महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ घूमते घूमते श्रावस्ती पहुंचे. और वहीं पर अपना मठ बना कर रहना शुरू कर दिए और उसके बाद रोजाना सुबह-सुबह श्रावस्ती के लोगों को प्रवचन भी देते थे. महात्मा बुद्ध के प्रवचन को सुनने के लिए आसपास के गांवों से भी भीड़ इकट्ठा होने लगी.
महात्मा बुद्ध हर एक व्यक्ति का दुख सुनते थे और उसके निवारण के लिए उपाय भी सो जाते थे एक दिन एक व्यक्ति आया और बोला महात्मा जी हम एक डाकू से परेशान हैं हमारा आना जाना इसी जंगल के रास्ते से होता है और हमने ऐसा भी सुना है वह डाकू जिस भी आदमी को लूटता है उसकी एक उंगली काट लेता है समझ नहीं आता है उस डाकू से कैसे निजात पाया जाए राजा से भी हम लोगों ने शिकायत किया है लेकिन फिर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
सुनकर महात्मा बुद्ध ने अकेले ही जंगल की तरफ चल दिए महात्मा बुध को अकेले जंगल में जाते हुए वहां के लोग रोकने लगे बोले आप उधर अकेले मत जाइए नहीं तो वह आपको भी जिंदा नहीं छोड़ेगा आप की भी हत्या कर देगा।
महात्मा बुद्ध ने किसी की नहीं सुना और वह जंगल के बीचो-बीच से चले जा रहे थे तभी उसी समय एक कड़क आवाज सुनाई थी और उसने कहा ठहर जा. आवाज सुनकर महात्मा बुध वहीं पर रुक गए और उन्होंने देखा कि काली झाड़ियों से एक डाकू निकल कर उनके सामने खड़ा हो गया है.
उसे देख कर महात्मा बुद्ध शांत भाव से कहा, मैं तो ठहर गया किंतु तू कब ठहरेगा”
डाकू आश्चर्यचकित होकर महात्मा बुद्ध को देख रहा था क्योंकि उनके चेहरे पर नाम मात्र के भीतर के भाव नहीं थे. उन्होंने दुबारा अपनी बात को दोहराया “बोल तू कब ठहरेगा?”
अंगुलिमाल डाकू ने महात्मा बुद्ध से कहा आपकी बात मैं नहीं समझा आप क्या कहना चाहते हैं.
महात्मा बुद्ध ने कहा मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि जीवन में ऐसे ही इतना सारा दुख है जन्म से लेकर मरण तक सिर्फ दुखी दुख है मैं तो पहले एक राजा था और ज्ञान प्राप्त कर उस बंधनों से मुक्त हो गया हूं किंतु तू इस लोभ में पड़ा हुआ है लोगों को मारता काटता रहा है पता कब मुक्त होगा इन सब चीजों से.
महात्मा बुद्ध की प्रभावशाली बातों से तुरंत अंगुलिमाल डाकू में बदलाव आया और उसने हिंसा का मार्ग त्यागकर अहिंसा का मार्ग अपनाने का प्रण लिया और वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर गया.
तुम तो इस कहानी का शिक्षा इतना ही है हमारे मन के अंदर सभी शांति आ पाएगी जब हम लोग हो माया के बंधनों से मुक्त हो जाएंगे।