क्या भाग्य है !! – भगवती सक्सेना गौड़

रीमा अपनी सबसे प्यारी करीबी सखी करुणा की बहू अमिता से हर हफ्ते एक बार फ़ोन पर बात कर ही लेती थी। एक दुर्घटना में करुणा बुरी तरह घायल हो गयी थी,  दो वर्ष से बिस्तर पर ही थी, और उनका सारा काम उनका बेटा श्रवण और बहू अमिता ही करते थे। आज के युग मे जहां हर तरफ बहू, बेटे की बुराई ही फैली थी, कहानियों में भी लोग ज्यादातर ढूंढ ढूंढ कर कमियां लिखते थे, वहां ऐसे श्रवण कुमार भी दुनिया मे हैं, ये रीमा ने आंखों से देखा था, क्योंकि पहले वो उन्हीं की कॉलोनी में रहती थी। करुणा के बेटे श्रवण की शादी में भी उपस्थित थी और शादी के गीत ढोलक बजाकर उसने खूब गाये थे। उस समय कभी कभी वो अपनी ही सखी करुणा के व्यवहार से चिंतित हो जाती थी। बहू को हमेशा ताना देना, प्रताड़ित करना, फिर भी उस समय उंसकी बहू अमिता घर के सब काम करती और सब सहती थी।

उसके स्वर्गवासी पति ने बहू भी हीरा जैसी ही पसंद किया था, उन्होंने सूरत नही सीरत पर ज्यादा ध्यान दिया था। पहले समाज मे सब सोचते थे कि रमन को बहुत सुंदर दुल्हन मिल सकती थी। यही सोचते सोचते रीमा अपनी सखी के बारे में सोचने लगी, कुछ वर्षों तक यही बहू की बहुत बुराई करती थी, पता नही क्या सोचकर इन्होंने अपने दोस्त की लड़की को पसंद कर लिया, वरना एक जगह तो लड़की वाले मेरे अमन को पेट्रोल पंप का मालिक बना रहे थे। एक बार तो अमिता के पापा बहुत बीमार थे, उस समय फ़ोन की बहुत सुविधा नही थी, किसी परिचित से खबर मिली, पर करुणा ने उसे जाने नही दिया, तुम क्या करोगी जाकर, बेकार किराया भाड़ा लगाकर जाओगी, एक चिट्ठी लिख दो। उस वक़्त भी रीमा ने करुणा को समझाया था, बहू को मायके क्यों नही जाने देती, पर सासु की पदवी पाते ही उसके मन से करुणा के भाव कहीं छुप गए थे।




 एक दुर्घटना में पैर खो बैठी, और अब बिस्तर की होकर रह गई। दो वर्ष से चौबीस घंटे उनकी एकलौती औलाद अमन बेटा, बहू उनको उठाना, बैठाना, नहलाना, खिलाना, पिलाना सब स्वयं करते हैं। अमिता अपने दो छोटे नौनिहालों के जैसे ही सासु को भी संभालती है , उसने बुजुर्गों की सेवा करना अपनी सीधी शांत मम्मी से सीखा था और दादी की सेवा में उनको व्यस्त देखा था, वाह रे नारी, तेरी अजब कहानी।

 वो बहू अमिता जो उनसे बहुत डरती थी, कि पता नही अब क्या बोल दें, उनको देखते ही खड़ी हो जाती थी, आज उनका हर काम वो प्रेमभाव से करती थी।  ईश्वर ने हर किसी के स्वभाव की रचना भिन्न तरह से रची है । शायद सबके अपने कर्म है, जिसके अनुसार ही वो औलाद पाते हैं। 

#औलाद

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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