माँ  जैसी कोई नहीं – उमा वर्मा

रात के बारह बज रहे थे ।नींद कोसों दूर है ।बेटा बहू सो चुके हैं ।मदर्स डे  चल रहा है ।खूब लेख लिखा जा रहा है ।माँ की तो बात ही अलग होती है पर पिता कुछ कम नहीं होते।मुझे भी उम्र के छठे पड़ाव पर, अपने अकेले पन में माँ बहुत याद आ रही है ।सोचा क्यों न मै भी कुछ लिख दूँ ।लेकिन जितना भी लिखें ,माँ की तारीफ में कम ही होगी ।कितने प्यार से पाला, बड़ा किया और बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में व्यस्त हो गये ।बहुत बिजी लाईफ का रोना होने लगा ।और फिर बहुत उम्मीद भरी आखों से देखती हुई माँ अकेले हो गई ।पता नहीं कहाँ  लाचारी है?

 खैर, फिलहाल अपनी माँ के बारे में—- पिता जी नौकरी की तलाश में बाहर निकल गये ।और हम माँ बेटी गांव वाले घर में ।हमारा एक घर शहर में भी था ।लेकिन वहां दादी, दादा जी और बुआ,चाचा रहते थे ।घर पर खेती से अनाज आ जाता और बगीचे से आम।चचेरे चाचा ताउ ताई सब लोग माँ से चावल ले जाते ।उधारी ।बदले में मड़ुआ  दे जाते ।माँ तो सब कुछ खा लेती पर मुझे वह अच्छा नहीं लगता ।लेकिन खाना हमारे लिए लाचारी थी।गांव में चोरों का बहुत आतंक था ।माँ बिस्तर के नीचे भाला रखती थी ।जरूरत पड़ने पर काम आ सके इसलिए ।

बहुत साहसी थी मेरी माँ ।गोरी चिट्टी, बहुत सुन्दर ।मै उतनी ही डरपोक ।देहात का घर बहुत बड़ा था ।गर्मी के दिनों में ओसारे पर चारों तरफ खाट बिछ जाते।एक खाट पर हम माँ बेटी ।माँ को झाँसी की रानी बहुत पसंद थी तो मेरा नाम मनु रख दिया था ।लेकिन मै झाँसी की रानी नहीं थी।दुबली पतली, डरपोक लड़की थी।मै बहुत सीधी सादी, आज्ञाकारी बेटी थी ।बचपन में ही मुझे चेचक हो गया था ।बहुत हालत खराब हो गई तो माँ चुपके से डाक्टर को बुला लाई।




गांव में चेचक को लोग माता निकलना कहते ।और खूब पूजा पाठ करते ।लेकिन उस जमाने में भी माँ आधुनिक विचारों की थी ।मै दवा खाने से जल्दी ठीक हो गई ।माँ  को होम्योपैथी पर बहुत विश्वास था ।कभी कभी शहर वाले घर में भी जाना होता था ।दादाजी बहुत प्यार करते थे ।लेकिन रोज कचहरी से आते समय कुछ न कुछ खाने का सामान जरूर ले आते ।फिर मुझे भी एक मिलता और कहते ” अपनी माँ को भी दे देना ” मै सोचती वे बहुत प्यार करते थे तो यह कैसा प्यार था ।भला माँ कैसे खा लेती? फिर पिता जी की नौकरी लग गई एक दिन हम माँ बेटी शहर आ गए ।

हमारे जीवन में सुधार आ गया ।माँ हमे बहुत प्यार करती थी लेकिन जरा हट के ।बहुत नियम,तौर तरीके से ।अनुशासन के मामले में थोड़ी कठोर भी ।माँ मुझे तब बिलकुल अच्छी नहीं लगती थी जब मेरे बालों को खींच खींच कर चोटी करती ।खूब सारा साबुन आखों में बिना देखे रगड़ कर नहलाती ।पढ़ाई लिखाई में भी बहुत कठोर हो जाती ।मै छोटी सी थी तो माँ को बहुत बुरी औरत समझती ।फिर पिता जी ही नहलाने, चोटी करने, पढ़ाने और खिलाने लगे थे ।पैर दर्द करता तो तेल भी लगा देते ।बड़ी होने लगी तो समझ आने लगी माँ की कठोरता ने जिंदगी से जीतना सिखा दिया था ।

माँ को लगता मेरी बेटी हर चीज में पारंगत हो जाये।और सचमुच मै बहुत तेज, होशियार, पढ़ाकु  बन गई थी ।मुझे याद था जब हमारे दिन अच्छे नहीं चल रहे थे ।और कभी खाने की दिक्कत हो जाती तो माँ मुझे खिलाकर, खुद पानी पी कर सो जाती।पर कभी किसी से शिकवा शिकायत नहीं करती ।और पढ़ने का बहुत शौक था बचपन से माँ को ।मुझे भी विरासत में यह गुण मिला ।कहने का तात्पर्य यह है कि ठोक पीट कर माँ ने मुझे बहुत मजबूत बना दिया मन से ।फिर पिता जी के न रहने पर माँ हर तरह से साथ खड़ी रहती ।बच्चों के लिए माँ ने अपने आँसू पोंछ लिए ।सचमुच बहुत हिम्मत वाली थी वह ।माँ नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।बहुत सक्षम न होते हुए भी मदद करने के लिए तैयार ।मैंने कभी भी अपनी माँ को बुरे समय में भी विचलित होते नहीं देखा ।कभी परेशान नहीं दिखाई देती ।




कभी बेचैन नहीं होती ।कैसी थी तुम माँ? तुम्हे कैसे कोई दुख तकलीफ नहीं होती थी ।होती तो होगी ही ।लेकिन हम बच्चों पर कभी जाहिर नहीं होने दिया ।बहुत तकलीफ सही मेरी माँ ने ।रोज चक्की में आटा पिसती ।दादाजी घर के आटे की रोटी खाते थे ।चावल कूटती  थी।बहुत बड़ा परिवार के साथ भी रहना पड़ता था लेकिन कभी चेहरे पर खीज या मायूसी नहीं लाती ।

माँ बताती थी कि एक बार ननद के लिए गुड़िया बना रही थी, मेरा छोटा भाई, सात महीने का,रोते रोते खत्म हो गया ।पर माँ को हिम्मत ही नहीं हुई कि ननद को नाराज करे।कितनी महान थी तुम माँ ।लेकिन तुम को आवाज़ तो उठानी चाहिए थी।समय बीत गया ।पति के न रहने पर भी तीन ननद की शादी देवर की शिक्षा सब कुछ निबटाया ।और अंततः सबने तुम से किनारा कर लिया ।

मुझे यह देख सुनकर बहुत दुख होता है ।अब तुम नहीं हो माँ ।लेकिन तुम्हारी हिम्मत, दिलेरी की तो दाद देनी ही पड़ेगी ।सच कहूं तो मै इतना नहीं सह पाती।विरोध करती।शायद नहीं भी कर पाती।मै भी तो थोड़ी चुप हो गई थी ।हम भाई बहन अंतर्मुखी हो गये थे ।और बहुत सीधी सादी होने का खिताब मिला था ।आज उम्र के इस पड़ाव पर भूली बिसरी यादें ही तो जीवन का सहारा होती हैं ।और तुम्हारी याद तो बहुत आती हैं माँ ।मेरे जीवन के हर पल में तुम ही तो हो ।

उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित ।

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