घमंड चकनाचूर हुआ – सुभद्रा प्रसाद

श्यामा आज बहुत खुश थी |आज उसके पोते हर्ष का  जन्मदिन था  |वह अपने बेटे सूरज, बहू रचना, पांच वर्षिय पोते हर्ष और दो साल की पोती हर्षिता के साथ मंदिर आई थी |पोते और पोती के जन्मदिन पर वह  सपरिवार सुबह मंदिर आती थी |

पूजा करती और उनके हाथों से  मंदिर के बाहर बैठे गरीब लोगों को फल, मिठाई और खाने के पैकेट दिलवाती | शाम को पार्टी होता | इस बार भी वह पूजा करके मंदिर से बाहर आई और हर्ष के हाथों, मंदिर के बाहर बैठे लोगो में फल, मिठाई और खाने के पैकेट वितरण करवाने लगी |इस काम में उसके बेटे और बहू भी साथ दे रहे थे|  सबसे अंत में एक व्यक्ति फटी चादर ओढ़े बैठा था | वह कुछ लेने से पहले ही बोल पड़ा -“श्यामा”

         श्यामा उसके मुंह से अपना नाम सुनकर दंग रह गई और उसके पास आकार गौर से उसे देखने लगी |

       ” मैं आलोक हूँ |” उसने कहा |

        “आलोक,  यहाँ, इस हाल में, कैसे? ” श्यामा आश्चर्यचकित होकर बोली |

        “सब समय का फेर है |अपने कर्मों की सजा पा रहा हूँ |” आलोक रूआंसा होकर बोला |  श्यामा के आगे उसका अतीत चलचित्र की भांति घूमने लगा |

         श्यामा का जन्म एक साधारण घर में हुआ था |दादा एक  किसान थे और पिता एक फैक्टरी में काम करते थे|घर में सामान्य रूप से किसी चीज की कमी न थी |एक भाई और एक बहन थी |सब की लाडली थी |सांवली  थी, सो दादी ने बड़े प्यार से नाम रखा था, श्यामा |कहती थी, हमारे मुरली मनोहर श्याम भी तो सांवले ही हैं  |

बड़े प्यार और संस्कार से लालन पालन किया गया था उसका |पढ़ने में तेज होने के साथ साथ अन्य अनेक गुण भरे थे उसमें | उसने संगीत की शिक्षा  ली थी और उसकी आवाज भी मधुर थी | पूरे कालेज में वह अपने व्यवहार और मधुर आवाज के लिए जानी जातै थी | कालेज के एनुअल फंक्शन में आलोक के पिता मुख्य अतिथि बनकर आये थे और वहीं उन्होंने श्यामा को देखा, उसका गाना सुना |  उन्हें वह बहुत अच्छी लगी |

उन्होंने उसके बारे में सारी बातें पता की और  अपने बेटे आलोक की  शादी  उससे करने का मन बना लिया | आलोक सुंदर और स्मार्ट था| उसके पिता एक सफल बिजनेसमैन थे |वह अपने माता- पिता की इकलौती संतान था |माँ नहीं थी, सिर्फ पिता थे | विदेश से मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी कर अपने पिता के साथ बिजनेस में लग गया था |

वह पिता के कहने पर श्यामा से शादी करने को तैयार हो गया | आलोक के पिता को कोई दहेज नहीं चाहिए था,उन्हें सिर्फ एक अच्छी लड़की चाहिए थी, जो उनके घर को अच्छी तरह संभाले|श्यामा आगे पढना चाहती थी, पर इतना अच्छा रिश्ता घर बैठे मिलने पर सबने उसे  समझाया | इस तरह धूमधाम से श्यामा की शादी आलोक से हो गई |

       आलोक जैसा पति पाकर श्यामा बहुत खुश थी |वह अपने ससुराल में सभी को खुश रखती और स्वयं भी खुश रहती , पर धीरे- धीरे उसे समझ आने लगा था कि आलोक उससे खुश नहीं है  | उसने सिर्फ अपने पिता की बात मानकर उससे शादी की है | वह अक्सर घर से बाहर रहता और देर रात लौटता  |

श्यामा के टोकने पर कई तरह के बहाने बना देता |श्यामा इसे सच मानती रही | सूरज का जन्म  हुआ तो श्यामा ने सोचा, अब उसमें सुधार आयेगा और वह घर पर ज्यादा समय देगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ |वह शराब भी पीने लगा और रात में देर से घर लौटने लगा | श्यामा के समझाने का आलोक पर कोई असर न होता |

श्यामा की  वह कोई बात नहीं सुनता |आलोक को अपने धन-दौलत, सुंदरता,शिक्षा का बहुत घमंड था |वह अपने आगे श्यामा को कुछ नहीं समझता था और हरदम उसे अपमानित करते रहता था |आलोक के पिता बिजनेस में व्यस्त रहने के कारण इनसब बातों पर  ज्यादा ध्यान नही दे पाते थे |श्यामा उनकी बहुत इज्जत करती थी और उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी |वह यथासंभव सब संभालने का प्रयास करती |

