जब पराए हो जाए अपने-Mukesh Kumar

पत्नी के मृत्यु के बाद रामलाल जी बिल्कुल अकेले हो गए थे, एक बेटा और बेटी थी, जिसकी पहले ही शादी हो चुकी थी, बेटा सॉफ्टवेयर इंजीनियर था जो हैदराबाद में अपनी पत्नी और बच्चो के साथ रहता था, बेटी की शादी  जिससे किया था वह लड़का एयरफोर्स में नौकरी करता था जो कि दिल्ली में रहता था। रामलाल जी पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर की नौकरी करते थे अभी उनके रिटायर होने में 6 महीने बाकी थे। रिटायर होने के बाद सोच रहे  थे कि बेटे और बहू के पास ही जाकर रहेंगे अकेले यहां गांव में रह कर क्या करूंगा।

 6 महीना कब बीत गया पता ही नहीं चला और आखिर वह दिन आ ही गया जब रामलाल जी पोस्ट ऑफिस से रिटायर होकर अपने घर आ गए थे, पोस्ट ऑफिस के कर्मचारियों ने रामलाल जी को  भावभीनी विदाई दी।

रामलाल जी को अगले दिन से ऐसा लग रहा था जैसे रामलाल जी को अपना ही घर काटने को दौड़ रहा है क्योंकि जब नौकरी करते थे तो पूरा दिन पोस्ट ऑफिस में रहते थे, दिन कब बीत जाता था, पता नहीं चलता था, शाम को घर आते थे, खुद ही खाना बनाते थे और फिर अगले दिन की तैयारी।  लेकिन अब रामलाल जी के पास कुछ काम तो था नहीं पूरा दिन कैसे बीते समझ नहीं आ रहा था।

रामलाल जी ने अपने बेटे निर्मल को फोन लगाया और फोन पर कहा, “बेटा तुम्हें तो पता ही है कल से मैं अब   पोस्ट ऑफिस नहीं जा रहा हूं। मैं सोच रहा हूं कि अब तुम्हारे साथ ही हैदराबाद रहूं। निर्मल ने कहा, “हां पापा मैं भी यही सोच रहा था मैंने आप आपकी बहू रीता को भी कह  रहा था कि पापा को फोन करके यहीं बुला लिया जाए, पापा, आखिर अकेले गांव में रहकर क्या करेंगे। पापा मैं आपकी तत्काल टिकट कल का करा देता हूं आप ट्रेन पकड़ कर कल ही हैदराबाद चले आओ।”



रामलाल जी हैदराबाद अपने बेटे के घर पहुंच चुके थे, शुरु के दो चार दिन तो उनका अपने पोते-पोतियो के साथ कैसे बिता उन्हें खुद ही पता नहीं चला था,  बेटा बहू भी खूब सेवा कर रहे थे। 1 दिन रामलाल जी के बेटे ने अपने पापा से कहा पापा आखिर कब तक हम लोग किराए के घर में रहेंगे। अगर अपना घर हो जाता तो कितना अच्छा होता।  रामलाल जी ने कहा तो बेटा मेरे रिटायरमेंट के जो पैसे मिले हैं, वह पैसे ले लो और यहां पर फ्लैट खरीद लो बाकी अगर कम पड़े तो ई एम आई करवा लो। निर्मल ने कहा ठीक है पापा।  10 दिन के अंदर ही निर्मल ने हैदराबाद में एक फ्लैट ले लिया। रामलाल जी भी सोच रहे थे कि आखिर ये पैसे मैंने अपने बेटे बहू के लिए ही तो कमाए हैं, आखिर मैं इसको रख कर क्या करूंगा बेटे का अपना घर हो गया तो कम से कम किराए देने की झंझट से तो मुक्ति मिली।

हैदराबाद मे रहते रामलाल जी को महीना बीत गया लेकिन अब बहू  ने यह जताना शुरू कर दिया था कि रामलाल जी उनकी बसी बसाई गृहस्ती में रोड़ा अटकाने लगे हैं.  बहू रीता को और उनके बेटे निर्मल को अब ऐसा लगने लगा था कि उनके पापा हर बात में रोक-टोक करते  हैं।

रामलाल जी 60 साल की उम्र में भी  स्वास्थ्य रूप से ठीक थे वे अभी भी 50 वर्ष  के ही लगते थे और उनका बेटा ऐसा लगता था उनसे थोड़ा ही छोटा हो वह अपने बेटे से अक्सर कहते थे, “बेटा सुबह-सुबह रोजाना पार्क में टहलने जाया करो और योगा भी करा करो । देर तक सोना अच्छी बात नहीं है।  

निर्मल को लगने लगा कि रामलाल जी उसकी जिंदगी में खलल डाल रहे हैं।  रामलाल जी सफाई पसंद आदमी थे। वे बहू को भी कहा करते थे कि बहू घर को साफ सुथरा रखा करो सही  तरीके से हर सामान को सही जगह पर रखा करो। क्योंकि रिता भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी वह भी नौकरी करती थी तो इतना समय नहीं होता था कि वह घर की साफ-सफाई सही तरीके से कर सके।  एक बाई सुबह आती थी तो वह भी सिर्फ घर में पोछा और बर्तन साफ कर चली जाती थी।

