मायका – बेटियों का टूरिस्ट प्लेस – रूद्र प्रकाश मिश्र

गर्मियों की छुट्टी आ रही थी । बच्चे खुश थे । सीमा भी सोच रही थी , चलो , कुछ रोज तो सुबह की आपाधापी से छुटकारा मिल जाएगा । सुबह आराम से जागो , फिर जो कुछ करना है , देखा जाएगा । उसका पति राकेश वहीं घर के पास ही एक प्राइवेट फैक्टरी में सुपरवाइजर के पद पर था । सीमा के दो बच्चे थे , बड़ा बेटा ,

जो कि मैट्रिक में था और छोटी बेटी , जो इस बार छठी क्लास में गई थी । राकेश ड्यूटी पर चला जाता , बच्चे स्कूल और सीमा घर के कामों से फारिग होकर घर में ही आस – पास के बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन देती थी । कुल मिलाकर महीने का मकान किराया और घर के बाकी खर्चे भी मजे में चल रहे थे । उसकी घर – गृहस्थी उन दोनों पति – पत्नी की आपस की साझेदारी से बिल्कुल सही चल रही थी ।

                      आज रात जब उसका पति काम से लौटा , तो सीमा ने कहा – गर्मियों की छुट्टी आ रही है , क्यूँ न इस बार बच्चों के ननिहाल चला जाए । तीन – चार वर्ष हो गए मायके गए हुए मुझे भी । बस यहीं आपाधापी में लगी रहती हूँ । बगल के शहर में एक भाई रहता है , बस उससे मिलती हूँ राखी के दिन कुछ समय के लिये । आप भी फैक्टरी से छुट्टी ले लीजिये । राकेश ने कहा – हाँ , छुट्टियाँ तो मेरी बची हुई हैं अभी , ले लूँगा । लेकिन तुम सोच लो , पक्का जाना है न ।

हाँ – सीमा ने कहा , सोचना  क्या ।। दो हफ्ते यहीं बगल के शहर में भाई के पास , फिर अगर होगा , तो गाँव भी जाएँगे इस बार , क्यूँ ? सीमा ने पूछा । जैसी तुम्हारी मर्जी – राकेश बोला । भाई तो पिछली बार राखी पर बोल भी रहा था , अकेले आती हो दीदी , साथ में सभी को लाओ न , अच्छा लगेगा । ज्यादा दूर भी तो नहीं है भाई का शहर तकरीबन पाँच घण्टे का तो रास्ता है अपने शहर से – सीमा ने कहा ।



            सीमा कुल तीन भाई बहन थी । सबसे बड़ी सीमा , फिर उससे छोटा राहुल और सबसे छोटा सौरभ । सीमा के पिता गाँव के किसान थे । उसकी माँ गृहस्वामिनी थी । घर का सारा खर्चा खेती- बाड़ी की आमदनी पर ही निर्भर था । दरवाजे पर एक गाय थी , जो दूध के ज्यादातर खर्चे का बोझ उठा लेती थी । सीमा की शादी उन्होंने अपनी हैसियत के मुताबिक ही की थी । राकेश भी किसान का ही बेटा था । वो अपनी पढ़ाई किसी तरह पूरी करने के बाद कमाने के लिये शहर आ गया और फिर काम करके आगे बढ़ते हुए सुपरवाइजर हो गया था ।

सीमा की शादी के समय उसके दोनों भाई पढ़ ही रहे थे । सीमा के पिताजी ने उसके शादी के साल –  डेढ़ साल के अंदर ही अपने दोनों बेटों की भी शादी कर दी । सीमा के जाने के बाद जो आँगन सूना सा हो गया था , अब उसमें फिर से चहल – पहल और निखार आ गया था । फिर अचानक ही एक दिन हृदयगति रुक जाने से सीमा के पिताजी चल बसे । सीमा की माँ भी ये सदमा झेल नहीं पाई और कुछ महीनों बाद वो भी चल बसी ।

                                 इस सबके तकरीबन एक वर्ष के बाद ही उसके भाई राहुल ने केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अपना नाम रौशन कर दिया था । कितनी खुशी हुई थी तब घर में ।