         सूरज के चार साल होते-होते  आलोक के पिता को हार्टअटैक आया और वे चल बसे| आलोक  सारी संपत्ति का मालिक हो गया और उसका घमंड और बढ़ गया |वह श्यामा को काली, गंवार, देहाती और भी बहुत कुछ कहता | उसका मेलजोल बिजनेस में साथ काम करने वाली  सोनिया से ज्यादा हो गया था |

सोनिया एक सुंदर, तेज-तर्रार, चालाक लडकी थी | आलोक उसके जाल में फंसता गया | सोनिया के साथ उसका मेलजोल बढ़ता गया और अब तो वह उसे घर भी लाने लगा |श्यामा के विरोध करने पर वह गाली गलौज के साथ -साथ मारपीट भी करने लगता |वह अब श्यामा से तलाक लेकर सोनिया से शादी करना चाहता था |उसका घमंड और श्यामा पर उसका अत्याचार बढता गया | सबने उसे बहुत समझाया,पर उसने किसी की न सुनी |

हारकर श्यामा ने उससे तलाक़ ले लिया और अपने मायके लौट आई |मायके में सबकी सहायता से उसने आगे  पढाई की,  एक कंपनी में नौकरी किया, सूरज का अच्छी तरह लालन-पालन किया, शादी की | सूरज भी एक समझदार और योग्य संतान बना |पढ़ लिखकर इंजीनियर बना, एक अच्छी कंपनी में नौकरी पाई और सुख सुविधा के सारे साधन जुटाए|वह अपनी माँ का बहुत सम्मान करता था और पूरा ध्यान रखता था |श्यामा खुश थी और बीती बातों को बहुत हद तक भूल चुकी थी |उसने आलोक से न कुछ लिया न कभी संपर्क किया | किसी ने कुछ बता दिया तो बता दिया, पर उसने कभी आलोक के बारे में जानना भी नहीं चाहा |

         “मुझे माफ कर दो श्यामा |मैं ने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया |उसी की सजा भुगत रहा हूँ |” आलोक की आवाज से श्यामा वर्तमान में लौट आई |

          “पर तुम्हारी यह हालत कैसे हुई? तुम्हारा बिजनेस, परिवार सब कहाँ है?”श्यामा के मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे |

        ” सब सोनिया ने हडप लिए |मैं उसके रूप जाल, बातों में फंसता गया, उससे शादी की और सबकुछ उसके नाम करता गया  | उसकी बातों में आकर कभी तुम्हारी और सूरज की खबर न ली | सोनिया और उसके बेटे ने मेरा सबकुछ हडप लिया और  विरोध करने पर मुझे घर से निकाल दिया |”आलोक बोला |

         “और वह तुम्हारा घमंड, वह कहाँ गया? ” श्यामा ने पूछा |

        “उसी घमंड का तो यह परिणाम है |मैंने अपने धन, दौलत, रूप,  शिक्षा के घमंड में कभी तुम्हें अपने स्तर का नहीं समझा | सदैव तुम्हारा अपमान किया |तुम्हारे गुण, संस्कार, व्यवहार को नहीं समझ पाया | किसी की बात नहीं मानी |सदा अपने घमंड में रहा | आज मेरा सारा घमंड चकनाचूर हो गया है | ” आलोक रोने लगा -“मुझे माफ कर दो और अपने घर में, परिवार में जगह दे दो |”

          “अब इन बातों का कोई महत्व नहीं |

 मेरे जीवन में अब तुम्हारा कोई स्थान नहीं है, में तुम्हें अपने घर, परिवार में हरगिज़  जगह नहीं दूंगी |” श्यामा ने गंभीर स्वर में कहा-” हांलाकि तुमने अपने पति, पिता होने के कर्तव्यों का पालन नहीं किया,पर इंसानियत और सूरज के पिता होने के नाते  मैं तुम्हें सड़क पर भी नहीं छोड़ सकती हूँ |”

         श्यामा कुछ रूककर बोली -“सूरज बेटा, तुम इन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ दो, जहाँ इनके शेष जीवन की जरूरतें पूरी हो सके | हम घर जा रहे हैं |”

           “मुझे हमारे बच्चों के साथ रहने दो श्यामा |मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूँ |” आलोक बच्चों की तरफ देखकर गिडगिडाने लगा |

         “हरगिज़ नहीं, ये  सिर्फ मेरे बच्चे हैं, मेरा परिवार है, तुम्हारे नहीं |तुम्हें घर में रखने का मतलब होगा,कई लोगों के घमंड को शह देना, उन्हें ऐसा करने को प्रोत्साहित करना |” कहते हुए श्यामा तेजी से आगे बढ़ गई |

         “सूरज, मेरे बेटे, तुम तो मेरी बात सुनो|” आलोक ने सूरज की ओर हाथ बढाया  |

       “मैं सिर्फ अपनी माँ का बेटा हूँ और सिर्फ अपनी माँ की बात हीं मानूंगा |” सूरज  अपनी माँ का हाथ पकड़ कर बोला | 

         आलोक आगे कुछ बोल न पाया |

घमंड   

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

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