मेरी सुपर देवरानी-मुकेश पटेल

संडे का दिन था निर्मला जी अपनी सहेलियों के साथ गप्पे मार रही थी तभी उन्होंने अपनी विधवा बहू दिव्यानी को चाय के लिए आवाज दिया.   निर्मला जी का आदेश राजा बलबन की तरह होता था अगर एक बार आदेश दे दिया उसी समय पूरा करना है नहीं तो 10 बातें ऊपर से सुन लो.

दिव्यानी ने बिना देर किए फटाफट किचन से चार कप चाय बनाकर परोसने लगी तभी अचानक से एक कप वहीं पर गिर गया और  खनाक कर के टूट गया। दिव्यानी भागते हुए किचन की तरफ से पोछा लेकर आई और जमीन को साफ करने लगी तभी निर्मला जी ने अपनी सहेलियों की तरफ इशारा करते हुए कहा एक काम भी सही से नहीं करती है पूरा टी सैट खराब कर दिया इस को क्या मालूम कि कितना कीमती था ये टी सेट।

निर्मला जी फिर से वही पुरानी कहानी दोहराने लगी कि जब से यह हमारे घर में आई है कुछ न कुछ गलत ही होता है पहले तो मेरे बेटे को खा गई अब इस घर को खाने में लगी है।  दिव्यानी गिरा हुआ चाय को साफ कर सीधे अपने कमरे में चली गई और जाकर खूब रोने लगी। क्या उसका हस्बैंड किसी एक्सीडेंट में मारा गया तो उसमें उसका क्या दोष।



हरीश का फोटो लेकर वह उससे बातें करने लगी और बोलने लगी तुम अगर आज जिंदा होते तो कोई मुझे ऐसे तो नहीं सुनाता न, जब से तुम गए हो मैं कैसी जिंदगी जी रही हूं तुम्हें क्या पता।  तभी दिव्यानी की 4 साल की बेटी प्रिया आई और बोली मम्मा आप क्यों रो रही हो आप तो मेरी सुपर मम्मा हो आपकी आंखों में आंसू अच्छा नहीं लगता है। दिव्यानी अपने आसूं पोछ कर चुप हो गई क्योंकि वह अपनी बेटी को अपने जैसी कमजोर नहीं बनाना चाहती थी वह अपने बेटी को शुरू से स्ट्रॉंग बनाना चाहती थी जो जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके और जहां भी गलत हो वह उसका  विरोध कर सके लेकिन यह क्षमता दिव्यानी में नहीं थी कोई भी उसे कुछ भी बोलता। वह उसका पलट कर जवाब तक नहीं देती थी सिर्फ अपने कमरे में आकर रो कर ही अपने दर्द को भुला लेती थी।

थोड़ी देर बाद बाहर से निर्मला जी की आवाज आई दिव्यानी अभी तक तुम्हारा राम लीला खत्म नहीं हुआ क्या ? कुछ भी थोड़ा सा कुछ भी बोल दो  तो जाकर बस कमरे में रामलीला शुरू कर देती हो शाम हो गया है खाना बनाओ अभी आकाश आने वाला है तुम्हें तो पता ही है कि उसे ऑफिस से आते ही उसे भूख लगा होता है ।

एक वही तो हमारा बेटा है जो पूरे परिवार को अपने तंख्वाह से चलाता है अगर उसे की भी नौकरी छूट गई तो यह परिवार पालन पोषण कैसे होगा भगवान ही जाने।

दिव्यानी अपने कमरे से उठी और सीधे रसोई की तरफ चल दिया किचन में गई तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह आज रात के डिनर क्या बनाएं तो उसने सोचा कि क्यों ना अपनी सासू मां से ही पूछ ले कि आज के खाने में क्या बनेगा।

