अधिकार- कामिनी मिश्रा कनक: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :अरे दीदी आप को आए हुए 1 महीने से ऊपर हो गए । जीजा जी से कोई अन- बन हुई है क्या ….?

अरे भाभी तुम कैसी बातें करती हो , ऐसा कुछ नहीं हुआ है ।

भाभी –  नहीं नहीं दीदी मुझे गलत मत समझो लेकिन 1 महीने से ऊपर हो गए हैं , अब आस पास के लोग भी  पूछने लगे हैं । कि दीपा इतने दिनों से यहां क्यों है..?

दीपा:- भाभी वह कौन होते हैं पूछने वाले और उन्हें क्या फर्क पड़ता है , मैं यहां रहूं या अपने ससुराल में , क्या मैं उनके घर में जाकर खाना खाती हूं ।

भाभी आजकल के लोग भी ना चैन से रहने नहीं देते हैं ।

भाभी:-दीपा दीदी आप समझ नहीं रही है आस पास के लोग पूछते ही हैं । 

दीपा:-भाभी रहने दो उनकी तरफदारी मत करो ।

भाभी:- दीदी  उन्हें फिक्र है आपकी , तभी तो पूछते हैं ।

दीपा:-क्या मतलब है ,उन्हें पूछने का और आप उन्हें बता नहीं सकती हैं । 

यह मेरा भी घर है , क्या इस घर में मेरा अधिकार नहीं है ।

भाभी:- दीदी है ना अधिकार परंतु यहां से ज्यादा आपके ससुराल में आपका अधिकार है ।

दीपा:-बस , बस भाभी मैं जानती हूं , मैं ही आपके आंखो में खटक रही हूं । 

भाभी:-नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है ।

दीपा:-बस भाभी तुम तो चुप ही हो जाओ ।आज भैया को आने दो , मैं भाई से बात करूंगी आपकी जुबान भी बहुत चलने लगी है ।

भाभी:-दीदी ऐसी बात नहीं है । आप गलत समझ रही है।

दीपा:-तुम रहने दो तुम अब मुझे सिखाओगी कि क्या गलत है और क्या सही है । तुम्हें तो आज भाई ही ठीक करेंगे ।

भाभी:-दीदी आप को समझाना मेरे बस की बात नहीं है मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा रही हूं , यहां रहूंगी तो आपसे बहस का मुद्दा बढ़ता ही जाएगा ।

अगर मेरी बात आपको गलत लगी तो मुझे क्षमा कीजिए ।

दीपा:-डर गई ना तुम भाई के नाम से ।

तभी निधि (दीपा की भाभी )बाहर चली जाती है ।

दीपा:- भाई तू आ गया… 

भाई:- हा दीदी कैसी हो आप…?

दीपा:-भाई मैं ठीक नहीं हूं तेरी घरवाली के आंखों में  मैं खटकने लोगी हूं।

भाई:-क्यों क्या हुआ…? उसने कुछ कहा आपसे ।

दीपा:-हा भाई…. तू एक बात बता क्या इस घर में मेरा अधिकार नहीं है ।

भाई:-है ना दीदी बिल्कुल है ।

दीपा:-तेरी बीवी बोलती है मुझे की इस घर में मेरा अधिकार नहीं ,  मेरा अधिकार बस ससुराल में है ।

भाई:- दीदी यहां भी हैं अधिकार , परंतु इस तरह से आप अपना घर छोड़कर यहां कब तक रहोगी। और आपको तो पता है कि मैं भी प्राइवेट नौकरी करके दो वक्त का गुजारा किस तरह से करता हूं ।

दीपा:-भाई तू भी अब ऐसी बातें बोलेगा ।

भाई:-दीदी मैं कहना तो पहले ही चाहता था , किंतु मैं चुप था मुझे लगता था कि शायद आप अपने आप ही समझ जाओगी । 

दीपा उदास होकर अपने छोटे भाई की बात सुनते हुए ।

दीपा -आज माँ और पिताजी होते तो मुझे यहां से कभी जाने के लिए नहीं कहते ।

भाई -दीदी  माँ और पिता जी भी आपकी खुशी चाहते।

वह भी यही चाहते कि आप खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ रहे । निधि भी तो हर सुख दुख में मेरे साथ रहती है । 

दीपा – हाँ  हाँ  ठीक है , …. तू जीजा जी को फोन कर दे …मैं अब यहां नहीं  रहूंगी।

इस घर पर मेरा अधिकार नहीं है ।

भाई – दीदी आपका मुझ पर पूरा अधिकार है , आप जब चाहो तब अपने परिवार के साथ खुशी खुशी यहा आ सकती हो ।

तभी निधि (दीपा की भाभी) वहा  आ जाती है …..

दीपा:- भाभी मुझे माफ कर दो । आप भी तो अपने माँ -पिताजी का घर छोड़ कर , मेरे भाई के साथ हर सुख दुख में इस घर को संभालने में  लगी रहती हो । अब मैं भी अपने पति और बच्चों के साथ ही रहूंगी ।

निधि:-दीदी देर आए दुरुस्त आए …… आप हम सब के दिल में हो , आप जब चाहो हम सब से मिलने आ सकती हो ।

दीपा –  हाँ ,   हाँ  ठीक है मायके में इतना ही अधिकार मिलना चाहिए ।

मुस्कुराते हुए दीपा अपने ससुराल चली जाती है ।

कामिनी मिश्रा कनक

#अधिकार

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