घमंड पेंशन का –  अनिता शर्मा

“क्या बात है शारदा बड़ी चमक रही हो? साफ कपड़े साफ चादर और मेरे आने पर इतनी जल्दी चाय नास्ता आ गया लगता है बहू खूब सेवा करती है।,,

” हाँ जीजी करती तो है पेंशन है तो सब सेवा कर रहे हैं वरना कोई पूंछे न।,,

बरामदे में पड़ोस की ताई के साथ बैठी शारदा जी की आवाज आंगन को बुहार रहीं उनकी बहू रागिनी के कानों में पड़ी तो उसकी आँख भर आई और मन भारी हो गया तो वो वहाँ की सफाई छोड़ अंदर आ गई क्योंकि  उसे लगा कि कहीं उसने आगे की बातें सुन लीं तो कहीं ऐसा न हो कि फिर उसका मन ही न करे अम्मा की सेवा करने का। पर लाख कोशिश करने पर भी वो अपनी सास के कहे शब्दों को भूल नहीं पा रही थी।

उसे उलझन हो रही थी ये सोच सोचकर कि अम्मा ऐसा क्या खर्चा करतीं हैं या उसने और उसके पति दीपक ने अम्मा से ऐसा क्या करवा लिया जिससे अम्मा को ऐसा लगा कि हम उनकी पेंशन की वजह से उनकी सेवा करते हैं।

पर वो अपने विचारों के किसी छोर पर पहुँचने की जगह उन में उलझती ही जा रही थी तो दीपक के आने पर उसने अम्मा की कहीं बात उससे साझा की और साथ में एक सवाल भी कि…

“हम तो अम्मा से एक इकन्नी भी खर्च नहीं करवाते घर का सारा खर्चा हम करते है यहाँ तक की उनकी पसन्द के नमकीन बिस्किट और दवाई भी हम लाकर देते हैं उन्हे। वो तो साल में एक बार बैंक से अपनी पेंसन लेने जातीं है

जब उनकी बेटी और शहर से बड़े भाई साहब अपने परिवार के साथ आते है तो उनके बच्चों को कुछ गिफ्ट देने के लिये क्योंकि वो हमारे बच्चों को उनके जन्मदिन पर पैसे देती हैं तो उन्हे भी बराबर से दें सकें तो  फिर उन्हे मेरी निस्वार्थ सेवा में स्वार्थ कैसे नजर आ गया? “

“माँ बूढ़ी हो गईं हैं और बुढ़ापे में बुद्धि बच्चों की तरह हो जाती हैं। वैसे भी जब बाबूजी सैलरी लाते थे तब भी वो उसपर अपना पूरा अधिकार समझ बाबूजी को अपने हाथ से खर्चे के पैसे देतीं थीं।

अब भी इस घर की मालकिन हैं तो बोल दिया होगा ताई के सामने अपनी धाँक जमाने के लिये वरना वो भी जानती तो हैं ही कि हम उनसे एक रुपया भी नहीं लेते। तुम बेकार खुदको परेशान मत करो उनकी सेवा करना और उनकी हर इक्षा पूरी करना हमारा फर्ज है तो हम उसे पूरी ईमानदारी से निभायेंगें।,,

हर बार की तरह दीपक ने रागिनी को समझा दिया और हर बार की तरह रागिनी फर्ज के आगे शान्त हो गई और बात आई गई हो गई। न तो रागिनी का स्वभाव बदला अपनी सास के लिये न ही शारदा जी का व्यवहार बदला अपनी बहू के लिये उनका वही हमेशा अपनी पेंशन की ठसक दिखाना और रागिनी का बिना कोई शिकायत काम करते जाना।

कभी- कभी अगर रागिनी को बुरा लगता तो वो अपने पति दीपक की बात सोचकर मन को समझा लेती जो वो अक्सर उससे कहते थे….

“रागिनी तुम ये सोचो ही मत कि माँ को पेंशन मिलती है, तुम तो बस इतना मानो की वो हमारी माँ हैं और उनकी देखभाल करना और उनकी इक्षापूर्ति करना हमारा फर्ज है आज मैं जो भी हूँ उन्ही की वजह से तो हूं और मैं और तुम भी तो उन्ही के हैं अगर वो सभी को अपने पेंशन का पावर दिखाती हैं तो दिखाने दो हम खुद में सही हैं हमारे लिये बस वही बहुत है।”

पर कभी-कभी किसी की गलत बात पर कुछ न बोलना बहुत घातक होता है सामने वाला खुदको सही समझ हद पार कर जाता है वही शारदा जी ने किया । एक दिन खाने में थोड़ी देर होने से रागिनी पर बड़बड़ाना शुरू किया तो रागिनी ने अपना पक्ष रखते हुये सिर्फ इतना कहा……

“अम्मा रोज आपका सारा काम समय से करते हैं पर आज मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिये देर हो गई। मैं जब से आई हूँ तबसे आपकी बराबर सेवा कर रही हूँ पर अब मुझसे से भी ज्यादा काम नहीं होता आपकी बहू हूँ तो क्या आखिर मेरी भी उम्र बढ़ रही है और उसके साथ मेरी परेशानियाँ भी बढ़ रहीं हैं आप कब तक मुझे नई नवेली दुल्हन समझ अपनी इक्षा अनुसार चलाती रहेंगी?आप कभी मेरी परेशानी भी तो समझिये।,,

कभी कुछ न बोलने वाली बहू के मुँह से उसे समझने की बात सुनकर शारदा जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया और उन्होंने तुरंत फरमान सुनाया…….