                           राहुल अब अफसर बन गया था , तो उसने गाँव के मकान के बगल में ही जमीन के खाली हिस्से पर अपने लिये एक कोठी बना ली थी । पुराने कच्चे  मकान में अब उसका छोटा भाई सौरभ और उसकी पत्नी रहते थे । राहुल गाँव कम ही आता ।

                दो दिनों बाद ही सीमा राहुल के यहाँ थी । बड़ी सी सरकारी कोठी , चपरासी , अर्दली , अपने भाई के ठाठ और रुआब पर वह फूली नहीं समा रही थी । उसका स्वागत भी ठाठ से हो रहा था । और दीदी , और सब बताओ – खाने की मेज पर उसके भाई ने पूछा । सब बढ़िया है भाई , इस बार की छुट्टियाँ मायके में ही बिताने की इच्छा थी , तुम बगल के शहर में ही थे तो सोचा अच्छा मौका है – सीमा ने कहा । ” सुनो ” तभी राहुल की पत्नी का स्वर गूँजा , इधर कमरे में आओ ।

राहुल उठकर कमरे में चला गया । खाने की मेज पर सीमा और उसका परिवार ही रह गया । राहुल कुछ समय पश्चात वापस आ गया । अगली सुबह नाश्ते के लिये सब इकट्ठा हुए । सीमा  उम्र और अनुभव दोनों में राहुल से बड़ी थी । उसकी अनुभवी आँखों ने रात ही सारा माजरा समझ लिया था ।रही सही कसर तब पूरी हो गई थी जब उसने रात वाशरूम से आते समय कुछ और बातें अपने भाई और उसकी पत्नी की सुन ली थी । पत्नी का स्वर तेज ही था , तो बात समझने में दिक्कत भी नहीं हुई थी । उसने अपना निर्णय रात ही अपने पति को बता दिया था । राकेश ने पूछा भी था – ये अचानक निर्णय बदल गया । उसने हँसकर बात को टाल दिया था ।

उसने नाश्ता करते हुए ही राहुल से कहा – भाई , रात मेरी बात अधूरी रह गई थी । तुम बीच में ही उठकर चले गए थे । वो ,,,, बस ,,,,, मेरी पत्नी ने मुझे कुछ पूछने के लिए बुलाया था । कोई बात नहीं – सीमा बोली , मैं ये कह रही थी , आज मैं गाँव चली जाऊँगी । बहुत दिन हो गए वहाँ गए हुए । तुम तो बगल में ही हो , आती जाती रहूँगी । राहुल बोला – दीदी , जैसी आपकी इच्छा , एक – दो दिन रह लेतीं , तो अच्छा लगता । कोई बात नहीं , आती रहूँगी – सीमा ने कहा ।

                       उसी दिन वहाँ से सीमा अपने परिवार के साथ अपने गाँव वाले मैकेघर के लिये निकल पड़ी । ट्रेन का लम्बा सफर तय करके वो तीसरे दिन सुबह अपने गाँव वाले पुराने मायकेघर पहुँच गई । छोटा भाई सौरभ और उसकी पत्नी उसके आवभगत में लग गए ।



                   क्या दीदी , अब तो राखी में भी नहीं आते हैं आप , गाँव को भूल ही गए – सौरभ ने थोड़े शिकायती लहजे में कहा । बहुत दूर पड़ता है भाई , इनकी छुट्टियाँ भी देखनी होती हैं , सीमा ने हँसते हुए अपने पति और बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा । हाँ – सो तो है , सौरभ ने कहा । अब इस बार पूरे एक महीने के लिये आई हूँ – सीमा ने हँसते हुए कहा । तभी सौरभ की पत्नी ने सौरभ को पुकारा – ” सुनिये ” । सौरभ अपनी पत्नी के पास चला गया । फिर वहाँ से आकर उसने सीमा से कहा – दीदी , आपलोग आराम कीजिये , मैं आ रहा हूँ ।

                            सीमा एक बार फिर कुछ समझने की कोशिश में लग गई । उसके मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे । कहाँ गया सौरभ ? उसकी पत्नी ने उससे क्या कहा ? क्या मेरी आँखें एक बार फिर अपने ही  छोटे भाई को पहचानने में धोखा खा गईं ? “जब मन घायल होता है , तो नकारात्मक विचार ज्यादा आते हैं ।”सीमा के साथ भी वही हो रहा था । एक जगह से वो पहले ही घायल हो चुकी थी । सोचा था चलो , गाँव का घर तो अपने बाबूजी – अम्मा का है , वो तो जरूर स्वागत करेगा