दिव्यानी जैसे ही अपने सासू मां से पूछ रही थी कि आज रात के खाने में क्या बनेगा तभी आकाश  ऑफिस से घर में प्रवेश किया और उसने अपनी भाभी से बोला भाभी आज खाने में पनीर और पुलाव बना दो।  बहुत दिन हो गए कुछ अच्छा खाए हुए। दिव्यानी पलटकर किचन की तरफ जाने लगी तभी निर्मला जी की आवाज आई बहू तुम छोड़ दो आज खाना बनाना।  तुम्हें पुलाव बनाना नहीं आता है मैं आज खुद अपने बेटे के लिए बनाऊंगी।



आज दिव्यानी के अंदर भी ना जाने कहां से हिम्मत आ गया और उसने जवाब दे ही दिया कि हां हां मैं तो कुछ करती ही नहीं हूं ना मुझे कुछ बनाने आता है हमेशा आपकी माँ ही  खाना बनाती हैं तो ठीक है बनवा लो अपनी मां से ही।

आकाश ने दिव्यानी को कहा भाभी इसमें इतना गुस्सा होने वाली क्या बात है माँ ने आपसे ऐसा कुछ तो नहीं कहा बस इतना ही तो कहा कि आज मैं खुद बनाऊंगी क्या मां को हक नहीं है खाना बनाने का।   दिव्यानी ने बोला हां हां क्यों नहीं है पूरा घर इनका है जो मर्जी करें लेकिन कहने का एक तरीका होता है यह नहीं कि जब मर्जी किसी की इंसल्ट कर दो।

आकाश बोला यार आप लोगों की लड़ाई में मुझे  इंटरेस्ट नहीं है जो मर्जी आप लोग बना लो एक दिन कह  दो कुछ बनाने को आपस में दोनों लड़नेलग जाती हो। मुझे आज खाना ही नहीं खाना है जो मर्जी करो आप लोग मैं अभी ऑनलाइन आर्डर कर देता हूं।

कुछ देर के बाद दिव्यानी की ननंद रूपा भी बाहर से अपनी सहेलियों से मिलजुलकर घर में आ गई थी घर में पहुंची तो घर में बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था वह समझ गई थी कि आज भी कुछ न कुछ मां और भाभी के बीच हुआ है।

रूपा अपनी भाभी के पास जाकर बोला कि भाभी आपको तो पता है कि माँ किसी की नहीं सुनती हैं तो आप क्यों उनको जवाब दे देती हैं जो कहती है वह कर क्यों नहीं देती हैं।

दिव्यानी ने आज रूपा को भी सुना दिया था कि आपको क्या पता क्या हुआ है मेरी गलती क्या है जब देखो आप सब लोग मिलकर मेरी ही गलती निकालते रहते हो। रूपा बोली भाभी मैं आपकी गलती नहीं निकाल रही हूं बस इतना कह रही हूं कि मां की उम्र भी तो हो गई है अगर आप नहीं समझोगे तो कौन समझेगा।

कभी-कभी तो दिव्यानी का मन करता था या घर छोड़कर अपनी बेटी के साथ कहीं और चले जाएं क्योंकि यह घर घर नहीं ऐसा लगता था कि यह एक लड़ाई का अखाड़ा हो जहां पर जब देखो कुश्ती होती रहती है।  किसी को भी दिव्यानी की चिंता नहीं है।

लेकिन वह यह सोच कर चुप हो जाती थी कि एक छोटी सी बच्ची को लेकर वह जाएं तो कहां जाएं अगर अकेले खुद का जीवन हो तो कहीं भी जाकर गुजारा कर ले लेकिन अपनी 4 साल की बेटी को लेकर कहां जाए उसके भविष्य के बारे में सोचकर इसी घर में रहने पर मजबूर हो जाती थी।



दिव्यानी ने तो अपने इस तरह से जीवन को जीवनचर्या बना लिया था अब कोई भी उसे कुछ भी कहता था दिव्यानी को कोई फर्क नहीं पड़ता था बल्कि हंस के सब कुछ सह लेती थी।

