मेरे बेटे ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया – सुषमा यादव

मैं अभी स्कूल से घर आई ही थी कि फोन की घंटी बज उठी, मैंने

कहा,, हेलो,, उधर से मेरे पिता जी यानि बाबूजी की कंपकंपाती रूआंसी आवाज सुनाई दी,, बेटा,

तुम्हारी मां की तबियत ठीक नहीं है, वो पूरी तरह से पागल हो गई है, मुझे बहुत मारती है और अनाप शनाप बकती है,, ये सब देख कर तुम्हारा छोटा भाई संजीव बहुत डरा और सहमा हुआ रहता है,, क्या हम सब तुम्हारे पास आ जायें,,

 

मैं व्यंग्य से बोली,, क्यों बाबू जी,, आप तो अपने राजा बेटे और बहू रानी के पास हैं,,हम जैसे मतलबी और बददिमाग वालों के घर क्यों आयेंगे,??? 

बाबू जी हकलाते हुए बोले,,, अरे बेटा,, हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ,, क्या बताऊं,उन दुष्टों 

 ने हमारा सब कुछ ले लिया, वो लोग बड़े ही धोखेबाज निकले,

हमारी एफ डी, जेवर, एटीएम सब कुछ ले लिया और हमें आठ दिनों के अंदर ही एक जीप करके कहा कि अब आप लोग गांव जाईये,, मैंने बहुत विनती किया ,रोया, गिड़गिड़ाया, बुढ़ापे में हम कहां जायेंगे,,पर मेरे मुंह पर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया, और हम गांव चले आए,अब मैं बहुत परेशान हूं,,

मैंने दो टूक में जवाब दिया,,, बाबू जी, मैं अपनी मर्ज़ी की मालिक नहीं हूं, जिसके साथ आप अपने राजा बेटे के साथ मिलकर बदसलूकी कर रहे थे, वो आपके दामाद थे, मैं सब कुछ सहन कर सकती हूं पर अपने पति का अपमान हरगिज़ नहीं सहन कर सकती । आप मुझे माफ़ कर दीजिए, आप यहां अब कैसे आ सकतें हैं,, और मैंने फ़ोन काट दिया,,

 

मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और मन विगत स्मृतियों में गोते लगाने लगा,,

मुझसे छोटा भाई इसी शहर में बैंक मैनेजर है ,, जहां मैं शिक्षिका पद पर कार्यरत थी, और मेरे पति

संभागीय अधिकारी थे ,मेरा छोटा भाई मानसिक विकलांग और शारीरिक रूप से कमजोर था,



बाबू जी रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव चले गए, बहुत बड़ा मकान और बहुत सारी खेती, बाग़ बगीचे उनके पास,,सब कुछ बहुत आराम से चल रहा था,कि एक दिन बाबू जी का फोन आया,, बिट्टी,, तुम्हारी मां की तबियत ठीक नहीं है, वो संजीव की चिंता कर रही है,कि मेरे मरने के बाद इसको कौन देखेगा,, तुम्हारे भाई को फोन लगाया तो उसने मना कर दिया,बोला,आप वहीं दिखाओ,, यहां हम लोगों के पास बिल्कुल समय नहीं है,,

क्या करूं,,, मैंने इनसे बताया तो इन्होंने तुरंत गाड़ी करके दो लोगों को गांव भेजकर सबको बुलवा लिया,,पर अम्मा जी बेटे के ग़म और चिंता में धीरे धीरे पागल हो जा रहीं थीं,, उन्हें मेरी बेटियों ने हम सबने खूब भरोसा दिलाया कि हम सब इनको देखेंगे,पर अम्मा जी अपने बेटे का रास्ता देख रहीं थीं, उन्हें उस पर ज्यादा भरोसा था,,, डाक्टर का इलाज चला, मेंहदी पुर बाला जी ले गये,, बहुत ज्यादा हम सबको परेशान किया,मेरा गला दबातीं , बाबू जी और मेरे श्वसुर को खूब मारती,, मुझे लग रहा था कि अब मैं ही पागल हो जाऊंगी,,पर जब भी थोड़ा बहुत होश आता,,हम सबसे माफी मांगने लगती,, बाबू जी को बोलीं,, बिट्टी को एक दो लाख की एफडी और एक बीघा जमीन दे दीजिए,, संजीव की देखभाल करने के लिए,, बाबू जी ने स्पष्ट मना कर दिया,, शायद बेटे के कारण कि ये सब पर तो उसका हक़ है,,

 

एक दिन जाने भाई भाभी ने क्या सोचा और मेरे घर आकर बाहर से ही खूब हंगामा किया,, मेरे माता पिता को बंदी बनाकर रखा है , उन्हें बाहर निकालो, नहीं तो पुलिस बुलवाता हूं जेल भेज कर रहूंगा, और भी अनाप शनाप बकता रहा,, मेरे पति बोले, आज़ तक कहां थे,अभी तक तो मिलने तक नहीं आये,दस मिनट का रास्ता है,,अब कोई मतलब है तो ले जाने आये हो,,, बाबू जी बहुत खुश हो गए कि बेटा हमें लेने आया है,, इनके ऊपर चिल्लाते हुए बोले, ज़बान संभाल कर बात करिए,,मेरा बेटा हमें लेने आया है और आप बदतमीजी से बात कर रहे हैं। मतलबी आप हैं मेरा बेटा नहीं,,आप होश में रह कर बात करिए,,,हम जा रहें हैं,, और जल्दी जल्दी सब सामान लेकर सब लोग चल दिए, मैं और मेरे पति हक्का बक्का रह गए,, चार पांच महीने से हम सब झेल रहे थे,हम दोनों की नौकरी,इनको देखना संभालना, और पल भर में हमें अपमानित करके सब चले गए,,

और आठ दिनों में उनका सब कुछ लेकर, उनके बेटे ने

उन्हें खाली हाथ रवाना कर दिया,, जमीन और मकान भी बहू के नाम वसीयत करवा लिया,,

 

मां इस धोखे को सहन नहीं कर सकी और एक दिन हार्टफेल हो जाने से हम सबको छोड़कर चली गईं,, बाद में मेरे पति ने फिर से बाबू जी और छोटे भाई को अपने पास बुला लिया,,जिसकी चिंता में

अम्मा जी पागल हो गईं थीं वही एक साल बाद उनके पास चला गया,,अब बाबू जी अकेले मेरे पास ही रहते हैं,, सालों बीत गया पर अब भी अपने बेटे के दिये हुए धोखे को नहीं भूल पा रहें हैं,, जब देखो, मुझसे और लोगों से कहते हैं,, मेरे बेटे ने मुझे बहुत धोखा दिया, वो धोखेबाज निकला, हमें अपने घर से बाहर निकाल दिया,,इस दुःख से वो उबर ही नहीं पा रहे हैं 

 #धोखा  

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,

स्वरचित मौलिक

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