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दो चेहरा -नीलम सौरभ

पूरे मोहल्ले की खबरी विमला बाई पोंछा लगाते घर की मालकिन मेनका जी को बताने लगी,

“अम्माँ जी! आपने सुना, पड़ोस वाले मिसिर जी का बेटा सक्षम एक लड़की को भगा लाया है! …माँ-बाप दोनों सदमे में हैं, दूसरे जात की लड़की..फिर 15-20 लाख का नुकसान भी हो गया न, तिलक की रकम का!”

एक छोटे से विवाद के कारण मिसिर जी यानी रमन मिश्रा के परिवार से मेनका जी के परिवार की बातचीत बहुत दिनों से बंद थी। यह ख़बर सुनते ही उनका चेहरा चमक उठा। मन हुलसाने वाली बात थी यह उनके लिए।

“अरे वाह! एकदम्मे ठीक किया उसने। अउर जादा, अउर जादा बोल बोल के..दहेज के लालच में आने वाला हर रिश्ता मा खोट निकाल के मना कर दे रहे थे मिसरा-मिसराइन। हमारी नजर में सक्षम मर्द है मर्द! ..छाती ठोंक कर ले आया अपनी पसंद की लड़की!”

सोफे पर बैठी टीवी के रिमोट के साथ आँखें नचाते हुए वे बोलीं।

“पर माँजी, माँ-बाप के अरमानों का क्या?..सालों-साल पाला-पोसा, पढ़ाया, किसी लायक बनाया। ऐसे घर के बड़े लोगन का दिल तो नहीं दुखाना चाहिए था न अपनी ही मनमानी चला के!”  विमला ने हाथ रोक कर सोचने की मुद्रा बनाते हुए कहा।

“अरे ख़ुद बच्चों के अरमान का कुछ नहीं का? बेटा के नया उमर अउर नया जिनगी। फिर..लड़की से वादा किया था बियाह का तो निभाया भी, यह तो ऊँचा चरित्र का सबूत है न!”

“हाँ अम्माँ जी, ये तो है!” उनके तर्कों के आगे परास्त होकर विमला को स्वीकार करना पड़ा।

“और बता, सड़क पार वाली कॉलोनी की कोई नयी ख़बर?”

“हाँ है न माँजी!” विमला कुछ याद करती हुई बोली।

“क्या खबर? बता, जल्दी बता!”  मेनका जी के चेहरे पर आतुरता उभर आयी थी।

 “वो सोना याद है न आपको? …अरे वही आपके किट्टी वाली प्रभा देवी की बिटिया! ..उसने न, कल आर्य समाज मन्दिर में अपना पसन्द के लड़का से बियाह कर लिया। पता लगा है, कालिज में साथ ही पढ़त रहे दोनों। एक ही बैंक में नौकरी भी लग गयी रही..!”

“हाय-हाय! राम-राम-राम!! …क्या होता जा रहा है री आजकल की इन लड़कियन के? माँ-बाप की इज्ज़त का कोई ख़याले नहीं है! माना अपने पाँवन पर खड़ी हो गयी हैं, लेकिन इज्ज़त, मान-मर्यादा भी कुछ होत है? …जादा पढ़-लिख के तो उल्टा चरित्रहीन होवत जा रहीं ई लड़कियाँ!”  चेहरा एकदम से बदल गया मेनका जी का। गुस्से से लाल हो आया। बुरा सा मुँह बनाकर वो नयी पीढ़ी की लानत-मलामत करने लगीं।

विमला बाई हाथ का काम छोड़कर दुविधा में पड़ी उनका दोहरा चेहरा देखने लगी। चेहरे के साथ ही उनके द्वारा समझायी गयी चरित्र की दोहरी परिभाषा पर बेचारी का छोटा सा दिमाग अटक कर रह गया था।

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स्वरचित, मौलिक

नीलम सौरभ

रायपुर, छत्तीसगढ़

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