अगले 2 सालों में दिव्यानी के देवर आकाश की भी शादी हो गई ।  दिव्यानी की देवरानी रोशनी ने पहले शादी के दो-चार दिन तो उसने चुपचाप यहां देख रही थी कि घर में क्या हो रहा है उसके बाद उसने यह महसूस किया कि उसकी जेठानी दिव्यानी के साथ घरवाले बिल्कुल ही नौकरों की तरह व्यवहार करते हैं कोई भी उन्हें मान सम्मान नहीं देता है यह देख रोशनी को बहुत बुरा लगता था।  रोशनी ने यह सोच लिया था कि वह अपनी जेठानी के साथ ऐसा सुलूक ना करेगी और ना करने देगी।

धीरे धीरे रोशनी ने पूरे घर को संभाल लिया और दिव्यानी को भी  कोई भी काम नहीं करने देती थी लेकिन जो भी वह काम करती थी इसका क्रेडिट दिव्यानी को ही देती थी ताकि निर्मला  जो उनकी सास थी यह महसूस ना हो कि दिव्यानी कुछ करती ही नहीं है।

समय के साथ दिव्यानी के अंदर जो नकारात्मकता भर गई थी और उसका आत्मविश्वास खत्म हो गया था उसको धीरे धीरे  उसकी देवरानी रोशनी ने दिव्यानी के अंदर वापस ला दिया था दिव्यानी को एक सकारात्मक सोच की तरफ बढ़ने की तरफ मोटिवेट करती थी।

दिव्यानी की देवरानी रोशनी ने  दिव्यानी को एक फोन खरीद के दे दिया और धीरे-धीरे दिव्यानी को व्हाट्सएप और फेसबुक चलाना भी सिखा दिया।   फेसबुक से जुड़ने के बाद तो दिव्यानी कि जैसे दुनिया ही बदल गई वह फेसबुक पर बहुत सारे दोस्त बनाती और खाली समय में अच्छे-अच्छे पोस्ट लिखना शुरु कर दिया था जो बचपन से ही उसे कविताएं और शायरी लिखने का शौक था और उस शौक को फेसबुक के थ्रू पूरा करना शुरू कर दिया था।  फेसबुक पर उसके बहुत सारे दोस्त भी बन गए थे उसकी कुछ स्कूल की पुरानी सहेलियां और कॉलेज की सहेलियां भी फेसबुक के द्वारा मिल गई थी अब तो उनके साथ भी उनका चैट शुरू हो गया था फिर क्या था घर के काम निपटा कर और अपनी बेटी को स्कूल भेजकर फेसबुक पर ही अपना पूरा दिन बिताती और उसका दिन आराम से कट जाता था।



दिव्यानी बहुत अच्छा लिखती थी इस वजह से उसकी कई सारे पोस्ट को दूसरे लोग भी शेयर करते थे।  दिव्यानी एक चर्चित ब्लॉग वेबसाइट सोशल संदेश के साथ जुड़कर अपने मन की व्यथा को कहानी के रूप देकर लिखना शुरू कर दिया था और उस की कहानियां  हिट होने लगी थी मिलियन में लोग इसके कहानियों को पढ़ते थे।

फेसबुक पर ही दिव्यानी को एक अमित नाम का लड़का से अच्छी खासी दोस्ती हो गई थी और वह एक पब्लिशर को भी जानता था उसने दिव्यानी से उसकी कहानियों का संग्रह को प्रकाशित करने की बात कही।

दिव्यानी अब अपनी जिंदगी की कोई भी फैसला अपनी देवरानी से बिना पूछे नहीं करती थी क्योंकि आज अगर वह इस जगह पर है तो वह अपनी देवरानी रोशनी की वजह से ही है अगर रोशनी ने उसे इतना सपोर्ट नहीं किया होता तो शायद आज वह ऐसे ही नकारात्मक भरी जिंदगी जहां पर सिर्फ आंसू के सिवा कुछ नहीं था जी रही होती।

