मैं अविवाहित रहना चाहती हूँ – पायल माहेश्वरी

” मधुरिमा मैं तुमसे आखिरी बार पूछ रहा हूँ तुम्हें विवाह करना हैं या नही?”

मधुरिमा के पिता मोहन जी क्रोधित होकर उससे बोले।

” पापा!! मैंने आपसे साफ शब्दों में पहले भी कहा हैं की आप मेरे विवाह की चिंता छोड़कर नयना व अजित  के लिए रिश्ते तलाशना शुरू कर दे,में आजीवन अविवाहित रहना चाहती हूँ ” मधुरिमा तटस्थ होकर बोली।

” पर मधुरिमा नयना व अजित का विवाह तुमसे पहले कैसे कर सकते हैं?”मधुरिमा की माँ राधा परेशान होकर बोली।

नयना व अजित तीस वर्षीय मधुरिमा से तीन साल छोटे उसके जुड़वा भाई-बहन थे,उनकी उम्र भी सताईस साल हो गयी थी और मोहन व राधा उनके विवाह के लिए भी चिंतित रहने लगे थे।

पर मधुरिमा सर्वगुण संपन्न होने के बाद भी विवाह क्यों नहीं करना चाहती थी?

मधुरिमा बीस साल की उम्र से ही एक आध्यात्मिक संगठन के सम्पर्क में आयी थी जो युवाओ को अपने प्रवचन द्वारा विवाह से दूर रहनें की सलाह देता था, उस संगठन के संस्थापकों का नाम आलोक व अमृता था वे अधेड़ उम्र के थे,दोनों अविवाहित होने का दावा करते थे और मधुरिमा की तरह ही बहुत से युवा उनके अनुयायी थे, अपनी आय का बड़ा हिस्सा ये युवा संस्थान को दान करते थे व आजीवन अविवाहित रहने का प्रण लेते थे।

उस संस्थान में एक विचित्र बात थी जो भी संस्थापको के समपर्क में आता था वह पुरूष अथवा स्त्री चाहें कितना ही समझदार व सुशिक्षित हो एक भ्रमजाल में फंस जाता था और भरी जवानी में ही वैराग्य प्राप्त करने की और चल पड़ता था,आलोक व अमृता के भाषण इतने प्रभावी होते थे की युवा अनुयायी अपने अभिभावकों को नजरअंदाज कर देते थे और मोहन व राधा की तरह ना जाने कितने अभिभावक अपने ही बच्चों द्वारा छले जा रहे थे। 

आखिरकार मोहन व राधा ने अच्छे रिश्ते तलाश कर नयना व अजित का विवाह करवा दिया ,मधुरिमा एक आत्मनिर्भर लड़की थी वह अच्छी नौकरी करती थी और अपने माता-पिता व भाई-भाभी के साथ ही रहती थी।

नयना व अजित के विवाह को तीन साल हो गये थे, नयना एक प्यारे से बेटे की माँ भी बन गयी थी अजित भी अपनी वैवाहिक जीवन में बहुत खुश था।



मोहन व राधा को मधुरिमा की बहुत चिंता रहती थी पर मधुरिमा अभी भी संस्थान के नियमों को पकड़ कर बैठी थी।

समय गुजरने लगा मोहन व राधा ने मधुरिमा के विवाह की आस अभी तक लगा के रखी थी पर मधुरिमा अपने सिद्दांतो पर अडिग थी और उसे समझाना अंसभव होता जा रहा था।

मधुरिमा जब कभी अपने भाई बहन की सुखी गृहस्थी देखती और उनके बच्चों के साथ खेलती तो उसके मन में क्षण भर के लिए अपने खालीपन का विचार आता लेकिन दूसरे ही पल आलोक व अमृता की बातें मस्तिष्क पर हावी हो जाती थी और मधुरिमा फिर एक धोखे की राह में चल पड़ती थी। 

मोहन व राधा दिन रात ईश्वर से प्रार्थना करते और मधुरिमा को सही दिशा मिले ऐसा चाहते और इस बार ईश्वर ने उनकी सुन ली और एक निरंतर चली आ रही धोखाधड़ी का खुलासा स्वयं मधुरिमा के द्वारा हो गया। 

एक बार मधुरिमा किसी रिश्तेदार की पुत्री के विवाह समारोह में सम्मिलित हुई,वहां उसे आलोक व अमृता मिले।

” आलोक जी,अमृता जी !! आप यहाँ क्या कर रहें हैं?” मधुरिमा अमृता जी का श्रृंगार व आलोक जी का अलग आवरण देखकर आश्चर्यचकित थी,ये वो सादगी पसंद आलोक व अमृता नहीं थे।

आलोक व अमृता के चेहरे ऐसे सफेद पड़ गये थे जैसे उनकी चोरी पकड़ी गयी हो, क्योंकि वो अपने प्रवचनों में किसी भी सामाजिक समारोह में स्वयं नहीं जाने का दावा करते थे और वैरागी जीवन जीने का समर्थन करते थे।

आलोक व अमृता के कुछ बोलने से पहले ही मेजबान गुप्ता जी जिनकी बेटी का विवाह समारोह था उन्होंने मधुरिमा को उनका परिचय दिया।

” अरे मधुरिमा बेटी !! तुम इनको जानती हो,ये दोनों पति-पत्नी दूल्हे के बड़े भाई-भाभी हैं।”

” पति-पत्नी !!” मधुरिमा चौंक कर बोली ।

आलोक व अमृता वहा से बहाना बना कर खिसक लिए थे।

मधुरिमा को लगा उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हैं आज यथार्थ जानकर उसपर कोई सम्मोहन का असर नहीं हुआ। 

