दिल का एक खाली कोना – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : पच्चीस साल बीत जाने के बाद भी स्मृतियों में सपनों में अक्सर कश्मीर का  सबसे बड़ा शहर  श्रीनगर जो  जम्मू कश्मीर की  ग्रीष्म कालीन राजधानी भी है ,स्वत: हीं आ जाता है.. विभिन्न संस्कृतियों  भाषाओं से समृद्ध ये खूबसूरत पर्यटन स्थल  मेरी जिंदगी का एक खूबसूरत अभिन्न   हिस्सा  है..

                 अठारह साल की उम्र में साधारण लड़कियां भी खिल उठती है.. मैं तो कश्मीरी पंडितों के परिवार में जन्म ली हुई कन्या थी… दूधिया रंग सेव जैसे गाल कमर को छूती लंबी नागिन जैसी चोटी, लंबा कद, पतली ग्रीवा, मोतियों जैसी धवल दंतपंक्ति, मृगनयनी सी आंखें… बरबस किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता…

इंटर में पढ़ रही थी.. पापा एयर फोर्स में ऑफिसर थे… भैया दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे… छोटी बहन अपर्णा और एक छोटा भाई अर्णव मम्मी पापा और मैं एक साथ रहते थे…

                   मुझे कॉलेज में हुए डिवेट में प्रथम पुरस्कार मिला था.. मैं खुशी में दौड़ते हुए पापा पापा करते लॉन में चली गई जहां पापा कॉफी पी रहे थे, खुशी और अपनी धुन में दौड़ती भागती बिना कुछ देखे मैं पापा के गले से लिपट गई पापा ये देखिए मैने क्या जीता है… पापा थोड़ा असहज हो उठे, देखता हूं अनन्या … ओह मैं भी एक अपरिचित व्यक्ति को देख थोड़ी असहज हो उठी… चलती हूं कहते हुए मैं वापस आ गई पर मेरी नजरों में छः फिट का वो खूबसूरत नौजवान  जो मेरी बेसब्री पर मुस्कुरा रहा था, बस गया.. कार्तिकेय सा रूप वाला ये नौजवान कौन है… मैं कैसे पता करूं….

                             मेरी नींद मेरा चैन सब एक पल में हीं लूट चुका था… बैचलर था अनुज, पापा से खूब जमती थी.. इसलिए ड्यूटी ऑफ होने पर पापा बुला लेते .. दोनो खूब गप्पे मारते.. धीरे धीरे अनुज घर के सदस्य जैसा हो गया था…

          बहुत कोशिश के बाद पता चला अनुज कुमार एयर फोर्स में कैप्टन है पंजाब का है.. अभी ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग है…

अगर मंजिल को पाने की हसरत को पूरा करने की अदम्य इच्छा शक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं है… और मेरी मंजिल अनुज था..

                                     फिर  कुछ हीं समय बाद हम दोनों कभी डल झील, कभी मुगल गार्डन तो कभी शालीमार गार्डन निशात गार्डन की खूबसूरती का आनंद लेने लगे… अनुज मेरी सुंदरता मासूमियत और अलहड़ता पर मर मिटा था…

कभी शिकारा की सवारी तो कभी घुड़सवारी उफ जन्नत जैसी जिंदगी थी जमीं पर…

 भैया डीएसपी बनने वाले थे ट्रेनिंग के बाद… छुट्टियों में दो दिन के लिए घर आए थे.. अनुज थोड़ी देर के लिए उनसे मिला था.. और उसने ताड़ लिया था कि जात पात को भैया बहुत मानते हैं.. कट्टरपन की हद तक… ऑनर किलिंग को भैया बिल्कुल सही मानते थे…

अनुज ने मुझसे कहा भैया जब तक ट्रेनिंग में हैं तब तक हमारे पास समय है शादी कर सकते हैं.. तुम कल सोच के मुझे जवाब देना..

                        पूरी रात उधेड़ बुन में कटी.. और मैने फैसला ले लिया था…

दोस्तों की मदद से हम कश्मीर से निकल आए..

लखनऊ अपने एक दोस्त के पास अनुज लेकर मुझे आए..

पहले कोर्ट में हमारी शादी हुई…

फिर अपने परिवार वालों की उपस्थिति में गुरुद्वारे में हमारी शादी हुई.. मैं अब एक पंजाबी परिवार की बहु बन गई थी.. अनुज ने पहले हीं अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.. मेरी उम्र भी इक्कीस साल हो चुकी थी.. अब मैं अनन्या अनुज मेहरा बन गई थी..

                      तीन महीने ससुराल में रही बिजी मुझे नन्ही बच्ची सा दुलार करती.. मेरी खूबसूरती और भोलापन उन्हें भा गया था.. सास ससुर की मैं लाड़ली बन गई थी.. देवर ननद से भी गहरी छनती थी…

                              अनुज अपने दो दोस्तों के साथ बिजनेस शुरू किए थे..

सिंगापुर  के ब्रांच का जिम्मा अनुज को मिला था… अगले महीने हमे सिंगापुर जाना था..

             एयरपोर्ट जाने से पहले मैं घरवालों के साथ गुरुद्वारे गई माथा टेकने… बाबा जी से वाहे गुरु से अपने ससुराल और मायके की सलामती की अरदास लगाई…

                            तीन साल की माही और एक साल का मोहित दो बच्चे भगवान ने मेरी झोली में डाल दी… अनुज का प्यार मेरे लिए पहले जैसा हीं था… एक बार मैने मायके जाने की जिद की, अनुज ने पहले तो बहुत टाला फिर श्रीनगर के अपने दोस्त से बात करवाई…

             दोस्त बोला भाभी आपका भाई आज भी पिस्टल लेकर आप दोनो को पागलों की तरह खोजता है.. बहुत कोशिश की किसी तरह पता चल जाए पर आपकी किस्मत अच्छी है…

                          और फिर सात साल बाद वापस इंडिया आ गए.. बेंगलुरु में हमलोग और हमारा व्यापार शिफ्ट हो गया…..

                      अनुज का प्यार बच्चों का साथ ससुराल का लाड़ दुलार सब कुछ तो भरपूर मिला है मुझे पर दिल का एक खाली कोना क्यों मम्मी पापा और भाई बहन तथा सखियों के लिए रोता है…

                          पच्चीस साल देखते देखते गुजर गए… माही और मोहित सेटल हो गए हैं… माही के पसंद के लड़के से अगले महीने शादी है…

                     मेरा मन उदास है मायके से कोई नहीं होगा मेरी लाड़ो की शादी में.. मामा का नेग कौन करेगा…

                                    पापा नही रहे! ये खबर एक सप्ताह बाद अनुज के दोस्त ने दी.. अनुज से लिपट के कितना रोयी मैं… एक दिन मां भी ऐसे हीं…. भैया और छोटे भाई बहन की शादी भी हुई पर मैं उफ्फ…

अनुज के कलेजे से लगे मैं घंटों आंसू बहाती रही मेरे बालों में उंगलियां फिराते अनुज मुझे समझाते रहे…

                       ये कमी ये दर्द शायद मेरी जिंदगी का हिस्सा है… फिर भी ये बावरा मन अक्सर श्रीनगर की हसीन वादियों में कभी मम्मी पापा भैया छोटे भाई बहन के पास चला हीं जाता है और खाली हाथ आंसुओं की सौगात लिए वापस लौट आता है…

              सच हीं कहा गया है कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कभी जमीं तो कभी……….

 #आंखें चार होना  

  वीणा सिंह

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