कैसी शिकायत – रीटा मक्कड़

अभी सात भी नही बजे थे कि डोर बेल बजी।

सुनीता अभी किचन का काम निपटा के रूम में आई ही थी। ये समय उसका सबसे ज्यादा रिलैक्स होने का और खुद के साथ समय बिताने का टाइम होता है । क्योंकि पतिदेव और बेटा नो साढ़े नो तक घर आते हैं और खाना तो दस बजे ही खाते हैं। ये दो घण्टे वो कभी टीवी देखती रहती साथ साथ कुछ बुनाई करती।कभी बीच बीच मे फोन देख लेती और कभी कुछ लिखना होता तो लिख लेती।

कभी किसी दोस्त को या बहन या मम्मी को फोन करके खूब सारी बातें भी कर लेती। या फिर कभी मनपसंद संगीत सुन लेती।

इस समय कौन आया होगा सोचते हुए जा कर दरवाजा खोला तो सामने देखा तो पतिदेव मंद मंद मुस्कुराते हुए अंदर आ रहे थे।

“अरे आप आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गए?तबियत तो ठीक है ना आपकी?

“तुम घबराओ मत मैं बिल्कुल ठीक हूँ।वो तो मैं बस इसलिए जल्दी आ गया कि तुम रोज मुझ से शिकायत करती रहती हो कि मैं देर से आता हूँ।देर से खाना खाता हूं और देर से सोता हूं।इसलिए आज सोचा थोड़ी जल्दी घर जा कर तुम्हे सरप्राइज दे दूं और तुम्हारी शिकायत दूर कर दूं। लेकिन तुम पत्नियां भी न..देर से आओ तो शिकायत और जल्दी आओ तो शिकायत।”



“नही जी ऐसी बात नही मुझे तो बेहद ही खुशी हुई कि आपने मेरी शिकायत दूर करने का सोचा”चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान लाते हुए सुनीता ने जवाब दिया।

अंदर से उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उससे किसी ने कुछ छीन लिया है और पता नही क्यों मन उदास सा हो गया है।

पतिदेव ने आते ही सबसे पहले तो रिमोट पर कब्जा किया और फिर बाकी तो किसी समझदार इंसान ने कहा है कि पति घर पर हो तो पत्नी के लिए सास से कम नही होता और वो सास का पूरा रोल अदा करता है।

 और सुनीता किचन में काम करते करते सोच रही थी कि जिसने भी पतियों के लिए ये कहा कितना सच कहा।

उसके बाद सुनीता ने कभी भी पतिदेव को देर से घर आने के लिए शिकायत नही की।

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

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