“पछतावा” – गोमती सिंह

——-राजवीर एक बहुत ही खुबसूरत नौजवान था ।  ऊंची कद काठी, गोरा रंग इकहरा बदन वो इतना खूबसूरत था कि  किसी से तुलना ही नहीं किया जा सकता , अनुपम सौंदर्य का धनी था वह । हालांकि यह उम्र का पड़ाव ही ऐसा होता है कि यौवनावस्था में साधारण से साधारण युवक युवतियों में खुबसूरती के फूल खिलने लगते हैं।  फिर राजवीर तो विशेष रूप से ही खुबसूरत था ।  

             वह बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर के कालेज में दाखिला लिया था । जिस कालेज में वह पढता था वहाँ की सभी लड़कियाँ उस पर आकर्षण के शिकार थी । 

      लेकिन कहते हैं न भौरा भी धतूरे पर नहीं बैठते, वो भी  सुन्दर मकरंद वाली फूलों पर ही बैठते हैं ; कहने का तात्पर्य यह है कि राजवीर अपनें कालेज की बहुत ही खुबसूरत लड़की पर आकर्षित था , मोहित था । 

          दोनों साथ साथ पढ़ते थे । इस दौरान दोनों में बात चीत का सिलसिला शुरू हुआ जो प्यार का रूप लेने लगा । राजवीर शिखा  नाम की उस तथाकथित खूबसूरत लड़की से विवाह करना चाहता था । और शिखा  की भी रज़ामंदी मिल गई थी।  

         लेकिन हमारे भारतीय संस्कृति सनातन धर्म में कहते हैं न कि मनुष्य की योनि ऐसी है जहाँ विवाह गठबंधन जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से बंधते हैं।  निमित्त चाहे कोई हो सकते हैं मगर जोड़े संस्कारों से ही होते हैं।  इत्तेफाक से राजवीर और शिखा में जाति धर्म की भी समानता थी मगर दोनों के संस्कारों में भिन्नता थी । हुआ ये कि राजवीर के माता-पिता उस लड़की को विवाह के लिए सहमत नहीं हुए।  हालांकि राजवीर ने मनाने में कोई कमी नहीं की मगर उन दोनों का संयोग नहीं बना। 

       राजवीर के माता-पिता अपनी इच्छानुसार अपनें बेटे का विवाह किसी दुसरी लड़की से संपन्न कर दिए ।

           चूंकि विवाह जबर्दस्ती कराया गया था अतः राजवीर अपनी पत्नी को कतई पसंद नहीं करता था । 

 बात बात पर चिडचिडाना, झिडकना उसकी आदत बन गई थी।  ये सब उसकी पत्नी तो बर्दाश्त कर लिया करती थी मगर उसके सास – ससुर खून के घूँट पीकर  रह जाते थे।  एक दिन तो हद ही हो गई राजवीर को उसकी पत्नी ने  रूमाल देने में ज़रा सी देर क्या कर दी राजवीर उसके बाल पकड़ कर पिटने लगा-” मुझे ऑफिस जानें में देरी हो रही है और तुम्हें मेरी व्यवस्था की कोई चिंता नहीं है। “

       ” बस ला ही रही थी जी , पापाजी के लिए नाश्ता लगाने  में व्यस्त हो गई तो…..” तो का क्या! सुबह और जल्दी उठ जाया करो । ” इतना सुनते ही राजवीर के पिताजी नाश्ता छोड़ कर वहीं आ गए -” ये क्या कर रहे हो राज ! तुम देवी समान मेरी बेजुबान सी बहु पर हाथ उठा रहे हो । ” कुछ काम , कुछ जिम्मेदारी खुद भी लिया करो । छोटा सा चीज  ” रूमाल ”  तुम खुद संभालना सीखो।  अब बच्चे नहीं रहे तुम ! 

