एक ऐसा रिश्ता – मधु झा

जो तुमने किया ,वो तुम थे,जो मैंने किया ,वो मैं थी,,

जो तुम कर रहे ,वो तुम हो ,

जो मैं कर रही ,वो मैं हूँ,,

जो तुम करोगे ,वो तुम होगे,

जो मैं करूँगी,वो मैं रहूँगी,,

और इस मैं और तुम में बहुत अंतर था,,और रहेगा भी,,

अफ़सोस कि मैं और तुम कभी हम हो ही नहीं पाये,,।अक्सर ये सोचते हुए शिवानी की आँखें नम हो जाती थी।

वो कुछ दिनों का साथ शायद जीवन का एक हादसा ही था,,जिसे ईश्वर ने किस्मत में लिख रखा था,,।

मगर जीवन का यह हादसा उसे बहुत कुछ सिखा गया,,अब बहुत सोच-विचार कर किसी से मिलना या बातें करना सीख गयी,,यूँ ही आँखें बंद कर यक़ीन करना छोड़ दिया,,आज तक सबको अपना ही समझने की गलती कर रही थी मगर यहाँ अधिकतर पराये ही होते हैं, ये समझा गया और सबसे एक सीमित दूरी में रहना सिखा गया,, हर किसी को शक की नजर से देखना सिखा गया,,जो आज के ज़माने में बहुत जरूरी है,,।यहाँ तक कि प्रेम से भी विश्वास उठ गया था उसका शायद,,। मगर,,,मगर,,, नहीं,,

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नहीं,,ऐसा नहीं हो सकता ,, गलत सोच गयी मैं,,,,प्रेम कभी बुरा नही हो सकता,,,प्रेम करने वाले बुरे हो सकते हैं ,,प्रेम को गलत रूप देने वाले बुरे हो सकते हैं,,प्रेम बिना स्वार्थ के हृदय का एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें किसी दूसरे की भी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए,, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए कि हम जिसे प्रेम करते हैं ,वो भी हमें उतना ही प्रेम करे,,फिर तो सौदा हो गया,,, ये तो एक ऐसा अनोखा और सच्चा रिश्ता होना चाहिए जिसे सोच कर ही मन तृप्त हो जाये,।

अस्पताल के बेड पर पड़ी शिवानी मन ही मन सोच रही थी।

कुछ ऐसा ही तो रिश्ता था शिवानी का मनोज से ,,शिवानी ने आँख मूंदकर मनोज पर भरोसा किया और सच्चे हृदय से प्रेम किया,मगर मनोज ये समझ न सका,, शायद वो इस लायक ही न था,,

उसकी तो फ़ितरत ही थी ,आज यहाँ,कल वहाँ,, मगर भोली शिवानी ये समझ न सकी,,

समझी तब जब बहुत देर हो चुकी थी,, मगर शिवानी ने तो सच्चा प्रेम किया था और मरते दम तक करना चाहती थी और करके दिखा भी दिया,,।बस एक ख़्वाहिश थी उसके मन में कि विदा लेने से पहले वो एक बार मनोज को देखना चाहती थी,,

उसके गले लगना चाहती थी,,

शायद इसी वजह से उसके प्राण भी अटके पड़े थे,,छूट नहीं रहे थे।

मनोज के बाद शिवानी कभी किसी और के लिए वो भाव ही नहीं ला पायी ,, मनोज की यादें ही उसके साथी थे और इन्हीं यादों के सहारे पूरी ज़िन्दगी गुजार दी,,।

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बस,, आफ़िस और घर ,और मनोज की यादें ,,यहीं तक सीमित कर लिया था अपनी ज़िन्दगी को,,और वो खुश थी,।

आज दस दिनों से शिवानी अस्पताल में भर्ती थी ,,डाक्टर्स ने भी उम्मीद छोड़ दी थी,,मगर उसके प्राण हैं कि निकल ही नही रहे थे,,निकलते भी कैसे,,उसे तो इंतज़ार था किसी का,,,,

और कहते हैं न कि किसी चीज को दिल से चाहो तो सारी क़ायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है,,।

और सच में एक दिन यही चमत्कार हुआ। रोज राउंड पर आने वाले डाक्टर के साथ आज एक नया डाक्टर जिसे स्पेशियली शिवानी के इलाज के लिये दूसरे शहर के बड़े अस्पताल से बुलाया गया था,,

शिवानी को देखने आये,,बेड के पास जाकर डाक्टर ने शिवानी की नब्ज देखनी शुरु की,,

और ये क्या,, अचानक मृतप्राय सी पड़ी शिवानी के होंठ धीरे से मुस्कुराये और आँखें बड़ी हो गयी,,म,,,नो,,,ज,,,,।बस यही उसके अंतिम शब्द थे,,।

सचमुच उसने एक ऐसा रिश्ता निभाया जिसका कोई नाम न था ,,जिससे कोई काम न था,,बस भाव थे,,एहसास  थे ,,।

मधु झा,,

स्वरचित,

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