दिव्यानी ने रोशनी से इस बारे में बात की फेसबुक पर एक उसका फ्रेंड है अमित उस की कहानियों का संग्रह को प्रकाशित करवाना चाहता है तुम बताओ क्या करना चाहिए।  रोशनी भाभी यह तो बहुत अच्छी बात है इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि आप अब एक लेखक भी बन गई और आपकी कहानियों की संग्रह प्रकाशित होने वाला है आप अमित से बात करो हम उनसे मिलते हैं उसके बाद उस पब्लिशर से भी मिलते हैं। दिव्यानी ने अमित से फेसबुक पर ही अगले दिन एक रेस्टोरेंट में मीटिंग की बात फिक्स कर ली।  अमित बोला कि मैं उस पब्लिशर को भी जो मेरा दोस्त है साथ लेकर आऊंगा और वही पर हम फाइनल कर लेंगे कि आपकी कहानियों के लिए कितना पैसा वह आपको देगा।

अगले दिन दिव्यानी और रोशनी मीटिंग करने के लिए घर से  अपनी सांसु मां से झूठ बोलकर निकल चुके थे। रोशनी को निर्मला जी बहुत मानती थी इसलिए वह कहीं भी आती जाती थी तो उसके लिए रोक टोक नहीं था रोशनी ने अपनी सासू मां से बोला कि मैं हॉस्पिटल जा रही हूं इसीलिए साथ में अपने जेठानी को भी लेकर जा रही हूं।



मीटिंग के बाद पब्लिशर ने दिव्यानी को बुक के बदले एक लाख अमाउंट देने की बात कही।  दिव्यानी के लिए यह अमाउंट बहुत बड़ा था उसे तो विश्वास भी नहीं हो रहा था एक दिन इस कहानियों से उसे इतने पैसे मिल जाएंगे।   दिव्यानी और रोशनी ने एक पल में ही पब्लिशर को इस बात की इजाजत दे दी ठीक है एक लाख में बात तय हो चुकी।

फिर क्या था दिव्यानी के तो जैसे चल पड़ी उसकी कहानियां न्यूजपेपर  और मैगजीन सब जगह पब्लिश शुरू हो गया था। दिव्यानी की बेटी भी बड़ी होने लगी थी अब दिव्यानी ने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल से नाम कटवा कर प्राइवेट स्कूल में एडमिशन करवा दिया था क्योंकि  दिव्यानी को अपनी लेखनी से हर महीने 10 से 15 हजार इनकम आना शुरू हो गया था।

एक दिन न्यूज़पेपर में जब कहानियों के साथ दिव्यानी का फोटो छपा हुआ था तो निर्मला जी ने भी इस कहानी को पढ़ा और अपनी बहू से जाकर पूछा की बहू यह तो तुम्हारी फोटो लग रही है यह कहानी क्या तुमने सच में लिखा है।  दिव्यानी अब इस बात को छुपा नहीं सकी क्योंकि अब तक तो यह बात निर्मला जी से छुपकर करा करती थी लेकिन अब न्यूज़ पेपर में छप चुका था तो कैसे इंकार कर सकती थी।

दिव्यानी ने हाँ  में उत्तर दिया और कहा कि हाँ मैंने ही यह कहानी न्यूज़ पेपर में भेजा था।  अपनी बहू की फोटो देखकर निर्मला जी भी गर्व से भर गई थी उन्होंने अपनी बहू को गले लगाया और कहा तुमने यह बात हमसे क्यों छुपाया इतना अच्छा लिखती हो।

निर्मला जी अब तो अपनी बहू की तारीफ पूरे मोहल्ले में किया करती थी कि मेरी बहू बहुत बड़ी लेखिका है उसके फोटो अखबार में और मैगजीन में छपा करता है।

दिव्यानी का अमित से हमेशा मिलना जुलना शुरू हो चुका था और वह दोनों एक दूसरे के बहुत ही करीब आ चुके थे।  एक दिन तो अमित ने दिव्यानी को शादी के लिए भी प्रपोज कर दिया लेकिन दिव्यानी इस बात से बिलकुल ही खफा हो गई और अमित से बोली कि तुम्हें पता नहीं है कि मैं एक बेटी की मां हूं और मैं तुमसे शादी कर सकती हूं।  इसमें क्या बात है क्या जिसकी शादी हो जाती है वह दुबारा शादी नहीं करता है इससे तुम्हारी बेटी को भी एक पिता मिल जाएगा और मुझे भी एक बेटी मिल जाएगी।



