गलत राह – माता प्रसाद दुबे – Hindi Moral Stories

शाम के चार बज रहे थे, रामप्रताप जी,जो एक शिक्षक थे, स्कूल में बच्चों को पढ़ाकर छुट्टी होने पर विद्यालय से घर जा रहें थे,तभी रास्ते में कुछ लोगों की चिल्लाने की आवाज सुनकर वह  रूक गए,उन्हें बड़ी हैरानी हुई जब उन्होंने देखा कि उनका भतीजा सुशील कस्बे में रहने वाले एक आटो ड्राईवर को पीट रहा है, उसके साथ उनकी भतीजी सुनीता अपने बड़े भाई को आटो वाले को पीटने के लिए प्रेरित कर रही थी।

“रूक जाओ सुशील, क्या बात हैं, क्यों मार रहे हों इसे?”राम प्रताप सुशील को डांटते हुए बोले।”चाचा तुम इसे नहीं जानते,यह सुनीता को कालेज छोड़ने के लिए मना कर रहा था?”सुशील अपने चाचा रामप्रताप को सफ़ाई देते हुए बोला।”बाबु जी मैं गाड़ी खड़ी करके खाना खाने जा रहा था, इसलिए मैंने जानें से मना किया”वह आटो ड्राईवर रामप्रताप के आगे हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोला।”तुम मेरी बहन को छोड़ने के बाद खाना खा सकते थे?”सुशील आटो ड्राईवर को धक्का देते हुए बोला।”उसने छोड़ने से मना कर दिया तो तुम उसे मारोगे?”रामप्रताप सुशील को घूरते हुए बोलें।”चाचा तुम इसका पक्ष क्यों ले रहे हों?”सुशील हैरान होते हुए बोला। सुनीता चुपचाप खड़ी मुंह सिकोड़ रही थी।”तुम इसे मारने को कोई अधिकार नहीं है,यह गलत हैं?”रामप्रताप सुशील की ओर देखते हुए चिन्तित होकर बोलें। सुशील और सुनीता रामप्रताप जी की ओर देखकर धीरे-धीरे कुछ  कहते हुए तेज़ी से जाने लगें,वह अपने चाचा रामप्रताप के व्यवहार से सहमत नहीं थे, उनके मन में चाचा रामप्रताप के प्रति नफ़रत ने जन्म लेना प्रारंभ कर दिया था।

रामप्रताप के बड़े भाई भानू प्रताप की दो संतान थी, बड़ा बेटा सुशील एवं एक बेटी सुनीता थी, रामप्रताप की सिर्फ एक संतान उनका बेटा प्रकाश था,जो सुशील और सुनीता से उम्र में छोटा था, दोनों भाईयों का घर एक ही था, जिसके एक हिस्से में भानू प्रताप और दूसरे हिस्से में रामप्रताप अपने परिवार के साथ रहते थे,भानू प्रताप भूत पूर्व प्रधान थे, प्रधान रहते हुए उन्होंने काफी सम्पत्ति अर्जित की थी, कस्बे में कयी प्लाट और मेन सड़क पर उनकी कयी दुकानें थीं, जिसमें एक दुकान पर उन्होंने अपना आफिस बनाया था,बाकी दुकानों से उन्हें मोटी रकम किराए के रूप में मिलती थी, रामप्रताप एक शिक्षक और उच्च विचारों वाले आदर्शवादी व्यक्ति थे।




सुशील और सुनीता ने घर आकर भानू प्रताप से चाचा रामप्रताप की शिकायत बढ़ा-चढ़ा कर किया।”पापा! चाचा!हम लोगों से जलते हैं, उन्हें हम लोगों की तरक्की हजम नहीं हो रही है”सुशील भानू प्रताप से अपने चाचा की शिकायत करतें हुए बोला।”आखिर क्या कह दिया तुमसे रामप्रताप ने,तुम यह मत भूलो कि वह तुम्हारा चाचा,और मेरा छोटा भाई है?”भानू प्रताप सुशील को समझाते हुए बोले।”पापा!अगर ऐसा ही रहेगा, तो तुम चेयरमैन का चुनाव जीतने का ख्वाब मत देखो?”सुशील भानू प्रताप की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला।”वह कैसे?”भानू प्रताप हैरान होते हुए बोलें।”पापा!जब कोई हमसे डरेगा ही नहीं,कोई रूतबा ही नहीं होगा, तो कोई पूछेगा भी नहीं?”सुशील भानू प्रताप को समझाते हुए बोला।”कौन है?इस कस्बे में जो हमारी बात को अनसुना कर दें”भानू प्रताप अभिमान जताते हुए गर्व से बोले।”आपके भाई ही हैं,जो आपको कुछ नहीं समझते, मैं इतनी मेहनत करके अपने दोस्तों के साथ आपका माहौल बनाता हूं,और चाचा हर जगह आकर गांधी गिरि करने लगते हैं”सुशील झल्लाते हुए बोला।”भैया! ठीक कह रहे हैं पापा!आप चाचा जी से कह दीजिए कि वह हमारी हर बात में टांग न अड़ाया करें”सुनीता सुशील का पक्ष लेते हुए भानू प्रताप से बोली। दोनों भाई बहन अभिमान के दंश में वशीभूत होकर भानू प्रताप के दिल में उनके सगे छोटे भाई से दूरी बनाने का पुल तैयार कर रहे थे,भानू प्रताप सुशील और सुनीता की बातें सुनकर चुपचाप बैठकर कुछ सोचने पर बाध्य हो गए थे।