” इतना बड़ा धोखा !! और मैंने इन धोखेबाज लोगों के चक्कर में आकर अपने जन्मदाताओ का दिल दुखा दिया उनके सपनों पर पानी फेर दिया ” मधुरिमा की आखों में आँसू आ गए।

मधुरिमा ने उस संगठन से जुड़े अपने जैसे सभी अनुयायियों से मोबाइल पर मैसेज करके मिलने को कहा।

” आलोक व अमृता पति-पत्नी हैं उन्होंने हम सबको अंधेरे में रखा था और हम सारे पढ़े-लिखे मूर्ख युवा उनके सम्मोहन में पड़कर अपनी मेहनत की कमाई उनके नाम करते रहे थे हम सभी के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ हैं ” यह बात सुनकर सभी भक्त हैरान रह गए थे।

गुप्ता जी ने इस बात की पुष्टि करी की आलोक व अमृता उनके दामाद के चचेरे भाई-भाभी हैं,और उनका व्यक्तित्व विकास को समर्पित “पर्सनैलिटी-डेवलपमेंट ” संस्थान हैं।



पर गुप्ता जी स्वयं इस बात से अनभिज्ञ थे की पर्सनैलिटी-डेवलपमेंट की आड़ में किस तरह का भ्रमजाल फेंका जाता था और धोखा किया जाता हैं। 

आलोक व अमृता तो दोषी थे पर उनसे भी ज्यादा दोषी मधुरिमा व उसके जैसे उनके अनुयायी थे जो विवाह को गलत मान बैठे थे ,पढ़े लिखे ये युवा अपने जन्मदाताओ के साथ जाने-अनजाने में धोखा कर रहे थे, एक सम्मोहन अथवा मानसिक अवस्था के चलते हुए विवाह को बेकार मान कर अपना जीवन नष्ट करने ये सब चल पड़े थे।

” पापा मैं आपसे क्षमाप्रार्थी हूँ कृपया नादानी समझकर माफ कीजिएगा मैंने आपका दिल बहुत दुखाया हैं ” मधुरिमा मोहन जी से रोते हुए बोली।

” अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गयी खेत?” मैंने तुम्हें कितनी बार समझाने की कोशिश करी पर तुम इनके सम्मोहन में ऐसी खो गयी थी की तुम्हें तुम्हारे माता-पिता गलत लगने लगे थे, हर पिता की तरह मेरे भी तुम्हारे विवाह को लेकर बहुत अरमान थे लेकिन तुमने सब पर पानी फेर दिया ” मोहन चिंतित व दुखी थे।

” अब कौन करेगा इससे विवाह ?” मोहन ने राधा से बोला।

एक माँ होने के नाते राधा भी अपनी बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित नजर आयी, नयना व अजित अपनी-अपनी गृहस्थी में मग्न थे जब तक वो और मोहन जीवित हैं तब तक सही हैं पर उनके जाने के बाद मधुरिमा निंतात अकेली रह जाएगी।

मधुरिमा की उम्र भी अब तैंतीस साल हो गयी थी और इन सब प्रकरणों के बाद उनके समाज में उसके लिए रिश्ता ढूंढना मुश्किल हो गया था।

मधुरिमा अपनी गलती का बोझ लेकर शेष जीवन व्यतीत करना चाहती थी।

तभी एक दिन दरवाजे पर दस्तक हुई।

” हर्ष!! तुम यहाँ मेरे घर कैसे आए?” मधुरिमा ने अपने पहचान वाले युवक हर्ष को देखकर पूछा।

हर्ष अपने माता-पिता के साथ मधुरिमा के घर आया था वह भी उसी संस्थान का अनुयायी था जहा मधुरिमा को भ्रमित किया गया था।

” मधुरिमा!! मैं और तुम एक ही कश्ती पर सवार हैं मैंने भी तुम्हारी तरह बेवकूफी करके विवाह को अहमियत नहीं दी पर अब मेरी भी आँखे खुल चुकी हैं, अगर तुम मुझे अपने लायक समझती हो तो मैं तुमसे विवाह करने को तैयार हूँ ” हर्ष ने कहा।

मधुरिमा ने अपने माता-पिता की और देखा” जैसा निर्णय मम्मी-पापा लेंगे मैं उनसे सहमत हूँ।”

कुछ देर बातचीत के बाद हर्ष व मधुरिमा का रिश्ता दोनों परिवारों ने पक्का कर दिया था।

इस तरह देर से ही सही मधुरिमा का विवाह आखिरकार हो ही गया।

इस कहानी में तो एक सकारात्मक अंत लेकर मधुरिमा व हर्ष का विवाह हो गया पर हकीकत में ऐसा नहीं होता हैं।

यह रचना पूर्ण रूप से काल्पनिक नही है अपितु एक सच्चाई पर प्रेरित हैं।

जब बच्चे आत्मनिर्भर व उच्चशिक्षित हो जाते हैं तो कभी-कभी वे अपने अभिभावकों को भी मूर्ख समझते हैं पर असलियत में माता-पिता के पास अनुभव की पूंजी होती हैं और वे हमेशा अपने बच्चों का भला चाहते हैं।

सामाजिक दृष्टिकोण से विवाह निंतात जरूरी हैं ऐसे छलावे में पड़कर अपनी जिंदगी खराब करना मूर्खता हैं।

आलोक व अमृता जैसे स्वार्थी लोग हमें समाज में बहुत मिल जायेंगे पर अपनी समझदारी व निर्णय-क्षमता

स्वयं रखनी चाहिए।

किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं

धन्यवाद।

#धोखा। 

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