीवरी की गई और नीति के अत्यंत कष्ट सहने के बाद उसके मृत शिशु को बाहर निकाला गया जिसे देखकर नीति के ससुराल वाले और सगे संबंधी फूट-फूट कर रोने लगे।
होश में आने के बाद नीति को पछतावा हुआ कि उसने समय रहते अपनी मां और डॉक्टर की बात मानकर अच्छी डाइट क्यों नहीं ली,क्यों वह परीक्षाओं में इतनी उलझी रही, क्यों उसने अपने कैरियर को अपने बच्चे से अधिक महत्व दिया, क्यों वह उसको बचा नहीं पाई।अगर वह उस समय अपने खानपान पर उचित ध्यान देती तो शायद आज उसका अजन्मा बच्चा उस से सदा सदा के लिए दूर नहीं होता।
नीति आज भी अपने उस अजन्मे बच्चे की हत्या के लिए खुद को जिम्मेदार और गुनहगार मानती है और पछतावे व प्रायश्चित की अग्नि में दिन-रात जलती है क्योंकि उसकी शारीरिक पीड़ा तो कुछ समय पश्चात कम हो जाएगी परंतु उसके मन की यह पीड़ा नासूर बनकर अब जीवन भर उसके साथ ही रहेगी।
पिंकी सिंघल
दिल्ली