सुबह के आठ बज रहे थे, रामप्रताप अपने बड़े भाई भानू प्रताप से मिलने अपने से सटे हुए भानू प्रताप के घर में प्रवेश किया, सामने बड़े भाई भानू प्रताप को चेयर पर बैठा हुआ देखकर रामप्रताप ने जाकर भानू प्रताप के चरण स्पर्श किए।”दादा कैसे हैं आप?”रामप्रताप दूसरी चेयर पर बैठते हुए बोले।”ठीक हूं,तुम अपनी बताओ”भानू प्रताप रामप्रताप को देखते हुए बोले।”दादा! मैं सुशील के बारे में बात करने आया हूं,उसकी राह ग़लत हो रही है, सड़कों पर मारपीट करना, दोस्तों के साथ शराब पीकर उधम मचाना,दादा!आप उसे समझाते क्यूं नहीं?”रामप्रताप गहरी सास लेते हुए बोले।”आखिर रामप्रताप तुम क्या चाहते हो? सुशील हमारा बेटा हैं,अगर उसका रूतबा नहीं होगा कस्बे में तो हमारी क्या औकात रहेगी,यह सोचा है तुमने?”भानू प्रताप अभिमान दर्शाते हुए बोले।”दादा! मारपीट करने दूसरे कमजोर लोगों को डराने से रूतबा नहीं बनता, बल्कि बदनामी होती हैं?”रामप्रताप भानू प्रताप को समझाते हुए बोले।”रामप्रताप! अब तुम हमें समझाओगे,यह तुम स्कूल में बच्चों को और प्रकाश को समझाना, सुशील शेर का बच्चा हैं, गीदड़! नहीं”भानू प्रताप गुस्साते हुए बोले। रामप्रताप को अपने बड़े भाई से ऐसी उम्मीद नहीं थी, वह हैरानी से भानू प्रताप को देख रहे थे, घमंड अहंकार के आगे उन्हें सच दिखाई ही नहीं दे रहा था।”चलिए आप लोग चाय पी लीजिए”रामप्रताप की भाभी कौशल्या चाय नाश्ता मेज पर रखते हुए बोली।”नहीं भाभी! मैं अभी चाय पीकर ही आया हूं, अच्छा मैं अब चलता हूं,मुझे स्कूल जाना है,देर हो रही हैं”रामप्रताप दुखी मन से चुपचाप बाहर निकल गया। उसे अपने बड़े भाई भानू प्रताप से इस तरह की उम्मीद नहीं थी। धीरे-धीरे रामप्रताप और भानू प्रताप के बीच में दूरियां बढ़ने लगी,बोल चाल भी बंद हो गई थी।




तीन साल का समय बीत चुका था। सुशील का पूरे इलाके में वर्चस्व स्थापित हो चुका था। नेता,माफिया,पुलिस सभी जगह उसकी पकड़ मजबूत हो चुकी थी। करोड़ों रुपए के ठेके लेना, और उसे हथियाने के लिए मारपीट,यहा तक कि हत्या करवाने में भी वह गुरेज नहीं करता था। वह पूरी तरह अपराध की दुनिया में क़दम बढ़ा चुका था। रामप्रताप भानू प्रताप का परिवार पूरी तरह से अलग हो चुका था। सुशील अपनी दबंगई और पैसे के दम पर भानू प्रताप को चेयरमैन बनवाने में कामयाब हो गया था। उसे अपने चाचा रामप्रताप फूटी आंख नहीं सुहाते थे, उसे जब मौका मिलता वह कोई न कोई चोट रामप्रताप को देता रहता था। रामप्रताप अपने भाई भानू प्रताप भतीजे भतीजी से पूरी तरह अलग हो चुके थे,वह अपने इकलौते बेटे प्रकाश को सुशील की परछाई से भी दूर रखते थे। राजनीति से लेकर कस्बे के ग़लत लोगों की सुशील से दोस्ती और दुश्मनी अपनी चरम सीमा पार कर चुकी थी।

