” माँ, तुमने मेरा नाम रानी क्यों रखा था |” रानी अपनी माँ के बगल में बैठते हुए बोली |
” क्योंकि की तू मेरी रानी बेटी है |” माँ उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली |
“काहे की रानी |मैं तो नौकरानी हूँ माँ, नौकरानी | रात दिन नौकरानी की तरह खटती हूँ, फिर भी न तो भरपेट खाना मिलता है और न हीं आराम और न हीं प्यार के दो मीठे
बोल |मिलता है तो रूखा सूखा आधा पेट खाना , डांट, फटकार और मार |
” बेटा, तुम्हारे पापा ने बड़े प्यार से तुम्हारा नाम रानी रखा था | उन्हें एक बेटी की बड़ी चाह थी | छोटे बेटे नीरज के होने के आठ साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ था | तुम्हारे पापा तुम्हें बहुत प्यार करते थे और जबतक जीवित रहे तुम्हें रानी की तरह रखा भी |” माँ प्यार से बोली |
“फिर पापा हमें छोड़ कर क्यों चले गए ? माँ मेरा भी मन करता है कि मैं भी भाभी की तरह भरपेट अच्छा अच्छा खाना खाऊं, अच्छे अच्छे कपड़े पहनूं, अपनी पढाई पूरी करूं |माँ क्या कभी मेरी इच्छा पूरी होगी ? ” रानी माँ के गले लगकर रोने लगी |
“बेटी तेरे पापा रहते तो तेरी हर इच्छा जरूर पूरी करते |वो तो रानी की तरह रखना चाहते थे और एक राजकुमार के साथ
शादी करना चाहते थे तेरी,पर भाग्य ने उन्हें मौका ही न दिया |उन्हें हार्ट अटैक हुआ और वे अचानक से चल बसे | तुम तो तब मात्र पांच साल की थी, धीरज सतरह साल और नीरज तेरह साल का था |उनकी कंपनी से मिले पैसों और खेती बारी से आये फसलों की सहायता से पाला और पढाया मैं ने तुम सब को |
धीरज की नौकरी लगी उसकी शादी की | सोचा था अब कुछ आराम होगा पर बहू तो आते ही अपना रंग दिखाने और धीरज को हमारे विरूद्ध करने लगी | धीरज भी उसकी बातों में आता गया और आज घर की यह हालत हो गई | नीरज घर छोड़ कर चला गया, तुम्हारी पढाई छूट गई और मैं विस्तर पर बिमार पडी हूँ | मै ठीक थी तो तुम्हारी मदद कर देती थी पर अब तो तुम्हें अकेले घर का सारा काम भी करना पड़ता है और चार साल के मुन्ना को भी देखना पड़ता है | इसीलिए तुम से गलतियां हो जाती है और बहू गुस्सा करती है | काश नीरज यहाँ होता तो तुम्हारी मदद करता “माँ ने एक गहरी सांस ली और अपनी आंखें पोछने लगी | ” माँ नीरज भैया कब आयेंगे? क्या हमारी जिंदगी में कभी अच्छे दिन आयेंगे |” रानी माँ के गले लगकर रोने लगी |
” आयेंगे, जरूर |यही जिंदगीहै, कभी धूप, कभी छांव |हर रात के बाद सुबह जरूर होती है |देखना एक दिन नीरज आयेगा और हमारे सारे दुख दूर करेगा |” माँ उसके आंसू पोछते हुए बोली |
“अरी ओ रानी, महारानी, कहाँ मर गई |शाम की चाय बनेगी की नहीं |तेरे भैया आफिस से आ गये हैं |”भाभी उषा की तेज आवाज सुनते ही रानी तेजी से भागी |
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“अभी बनाती हूँ, भाभी |” रानी माँ के कमरे से निकलते हुए बोली |
“क्या कर रही थी माँ के कमरे में ,मेरी शिकायत |” उषा चिल्लाकर बोली |
