लिव इन रिलेशन – बालेश्वर गुप्ता

  बेटा साल भर हो गया है तुझे देखे,तुझे प्यार किये।बस मुझसे अब नही रुका जा रहा है, मैं अगले सप्ताह ही बंगलोर आ रहा हूँ, कुछ दिन वहीं रहूँगा,अपनी गुड़िया के पास।

          नही,नहीं पापा अभी नही अभी ऑफिस में बहुत काम है, आप आ गये तो मैं समय नही दे पाऊंगी। पापा दो महीने बाद दीवाली है, उस पर मैं पंद्रह दिनों के लिये छुट्टियां लेकर वही जयपुर आऊंगी आपके पास।पक्का।

      ठीक है बेटा, जैसी तेरी मर्जी,पर बेटा दीवाली पर आ जरूर जाना।देख अब मुझसे अकेले रहा नही जाता, भाई तेरा कोई है नही,तेरी मां भी कब की छोड़ कर चली गयी।एक तू ही तो है, मेरी बच्ची।

       अरे पापा, बस दीवाली पर आ ही रही हूँ।

          मध्यम श्रेणी के श्याम बाबू ने अपनी एक मात्र पुत्री को मां बन कर पाला था।पत्नी असाध्य रोग से ग्रसित हो चल बसी थी।गुड़िया मात्र दो बरस की थी।मित्रो ने,रिश्तेदारों ने श्याम बाबू को दूसरी शादी करने को खूब समझाया।अरे छोटी सी बेटी है, कैसे पालेगा, काम पर भी जायेगा, उसे भी पालेगा,कैसे हो पायेगा।फिर श्याम बाबू अभी तेरी उम्र भी कितनी है बस 30-32बरस।

      श्याम बाबू सबको दो टूक जवाब दे देता, सुमन से बेवफाई नही करूँगा।अपनी निशानी दे गयी छोड़ गई है, तो अब गुड़िया ही मेरी जिंदगी है, इसके सहारे ही जीवन कट जायेगा।




   एक दो रिश्तेदार तो उसके लिये लड़की के फोटो के साथ रिश्ता भी ले आये, पर श्याम बाबू ने दूसरे विवाह को साफ मना कर दिया।

       श्याम बाबू की दुनिया बस गुड़िया में सिमट कर रह गयी थी।उसकी परवरिश ही उसका ध्येय था,सुमन का प्रतिरूप थी गुड़िया। 

        एक बार गुड़िया को बुखार हो गया तो बदहवास सा श्याम  बाबू गुड़िया को सीने से लिपटाये रात को ही डॉक्टर के यहाँ दौड़ा दौड़ा चला गया।देखो ना डॉक्टर साहब मेरी बच्ची को क्या हो गया है? डॉक्टर ने जांच कर बताया हो सकता है टाइफाइड हो,टेस्ट कराने से पता चलेगा।फिलहाल ये दवाई दो,सुबह आना ,तभी टेस्ट करा लेंगे। सुबह,कब होगी सुबह,सोचते सोचते गुड़िया को गोद मे लिये पूरी रात यूँ ही काट दी,श्याम बाबू ने।पूरे एक सप्ताह अपनी गुड़िया की तीमारदारी में रात दिन श्याम बाबू लगा रहा।गुड़िया स्वस्थ हो गयी तब श्याम बाबू को चैन आया।

      भला हो पड़ोस में रहने वाली कमला चाची का जो श्याम बाबू और गुड़िया से पूरी सहानुभूति रखती और समय समय पर काम भी आ जाती।भले ही गुड़िया अपनी बच्ची थी पर थी तो मादर जात, सो स्त्रियोचित सब बातें कमला चाची संभाल लेती।

     धीरे धीरे गुड़िया बड़ी होती जा रही थी,श्याम बाबू अपनी गुड़िया को अपनी हैसियत से भी अधिक उसे शिक्षा दिलाना चाहता था।गुड़िया ने एमसीए करने में रुचि जाहिर की।तो श्याम बाबू ने सुमन के जेवर बेच दिये और गुड़िया का एमसीए में दाखिला कराया।श्याम बाबू को बस एक तसल्ली थी कि  गुड़िया का एमसीए 

में दाखिला जयपुर के ही एक इंस्टीट्यूट में हो गया था।सो गुड़िया उसकी आँखों के सामने ही रही।आखिर शिक्षा पूरी हो गयी। अब गुड़िया जॉब ढूढ़ने लगी थी।गुड़िया के जॉब पर बाहर जाने की कल्पना से ही श्याम बाबू का दिल बैठने लगता।कमला चाची समझाती, अरे पगले जब गुड़िया का ब्याह हो जायेगा, वो अपने घर  जायेगी, तब क्या करेगा? उसके बिना रहने की आदत अभी से डाल लें।हकीकत सुन श्याम बाबू बोलता तो कुछ नही पर अंदर ही अंदर और सहम जाता।वो अपने अस्तित्व की कल्पना गुड़िया के बिना कर ही नही पाता था।