सुनीता की शादी तय हो चुकी थी।भानू प्रताप के घर पर लोगों का जमावाड़ा लगा रहता था।सात आठ गाडियां व असलहे धारी लोग हमेशा उसके घर पर मौजूद रहते थे,भानू प्रताप पूरी तरह से अहंकार अभिमान के वशीभूत होकर जीवन के आदर्शों को भूल चुके थे।उनका रहन-सहन खान-पान सब कुछ बदल चुका था। उनके और उनका बेटे सुशील की मर्जी से ही कस्बे का हर काम होता था। रामप्रताप अपने स्कूल और घर के अलावा बाहर कस्बे में उठना बैठना तक छोड़ चुके थे,वे भानू प्रताप और सुशील की ग़लत सोच का विरोध करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते थे




शाम का वक्त था। रामप्रताप अपने घर के आंगन में बैठे हुए थे,कि अचानक पुलिस का सायरन बजने लगा,भानू प्रताप के घर पर पुलिस की दो गाड़ियां आकर रूक गई।आठ दस जवान एवं पुलिस अधिकारी भानू प्रताप के घर पर पहुंच चुके थे।भानू प्रताप उनसे बात करते हुए जोर-जोर से चिल्लाकर रोने लगा। सुशील की मां कौशल्या फूट-फूट कर रो रही थी। सुनीता बदहवास होकर चीख रही थी। रामप्रताप को किसी अनहोनी की आहट होने लगी।वह पिछली सारी बातें तुरंत भानू प्रताप के पास पहुंच गया। सामने खड़े पुलिस इंस्पेक्टर की बात सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। पुलिस की गाड़ी में सुशील का शव रखा हुआ था।सुशील की हत्या हों चुकी थी। उसके किसी दुश्मन ने उस पर घात लगाकर हमला करके उसे मौत की नींद सुला दिया था। सुनीता और सुशील की मां कौशल्या सुशील के शव से लिपटकर विलाप कर रही थी। रामप्रताप का शरीर थर-थर कांपे जा रहा था। सामने रामप्रताप को देखकर भानू प्रताप उससे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगा। रामप्रताप उसे चुप कराने का असफल प्रयास कर रहा था।”रामप्रताप मेरे भाई! मैंने अपने इकलौते लड़के की हत्या का जिम्मेदार हूं, मेरी वजह से ही आज उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई”कहते हुए भानू प्रताप रामप्रताप से लिपटकर रोने लगा।”दादा! अगर आपने सुशील को ग़लत राह पर जाने से रोका होता, तो शायद आज हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता?”कहते हुए रामप्रताप की आंखों से आंसू टपकने लगें।”तुम ठीक कहते हो रामप्रताप! मैं झूठे अभिमान में अंधा हो गया था, मुझे यह भी होश नहीं रहा कि ग़लत का अंत भी एक दिन ग़लत ही होता हैं?”भानू प्रताप खुद के मुंह पर थप्पड़ मारकर चिल्ला-चिल्ला कर बोल रहा था।”दादा!अब पछताने से क्या फायदा”रामप्रताप भानू प्रताप को संभालते हुए बोला।”नहीं मैं हूं,अपने बेटे का हत्यारा,वह जितने ग़लत काम करता था,उन सबका मैं बराबर भागीदार हूं,मुझे सजा मिलनी चाहिए”कहते हुए भानू प्रताप अपना सिर पीटने लगा। सुनीता के चेहरे से घमंड की चादर हट चुकी थी। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। उसके पास जिन्दगी भर आंसू बहाने के सिवा और कोई चारा नहीं था।उसका अभिमानी घमंडी चेहरे में डर साफ़ नज़र आ रहा था। भानू प्रताप अपना मानसिक संतुलन खो चुका था। रामप्रताप अपने भाई की हालत, और भतीजे के पार्थिव शरीर को देखकर विचलित हो रहा था। उसके मन-मस्तिष्क में एक ही सवाल गूंज रहा था कि काश दादा ने उसकी बात मान ली होती और सुशील को ग़लत राह पर चलने से रोक लिया होता।

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित

अप्रकाशित कहानी

लखनऊ

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