“भाभी वो माँ को खांसी आ रही थी तो गरम पानी देने गई थी |” रानी जल्दी से बोली |
“खांसी आई थी |” उषा मुंह बनाकर बोली |”अरे यह बुढ़िया तो रात दिन खांसती ही रहती है |न दिन को चैन लेने देती है न रात को चैन से सोने देती है |मरती भी नहीं कि छुटकारा मिले |” “भाभी ” रानी जोर से बोली -“ऐसा क्यों कहती हो, माँ है हमारी |” “माँ है तो क्या, कभी नहीं मरेगी? कितने दिन तक हमारी छाती पर बैठी रहेगी | एक बेटा नीरज न जाने कहाँ जाकर बैठा है? तुम दोनों को हमारे माथे छोड़ गया | “
“आयेगा बहू, एकदिन नीरज आयेगा और हम दोनों को अपने साथ ले जायेगा |अरे अगर तुमने उसपर चोरी का इल्जाम न लगाया होता तो वह हमें छोड़ कर जाता ही नहीं |पैसे तुमने अपने भाई को दिये और चोरी का नाम उसपर लगाया |’माँ जोर से बोली |
” अरे, तीन साल हो गये जिन्दा होगा तब तो आयेगा |”उषा माँ के पास जाकर चिल्लाई |
“बहू, ऐसा क्यों बोलती हो? मेरा बेटा जरूर आयेगा |” माँ आवेश में विस्तर से खड़ी हो गई |
“अरे ओ बुढ़िया, मारेगी क्या मुझे, चल दूर हट |” उषा ने माँ को जोर से धक्का दिया |
माँ जोर से लड़खडाई | वह गिरने ही वाली थी कि किसी ने उसे थाम लिया |
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“माँ ” यह नीरज था जो अभी-अभी आया था |”तुम्हारी यह हालत? क्यो भाभी, आप माँ का इस तरह ख्याल रख रही है ? ” वह माँ को विस्तर पर बैठाते हुए बोला |
“अरे रख तो रही हूँ ना, तुम्हारी तरह छोड़ कर भागी तो नहीं |” उषा बोली |
“अगर आप मुझपर चोरी का इल्जाम न लगाती और भैया मुझे इतना बेइज्जत न करते, घर से निकल जाने को न कहते तो मैं कभी न जाता | “
“अरे, तो क्या तुम्हें जिंदगी भर निठल्ला बैठाकर खिलाते |तुम कुछ न करते |” उषा चिल्लाने लगी |
“वही करने तो निकल गया | घर से जाते समय ही सोच लिया था कि कुछ बनकर ही लौटूंगा | मैंने इन तीन वर्षों में बहुत मेहनत की भाभी |हमारे इस गाँव में तो कुछ ढंग का काम ही नहीं मिला |मैं शहर गया और बहुत मेहनत किया |एक अच्छी नौकरी पाई और जरूरत का सारा सामान भी खरीदा |तब आपलोगो से मिलने आया हूँ |मैं तो बहुत खुश था भाभी, पर आपने माँ और रानी की क्या हालत बना दी |” नीरज रानी की ओर देखते हुए बोला |”और भैया आपने भी ध्यान न दिया |’नीरज धीरज की ओर देखने लगा जो उसकी आवाज सुनकर आया था |
“तो ले जाओ न इन्हें अपने साथ, | ” उषा चिढ़ कर बोली |
“हाँ, हाँ, ले जाऊँगा, चलो रानी, चलो मां |” नीरज माँ का हाथ पकड़ते हुए बोला |
“ले जाओ, किसने रोका है? “
बोलते हुए उषा अपने कमरे में चली गई |धीरज भी उसके पीछे -पीछे चला गया |
“भैया, मैं अपना सामान लेकर आती हूँ |” रानी खुश होकर बोली |
“कुछ लेकर चलने की जरूरत नहीं है |वहां सारी व्यवस्था हो जायेगी |
बस तुम लोग चलो |” नीरज दूसरे हाथ से रानी को पकड़ते हुए बोला |
नीरज, रानी और माँ का हाथ पकड़ कर एक नई राह की ओर चल पड़ा |तीनों के चेहरे पर मुस्कान थी |
सुभद्रा प्रसाद