        गुड़िया का नियुक्तिपत्र बंगलोर की एक अच्छी कम्पनी से  आ ही गया।श्याम बाबू हर्ष और गम में डूबा विचारो की दुनिया मे विचरण कर रहा था।गुड़िया बड़ी हो गयी है, अपने पैरों पर खड़ी हो गयी है, खूब कमाएगी सोच कर उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती तो वो बहुत दूर चली जायेगी, अकेली? कैसे वो रहेगी कैसे वो रहेगा,सोचकर श्याम बाबू के चेहरे पर उदासी छा जाती।

       इसी ऊहापोह में गुड़िया बैंगलोर चली ही गयी,अपने पापा को खूब ढ़ाढस बंधाकर,श्यामबाबू साथ जाना चाहते थे पर गुड़िया बोली पापा अपनी गुड़िया पर विश्वास रखो ,मैं बड़ी हो गयी हूँ, बेफिक्र रहो।एक लड़की और वहीं जॉइन कर रही है, दोनो साथ जा रहे हैं चिंता मत करना। डबडबाई आंखों से श्यामबाबू ने स्टेशन पर अपनी गुड़िया को विदा कर दिया।

     गुड़िया से लगभग रोज मोबाइल पर बातचीत होती रहती।गुड़िया वैसे भी दूसरे तीसरे महीने जयपुर चक्कर लगा जाती।इससे श्यामबाबू के दिल को तसल्ली रहती। इधर एक वर्ष से गुड़िया के फोन भी काफी कम आने लगे थे और अब उसका एक वर्ष से जयपुर भी आना नही हो रहा था।श्यामबाबू एक अनजाने भय से ग्रस्त रहने लगा था,उसका मन अब जयपुर लग ही नही रहा था,वो गुड़िया से मिलने जाना चाहता था, पर गुड़िया अपनी व्यस्तता बता उसे आने से रोक देती।गुड़िया ने दीवाली पर आने को बोला था,पर दीवाली तो कब की बीत गयी,वो आयी ही नही।फोन किया तो बताने लगी कि ऑफिस के कामकाज में फंसने के कारण न आ सकी,जल्द आऊंगी।

       श्यामबाबू ट्रैन में बैठे शून्य में निहारते बंगलोर से वापस जयपुर आ रहे थे।कभी कभी कंधे पर पड़े  गमछे रूपी तौलिए से आंसू भी पौंछ लेते।तभी एक सहयात्री जो श्यामबाबू की उम्र का ही था,बोला क्या बात है, भैय्या, कोई दुर्घटना हो गयी है क्या,बहुत उदास लग रहे हो?सहानुभूति के बोल सुन श्यामबाबू की रुलाई फूट पड़ी,सिसक सिसक कर उसने उस अपरिचित सहयात्री के हाथ ही पकड़ लिये। श्यामबाबू के शांत हो जाने पर उसने कहा,भैय्या दुःख को बोल देने से दूर तो नही होता,पर मन हल्का हो जाता है।अपना दुःख बता डालो।




       हिचकी ले बोले श्याम बाबू पिछले एक वर्ष से गुड़िया बिल्कुल ही बदल गयी थी।फोन भी यदा कदा आते,खुद जयपुर न आ रही थी,न मुझे आने दे रही थी।मुझसे रुका नही गया तो मैं उसे बिना बताये बंगलोर चला गया।जाने पर मुझे पता चला कि गुड़िया अपनी सहेली के साथ नही रहती,वो तो अपने बॉय फ्रेंड के साथ रह रही है, दोनो एक ही फ्लैट में रह रहे हैं।मैं तो भैय्या जैसे आसमान से गिर गया,आँखों के आगे अंधेरा छा गया।गुड़िया की सहेली सहारा दे मुझे अपने कमरे में ले गयी।उसीने गुड़िया को फोन लगा कर मुझसे गुड़िया की बात करायी।

        बिना झिझक गुड़िया बोली पापा आप ठहरे पुराने ख्यालात के,आप को बुरा लगता इसलिये आपको बताया नही।मैं और हर्ष दोनो एक साल से एक साथ रह रहे हैं।भौचक्का सा श्यामबाबू मुश्किल से बोल पाया,मेरी बच्ची एक बार कहा तो होता मैं तेरी पसंद से ही शादी करा देता।अरे पापा अभी कौन शादी के चक्कर में पड़ता,अभी तो कॅरियर बनाने के दिन है। शादी का क्या वो होती रहेगी। इससे अधिक सुनने की ताकत भैय्या मुझमे नही थी। मेरी परवरिश में जरूर कोई कमी थी,मेरे प्यार में जरूर कोई खोट था तभी तो गुड़िया ने अपने पापा  से मुँह मोड़ लिया।भैय्या मैं तो हूँ ही बदनसीब पहले मेरी सुमन चली गयी और अब जीते जी चली गयी गुड़िया। 

     श्याम बाबू एक बार फिर जोर से रो पड़े भैय्या जब सुमन की अर्थी सज रही थी ना ,मैं पापी अपनी रोती गुड़िया को गोद मे संभाले उसे चुप करा रहा था।निष्ठुर था मैं,कैसे होती गुड़िया मेरी?

        बालेश्वर गुप्ता, पुणे

स्वरचित, अप्रकाशित।

#औलाद 

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