निर्मल जी के पोते-पोतियो घर की चीजें कम और बाहर की चीजें ज्यादा खाते थे, इस पर भी वह मना करते थे कि यह सब चीजें मत खाया करो।  पूरे परिवार को लगने लगा था कि उनकी आजादी रामलाल की वजह से छीन रही है हर बात में टोका टोकी।

धीरे-धीरे रामलाल जी को यहां पर भी अकेलापन महसूस होने लगा क्योंकि अब बेटे-बहू भी इनसे बात नहीं करते थे पोते-पोती भी अपने स्कूल से आने के बाद कंप्यूटर गेम और होमवर्क तथा  पढ़ाई में बिजी रहते थे। बेटा-बहू दोनों सुबह 9:00 बजे के निकले निकले रात के 8:00 बजे ही घर आते थे। उन्हें समझ नहीं आता था कि वह पूरा दिन क्या करें। उस पर भी बहू की बनाई हुई उबली सब्जी से रोटी खाना, सोच कर ही उनके मन में उबकाई आने लगती थी, कहां तो वह सोच कर आए थे कि बेटे बहु के पास जाएंगे तो उनको हाथ का बनाया हुआ गर्म और स्वादिष्ट खाना खाने को मिलेगा।  लेकिन बेटे और बहू तो महीने में ज्यादा दिन बाहर से ही खा कर आते थे और बच्चों को भी बाहर से ही पैक करा लेते थे लेकिन रामलाल जी को बाहर का खाना पसंद नहीं था तो जैसे-तैसे करके कुछ भी बहू बना देती थी।

कई बार रामलाल जी बहू से कहते थे बेटी सब्जी में थोड़ा तेल तो डाल दिया करो, उबली-उबली सब्जी लगती है तो बहू जवाब देती थी कि पापा जी आपको ज्यादा तेल नहीं खाना चाहिए।  तेल तो किसी को नहीं खाना चाहिए, तेल खाने से चर्बी बढ़ती है और मोटापा भी लेकिन उन सबको कौन समझाए कि वह जो रोज बाहर खाकर आते हैं तो क्या उसमें तेल नहीं होता।

अब रामलाल जी को अपने बेटे-बहू के पास बिलकुल ही मन नहीं लग रहा था।  दोपहर में पांचवी मंजिल के बालकनी में खड़े होकर यही सोचते थे इससे अच्छा तो मैं गांव में ही रहता कम से कम वहां पर मेरे उम्र के मेरे दोस्त तो थे, जिससे मैं बातें कर सकता था।

रामलाल जी के बालकनी के ठीक सामने वाले फ्लैट के बालकनी में भी एक 55 साल की बुजुर्ग महिला रोज दोपहर में बैठा करती थी।  रामलाल जी सोचते थे कि शायद इस औरत का भी मेरे वाला ही हाल है। एक दिन शाम को रामलाल जी जब पार्क में टहलने गए थे तो वह महिला पार्क में मिल गई।  रामलाल जी ने उनको नमस्ते किया और बोला आपने मुझे पहचाना, मैं आपके सामने वाले फ्लैट में रहता हूं। महिला ने भी नमस्ते करते हुए कहा, “मैं देखती हूं आपको कुछ दिनों से,  लेकिन आप पहले तो यहां नहीं रहते थे। आप रीता के पापा है या निर्मल के, रामलाल जी ने कहा मैं निर्मल के पापा हूं, मैं पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर की नौकरी करता था, इसी साल रिटायर हुआ हूं और निर्मल की मां का भी देहांत इसी साल हो गया तो मैं सोचा अकेले क्या करुंगा गांव में रहकर,  बेटे बहू के पास ही चलता हूं।



 निर्मल जी ने उस महिला का नाम पूछा महिला ने अपना नाम सुभद्रा बताया उसने बोली मैं तो यहां अकेले रहती हूं।  मेरे बेटे और बहू अमेरिका में रहते हैं। हां मैं भी कभी-कभी अमेरिका जाती हूं लेकिन मेरा वहां मन नहीं लगता है तो मैं यहीं पर रहती हूं।  निर्मल जी बोले आइये ना कुछ देर बैठते हैं।

सुभद्रा जी और निर्मल जी दोनों पार्क के बेंच पर बैठ कर अपनी आपबीती शेयर करने लगे। अब तो रोज दोनों का यह नियम हो गया। पार्क में दोनों साथ ही घूमते और फिर बैठ कर बात करते हैं।  दिन में भी निर्मल जी सुभद्रा जी के घर ही चल चले जाते थे। बातों बातों में निर्मल जी ने सुभद्रा जी को बता दिया था कि उनकी बहू सुबह ही खाना बना कर चली जाती है और सब्जी भी अच्छी नहीं बनाती है उसे कोई खाए भी ना।  लेकिन क्या करें मजबूरी है खाना पड़ता है।

सुभद्रा जी ने कहा आप टेंशन मत लीजिए दोपहर में मेरे यहां आ जाया कीजिए,  साथ में बैठ कर खा लिया करेंगे।

धीरे-धीरे सुभद्रा जी और निर्मल जी में काफी गहरी दोस्ती हो गई।  अब निर्मल जी को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनके बेटे-बहू उनसे बात करें या ना करें वह अपनी दुनिया में खुश थे।

दोस्तो आज भागती दुनिया मे थोड़ा टाइम हमे अपने बुज़र्गों के लिए भी निकालना पड़ेगा। क्योंकि याद रखिए आपको भी एक दिन बुजुर्ग होना है।

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