दिव्यानी ने अमित से बोला “अमित यह सब कुछ इतना आसान नहीं है मेरे घर वाले कभी भी इस बात को इजाजत नहीं देंगे दोबारा शादी करने के लिए तुम तो मेरी सासू मां के बारे में जानते ही हो।” अमित बोला यह सब  तुम मुझ पर छोड़ दो मैं तुम्हारी सासु मां को मना लूंगा।

दिव्यानी ने बोला ठीक है अगर तुम मना लोगे तो मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन इससे पहले तुम्हें मेरी बेटी को भी मनाना होगा अगर वह तुम्हें अपना पापा स्वीकार करने में एतराज नहीं करती है तो मुझे तुम्हें अपने पति बनाने में कोई एतराज नहीं है।

धीरे धीरे अमित दिव्यानी की बेटी से बहुत ही घुल मिल गया था यह बात कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी की दिव्यानी की बेटी उसे स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि वह जब तक पूरे दिन में आधे घंटे अमित के साथ फोन पर बात नहीं करती थी उसका दिन पूरा नहीं होता था।  एक दिन तो दिव्यानी की बेटी ने खुद अमित से कह दिया कि आप मेरी मां से शादी करके मेरे पापा क्यों नहीं बन जाते हो।

एक कांटा तो अपने आप ही निकल गया था अब बची थी निर्मला जी जिन की इजाजत लेना जरूरी था इसके लिए अमित ने  दिव्यानी की देवरानी रोशनी से बात की और उनसे बोला कि रोशनी आप अपनी सासू मां से एक बार बात करो।

रोशनी ने अमित को भरोसा दिया कि ठीक है मैं मां की मूड देखकर बात करूंगी।  एक दिन संडे का दिन था रोशनी अपने सासू मां के साथ बैठ गई और बातों ही बातों में उसने छेड़  दिया कि मां अमित को तो जानती ही हो ना हां हां क्यों नहीं जानती हूं वहीं आ जो दिव्यानी के कहानियों को पब्लिश करवाया था।

रोशनी ने  बोला हां माँ वही बहुत अच्छा लड़का है अमित और वह दिव्यानी दीदी को पसंद भी करता है क्यों ना हम उन दोनों की शादी करवा दें।

निर्मला जी बोली बेटी चाहती तो मैं भी यहीं हूं की बहू की शादी करवा दूं लेकिन कौन करेगा इससे शादी जिसकी 7 साल की बेटी हो।  रोशनी को तो जैसे बिन मांगे मुराद मिल गई हो उसने बोला तो आप क्या तैयार है शादी के लिए अगर दिव्यानी दीदी शादी करेंगे तो आपको ऐतराज नहीं है।  निर्मला जी समय के साथ बिल्कुल ही बदल गई थी उन्होंने बोला की बहू मुझे क्या एतराज होगा आखिर उसकी उसकी भी जिंदगी है आखिर कब तक अकेले जिएगी। लेकिन बात यह है कि आखिर उसके लिए लड़का आएगा कहां से कौन करेगा एक बेटी की मां से शादी।  रोशनी निर्मला जी से बोली की अमित तैयार है शादी करने के लिए उसने खुद मुझसे बात की है।

फिर क्या था अगले महीने सबकी रजामंदी से दिव्यानी और अमित की शादी हो गई। सब लोग खुशी-खुशी दिवयानी को एक बेटी की तरह इस घर से विदा किया।

इस शादी के बाद जो पहले दिव्यानी का ससुराल था अब मायका हो गया था उसकी सासु मां अब मां बन गई थी और उस शादी के बाद जो प्यार एक बेटी को एक मां देती है वही प्यार अब दिव्यानी को अपने सासू मां से मिलना शुरू हो गया था जब भी टाइम मिलता दिव्यानी अपने पुराने ससुराल अपनी बेटी के साथ  नए मायके में आ जाती थी।

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