घमंड दौलत का – पुष्पा जोशी

विनिता की बेटी का विवाह सआनन्द सम्पन्न हो गया। बिटिया की बिदाई का अवसर था, विनिता का मन भारी हो रहा था,शीतल उनकी इकलौती बेटी थी। वह बिदाई की रस्मों की तैयारी कर रही थी, तभी उसके फोन की घंटी बजी, बड़ी भाभी सुजाता का फोन था।

विनिता ने फोन उठाया, आवाज आई – ‘यह क्या विनिता कल फेसबुक पर विवाह के सारे फोटो देखे, तुमने हमारी नाक कटवा दी, अपनी नहीं तो कम से कम अपने भैया की इज्जत का तो खयाल करती। मैंने कितनी मेंहगी साड़ी भेजी थी, तुमने उसे छोड़ कर उस चंचल की लाई फटीचर साड़ी पहन कर विवाह की सारी रस्में की।

यह तुमने अच्छा नहीं किया।’  विनिता बेटी की बिदाई में रंग में भंग डालना नहीं चाहती थी, उसने सिर्फ इतना कहा- ‘भाभी अभी शीतल की बिदाई का मुहुर्त है, मैं आपसे बाद में बात करती हूँ।’ उसने फोन रख दिया। 

       विनिता एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी। उसके दो भाई थे विकास और विवेक दोनों कुशाग्र बुद्धि के थे। बड़े भाई का एकमात्र लक्ष्य था, कि अच्छी पढ़ाई करके अच्छी नौकरी हासिल करना।

वह बस उसमें ही लगा रहा, परिवार के प्रति अपनी  जिम्मेदारी कभी समझी नहीं। विवेक  छोटा था मगर उसके लिए उसका परिवार उसके भविष्य से ज्यादा महत्वपूर्ण था। माता पिता की सेवा, अपनी बहिन की जरूरतों को पूरा करना उसकी पहली प्राथमिकता थी।

रेलवे में स्टेशन मास्टर की पोस्ट पर उसका सिलेक्शन हुआ। ट्रैनिंग के लिए उदयपुर जाना था, मगर उस समय उसके पिताजी की तबियत बहुत खराब हो गई और उसने उनकी सेवा करना ज्यादा जरूरी समझा।

ऐसे ही जब बैंक में नौकरी लगी,तब माँ को पेरालिस़िस का अटैक आ गया,और वह माँ को छोड़कर नौकरी ज्वाइन नहीं कर पाया। माता पिता ने बहुत समझाया मगर वह नहीं माना। ऐसे ही  कई अवसर हाथ से निकल गए।

इतना होनहार, परिवार से बेहद प्यार करने वाला विवेक सहकारी बैंक में एक क्लर्क की नौकरी में भी संतुष्ट था। विकास  आई ए एस  ऑफीसर बन गया था, मगर अपने परिवार के लिए अपनी जिम्मेदारी उसने कभी समझी ही नहीं। समय के साथ दोनों बेटों के विवाह हो गए।विकास की पत्नी  भी बिल्कुल अव्यवहारिक थी, उसे अपने पति और बच्चों के सिवा किसी से कोई मतलब नहीं था।

जबकि विवेक की पत्नी राधा परिवार के साथ मिलजुलकर रहती थी। विनिता की शादी हो गई थी और उसकी एक ही लड़की थी शीतल, जिसका अभी विवाह सम्पन्न हुआ। माता पिता का देहांत हो गया था। ससुराल में भी उसके सास ससुर नहीं थे,विनय अपने माता पिता की एकलोती संतान थी।

विनिता चाहती थी कि उसकी भाभियाँ विवाह में जल्दी आ जाए ताकि विवाह के रीति रिवाज उसे‌ बताए और मिलजुलकर विवाह अच्छे‌ से सम्पन्न हो जाए। बड़ी भाभी सुजाता    शादी में नहीं आई, और एक रिश्तेदार के हाथ विनिता और विनय के कपड़े और शीतल के लिए कान के बूंदे भिजवा दिए।