अपने बेटी का । क्या ये भी बदल गया ? क्या माँ – बाप के गुजर जाने के बाद सचमुच ही एक बेटी के लिये उसके अपने ही घर में उसकी कोई कद्र नहीं रहती ? क्या सिर्फ शादी हो जाने से ही बेटी के लिये मायके में कोई जगह नहीं ? एक के रँग तो देख ही लिये – पैसा और रुतबा आते ही किस तरह बदल गया है । क्या ये भी ? छिह ,,,,, आना ही नहीं था यहाँ , उसने खुद को धिक्कारते हुए कहा । एक महीने की बात सुनते ही कुछ चिंतित हो गया था वो , देख तो लिया था मैंने उसकी आँखों में । लेकिन उसकी पत्नी ? उसने क्या कहा बुलाकर उसे ? सीमा सोचती ही जा रही थी । क्या ये वही सौरभ है जो दिनभर उसकी चुन्नी खीँच- खीँच कर उसकी गोद में आने के लिये मचलता रहता था ? जिसको एक बार हल्के से भी घुड़क देती थी ,

तो डरकर अपनी आँखें बड़ी – बड़ी करके उसकी तरफ भोलेपन से देखने लगता था और फिर वो हँसते हुए चूमकर उसे गोद में चिपका लेती थी । उसका मन कसैला हो गया । खैर उसने अपने मन के भावों को अपने अन्दर ही समेटे रखा । उसके पति ने पूछा – क्या हुआ ? कुछ नहीं , उसने कहा । ठीक है मैं बच्चों के साथ जरा बाहर घूम आता हूँ । ठीक है – सीमा बोली ।

” ईश्वर ने एक बहुत ही विशेष क्षमता दी है औरतों को – वो जब तक बताना नहीं चाहे , उसके मन के अन्दर क्या चल रहा है तब तक शायद ईश्वर भी नहीं जान पाएँ ।”

और उसकी ये क्षमता जहाँ- तहाँ पुरुषों के लिए मददगार ही साबित हुई है ।

         तकरीबन एक या डेढ़ घंटे बाद सौरभ कहीं से आया । उसके साथ ही गाँव के मोहन काका भी आए थे । सीमा ने आगे बढ़कर काका के पाँव छुए । उसने देखा – कि ठेले पर कुछ लदा आ रहा है । उसने सवालिया नजरों से सौरभ को देखा । सौरभ कुछ बोलता , इससे पहले ही मोहन काका बोले – हम बताते हैं बेटा , देखो , तुम तो हमारे घर की बेटी हो , जैसे भी रखेंगे – रह लोगी । मगर जँवाई -बाबू और बच्चों को कितनी दिक्कत होगी इस गरमी में ।

सौरभ ने बताया कि उसकी दीदी आई है अपने  परिवार के साथ , उन लोगों को इस गरमी में कोई परेशानी न हो ये सोचकर ये थोड़ा परेशान था । हमको तो वैसे भी इसकी आदत नहीं । हमने कहा ले जाओ , बेटी आई है , कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए उसे रहने में ।

           और सुनो – कल का तुम्हारा , जँवाई बाबू का और बच्चों का दोपहर का भोजन हमारे यहाँ होगा । बेटी पूरे गाँव की होती है , पूरे गाँव का फर्ज बनता है कि उसका ख्याल रखे । अभी तो तुम्हें पूरा गाँव घूमना है , सबके यहाँ खाना है – हँसते हुए मोहन काका बोले । हाँ काका , सब के यहाँ जाना है अभी तो – हँसते हुए सीमा ने कहा ।

          सीमा को उसके सारे सवालों के जबाब मिल गए थे । उसने एक बार बड़े नेह से अपने भाई की तरफ देखा । उसका मन तो हो रहा था कि बस अभी दौड़कर अपने भाई को सीने से चिपकाकर रोने लग जाए । मगर फिर मोहन काका को देखकर उसने अपने मन की भावनाओं को काबू में किया । उसने एक बार बड़ी ही संतुष्टि और अपनेपन के साथ अपने मायके को देखा । यहीं तो वो रही है , खेली है , बड़ी हुई है ,,,, यही तो है उसका मायका ।

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