             वह बचपन से लेकर अब तक के अपनें माता-पिता  सभी संस्कारों  की धज्जियां उड़ाते हुए कहने लगा – ” आप तो चुप ही रहिए पापा जी ! ” आप ही इसे लाए हैं और आप ही अब रखिए ।  इतना कहते-कहते वह लंबे लंबे कदमों से ऑफिस  जाने के लिए कार में बैठकर रवाना हो गया । 




               राजवीर की पत्नी की आँखों से आँसू के मोती लुढक लुढक कर  गिराने लगे । किसी भी तरह से उनके सासु माँ तथा ससुर जी नें उसे संभाला । 

             चलो बेटी सुधा ! उसकी अकल मारी गई है।  एक दिन अपनें किए पर जरूर पछताएगा।  

 नहीं पापा जी ! अब पानी सर से गुजर गया ।  अब मैं यहाँ नहीं रहूँगी।  सुधा ने तुरंत  अपनी मम्मी को काॅल किया और वो सब कुछ बता दिया जो अब तक छुपाती आई थी । तुरंत कुछ ही घंटो के बाद  सुधा के मम्मी पापा उसे ले गये ।

        शाम को जब राजवीर घर वापस आया पता चला कि उसकी पत्नी को ले गये ,  उसे बहुत खुशी हुई ऐसे जैसे कालेपानी की सजा से छुट्टी मिल गई हो । 

            इस तरह से कुछ दिनों के बाद राजवीर को सुधा की कमी महसूस होने लगी । उसे लगता था कि उसका प्रमोशन उसके अकेले के दम से होता था , मगर सुधा की गैर मौजूदगी में उसे महसूस हुआ कि सुबह सोकर उठने से लेकर ऑफिस जाने तक सुधा का ही तो योगदान रहता था । अब हल वक्त वह उसे ढूंढने लगा था । अस्त व्यस्त घर से ऑफिस के लंच टाइम में टिफिन खोलते ही वह पहले वाली खुशबू के लिए बेचैन हो जाता था । मगर सुधा को बुलाने में शर्म सी होती थी उसे ।  ज्यादती जो किया था उसके साथ।  

       एक दिन  अचानक डायनिंग टेबल पर कुछ कागज़ात रखे हुए थे , उठा कर पढ़ने लगा तो पांव से जमीन खिसक गया।  ये कुछ और नहीं सुधा के तलाक़ के पेपर थे । हड़बड़ाते हुए अपनी मम्मी से पूछता है – ये क्या पेपर्स हैं मम्मी ! उसकी मम्मी ताना कसते हुए कहतीं हैं – देख लो पढ लो , मुझसे क्यों पूछ रहे हो कोई अनपढ़ हो क्या ? 

” किसने भेजा इसे ।”

” सुधा ने, और किसने। “

राजवीर  को  अपनें किए पर पछतावा हो रहा था,  वह मायूस होकर  वही बैठ गया।  

अब तक के अपनें व्यवहार में उसे  सुधा को वापस आ जानें की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी ।

किसी तरह दिन बीत गया अब रात आई ।




आज की रात राजवीर की आँखें कपास के फटे फल की तरह अपलक छत की ओर ताक़ रहीं थीं। रात के करीब  बारह बजे उसने अनायास ही सुधा को काॅल किया और वो काॅल रिसीव भी की । राजवीर ने उम्मीद से ज्यादा पाया।  ” साॅरी सुधा !” इस इमप्रेसिव शब्द से शुरूआत करते हुए अपनें तमाम गलतियाँ गिनाने लगा । तभी बीच में ही रोकते हुए सुधा कहने लगीं – बस करिए मुझे उन दिनों कष्ट नहीं हुआ जितना आज आपकी मायूसी भरे शब्दों से हो रहा है । 

                  मर्यादा, सहनशीलता और सामंजस्य बना कर चलना तो भारतीय नारी की विशेषता है।  इसे हम कैसे भूल जाएं।  लाख परिवर्तन आया भारतीय लड़कियों में लेकिन आज भी वो अंतिम हद तक अपनें पति से तलाक लेने से पूर्व रत्ती भर मौका नहीं छोडती है । हर हाल में अपने पति के साथ ही जीवन यापन करना चाहती हैं।  और ये हमारी संस्कृति है । इसको निभाते हुए किसी भी लड़की को हिचकिचाहट नहीं होती ।

                सुधा नें अपने पति को लेने आनें के लिए कहा और सुबह होते ही रजनीगन्धा की लडियो से सुसज्जित कार में राजवीर अपनी सुधा को घर ले आया ।

#पछतावा 

              ।।इति।।

            -गोमती सिंह 

      स्वरचित मौलिक रचना 

        अप्रकाशित।

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