“अपनी सेवा अपने पास रखो बहू मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं है, पैसे दूँगी तो कोई भी सेवा करने को तैयार हो जायेगा। एक तुम्हीं अकेली नहीं हो मेरा एक बेटा और बेटी भी है वो तो मैं अपने बनाये घर में ही रहना चाहती थी वरना मेरा बड़ा बेटा तो हमेशा मुझे अपने साथ चलने को बोलता है।”

“जी अम्मा जी तो आप कुछ दिन रह आइये भैया के यहाँ क्योंकि रागिनी की आजकल तबियत ठीक नहीं है वो भले ही किसी को अपनी परेशानी नहीं बताती पर मुझे तो समझ आता है। उसे कुछ दिनों के आराम की जरूरत है आप चली जायेंगी तो मैं उसके लिये एक सहायिका भी लगा दूंगा क्योंकि आपको पसन्द नहीं है तो अभी सारा काम रागिनी को ही करना पड़ता है।,,

हमेशा माँ की कहीं गलत बातों को अनसुना करने वाले दीपक ने जब शारदा जी से जाने को बोला तो शारदा जी ने तुरंत अपने बेटे को फोन लगा कर उन्हे ले जाने की बात कही पर “थोड़ी देर बाद बताता हूँ

अम्मा” बोल कर बड़े बेटे का फोन ही नहीं आया और जब शारदा जी ने फोन लगाया तो उठाया ही नहीं क्योंकि अम्मा की सेवा करना हमेशा शहर में अकेली रहीं बड़ी बहू के बस की बात नहीं थी।थक हार कर उन्होंने अपनी बेटी को फोन लगाया.. ……

” बिटिया हम तुम्हारे पास रहने को आना चाहते हैं तो बताओ कब आ रहीं हो हमें लेने।”

“अम्मा आप हमारे यहाँ? पर आप तो कहती थीं कि बेटी के यहाँ पानी भी नहीं पिया जाता।”

“हाँ बिटिया वो तो हम अभी भी कहेंगें क्योंकि जब  हम तुम्हारा  पानी खाना खायेंगें तो उसका पूरा पैसा देंगें तुम मेरे खर्चें की चिंता मत करना।”

“पर अम्मा मेरी सास बहुत पुराने ख्यालों की हैं आप भले ही यहाँ अपने पैसे खर्च करके रहेंगी पर उन्हे अच्छा नहीं लगेगा माफ करना अम्मा पर मैं आपको अपने पास नहीं रख सकती आप ही सोचो रागिनी भाभी की माँ को भी तो पेंशन मिलती है

अगर वो वहाँ आपके पास आकर रहने लगें तो क्या आपको अच्छा लगेगा?नहीं न उल्टा आप रागिनी भाभी का रहना मुश्किल कर देंगी वैसे ही मेरी सासो माँ आपके यहाँ आने से मेरा जीना मुश्किल कर देंगी आप गलत मत समझना अम्मा हमें पर मैं मजबूर हूँ।”

शारदा जी बहुत देर तक अपना फोन देखतीं रहीं बड़ा घमंड था उन्हे कि एक फोन करूँगी सब दौड़े आयेंगें आखिर उनके पास पैसा  वो किसी के ऊपर बोझ थोड़े ही थीं पर कितनी गलत थी वो आज पता चला कि पैसा लेकर भी कोई बूढ़ी माँ को अपने पास नहीं रखना चाहता

जबकि दीपक और रागिनी को तो कभी मैने एक रुपया तक नहीं दिया फिर भी दोनों ने उसकी कितनी सेवा की और उसने उनकी कद्र ही नहीं की।पर आज शारदा जी का पेंशन के पैसों का घमंड टूट गया था तो पश्चाताप के आंसू उनके गालों पर लुढ़क आये ।

अम्मा के आँसू देखकर रागिनी दौड़ी दौड़ी आई…..

” क्या हो गया अम्मा आप रो क्यों रहीं हैं आज फिर मूझसे कोई गलती हो गई क्या माफ कर दो चार बातें सुना लो अम्मा पर आप रोइये मत”

बहू का ये निष्छल निश्वार्थ प्रेम देखकर शारदा जी रागिनी को कसकर गले लगाकर बोलीं….

“माफ कर दे बहू मैंने हमेशा तुझपर अपना हुक्म चलाया अपनी बात मनवाई क्योंकि मुझे लगता था कि मेरे पास पैसा है मेरा घर है इसलिये तुम मेरी सेवा करती हो पर आज पता चला कि पैसों की वजह से कोई सेवा नहीं करता

अगर कोई किसी की सेवा करता है तो उसके संस्कार और मन बहुत अच्छा होता हैं। जो तेरा है तुम बहुत अच्छी हो बहू।अबसे मैं कुछ नहीं कहूंगी तुम्हें।”

अम्मा के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर रागिनी की भी आँखें भींग गईं फिर अम्मा के आँसू पोंछते हुये बोलीं……

“ऐसे कैसे  कुछ नहीं बोलेंगीं अम्मा आप इस घर की मुखिया थीं और मुखिया रहेंगीं आप जो कहेंगी वही होगा”

रागिनी की बात सुनकर शारदा जी ने एक बार फिर से  उसे गले लगा लिया । आज उनके आँखों से पैसे की पट्टी उतर गई थी तो उन्हें बहू  बहुत प्यारी लग रही थी। और रागिनी की भी सारी उलझन सुलझ गई थी।

धन्यवाद।।

 अनिता शर्मा।

बुंदेलखंड झांसी।

#घमंड

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