एक अकेला – आभा अदीब राज़दान

नंदा और मैं हम दोनों ही कितने अलग थे हमारी कोई एक बात भी तो नहीं मिलती थी, बिलकुल पूरब और पश्चिम । आनंद जी को सारी बातें अब एक एक कर के याद आती जा रही थीं ।

” मैन फ़्रोम मार्स वुमन फ़्रोम वीनस, मजाल है जो कभी भी हमारी राय मिल जाए मैं जो भी कहती हूँ तुम को कभी समझ ही नहीं आता है ।” हमेशा नंदा यही कहा करती थी ।

” नंदा तुम तो यह चाहती हो कि मैं बस तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाता रहूँ ।” आनंद कहते ।

जब बच्चे पढ लिख गए उनके ब्याह हो गए और वह शहर से बाहर भी चले गए । ज़िम्मेवारियां भी सब पूरी हो गयी, तब धीरे धीरे उन दोनों में बहुत नजदीकियां आ गयी थीं एक दूसरे को अब बहुत समझने लगे थे । दोनों ही मन ही मन सोंचते कि हम दोनों तो एक से ही हैं हमारी सोंच भी बिलकुल एक सी है । पहले दोंनो ही शायद अपने फ़र्ज़ निभाने में इतने व्यस्त रहते कि झल्लाहट एक दूसरे पर ही निकाल दिया करते थे ।

अब तो एक की बात पूरी भी नहीं होती कि दूसरा पहले ही समझ जाता था । बिलकुल जैसे मेड फार ईच अदर ही थे । वानप्रस्थ आश्रम भी बहुत शांति से चल रहा था कि एक छोटी सी बीमारी के बाद नंदा को ब्लड कैंसर डायग्नोस् हुआ और चटपट तीन महीने में ही वह पंचतत्व में लीन हो गयी ।

अंतिम संस्कार तेरहवीं पूजा पाठ सब हो गया । बच्चों ने कुछ दिन पापा को बहुत स्नेह से संभाला भी । पापा से अपने साथ चलने का बहुत आग्रह भी किया था लेकिन आनंद अभी यहीं रहना चाह रहे थे । बच्चे कुछ दिन बाद वापस चले गए हैं । आनंद अब  नंदा की यादों के सहारे रह रहे थे ।

शाम का समय था, इधर कई बरसों से शाम की चाय आनंद जी ही बनाया करते । आज भी उन्होंने दो कप चाय बनाई थी । ट्रे में अकेला रखा एक कप उनको अच्छा ही नहीं लगता है । अभी भी वह यहीं सोंच रहे थे बल्कि एक तरह से तो अपनी प्रिय पत्नी से बात ही कर रहे, हम दोनों में सामंजस्य कितना सुंदर था यह बात हमको कितनी देर से समझ आई । और जब समझ आई तब नंदा तुम ने तो धोखा ही दे दिया । जिंदगी तो अब जीनी शुरू ही की थी ।

आनंद ने देखा पंखे की हवा से नंदा की तस्वीर पर चढी चंदन की माला कुछ टेढी हो गयी थी । बीच का लाल रंग का फूल साइड में आ गया था । उठ के उसको सही किया और बोले, ” नंदा तुम बिना वजह ही क्यों चली गयीं यार …. आराम से बैठ कर अभी मेरे संग चाय पी रही होतीं ।”

आभा अदीब राज़दान

लखनऊ

 

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