छोटी भाभी राधा की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, मगर वह विवाह  में आठ दिन पूर्व आई और विवाह की पूरी तैयारी में उसके साथ रही, उसे मॉं की कमी महसूस नहीं होने दी। विवाह की सारी रस्में, गणेश पूजन, माता पूजन, हल्दी, मेंहदी, गोतिड़ा लेकर आना।

मंडप, गृह शांति, लगन, आरती सारी रस्में  दोनों नन्दन-भौजाई ने मिलकर की। गृहशांति के बाद मायके की साड़ी उड़ाने का रिवाज होता है। सुजाता ने बहुत कीमती साड़ी पहुँचाई थी, उसे देखकर राधा का मन उदास हो गया।

वह सोच रही थी कि मेरी लाई साड़ी तो बहुत हल्की है, बाई साहब को पसन्द आएगी या नहीं। मगर विनिता ने सुजाता भाभी की पहुंचाई कीमती साड़ी को छोड़कर राधा भाभी की प्रेम से लाई साड़ी का मान रखा। उसे पहन कर बड़ो का आशीर्वाद लिया और आगे की रस्में सम्पन्न की। और उन्हीं फोटो को फेसबुक पर देखकर सुजाता भाभी ने अपने पैसो का घमंड जताते हुए विनिता को फोन किया था। 

शीतल बिदा हो गई। घर में उदासी छाई हुई थी, ऐसे में राधा दो दिन विनिता के पास रूकी, और विवाह के बाद के सारे फैले हुए काम को निपटा कर गई। उसके जाते समय दोनों नन्दन -भौजाई गले मिलकर रोई। 

सब काम से निवृत्त होने के बाद विनिता ने अपनी बड़ी भाभी को एक खत लिखा, 

भाभीजी, 

सादर प्रणाम, 

‘आपका  भेजा उपहार  बेशकीमती है, मैंने उसे शोकेस में सजाकर रख दिया है, भाभी आप बड़ी हैं, मैंने आपसे कभी कोई शिकायत नहीं की और न कभी कुछ मांगा। बस पहली बार आपका हाथ अपने सिर पर चाहा था, बेटी का विवाह था,

घबरा रही थी, माँ नहीं,सास नहीं, घर में कोई बड़ा नहीं जिससे कुछ मार्गदर्शन लूं, उम्मीद थी कि आप और भैया जरूर आऐंगे, पर आप नहीं आए ।

भाभी मेंहगी साड़ी और शीष पर रखे विश्वास भरे हाथ में बहुत फर्क होता है। राधा भाभी अगर शादी में न आती तो मैं बिल्कुल अकेली पड़ जाती, उन्होंने पग-पग पर मेरा साथ दिया, यही कारण है कि मैने उनकी दी हुई साड़ी पहनी। भाभी रिश्ते पैसो से खरीदे नहीं जाते। उन्हें प्यार और विश्वास से निभाना पढ़ता है। आषा है आप मेरी बात समझ  गई होंगी। भैया को प्रणाम’

विनिता

पत्र पढ़कर सुजाता को एक झटका लगा ,मगर पैसो का घमंड अभी भी सर पर सवार था। ६ महीने बाद बेटे रोहित की शादी थी, सोचा शादी में विनिता आएगी तो उसके ऐश्वर्य को देखकर दंग रह जाएगी।

किस्मत से उसी दिन राधा के बेटे अमित के लगन भी तय हो गए। विनय और विनिता ने सुजाता के बेटे‌ के कपड़े और उपहार एक रिश्तेदार के हाथ भिजवा दिए और स्वयं छोटे भाई के बेटे की शादी में गए। दोनों शादी सम्पन्न हो गई।

सारे रिश्तेदारों की जिव्हा पर  यही बात थी कि अमित की शादी में बहुत आनन्द आया। रोहित की शादी में इतना खर्चा किया मगर बिना परिवार के शादी में क्या मजा। सबकी बातें सुन-सुन कर सुजाता का घमंड चूर-चूर हो गया। उसे अपने व्यवहार पर पछतावा हो रहा था। पछताने के सिवा वह कर भी क्या सकती थी? 

#घमंड

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक ,अप्रकाशित

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