मेरी कहानी

सात दिन तक आईसीयू में मौत से संघर्ष के बाद चार दिन वेंटिलेटर पर रखने से भी कोई फायदा नही हुआ… और शकुंतला मुझे अकेला छोड़ के इस दुनिया से चली गई.. शायद यही मेरी नियति है..इस उम्र में ऐसा गम.

सत्तर साल के आलोक बाबू अपने आप से बातें कर रहे थे.. हार्ट अटैक और ब्रेन हेमरेज शंकुंतला के मौत के कारण बने.. हॉस्पिटल की औपचारिकता के बाद बॉडी घर लाई जा रही है..

बाबूजी मां को सजा दिया गया है बस आप सिंदूर लगा.. बाकी शब्द सुमन के आंसुओं में डूब गए..बेटी के लिए मां से हीं मायका का एहसास होता है शायद.. 

लाल चुनरी नाक से सर तक पीला सिंदूर की आभा बड़ी सी लाल बिंदी लाह की चूड़ियों से भरी कलाई. पैर में लाल टह टह आलता सोलह श्रृंगार सजी मेरी शंकतुला…. नई वधु सी लग रही थी क्यों ना लगे आज दुनिया से उसकी विदाई हो रही थी.. मैं आंखों में उसका ये रूप कैद कर लेना चाहता था.. अब तो बस यादें हीं शेष थी.. औरतों की झुंड शकुन की कलाई से चूड़ियों के डब्बे स्पर्श करा के रख रही थी सुहागिन जो विदा हो रही थी.. आवाजें आ रही थी कितनी भाग्यशाली थी सुहागन विदा हुई..

राम नाम सत्य है के शोर में सारी आवाजें दब गई..और ये बैंड बाजे! उफ्फ जीवनसाथी चाहे किसी भी उम्र में एक दूसरे से जुदा होते हैं असहनीय पीड़ा दे जाते हैं…

समय बीतने के साथ आलोक जी बेहद अकेले होते गए.. कितना लंबा साथ था.. बारह साल की उम्र थी शकुन की जब ब्याह कर आई थी.. पिताजी ने मायके भेज दिया सात साल के लिए क्योंकि वो बच्ची थी और मैं पढ़ाई कर रहा था.. ठीक से उस बालिका वधु की सूरत देख भी नहीं पाया था..

गौने के बाद जब मेरी जिंदगी में आई तब मैने अपनेआप से वादा किया था कि अब हम कभी अलग नहीं होंगे. जिंदगी के उतार चढ़ाव झेलते हुए हम मां बाप से दादा दादी और नाना नानी बन चुके थे.. पर हमारे प्यार में कोई कमी नही आई थी.. सहनशील समझदार शकुंतला को पाकर मैं धन्य हो गया था..शकुंतला कहती मैं आपसे पहले दुनिया से जाऊंगी .. सौभाग्य होगा मेरा कि आपके कंधे पर चढ़ के जाऊंगी पर मेरी आत्मा आप के आसपास हीं भटकती रहेगी.. आप की फिक्र में मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी.. मैं गुस्से से उसको देखता..




छः महीने हो गए शकुन को गए.. खाने में आज कढ़ी चावल बना है .. जब भी कढ़ी बनता शकुंतला मेरे लिए सुखी बड़ी जो कढ़ी में डालने के लिए फ्राई होता मुझे लाकर हरी मिर्च के साथ देती.. ये उसने मेरी अम्मा से जाना था कि मुझे सुखी बड़ी बहुत पसंद है .

अब मुझे लगता है एक लंबा वक्त साथ बिताने के बाद पत्नियों में अपनी मां की झलक दिखने लगती है.. वैसे हीं परवा करना…

आज फिर से आंखों के कोर गीले हो गए.. कुछ बूंदे खाने में भी गिरी..

बच्चों की अपनी गृहस्थी है व्यस्तता है.. वक्त वक्त की बात है.. और शायद यही नियति को मंजूर था वरना शकुंतला मुझे यूं छोड़कर…..हमे सरकार ने कब का रिटायर कर दिया पर क्या करें भगवान रिटायर करें दुनिया से तब ना..

पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठे आलोक बाबू पेड़ से बातें करने लगे मुझसे अच्छा तो ये पेड़ है जहां चिड़ियों का बसेरा है और उनकी चहचहाहट से पेड़ गुलजार रहता है.. लोग भी छांव की आस में यहां बैठते हैं.. जब कोई बात करने वाला न हो तो इंसान खुद से हीं बातें करने लगता है..

 पोते या बेटे की मित्र मंडली मुझसे नजरे बचा कर निकल जाती है और ये दोनो भी नही चाहते मैं उनसे मिलूं . बहु की किट्टी होती है तो मुझे अघोषित कैद में अपने कमरे में घंटों गुजारना पड़ता है.. खाना पानी कामवाली ढक के रख जाती है साथ में ये बोल जाती है मेम साहब की आज किट्टी है.. व्यंजनों की खुशबू बस नथुनों से टकरा जाती है.. सच हीं कहा गया है बुढ़ापा में जीभ बच्चों जैसी हो जाती है… पर बच्चों को तो मान मनुहार कर खिलाते हैं पर बूढ़ों को ऐसी चीजों से हाजमा बिगड़ने का भय दिखा दूर हीं रखा जाता है..




सच में औरतें बहुत गमखोर होती हैं शकुंतला की सहेली जिसके पति को गुजरे पंद्रह साल हो गए अक्सर पार्क में पोते पोतियों के साथ मिलती है.. अपनी सारी इच्छाओं को बंदिनी बना दिया है.. खाना पहनना घूमना हंसना सब बेटे बहु की मर्जी से होता है फिर भी खुश रहने की कोशिश करती हैं.. और एक मैं बात बात पर बच्चों सा आंसू निकल आता है..

चार साल बाद! आज शकुन बहुत याद आ रही है जब से बहू और बेटे की बातचीत सुनी उफ बाबूजी के कारण कहीं आना जाना मुश्किल है दोस्त अक्सर अपनी फैमिली के साथ छुट्टियों में बाहर घूमने जाते हैं.. अस्सी साल कौन जीता है अब. सोचा था मां के जाने का सदमा ज्यादा समय नहीं झेल पाएंगे पर ये तो लगता है दस साल और मजे से जिएंगे..

सीने में दोपहर से हीं दर्द है जो पहर बीतने के साथ बढ़ रहा है.. और तुम बहुत याद आ रही हो.. सुधीर की शादी में तेरे लिए मेरा गाया गाना ओ मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नही.. हाय तेरा शर्माना मुझे आज क्यों इतना याद आ रहा है..

अरे शकुंतला तुम.. पर मुझे तुम साफ क्यों नही दिख रही हो .. मैं तुझे नही जाने दूंगा.. सीने का दर्द ओहहहहहह….

सुबह नौकरानी चाय देने गई तो आलोक बाबू औंधे मुंह नीचे गिरे पड़े थे शरीर अकड़ गया था..

बेटे पोते के होते हुए तुलसी पानी भी नसीब नही हुआ ..

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

वीणा सिंह 

#नियति

(v)

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